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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न .अनेक नीतिगत उपायों और संवैधानिक सुरक्षा उपायों के बावजूद, भारत में मैला ढोने की कुप्रथा (मैनुअल स्कैवेंजिंग) अभी भी जारी है। कानूनी प्रतिबंधों और लक्षित कल्याणकारी पहलों के बावजूद इसके जारी रहने के कारणों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    26 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा (मैनुअल स्कैवेंजिंग) पर विधिक प्रतिबंध का उल्लेख कीजिये और फिर इस कुप्रथा के जारी रहने को स्वीकार करते हुए संदर्भ निर्धारित करें। को रेखांकित कीजिये, साथ ही इस तथ्य की भी पुष्टि कीजिये कि यह कुप्रथा आज भी प्रचलन में है।
    • मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने के लिये सरकार की पहलों का परीक्षण करते हुए इस कुप्रथा के जारी रहने में योगदान देने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिये तथा इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिये प्रभावी उपाय भी प्रस्तावित कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    हालाँकि वर्ष 1993 से हाथ से मैला ढोने वालों का नियोजन और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 के तहत आधिकारिक तौर पर हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा (मैनुअल स्कैवेंजिंग) पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन सामाजिक, आर्थिक, संरचनागत और प्रशासनिक चुनौतियों की जटिलताओं के कारण मैनुअल स्कैवेंजिंग जारी है। देश के 775 ज़िलों में से 465 में मैनुअल स्कैवेंजिंग का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है (जनवरी 2025 तक), जो दर्शाता है कि यह कुप्रथा अभी भी 310 ज़िलों में जारी है।

    मुख्य भाग:

    मैनुअल स्कैवेंजिंग के पूर्णतः निषेध करने के लिये संवैधानिक सुरक्षा और नीतिगत उपाय:

    संवैधानिक सुरक्षा उपाय:

    • अनुच्छेद 14: मैनुअल स्कैवेंजर को भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो सभी को समानता प्रदान करने के संवैधानिक वादे के विपरीत है।
    • अनुच्छेद 17: यह कुप्रथा अस्पृश्यता, जिसे संविधान द्वारा समाप्त एवं निषिद्ध किया गया है, पर आधारित है।
    • अनुच्छेद 21: हाथ से मैला ढोने की अपमानजनक एवं खतरनाक परिस्थितियाँ जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करती हैं।

    नीतिगत उपाय:

    • विधायी उपाय: हाथ से मैला ढोने वालों के नियोजन का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, (PEMSRA), 2013 इस प्रथा को प्रतिबंधित करता है तथा प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास की व्यवस्था करता है, जिसमें मृतक सफाईकर्मी के परिजनों को रोज़गार एवं उनके बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान शामिल है।
      • हाथ से मैला ढोने वालों का नियोजन और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 के अंतर्गत मैनुअल स्कैवेंजिंग एवं अस्वास्थ्यकर शौचालयों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाया गया है।
      • सिविल अधिकार सरंक्षण अधिनियम, 1955 एवं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करते हैं।
    • योजनाएँ और संस्थागत समर्थन: NAMASTE योजना (वर्ष 2023) का उद्देश्य स्वच्छता कार्यों के यंत्रीकरण को बढ़ावा देना तथा हाथ से मैला ढोने वालों का पुनर्वास सुनिश्चित करना है। स्वच्छ भारत मिशन (शहरी 2.0) के अंतर्गत यंत्रीकरण और सुरक्षित स्वच्छता अवसंरचना हेतु धन आवंटित किया जाता है।
    • नेशनल सफाई कर्मचारी फाईनेंस एंड डेवलेपमेंट कारपोरेशन (NSKFDC) सफाई कर्मचारियों को वित्तीय और गैर-वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
      • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्तीय विकास निगम सफाई कर्मचारियों को वित्तीय एवं गैर-वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
      • राष्ट्रीय गरिमा अभियान का उद्देश्य हाथ से मैला ढोने वालों का सामाजिक सशक्तीकरण और गरिमा की पुनः स्थापना करना है, जिसे जागरूकता, जनसंवाद एवं पुनर्वास पहलों के माध्यम से क्रियान्वित किया गया है।
      • मैनुअल स्कैवेंजरों के पुनर्वास के लिये स्वरोज़गार योजना (SRMS) का कार्यान्वयन हाथ से मैला ढोने वालों के स्वरोज़गार और आर्थिक पुनर्वास पर केंद्रित है।

