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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में केरल की कुदुम्बश्री योजना के 25 वर्ष पूरे हुए हैं। इस आलोक में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने तथा गरीबी उन्मूलन में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    23 May, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • कुदुम्बश्री योजना और स्वयं सहायता समूहों का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर शुरु कीजिये।
    • मुख्य भाग में बताइये कि यह किस प्रकार गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
    • उचित एवं तार्किक निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    कुदुम्बश्री (परिवार की समृद्धि) वर्ष 1988 में केरल सरकार द्वारा शुरू की गई एक स्वयं सहायता समूह योजना है। इसका उद्देश्य परिवारों का उत्थान करने के साथ स्वयं सहायता समूह दृष्टिकोण के माध्यम से महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति तथा समग्र कल्याण में सुधार करना है। अपने 25 वर्ष पूरे करने पर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन को बढ़ावा देने में स्वयं सहायता समूहों (SHGs) की निर्णायक भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।

    SHG लोगों (मुख्य रूप से महिलाओं का) का एक ऐसा स्वैच्छिक संघ हैं जिसमें सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को हल करने तथा अपनी आजीविका में सुधार करने के लिये लोग एकजुट होते हैं। ये समूह महिलाओं को वित्तीय संसाधनों एवं कौशल विकास में सहायता प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाने में प्रभावी भूमिका निभाते हैं।

    मुख्य भाग:

    SHGs भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के साथ गरीबी उन्मूलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जैसे:

    • आर्थिक सशक्तिकरण: SHG, वित्तीय संसाधनों तथा आय-सृजन के अवसरों को उपलब्ध कराने के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाते हैं। सामूहिक बचत और ऋण के माध्यम से समूह के सदस्य व्यवसाय शुरू करने, कौशल विकास करने और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।
    • सामाजिक सशक्तिकरण: SHG एक दूसरे से जुड़ने,समन्वय करने और समर्थन करने के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाते हैं। यह लैंगिक भेदभाव, घरेलू हिंसा और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं जैसे सामाजिक मुद्दों को हल करने में भूमिका निभाते हैं। सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से स्वयं सहायता समूह महिलाओं को अपने अधिकारों की वकालत करने और लैंगिक असमानता को चुनौती देने में सक्षम बनाते हैं।
    • कौशल विकास और क्षमता निर्माण: स्वयं सहायता समूह वित्त, व्यवसाय, व्यावसायिक क्षेत्रों से संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशालाएँ आयोजित करते हैं। ये कार्यक्रम आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ महिलाओं को सामूहिक और सामुदायिक स्तर पर निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं।
    • क्रेडिट और वित्तीय समावेशन तक पहुँच: SHG द्वारा महिलाओं को क्रेडिट के साथ सरकारी योजनाओं तक पहुँच प्रदान की जाती है। यह महिलाओं को ऋण प्रदान करने के साथ वित्तीय जानकारी प्रदान करते हैं। इससे महिलाएँ आय सृजित करने वाले उद्यमों में निवेश करने, घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने और अप्रत्याशित परिस्थितियों को संभालने में सक्षम होती हैं।
      • प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के उधार मानदंड और प्रतिफल के आश्वासन के कारण बैंक SHGs को उधार देने के लिये प्रोत्साहित होते हैं।
      • NABARD द्वारा संचालित SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम ने ऋण तक पहुँच को आसान बना दिया है जिससे गैर-संस्थागत स्रोतों पर इनकी निर्भरता में कमी आई है।
    • बेहतर आजीविका को बढ़ावा मिलने के साथ गरीबी उन्मूलन होना: बढ़ी हुई आय और वित्तीय संसाधनों तक पहुँच के माध्यम से, स्वयं सहायता समूह के सदस्यों की आजीविका बेहतर होती है। जिससे यह अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में निवेश करने तथा अपने एवं अपने परिवार के लिये अधिक टिकाऊ भविष्य सुरक्षित करने में सक्षम हो पाते हैं। महिलाओं को गरीबी से बाहर निकालकर, स्वयं सहायता समूह ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन में योगदान देते हैं।
    • निर्णय निर्माण और नेतृत्व क्षमता: स्वयं सहायता समूह निर्णय लेने और वित्त प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित कर उन्हें सशक्त बनाते हैं। नेतृत्व कौशल विकसित होने के साथ महिलाएँ समुदाय-स्तरीय निर्णयों में संलग्न होती हैं जिससे स्थानीय शासन में इनके सशक्तीकरण और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलता है।
    • जागरूकता और शिक्षा: स्वयं सहायता समूह स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा और सरकारी योजनाओं से संबंधित जागरूकता अभियानों और कार्यशालाओं के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाते हैं।

    निष्कर्ष:

    स्वयं-सहायता समूह भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सशक्तीकरण और गरीबी उन्मूलन के प्रभावी आधार के रूप में उभरे हैं। आर्थिक सशक्तीकरण, कौशल विकास, सामाजिक एकजुटता और ऋण तक पहुँच को बढ़ावा देकर स्वयं सहायता समूह महिलाओं को अपने जीवन पर नियंत्रण रखने और अपने समुदायों के विकास में योगदान करने में सक्षम बनाते हैं।

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