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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। भारत में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने हेतु आवश्यक उपाय बताइये? (150 शब्द)

    11 Jul, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में पंचायती राज संस्थाओं के बारे में संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ बताइये।
    • पंचायती राज व्यवस्था को मज़बूत करने के लिये आवश्यक उपाय सुझाइये।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 द्वारा भारत में पंचायती राज संस्थानों (PRIs) की अवधारणा प्रस्तुत की गई, जिसका उद्देश्य सत्ता का विकेंद्रीकरण करना और जमीनी स्तर पर शासन को मज़बूत करना था।

    पंचायती राज व्यवस्था को मज़बूत करने के लिये PRIs के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के साथ इनके समक्ष आने वाली चुनौतियों की पहचान करना आवश्यक है।

    मुख्य भाग:

    पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष चुनौतियाँ:

    • वित्तीय निर्भरता:
      • राज्य सरकारों से धन के अपर्याप्त अंतरण के कारण PRIs को अक्सर वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे स्थानीय विकास परियोजनाओं को प्रभावी ढंग से निष्पादित करने की इनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
    • प्रशासनिक एवं राजनीतिक हस्तक्षेप:
      • सरकार के अधिक हस्तक्षेप, नौकरशाही बाधाएँ और राजनीतिक प्रभाव से अक्सर PRIs की स्वायत्तता और निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होती है।
    • सामाजिक और लैंगिक पूर्वाग्रह:
      • सामाजिक पदानुक्रम और भेदभाव (खासकर महिलाओं की भागीदारी और प्रतिनिधित्व के मामले में) से PRIs के प्रभावी कार्य में बाधा उत्पन्न होती है।
    • क्षमता निर्माण:
      • निर्वाचित प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों के लिये अपर्याप्त प्रशिक्षण के साथ कौशल विकास कार्यक्रम की कमी से वह प्रभावी ढंग से अपना कार्य नहीं कर पाते हैं।

    पंचायती राज व्यवस्था को मज़बूत करने के उपाय:

    • पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना:
      • वित्तीय प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ-साथ PRIs को धन का पर्याप्त और समय पर अंतरण सुनिश्चित करना उनके प्रभावी कार्य हेतु महत्त्वपूर्ण है।
    • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:
      • कौशल, नेतृत्व क्षमताओं और स्थानीय विकास के मुद्दों से संबंधित ज्ञान को बढ़ाने के लिये निर्वाचित प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों को सशक्त बनाना आवश्यक है।
    • स्वायत्तता और विकेंद्रीकरण:
      • नौकरशाही के हस्तक्षेप और राजनीतिक प्रभाव को कम करके PRIs की स्वायत्तता को मज़बूत करने से यह स्वतंत्र रूप से अपनी शक्तियों का उपयोग करने में सक्षम होंगे।
    • सामाजिक समावेशन और लैंगिक समानता:
      • महिलाओं की भागीदारी को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करके, समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करके और सामाजिक पूर्वाग्रहों और भेदभाव की समस्या को हल करके समावेशी और उत्तरदायी शासन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
    • निरीक्षण तंत्र को सुदृढ़ बनाना:
      • PRIs के प्रदर्शन पर नज़र रखने, पारदर्शिता को बढ़ावा देने और निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराने हेतु मज़बूत निगरानी और मूल्यांकन तंत्र स्थापित करना आवश्यक है।
    • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का समन्वय:
      • PRIs में पारदर्शिता, सूचना तक पहुँच और सेवा वितरण में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना चाहिये जिससे नागरिक स्थानीय शासन में सक्रिय रूप से शामिल होने में सक्षम होंगे।

    निष्कर्ष:

    73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के बाद से पंचायती राज संस्थाओं ने जमीनी स्तर पर लोकतंत्र और स्थानीय विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। हालाँकि वित्तीय निर्भरता, क्षमता निर्माण की कमी, प्रशासनिक हस्तक्षेप और सामाजिक पूर्वाग्रह जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। पर्याप्त संसाधन, क्षमता निर्माण, स्वायत्तता, सामाजिक समावेश सुनिश्चित करने के साथ प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर, भारत में पंचायती राज प्रणाली को मज़बूत करने के साथ स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जा सकता है और जमीनी स्तर पर भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र को बढ़ावा दिया जा सकता है।

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