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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में चुनाव सुधारों की सख्त जरूरत है। भारत में चुनाव से जुड़ी विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा करते हुए उनके समाधान हेतु कुछ उपाय बताइए। (250 शब्द)

    03 Jan, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत में चुनाव के वर्तमान परिदृश्य का परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • भारत में चुनाव से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये ।
    • विभिन्न उपायों पर चर्चा कीजिये और इन मुद्दों को हल करने के लिये कुछ अन्य उपाय सुझाइये।
    • तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    • भारत एक जीवंत लोकतंत्र है जहाँ लोग स्थानीय निकायों और पंचायतों से लेकर संसद तक कई स्तरों पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं।
    • भारत में चुनाव (दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र) भारी लोकप्रिय भागीदारी की मांग करते हैं, जहाँ चुनावी उम्मीदवार बेहतर प्रशासन, अधिक सामाजिक आर्थिक समानता , गरीबी उन्मूलन आदि जैसे दीर्घकालिक सुधारों का वादा करके मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करते हैं।
      • हालाँकि, आपराधिक रिकॉर्ड वाले भ्रष्ट राजनेताओं, जाति और धर्म आधारित राजनीति तथा वोट-खरीद के आरोपों ने ऐसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मूल उद्देश्य को विफल कर दिया है।

    मुख्य भाग

    लोकलुभावनवाद, राष्ट्रवाद, संप्रदायवाद और टकराव की राजनीति जैसी समस्याओं ने भारत की राजनीतिक संस्कृति को दूषित कर दिया है।

    भारत में चुनाव से संबंधित चुनौतियाँ:

    1. धन शक्ति

    • प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक उम्मीदवार को चुनाव प्रचार, ट्रांसपोर्ट बगैरह पर लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं।
    • चुनाव आयोग की गाइडलाइन के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश, गोवा और सिक्किम को छोड़कर सभी राज्यों में एक उम्मीदवार चुनाव प्रचार के लिये अधिकतम 70 लाख रुपए खर्च कर सकता है।
    • अरुणाचल प्रदेश, गोवा और सिक्किम में खर्च की अधिकतम सीमा 54 लाख रुपए है। यह दिल्ली के लिये 70 लाख रुपए और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 54 लाख रुपए है।
    • पिछले कुछ वर्षो में कानून-सम्मत और असल खर्चो के बीच अंतर काफी बढ़ा है।

    2. बाहुबल

    • हिंसा, धमकी और बूथ कैप्चरिंग में बाहुबल की बड़ी भूमिका होती है। यह समस्या पहले अमूमन देश के उत्तरी भागों में हुआ करती थी पर अब बाकी प्रांतों में भी फ़ैल रही है।
    • राजनीति का अपराधीकरण और अपराधियों का राजनीतिकरण एक ही सिक्के के दो पहलू कहे जा सकते हैं।

    3. अपराधियों का राजनीतिकरण

    • अपराधी रसूख और जनता में पैठ बनाने के लिये राजनीति में प्रवेश करते हैं और पुरजोर कोशिश करते हैं कि उनके खिलाफ मामलों को समाप्त कर दिया जाए या उन पर कार्यवाही न की जाए।
    • इसमें उनकी मदद कुछ राजनीतिक दल करते हैं जो धन और रसूख के लिये इन्हें चुनाव मैदान में उतारते हैं और बदले में इन्हें राजनीतिक संरक्षण और सुरक्षा प्रदान करते हैं।

    4. गैर-गंभीर स्वतंत्र उम्मीदवार

    • इन्हें किसी भी गंभीर उम्मीदवार के खिलाफ प्रतिद्वंद्वियों द्वारा बड़े पैमाने पर उतारा जाता है ताकि उसके वोट काटे जा सकें।