    इन उपायों के बावजूद, निम्नलिखित कारणों से मैनुअल स्कैवेंजिंग जारी है:

    • सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: मैनुअल स्कैवेंजिंग जाति-आधारित भेदभाव से गहराई से जुड़ा हुआ है, जिसमें सीमांत समुदायों, विशेष रूप से दलितों को इस अपमानजनक व्यवसाय में विवश किया जाता है।
      • कानूनों के बावजूद सामाजिक कलंक की स्थायित्वपूर्ण भावना और जातीय पदानुक्रम की सांस्कृतिक स्वीकृति इस कुप्रथा की निरंतरता में योगदान देती है।
    • आर्थिक बाधाताएँ: गरीबी और वैकल्पिक आजीविका का अभाव कई मैनुअल स्कैवेंजरों को इस खतरनाक काम को जारी रखने के लिये विवश करते हैं।
      • पुनर्वास कार्यक्रम स्थायी रोज़गार या कौशल विकास प्रदान करने में अपर्याप्त रहे हैं, जिसके कारण मैनुअल स्कैवेंजिंग पर आर्थिक निर्भरता बढ़ रही है।
    • अवसंरचना संबंधी कमियां: कई क्षेत्र अभी भी अस्वास्थ्यकर शुष्क शौचालयों और पुराने स्वच्छता अवसंरचना पर निर्भर हैं, जिनकी मैन्युअल सफाई की आवश्यकता होती है।
    • मशीनीकरण की धीमी गति और आधुनिक सफाई प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता का अभाव, मैनुअल स्कैवेंजिंग की आवश्यकता को कायम रखता है।
    • लापरवाह प्रवर्तन और प्रशासनिक विफलता: PEMSRA अधिनियम जैसे सख्त कानूनों के बावजूद, अकुशल निगरानी, ​​भ्रष्टाचार और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण प्रवर्तन कमज़ोर बना हुआ है।
      • डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ व अन्य मामले (2023) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य की गई व्यापक राष्ट्रीय सर्वेक्षण प्रक्रिया अभी तक पूर्ण रूप से लागू नहीं हो सकी है, जिससे 'हाथ से मैला ढोने' वालों की पहचान और रिपोर्टिंग में भारी कमी बनी हुई है।

    इन चुनौतियों से निपटने हेतु निम्नलिखित उपाय किये जाने की आवश्यकता है:

    • मानवाधिकार आयोग (NHRC) की अनुशंसाएँ: वर्ष 2013 के अधिनियम में सफाई कर्मचारियों और 'हाथ से मैला ढोने' वालों के बीच स्पष्ट अंतर किया जाना आवश्यक है।
      • डी-स्लजिंग बाज़ार को विनियमित कर सूचीबद्ध करना, सुरक्षात्मक उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, जन-जागरूकता कार्यशालाएँ आयोजित करना और खतरनाक अपशिष्ट की सफाई के लिये नवाचारों को वित्तीय सहायता प्रदान करना आवश्यक है।
    • जातिगत कलंक को समाप्त करने के लिये जन-जागरूकता और सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देना आवश्यक है।
    • न्यायिक निर्देशों का पालन करना: बलराम सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का कठोरता से अनुपालन करने तथा समय-समय पर सर्वेक्षण कर प्रभावी पुनर्वास और संरक्षण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
    • तकनीकी समाधान: सब्सिडी, जागरूकता अभियान एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तीय बाधाओं और प्रतिरोध को दूर करके केरल के रोबोटिक सफाईकर्मी ‘बैंडिकूट’ जैसे नवाचारों के व्यापक उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • बुनियादी अवसंरचना: स्वच्छता बुनियादी अवसंरचना को उन्नत करने के लिये बेहतर सीवेज और सीवेज उपचार प्रणालियों में निवेश की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष:

    विधिक प्रतिबंधों एवं कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद, जातिगत भेदभाव, गरीबी, अविकसित बुनियादी अवसंरचना और प्रवर्तन की कमज़ोरी के कारण 'हाथ से मैला ढोने' की कुप्रथा अब भी जारी है। इसका उन्मूलन कठोर प्रवर्तन, सामाजिक सुधार, बेहतर स्वच्छता तकनीक और प्रभावी पुनर्वास के माध्यम से ही संभव है। इस दिशा में सभी हितधारकों का समन्वित प्रयास ही प्रभावित समुदायों को गरिमा और समानता सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।

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