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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    आप भारत के एक ज़िले में ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात हैं, जहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न जाति समूह के लोग रहते हैं। विधिक प्रावधानों एवं सकारात्मक नीतियों के बावजूद, इस ज़िले में जातिगत भेदभाव के मामले प्रचलित हैं। हाल ही में उच्च मानी जाने वाली जाति की प्रमुखता वाले गाँव के एक सरकारी स्कूल के दलित छात्रों के एक समूह ने अपने उच्च जाति के सहपाठियों तथा शिक्षकों द्वारा किये जाने वाले भेदभाव एवं उत्पीड़न की शिकायत करते हुए आपसे संपर्क किया है।

    इन छात्रों का आरोप है कि उन्हें अक्सर अलग बैठाने तथा सामान्य जल स्रोत का उपयोग करने की अनुमति न देने के साथ साथियों एवं शिक्षकों द्वारा उनके प्रति मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है। वे यह भी दावा करते हैं कि परीक्षा में उन्हें उच्च जाति के समकक्षों की तुलना में कम ग्रेड दिये जाते हैं।

    जाँच करने पर आपको पता चलता है कि उपर्युक्त आरोप सही हैं तथा इस स्कूल में दलित छात्रों के प्रति पूर्वाग्रह बना हुआ है। उच्च जाति के सदस्यों के प्रभुत्व वाला यह स्कूल प्रबंधन "परंपरा" एवं "सामाजिक मानदंडों" का हवाला देते हुए इस मुद्दे को हल करने के प्रति भी अनिच्छुक है।

    ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में आप इस स्कूल के जातिगत भेदभाव का समाधान करने के क्रम में इस स्थिति से नैतिक तथा प्रभावी ढंग से किस प्रकार निपटेंगे? दलित छात्रों हेतु न्याय सुनिश्चित करने तथा स्कूल में अधिक समावेशी एवं न्यायसंगत माहौल सुनिश्चित करने के क्रम में आप क्या कदम उठाएंगे?

    12 Apr, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • समाज में जातिगत भेदभाव को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • बताइए कि स्कूल में जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिये ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में इस स्थिति से नैतिक और प्रभावी ढंग से किस प्रकार निपटेंगे।
    • दलित छात्रों हेतु न्याय सुनिश्चित करने के साथ अधिक समावेशी एवं न्यायसंगत वातावरण को बढ़ावा देने के लिये उठाए जाने वाले कदमों पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में कानूनी प्रावधानों एवं सकारात्मक नीतियों के बावजूद जातिगत भेदभाव एक चुनौती बना हुआ है। यह केस स्टडी एक सरकारी स्कूल में दलित छात्रों के प्रति उच्च जाति के सहपाठियों एवं शिक्षकों द्वारा किये जाने वाले भेदभाव तथा उत्पीड़न से संबंधित है।

    रोहित वेमुला (दलित स्कॉलर) द्वारा भेदभाव के चलते की गई आत्महत्या, शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव का समाधान करने के क्रम में प्रणालीगत बदलाव की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।

    मुख्य भाग:

    शामिल हितधारक:

    • दलित छात्र: भेदभाव एवं उत्पीड़न के शिकार होने के कारण इनके शिक्षा और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन होता है।
    • उच्च जाति के छात्र एवं शिक्षक: भेदभाव में संलग्न, सामाजिक पूर्वाग्रहों तथा मानदंडों से प्रभावित।
    • स्कूल प्रबंधन: उच्च जाति के सदस्यों का वर्चस्व, सभी छात्रों के लिये अनुकूल वातावरण बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार।
    • ज़िला प्रशासन: ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में इन्हें ज़िले में न्याय, समानता तथा समावेशिता सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा गया है।
    • स्थानीय समुदाय: सामाजिक मानदंडों एवं दृष्टिकोणों को प्रभावित करने के साथ इसकी जातिगत भेदभाव को दूर करने के प्रयासों के समर्थन या विरोध में भूमिका हो सकती है।

    नैतिक मुद्दे:

    • अधिकारों का उल्लंघन: दलित छात्रों को समान व्यवहार तथा अवसरों से वंचित करना समानता एवं सम्मान के उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
    • संस्थागत पूर्वाग्रह: स्कूल प्रबंधन में निहित पूर्वाग्रह भेदभाव के साथ जाति-आधारित पदानुक्रम को मज़बूत करने हेतु उत्तरदायी है।
    • निष्क्रियता: इस मुद्दे को हल करने में स्कूल प्रबंधन की विफलता तथा "परंपरा" एवं "सामाजिक मानदंडों" का हवाला देना भेदभाव को बनाए रखने में निष्क्रियता का संकेत देता है।
    • ज़िला मजिस्ट्रेट की नैतिक ज़िम्मेदारी: ज़िले के सभी व्यक्तियों के लिये न्याय, निष्पक्षता एवं समानता के सिद्धांतों को बनाए रखने का दायित्व है।

    स्कूल में जातिगत भेदभाव को हल करने का दृष्टिकोण:

    • मूल कारणों को समझना:
      • स्कूल में जातिगत भेदभाव की सीमा एवं प्रकृति को समझने के लिये व्यापक जाँच आवश्यक है।
      • जाति-आधारित पूर्वाग्रहों को बनाए रखने में योगदान देने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ के साथ ऐतिहासिक कारकों का विश्लेषण कीजिये।
      • स्कूल प्रबंधन तथा समुदाय के अंदर प्रणालीगत मुद्दों की पहचान करना आवश्यक है जो भेदभाव हेतु उत्तरदायी हैं।
    • हितधारकों के साथ समन्वय:
      • जातिगत भेदभाव से निपटने के उद्देश्य से संबंधित चिंताओं को दूर करने तथा इस दिशा में पहल हेतु समर्थन जुटाने के लिये स्कूल प्रबंधन, शिक्षकों, छात्रों एवं अभिभावकों के साथ संवाद तथा परामर्श करना महत्त्वपूर्ण है।
      • स्कूल के प्रबंधन में हाशिए पर स्थित समुदायों के प्रतिनिधित्व द्वारा यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि उनकी आवाज़ सुने जाने के साथ उनके हितों का प्रतिनिधित्व हो सके।
      • जाति-आधारित असमानताओं से निपटने में संसाधनों तथा विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये नागरिक समाज संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों एवं सरकारी एजेंसियों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है।
    • विधिक प्रावधानों का प्रवर्तन:
      • दलित छात्रों के अधिकारों की रक्षा के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 एवं शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 जैसे विधिक प्रावधानों का प्रवर्तन सुनिश्चित करना आवश्यक है।
      • भेदभाव की शिकायतों का तुरंत समाधान करने के लिये स्कूल में शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना आवश्यक है।
      • भेदभाव-विरोधी कानूनों एवं नीतियों के अनुपालन का आकलन करने के लिये नियमित निगरानी तथा निरीक्षण आवश्यक है।
        • भारत में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन ने समावेशी शिक्षा नीतियों के महत्त्व को प्रदर्शित करते हुए, दलितों सहित हाशिए पर स्थित समुदायों के बीच नामांकन दर में उल्लेखनीय वृद्धि में भूमिका निभाई है।

    दलित छात्रों के लिये न्याय सुनिश्चित करने तथा अधिक समावेशी एवं न्यायसंगत वातावरण को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक कदम:

    • समावेशी प्रथाओं को बढ़ावा देना:
      • स्कूल में समावेशी प्रथाओं जैसे बच्चों के एक साथ बैठने की व्यवस्था, पाठ्येतर गतिविधियों में संयुक्त भागीदारी तथा मिलने वाली सुविधाओं तक साझा पहुँच को प्रोत्साहन देना निर्णायक है।
      • विभिन्न जातिगत पृष्ठभूमि के छात्रों के बीच सकारात्मक बातचीत एवं सम्मान को बढ़ावा देने के क्रम में सहकर्मियों के बीच समन्वय आवश्यक है।
      • दलितों सहित हाशिए पर रहने वाले समुदायों के योगदान एवं अनुभवों को प्रतिबिंबित करने वाले समावेशी पाठ्यक्रम तथा पाठ्यपुस्तकों को अपनाना महत्त्वपूर्ण है।
        • कर्नाटक मॉडल: स्कूली पाठ्यक्रम में सामाजिक समावेशन जैसे अध्याय को शामिल करने की कर्नाटक सरकार की पहल का उद्देश्य छात्रों को जातिगत भेदभाव के मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाने के साथ सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना है।
    • जागरूकता और संवेदीकरण कार्यक्रम:
      • जातिगत भेदभाव के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये छात्रों, शिक्षकों एवं स्कूल प्रबंधन के लिये कार्यशालाएँ तथा प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना आवश्यक है।
      • व्यक्तियों और समाज पर भेदभाव के प्रभाव को दर्शाने के लिये शैक्षिक पाठ्यक्रम तथा केस अध्ययनों का उपयोग करना चाहिये।
      • जाति-आधारित पूर्वाग्रहों से संबंधित विमर्श को सुविधाजनक बनाने तथा सामाजिक समन्वय को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और विभिन्न समुदाय के नेताओं को शामिल करना चाहिये।
        • महाराष्ट्र में 'बाबासाहेब अंबेडकर अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (BARTI)' पहल: इसके तहत सामाजिक न्याय तथा समानता को बढ़ावा देने के लिये कार्यशालाएँ एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
    • जवाबदेहिता एवं उपचारात्मक उपाय:
      • अनुशासनात्मक कार्रवाइयों या कानूनी उपायों के माध्यम से जाति-आधारित भेदभाव को बढ़ावा देने के दोषी पाए गए व्यक्तियों या समूहों को जवाबदेह ठहराना आवश्यक है।
      • उन दलित छात्रों को सहायता एवं परामर्श सेवाएँ प्रदान करनी चाहिये, जिन्होंने भेदभाव के परिणामस्वरूप आघात या मनोवैज्ञानिक संकट का सामना किया है।
      • दलित छात्रों के प्रति शैक्षणिक असमानताओं तथा भेदभावपूर्ण प्रथाओं के प्रभाव को कम करने के लिये अतिरिक्त शैक्षणिक सहायता एवं परामर्श कार्यक्रम जैसे उपचारात्मक उपायों को लागू करना चाहिये।
        • अंबेडकर स्कूल: तेलंगाना में अंबेडकर आवासीय विद्यालयों की स्थापना का उद्देश्य हाशिए पर स्थित दलित छात्रों को निशुल्क शिक्षा के साथ आवास प्रदान करना है, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित की जा सके।

    निष्कर्ष:

    स्कूलों में जातिगत भेदभाव का समाधान करने के क्रम में जागरूकता बढ़ाना, कानूनी प्रवर्तन, समावेशी प्रथाओं को अपनाना, हितधारक समन्वय के साथ जवाबदेही उपायों को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है। एक नैतिक एवं प्रभावी दृष्टिकोण अपनाकर, ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में शिक्षा में समानता, गरिमा और समावेशिता की संस्कृति को बढ़ावा देने के क्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है, जिससे एक अधिक न्यायपूर्ण तथा न्यायसंगत समाज के निर्माण में योगदान दिया जा सकता है।

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