    5. जातिवाद

    • ऐसे कई राजनीतिक दल हैं जो विशेष जाति या समूह से आते हैं। ये जाति, समूह पार्टियों पर भी दबाव डालते हैं कि उन्हें क्षेत्रीय स्वायत्तता और जाति की संख्या के मुताबिक टिकट दिये जाएँ।
    • जाति आधारित राजनीति देश की बुनियाद और एकता पर प्रहार कर रही है और आज जाति चुनाव जीतने में एक प्रमुख कारक बनी हुई है तथा अक्सर उम्मीदवारों का चयन उपलब्धियों, क्षमता और योग्यता के आधार पर न होकर जाति, पंथ और समुदाय के आधार पर होता है।

    6. सांप्रदायिकता

    • स्वतंत्रता के बाद सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरवाद की राजनीति ने देश के तमाम हिस्सों में आंदोलनों को जन्म दिया।
    • सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ने बहुलवाद और पंथ निरपेक्षता के संघीय ढ़ांचे के लिये गंभीर खतरा पैदा कर दिया है।

    सरकार द्वारा किये गए उपाय:

    • विधायी उपाय:
      • उम्मीदवार के खर्च की सीमा:
        • वर्तमान में निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 के नियम 90 के तहत, लोकसभा चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार 70 लाख रुपये तक और विधानसभा चुनाव में 28 लाख रुपये तक खर्च कर सकता है, यह उस राज्य पर निर्भर करता है जिसमें वह चुनाव लड़ रहा है।
    • भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा किये गए उपाय:
      • राजनीतिक दल पंजीकरण ट्रैकिंग प्रबंधन प्रणाली (PPRTMS):
        • एक आवेदक को अपने आवेदन की प्रगति को ट्रैक करने की अनुमति देने के लिये।
      • व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और चुनावी भागीदारी कार्यक्रम (स्वीप):
        • ECI मतदाताओं को शिक्षित करने के लिये मतदाता जागरूकता अभियान आयोजित करता है।
    • न्यायपालिका द्वारा उपाय:
      • सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित मामलों में विभिन्न सुधारों की सिफारिश की:
        • यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स 2002 मामले में:
          • चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपना नामांकन पत्र दाखिल करते समय अपनी सभी संपत्तियों और देनदारियों, आपराधिक दोषसिद्धि आदि का खुलासा करना होगा।
        • रमेश दलाल बनाम भारत संघ 2005 के मामले में:
          • एक विधायक को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाता है, यदि नामांकन पत्र दाखिल करने के दिन, वह कानून की अदालत में दोषी ठहराया जाता है।
        • लिली थॉमस बनाम भारत संघ 2013 मामले में:
          • अनुच्छेद 101(3) और 190(3) के तहत सदन का सदस्य होने के लिये अयोग्यता की प्रकृति स्वचालित है और तत्काल प्रभाव से होती है।
        • पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 2013 मामले में:
          • इस मामले में ईसीआई को मतपत्र में "नोटा" के विकल्प को शामिल करने का निर्देश दिया।

    आवश्यक उपाय:

    • विधायी सुधार:
      • चुनावों के लिये राज्य वित्त पोषण: यह वह प्रणाली है जिसमें चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों के चुनाव खर्च को राज्य वहन करता है। यह फंडिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता ला सकता है तथा सार्वजनिक वित्त इच्छुक दानदाताओं के पैसे के प्रभाव को सीमित कर सकता है और इस तरह भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद करता है।
    • पार्टी स्तर पर:
      • पार्टी के खर्च की सीमा:
        • पार्टी के खर्च की एक सीमा होनी चाहिए और चुनाव की वास्तविक तिथि से पहले इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
        • नतीजतन, राजनीतिक दलों के खातों का ऑडिट उन्हें जवाबदेह बनाने के लिये किया जाना चाहिए।
    • मतदाता स्तर पर:
      • मतदाताओं को अपने वोट के महत्त्व के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। उन्हें उस उम्मीदवार के बारे में जागरूक और अच्छी तरह से सूचित किया जाना चाहिए जिसे वे वोट देना चाहते हैं, जिससे उन लोगों को खारिज कर दिया जाए जो उन्हें मुफ्त में लुभाने की कोशिश करते हैं।

    निष्कर्ष

    कुल मिलाकर, यह स्पष्ट है कि भारत में चुनाव से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने और निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से चुनावी प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के लिये चुनाव सुधार आवश्यक है।

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