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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    नाभिकीय ऊर्जा में होने वाली प्रगति के लाभ तो हैं लेकिन इससे कई चुनौतियाँ भी उभरी हैं। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    21 Dec, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    दृष्टिकोण

    • उत्तर की शुरुआत नाभिकीय ऊर्जा का संक्षेप में वर्णन करते हुए कीजिये।
    • नाभिकीय ऊर्जा के विभिन्न लाभों की चर्चा कीजिये।
    • नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय:

    • नाभिकीय संलयन और नाभिकीय विखंडन दो अलग-अलग प्रकार की ऊर्जा-विमोचन प्रतिक्रियाएँ हैं जिनका उपयोग नाभिकीय ऊर्जा में किया जाता है, जिसके माध्यम से नाभिक के भीतर कणों के बीच उच्च-शक्ति वाले नाभिकीय बंधनों से ऊर्जा निकलती है।
    • इन दो प्रक्रियाओं के बीच मुख्य अंतर यह है कि विखंडन में नाभिक का दो या दो से अधिक छोटे भागों में विभाजन होता है जबकि संलयन का तात्पर्य दो या दो से अधिक छोटे नाभिकों का विलय होना है।

    मुख्य बिन्दु:

    • नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में हालिया प्रगति:
      • हाल ही में अमेरिका के लॉरेंस लिवरमोर फैसिलिटी में कुछ वैज्ञानिकों ने नाभिकीय संलयन अभिक्रिया से ऊर्जा में शुद्ध लाभ हासिल किया है, जिसे एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जाता है।
      • इस प्रयोग में हाइड्रोजन की अति सूक्ष्म मात्रा को काली मिर्च के आकार के कैप्सूल में बदलने का प्रयास किया गया जिसके लिये वैज्ञानिकों ने एक शक्तिशाली 192-बीम लेज़र का उपयोग किया जो 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस ऊष्मा उत्पन्न कर सकता था।
      • इसे 'जड़त्वीय संलयन' भी कहते हैं।
    • नाभिकीय ऊर्जा अपनाने से संबद्ध चुनौतियाँ:
      • पूंजी गहन: नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र पूंजी गहन हैं और हाल के नाभिकीय निर्माणों को बड़ी लागत का सामना करना पड़ा है।
      • सार्वजनिक वित्तपोषण की कमी: नाभिकीय ऊर्जा को कभी भी ऐसी उदार सब्सिडी प्राप्त नहीं हुई जैसी अतीत में जीवाश्म ईंधन को प्राप्त हुई थी और वर्तमान में नवीकरणीय ऊर्जा को प्राप्त हो रही है।
      • सार्वजनिक वित्तपोषण के अभाव में नाभिकीय ऊर्जा के लिये भविष्य में प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा से मुकाबला करना कठिन होगा।
      • भूमि अधिग्रहण: भूमि अधिग्रहण और नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र (NPP) के लिये स्थान का चयन भी देश में एक बड़ी समस्या है।
        • तमिलनाडु में कुडनकुलम और आंध्र प्रदेश में कोव्वाडा जैसे नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों को भूमि अधिग्रहण संबंधी चुनौतियों के कारण देरी का सामना करना पड़ा है।
      • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से नाभिकीय रिएक्टर दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाएगा। विश्व में लगातार गर्म होते जा रहे ग्रीष्मकाल के दौरान पहले से ही कई नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों को अस्थायी रूप से बंद करने की स्थिति बनती रही है।
        • इसके अलावा, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र अपने रिएक्टरों को ठंडा करने के लिये आस-पास के जल स्रोतों पर निर्भर हैं, जबकि नदियों आदि के सूखने के साथ जल के उन स्रोतों की अब गारंटी नहीं है।
        • भविष्य में इस तरह की चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ने की संभावना है।
      • अपर्याप्त पैमाने पर तैनाती: भारत के कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये यह उपयुक्त विकल्प नहीं हो सकता है क्योंकि इसे आवश्यक पैमाने पर तैनात नहीं किया जा सकता है।
      • नाभिकीय अपशिष्ट: नाभिकीय ऊर्जा का एक अन्य दुष्प्रभाव इससे उत्पन्न होने वाले नाभिकीय अपशिष्ट की मात्रा है। नाभिकीय अपशिष्ट का जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जैसे यह कैंसर के विकास का कारण बन सकता है या पशुओं तथा पौधों की कई पीढ़ियों के लिये आनुवंशिक समस्याएँ पैदा कर सकता है।
        • भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में भूमि का अभाव है और आपातकालीन स्वास्थ्य देखभाल सुविधा सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध नहीं है।
    • नाभिकीय ऊर्जा के लाभ:
      • नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन से होने वाला उत्सर्जन: नाभिकीय ऊर्जा से शून्य-उत्सर्जन होता है। इसमें कोई ग्रीनहाउस गैस या वायु प्रदूषक नहीं होते हैं।
      • भूमि उपयोग: अमेरिकी सरकार के आँकड़ों के अनुसार, 1,000 मेगावाट क्षमता के नाभिकीय संयंत्र को इतनी ही क्षमता के पवन ऊर्जा संयंत्र या ‘विंड फार्म’ की तुलना में 360 गुना कम और सौर संयंत्रों की तुलना में 75 गुना कम भूमि की आवश्यकता होती है।
      • हाई पावर आउटपुट:
      • अधिकांश बिजली स्रोतों (विशेष रूप से नवीकरणीय) की तुलना में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र, उच्च स्तरीय ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।
      • सस्ता ऊर्जा साधन: नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों में परिचालन लागत कम आती है। इसके अतिरिक्त नाभिकीय संयंत्रों में केवल हर 18-24 महीनों में ईंधन भरने की आवश्यकता होती है, जिसका अर्थ है कि ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से तेल और प्राकृतिक गैस जैसे अधिक अस्थिर उद्योगों की तुलना में यह कम प्रभावित होता है।
        • यूरेनियम जैसी भारी धातुएँ (नाभिकीय ऊर्जा का मुख्य ऊर्जा स्रोत) विश्व स्तर पर उपलब्ध हैं और कम मात्रा में आवश्यक होने के कारण इनकी लागत भी कम होती है।

    निष्कर्ष:

    नाभिकीय ऊर्जा को ऊर्जा का एक सुरक्षित, विश्वसनीय और लागत प्रभावी स्रोत माना जाता है। यह भविष्य के सबसे आशाजनक ऊर्जा स्रोतों में से एक है। यह जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिये सबसे प्रभावी समाधानों में से एक है।

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