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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    यद्यपि 17वीं-18वीं सदी में इंग्लैंड में हो रहे सामाजिक, आर्थिक एवं तकनीकी रूपांतरणों ने भावी औद्योगिक क्रांति का आधार तैयार कर दिया था, फिर भी इसमें प्राणवायु का संचार भारत द्वारा ही किया गया। टिप्पणी कीजिये।

    05 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में औद्योगिक क्रांति की परिभाषा लिखें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में औद्योगिक क्रांति के कारणों को बताते हुए इसमें भारत की भूमिका को स्पष्ट करें ।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त और सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    18वीं और 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन में मशीनों के प्रयोग द्वारा जो त्वरित विकास दर्ज किया गया, उसे औद्योगिक क्रांति के नाम से जानते हैं। इसकी विशिष्टता थी वाष्प शक्ति का प्रयोग, कारखानों की वृद्धि और विनिर्मित सामानों का बड़े पैमाने पर उत्पादन। ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के निम्नलिखित कारण थेः

    • राजनीतिक कारण

    ♦ स्थिर, लचीली एवं सहायक संसदीय सरकार की उपस्थिति।
    ♦ महादेशीय समस्याओं से अलग रहना।
    ♦ मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व।

    • आर्थिक कारण

    ♦ औद्योगिक क्रांति के पूर्व कृषि क्रांति होने से समाज में संपन्नता की स्थिति।
    ♦ ऋण प्रदान करने के लिये वाणिज्यिक संस्थानों की उपस्थिति।
    ♦ इंग्लैंड के व्यापार में बाधाओं की अनुपस्थिति।

    • सामाजिक कारण

    ♦ तेज़ी से बढ़ती शहरी आबादी।
    ♦ भौतिकतावाद में बढ़ता विश्वास।
    ♦ वैज्ञानिक सोच की बढ़ती प्रवृत्ति।

    • प्रौद्योगिकी 

    ♦ स्टील निर्माण में स्मेल्टिंग तकनीक का विकास जिस कारण से स्टील की गुणवत्ता में वृद्धि हुई तथा ईंधन की खपत में कमी आई।
    ♦ स्पिनिंग जेनी/स्पिनिंग म्यूल इत्यादि के आविष्कार से वस्त्रोद्योग में क्रांति आई।
    ♦ स्टीम ईंजन के आविष्कार से कार्यक्षमता में वृद्धि एवं रेलवे ईंजन के आविष्कार से माल ढुलाई में तेज़ी आई।

    • भौगोलिक कारण

    ♦ अधिक कार्य घंटों के लिये अनुकूल मौसम।
    ♦ उद्योगों के लिये कच्चे माल की स्थानीय उपलब्धता।
    ♦ सूती वस्त्रोद्योग के लिये उपयुक्त जलवायविक दशाएँ।

    परंतु इन कारणों ने केवल औद्योगिक क्रांति की आधारशिला रखी। औद्योगिक विकास हेतु कच्चे माल की सतत् आपूर्ति तथा विनिर्मित उत्पाद के विक्रय के लिये बाज़ार की आवश्यकता होती है। ब्रिटेन की इन दोनों आवश्यकताओं की पूर्ति औपनिवेशिक भारत ने की। साथ ही, 1757 के उपरांत भारत से बड़े पैमाने पर धन का निष्कासन हुआ जिसने इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हेतु आवश्यक पूंजी की उपलब्धता को सुनिश्चित किया।

    भारत प्राकृतिक संसाधनों से सदैव संपन्न रहा है, अतः भारत के खनिजों का दोहन शुरू हुआ, वाणिज्यिक कृषि को बढ़ावा दिया गया तथा कपास, गन्ना एवं चाय की खेती को प्रोत्साहित किया गया। ब्रिटेन ने पहले अपने सस्ते उत्पादों द्वारा बाज़ार से भारतीय उत्पादों को प्रतिस्पर्द्धा से बाहर कर दिया तथा बाज़ार पर एकाधिकार कायम कर लिया। भारत में खनिज संसाधनों के दोहन के लिये सस्ते मज़दूर भी उपलब्ध थे तथा भारतीय मजदूरों का प्रयोग इंग्लैंड के अन्य उपनिवेशों में भी खदानों तथा बागवानी फसलों की कृषि जैसे कार्यों के लिये किया गया। सस्ते कच्चे माल की आपूर्ति तथा वृहत् बाज़ार की उपलब्धता के कारण इंग्लैंड में पूंजी निर्माण में तेज़ी आई तथा उद्योगों में निवेश के कारण औद्योगीकरण में और तीव्रता आई।

    अतः भारत ने आपूर्तिकर्त्ता एवं उपभोक्ता दोनों भूमिकाओं में ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति की उन्नति में योगदान दिया। यद्यपि भारत को स्वयं विऔद्योगीकरण तथा आर्थिक दरिद्रता के चरणों से गुज़रना पड़ा।

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