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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रासंगिक संवैधानिक प्रावधानों और निर्णय विधियों की सहायता से लैंगिक न्याय के संवैधानिक परिप्रेक्ष्य की व्याख्या कीजिये। ( 250 शब्द)

    05 Dec, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारतीय समाज में लैंगिक न्याय के विकास पर प्रकाश डालते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • उन संवैधानिक प्रावधानों पर चर्चा कीजिये जो भारत में लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।
    • लैंगिक न्याय के प्रसार हेतु मज़बूत कानूनी और न्यायिक परिप्रेक्ष्य के महत्त्व पर बल देते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    18वीं सदी के अंत में नारीवाद आंदोलन के उद्भव के बाद से, हमारे समाज में लैंगिक संवेदनशीलता तथा इसके महत्त्व के बारे में सामान्य जागरूकता ने अत्यधिक प्रगति की है। भारत का इतिहास लैंगिक संवेदनशीलता के प्रति गहन चेतना को दर्शाता है जिसका ज़िक्र संविधान में भी हुआ है।

    मुख्य भाग:

    संवैधानिक प्रावधान:

    • अनुच्छेद 14 नागरिकों को कानून के समक्ष समान दर्ज़े का मानता है।
    • अनुच्छेद 15 'लिंग' सहित विभिन्न आधारों पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
    • अनुच्छेद 16 रोज़गार के मामलों में नागरिकों को समान अवसर प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 39 में महिलाओं के लिये वेतन की समानता के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता का उल्लेख है।
    • अनुच्छेद 42 राज्य से काम और मातृत्त्व लाभ की उचित और मानवीय स्थितियाँ सुनिश्चित करने के लिये कार्य करने के लिये कहता है।

    निर्णय विधि:

    • मैरी रॉय बनाम केरल राज्य: न्यायालय ने पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार पर महिलाओं एवं पुरुषों का समान अधिकार सुनिश्चित किया।
    • लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य: न्यायालय ने कहा कि लड़की को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का पूरा अधिकार है।
    • लक्ष्मी बनाम भारत संघ: एक एसिड अटैक सर्वाइवर (एसिड हमले की पीड़िता) की यह जनहित याचिका एसिड को ज़हर घोषित करने और उसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के साथ समाप्त हुई। न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि कोई भी अस्पताल एसिड अटैक पीड़िता का इलाज करने से इनकार नहीं कर सकता।
    • शायरा बानो बनाम भारत संघ: इस ऐतिहासिक निर्णय ने तीन तलाक की प्रथा को संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार के खिलाफ घोषित किया क्योंकि इसमें महिलाओं को अपनी बात कहने का अधिकार नहीं है।

    निष्कर्ष:

    भारतीय कानूनी एवं न्यायिक परिप्रेक्ष्य वह है जो समान अवसर के लिये लैंगिक परिदृश्य को समान करने तथा अपनी आबादी में लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने को महत्त्व देता है।

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