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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। ( 250 शब्द)

    06 Dec, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संरचनात्मक बेरोज़गारी को संक्षेप में परिभाषित करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • भारत में संरचनात्मक बेरोज़गारी के पीछे के कारणों पर चर्चा कीजिये।
    • समाधान आधारित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    संरचनात्मक बेरोज़गारी मूल रूप से एक अनैच्छिक बेरोज़गारी है जो अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन के कारण होती है, जैसे कि एक नई तकनीक या उद्योग का विकास या जनसंख्या के पास मौज़ूद कौशल और बाज़ार में उपलब्ध नौकरी में सुमेलन के अभाव के कारण।

    मुख्य भाग:

    भारत में संरचनात्मक बेरोज़गारी के प्रमुख कारणों में श्रम बाज़ार की कठोरता, भौगोलिक कारण, कृषि पर निर्भरता, अवसंरचनात्मक की बाधाएँ एवं नियामक चुनौतियाँ शामिल हैं।

    देश में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियाँ:

    • NSSO द्वारा गणना:
      • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS): इसके अंतर्गत एक सप्ताह की अल्प संदर्भ अवधि को अपनाया जाता है। इसके अंतर्गत ऐसे व्यक्तियों को नियोजित माना जाता है जिन्होंने पिछले सात दिनों में कम से कम एक दिन न्यूनतम एक घंटा कार्य किया हो। उदाहरण के लिये, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये शहरी क्षेत्रों में CWS में श्रम बल भागीदारी दर वर्ष 2022 की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में बढ़कर 48.2 प्रतिशत हो गई।
      • सामान्य सिद्धांत स्थिति और सहायक स्थिति (UPSS): प्रधान स्थिति दृष्टिकोण का एक विस्तार है। यदि किसी व्यक्ति ने पूर्ववर्ती 365 दिनों के दौरान 30 दिनों या उससे अधिक की अवधि के लिये किसी भी आर्थिक गतिविधि में संलग्न रहा है, तो एक व्यक्ति को इस दृष्टिकोण के तहत नियोजित माना जाता है।
      • वर्तमान दैनिक स्थिति: यह उन लोगों की संख्या को इंगित करता है जिन्हें सप्ताह में एक या अधिक दिनों तक कार्य नहीं मिला।
    • श्रम ब्यूरो सर्वेक्षण: श्रम ब्यूरो भारत में बेरोज़गारी और रोज़गार संबंधी आँकड़े प्राप्त करने के लिये सर्वेक्षण का कार्य करता है। उदाहरण के लिये, अखिल भारतीय त्रैमासिक स्थापना-आधारित रोज़गार सर्वेक्षण (AQEES)।

    आगे की राह:

    • सर्वेक्षणों की आवृत्ति में वृद्धि: सर्वेक्षणों की समयबद्धता और अद्यतनीकरण सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि बढ़ी हुई आवृत्ति बदलते रोज़गार रुझानों की बेहतर समझ प्रदान करती है।
    • कृषि का आधुनिकीकरण: कृषि के निवेश में वृद्धि, अग्रवर्ती एवं पश्चवर्ती शृंखलाओं के माध्यम से कई गुना प्रभाव छोड़ सकती है, उदाहरण के लिये, शीत भंडारण को बढ़ावा देना।
    • अनौपचारिक क्षेत्र का समावेश: 80 प्रतिशत से अधिक श्रम शक्ति अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है जिसे औपचारिक क्षेत्र में शामिल करने की आवश्यकता है।
    • मौसमी समायोजन: कृषि और अन्य मौसमी रोज़गार प्रवृत्तियों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए मौसमी समायोजन तकनीकों में सुधार की आवश्यता है।

    निष्कर्ष:

    भारत को सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनाने एवं कुछ चुनौतियों तथा बेरोज़गारी बाधाओं के साथ समृद्ध जनसांख्यिकीय लाभांश का पोषण करने के लिये अपनाई गई पद्धतियों के अद्यतनीकृत करने की आवश्यकता है।

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