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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में नागरिकों के मूल अधिकारों के संरक्षण में न्यायपालिका की क्या भूमिका है? उदाहरणों सहित चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    02 May, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • इस संदर्भ में संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • मूल अधिकारों के संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा कीजिये और इस दिशा में हुए कुछ ऐतिहासिक फैसलों का उदाहरण दीजिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत में न्यायपालिका, नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत के संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12 से 35) के तहत नागरिकों को मूल अधिकारों की गारंटी प्राप्त है। न्यायपालिका (विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय) इन मूल अधिकारों की अंतिम रक्षक और व्याख्याकार है।

    मुख्य भाग:

    मूल अधिकारों के संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका:

    • न्यायपालिका विभिन्न माध्यमों जैसे रिट, जनहित याचिका (PIL) और न्यायिक समीक्षा के माध्यम से मूल अधिकारों की रक्षा करती है।
    • संविधान की व्याख्या करना और इसे लागू करना:
      • न्यायपालिका संविधान की व्याख्या करने और इसे लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो देश के सर्वोच्च कानून के रूप में कार्य करता है और मूल अधिकारों को संरक्षण प्रदान करता है।
      • न्यायपालिका को मूल अधिकारों सहित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले कानूनों या सरकारी कार्यों को रद्द करने का अधिकार होता है।
    • मूल अधिकारों के उल्लंघन के संदर्भ में उपचार प्रदान करना:
      • न्यायपालिका मूल अधिकारों के उल्लंघन के लिये उपचार भी प्रदान करती है, जिसमें बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, और उत्प्रेषण जैसी रिट जारी करना शामिल है, जिसका उपयोग लोगों को गैरकानूनी हिरासत से बचाने, सरकारी कार्रवाई पर सीमा लगाने या अधीनस्थ न्यायालयों के फैसलों की समीक्षा करने के लिये किया जा सकता है।
      • न्यायपालिका उन व्यक्तियों को राहत प्रदान कर सकती है जिनके मूलअधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
    • अल्पसंख्यकों और सीमांत समूहों की रक्षा करना:
      • न्यायपालिका ऐसे अल्पसंख्यकों और सीमांत समूहों के अधिकारों की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो विशेष रूप से मूल अधिकारों के उल्लंघन के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
      • उदाहरण के लिये न्यायपालिका उन कानूनों या सरकारी कार्रवाइयों को रद्द कर सकती है जिनसे जाति, धर्म या मूल अधिकारों के प्रावधानों द्वारा संरक्षित अन्य विशेषताओं का उल्लंघन होता हो।
    • अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों को बनाए रखना:
      • मूल अधिकारों के प्रावधानों की व्याख्या करते समय न्यायपालिका अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों और संधियों का सहारा ले सकती है।
      • इससे उन व्यक्तियों के लिये अतिरिक्त सुरक्षा मिल सकती है जिनके मूल अधिकारों के उल्लंघन होने का अधिक खतरा है।
    • सरकार पर एक स्वतंत्र जाँच तंत्र के रूप में कार्य करना:
      • न्यायपालिका सरकार की शक्ति पर एक स्वतंत्र जाँच तंत्र के रूप में कार्य करती है, यह सुनिश्चित करती है कि कार्यकारी और विधायी शाखाएँ अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण न करें और मूलअधिकारों का उल्लंघन न करें।

    ऐसे उदाहरण जहाँ न्यायपालिका द्वारा मूल अधिकारों की रक्षा की गई है:

    • न्यायपालिका ने ऐसे कई ऐतिहासिक निर्णय दिये हैं जिन्होंने मूल अधिकारों की सुरक्षा को मजबूत किया है जैसे केशवानंद भारती मामला (इसने संविधान के मूल ढाँचे के सिद्धांत को स्थापित किया), पुट्टास्वामी मामला (निजता के अधिकार से संबंधित)।
      • NALSA मामला:
        • न्यायपालिका ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) बनाम भारत संघ मामले (वर्ष 2014) जैसे निर्णयों के माध्यम से हाशिये पर स्थित समुदायों, जैसे कि ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता देने के साथ कानून के तहत उन्हें समान अधिकार और सुरक्षा प्रदान करना शामिल है।
      • श्रेया सिंघल मामला:
        • न्यायपालिका ने श्रेया सिंघल मामले (वर्ष 2015) जैसे ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी रक्षा की है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A को रद्द कर दिया गया था, जिसका उपयोग इंटरनेट पर भाषण की स्वतंत्रता को सीमित करने के लिये किया गया था।

    निष्कर्ष:

    • मूल अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है। नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और सक्रियता आवश्यक है।
    • न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करने के लिये मूल अधिकारों की प्रगतिशील तरीके से व्याख्या करना जारी रखना चाहिये कि संविधान नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये प्रासंगिक और प्रभावी बना रहे।

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