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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “यद्यपि विकास का तात्पर्य वंचित लोगों की क्षमताओं में विस्तार करके उनकी समग्र जीवन गुणवत्ता में सुधार करने से है, तथापि लंबे समय तक भूखे रहने से उत्पन्न कुपोषण की समस्या ने इस विकास पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।” विवेचना कीजिये।

    07 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में प्रश्नगत कथन को स्पष्ट करते हुए विकास का अर्थ एवं इस पर कुपोषण के प्रभाव को संक्षेप में बताएँ।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में कुपोषण के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसके प्रकार, प्रभाव, कारण तथा निवारण पर चर्चा करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    विकास का तात्पर्य वंचित लोगों की क्षमताओं में विस्तार करके उनकी समग्र जीवन गुणवत्ता में सुधार करने से है। लेकिन देश में कुपोषण की समस्या वर्तमान समय में विकराल रूप धारण कर चुकी है, जिसने यह प्रश्न खड़ा कर दिया कि क्या देश की भावी पीढ़ी इतनी स्वस्थ है कि आने वाले समय में वह देश की प्रगति और सुरक्षा के उत्तरदायित्व का निर्वहन कर सकेगी? क्योंकि किसी भी देश के विकास का आधार उसकी भावी पीढ़ी होती है।

    कुपोषण वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन अव्यवस्थित रूप से लेने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है और यह एक गंभीर स्थिति है। कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा नहीं होती है। वस्तुतः हम स्वस्थ रहने के लिये भोजन के ज़रिये ऊर्जा और पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं, लेकिन यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। महाराष्ट्र जो कि भारत के धनी शहरों में से एक है और एक ऐसा राज्य है जहाँ विकास की कमी पारंपरिक मामला है क्योंकि इसके जनजातीय क्षेत्रों के बच्चों के बीच उच्च स्तर का कुपोषण पाया जाता है। बच्चों में यह कुपोषण दो रूपों में पाया जाता है- 1- स्टंटिंग, 2- वेस्टिंग।

    स्टटिंग या उम्र के अनुसार कम ऊँचाई भोजन में लंबे समय तक आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी और बार-बार होने वाले संक्रमण के कारण होती है। यह आमतौर पर 2 साल की उम्र से पहले होती है और इसके प्रभाव काफी हद तक अपरिवर्तनीय होते हैं। इसके कारण बच्चों का विकास देर से होता है, बच्चे संज्ञानात्मक कार्य में अक्षम होते हैं और स्कूल में उनका प्रदर्शन खराब होता है। वहीं, वेस्टिंग या उम्र के अनुसार कम वज़न पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्युदर का एक प्रमुख कारक है। यह आमतौर पर महत्त्वपूर्ण खाद्य में कमी या किसी घातक बीमारी का परिणाम होता है। 24 विकासशील देशों में वेस्टिंग की दर 10% या उससे अधिक है जो एक गंभीर समस्या की ओर इशारा करती है तथा इसके खिलाफ तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता को दर्शाती है। कुपोषण की इस समस्या का प्रभाव निम्नलिखित रूपों में देखा जाता है-

    • शरीर को आवश्यक संतुलित आहार लंबे समय तक नहीं मिलने से बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। 
    • बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधापन भी कुपोषण का ही दुष्परिणाम है। 
    • कुपोषण बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। यह जन्म के बाद या उससे भी पहले शुरू हो जाता है और 6 महीने से 3 वर्ष की आयु वाले बच्चों में तीव्रता से बढ़ता है। 
    • सबसे भयंकर परिणाम इसके द्वारा होने वाला आर्थिक नुकसान है। कुपोषण के कारण मानव उत्पादकता 10-15 प्रतिशत तक कम हो जाती है जो सकल घरेलू उत्पाद को 5-10 प्रतिशत कम कर देता है।

    राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2005-06 और 2015-16 के तीसरे और चौथे चक्र से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करते हुए पाँच साल से कम उम्र के बच्चों के लिये पोषण संकेतकों के बीच किया गया तुलनात्मक अध्ययन यह दर्शाता है कि-

    • भले ही स्टंटिंग की दर 46.3% से घटकर 34.4% हो गई है लेकिन वेस्टिंग की दर 16.5% से बढ़कर 25.6% हो गई है। 
    • इसके अतिरिक्त पिछले 10 वर्षों में सामान्य से कम वजन की दर 36% पर स्थिर रही है। 
    • यह दुनिया के कुछ सबसे गरीब देशों- बांग्लादेश (33%), अफगानिस्तान (25%) या मोजाम्बिक (15%) की तुलना में भारत की खराब स्थिति को दर्शाता है। 
    • कुपोषण का यह स्तर जनसंख्या के सबसे गरीब वर्ग को समान रूप से प्रभावित करता है। 

    कुपोषण की समस्या के कारणों में आहार विविधता की कमी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। क्योंकि आहार विविधता पोषक तत्त्वों की पर्याप्तता का महत्वपूर्ण पहलू है। इसके अतिरिक्त, जहाँ एक तरफ आदिवासी परिवारों में यह समस्या वन आजीविका पर उनकी पारंपरिक निर्भरता में कमी और राज्य में गहन कृषि संकट के कारण उत्पन्न होती है, वहीं व्यवस्थित मुद्दों और सार्वजनिक पोषण कार्यक्रमों की कमजोरी ने समस्या को और अधिक संगीन बना दिया है। 

    इस समस्या के संबंध में भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयास सराहनीय हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा बच्चों के पोषण के लिये मानक तय करते हुए कई योजनाएँ बनाई गई हैं, इन योजनाओं में शामिल हैं-

    शिशुओं और छोटे बच्चों के पोषण के संबंध में राष्ट्रीय मार्गदर्शी सिद्धांत;

    • राष्ट्रीय पोषण नीति;
    • समन्वित बाल विकास सेवा योजना;
    • उदिशा;
    • बच्चों के लिये राष्ट्रीय नीति;
    • बच्चों के लिये राष्ट्रीय घोषणा पत्र;
    • बच्चों के लिये कार्यवाही की राष्ट्रीय योजना;

    यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 भारत सरकार को सभी नागरिकों के लिये पर्याप्त भोजन के साथ एक सम्मानित जीवन सुनिश्चित करने हेतु उचित उपाय करने के लिये बाध्य करते हैं, तथापि सरकारी योजनाओं का उचित क्रियान्वयन, गरीबी उन्मूलक योजनाओं से बेहतर सामंजस्य, फूड फोर्टिफिकेशन और जागरूकता का प्रसार इस दिशा में अन्य प्रभावी कदम साबित हो सकते हैं।

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