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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. विविधता, समानता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये संसद में महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये । (250 शब्द)

    08 Nov, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संसद में महिलाओं की वर्तमान स्थिति की संक्षेप में व्याख्या करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • संसद में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के कारणों की विवेचना कीजिये।
    • संक्षेप में चर्चा कीजिये कि विधायिका में महिलाओं की भागीदारी कैसे विविधता, समानता और समावेशिता सुनिश्चित करेगी।
    • संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों की चर्चा कीजिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    वर्तमान में पहले से कहीं अधिक महिलाएँ संसद के लिये चुनी जा रही हैं, लेकिन समानता अभी भी बहुत दूर है और वर्तमान में महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में यह प्रगति भी बहुत धीमी है। देश में संसद अभी भी पुरुष प्रधान हैं और कुछ राज्य विधानसभाओं तथा विधानपरिषदों में कोई महिला सांसद नहीं हैं।

    • अंतर संसदीय इकाई (आईपीयू) द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार वर्तमान स्थिति, भारत में महिलाएँ लोकसभा के कुल सदस्यों का 14.44% प्रतिनिधित्व करती हैं।

    भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के आँकड़ों के अनुसार:

    • अक्टूबर 2021 तक संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 10.5% ही है।।
    • भारत में सभी राज्य विधानसभाओं महिला सदस्यों (विधायकों) का राष्ट्रीय औसत 9% ही है, जो कि बहुत दयनीय है।
    • आज़ादी के पिछले 75 सालों में लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपेक्षा के अनुरूप नहीं बढ़ सका है।

    प्रारूप:

    संसद में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के कारण:

    • लिंग संबंधी रूढ़ियाँ:
      • पारंपरिक रूप से घरेलू गतिविधियों के प्रबंधन की भूमिका महिलाओं को सौंपी गई है।
      • महिलाओं को उनकी रूढ़ीवादी भूमिकाओं से बाहर निकलने और देश की निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • प्रतिस्पर्द्धा:
      • राजनीति, किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह, प्रतिस्पर्द्धा का क्षेत्र है। अंततः महिला राजनेता भी प्रतिस्पर्द्धी ही मानी जाती हैं।
      • कई राजनेताओं को भय है कि महिला आरक्षण लागू किये जाने पर उनकी सीटें बारी-बारी से महिला उम्मीदवारों के लिये आरक्षित की जा सकती हैं, जिससे स्वयं अपनी सीटों से चुनाव लड़ सकने का अवसर वे गँवा सकते हैं।
    • राजनीतिक शिक्षा का अभाव:
      • शिक्षा महिलाओं की सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है। शैक्षिक संस्थानों में प्रदान की जाने वाली औपचारिक शिक्षा नेतृत्व के अवसर पैदा करती है और नेतृत्व को आवश्यक कौशल प्रदान करती है।
      • राजनीति की समझ की कमी के कारण वे अपने मूल अधिकारों और राजनीतिक अधिकारों से अवगत नहीं हैं।
    • कार्य और परिवार:
      • पारिवारिक देखभाल उत्तरदायित्वों के असमान वितरण का परिणाम यह होता है कि महिलाएँ घर और बच्चों की देखभाल में पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक समय देती हैं।
      • एक महिला को न केवल गर्भावस्था और प्रसव के दौरान अपना समय देना पड़ता है, बल्कि यह तब तक जारी रहता है जब तक कि बच्चा देखभाल के लिये माता-पिता पर निर्भर न रह जाए।
    • राजनीतिक नेटवर्क का अभाव:
      • राजनीतिक निर्णय-निर्माण में पारदर्शिता की कमी और अलोकतांत्रिक आंतरिक प्रक्रियाएँ सभी नए प्रवेशकों के लिये चुनौती पेश करती हैं, लेकिन महिलाएँ इससे विशेष रूप से प्रभावित होती हैं, क्योंकि उनके पास राजनीतिक नेटवर्क की कमी होती है।
    • संसाधनों की कमी:
      • भारत की आंतरिक राजनीतिक दल संरचना में महिलाओं के कम अनुपात के कारण, महिलाएँ अपने राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों के संपोषण हेतु संसाधन और समर्थन जुटाने में विफल रहती हैं।
      • महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिये राजनीतिक दलों से पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिलती है।
    • सोशल कंडीशनिंग:
      • उन्हें अपने ऊपर थोपे गए निर्देशों को स्वीकार करना होता है और समाज का बोझ उठाना पड़ता है।
      • सार्वजनिक दृष्टिकोण न केवल यह निर्धारित करता है कि आम चुनाव में कितनी महिला उम्मीदवार जीतेंगी, बल्कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से यह भी निर्धारित करता है कि किस पद के लिये उन्हें नामांकित किया जाए।
    • प्रतिकूल वातावरण:
      • कुल मिलाकर राजनीतिक दलों का माहौल भी महिलाओं के अधिक अनुकूल नहीं है; उन्हें पार्टी में जगह बनाने के लिये कठिन संघर्ष और बहुआयामी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
      • राजनीति में हिंसा बढ़ती जा रही है। अपराधीकरण, भ्रष्टाचार, असुरक्षा में उल्लेखनीय वृद्धि ने महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र से बाहर कर दिया है।

    महिलाओं की भागीदारी विविधता, समानता और समावेशिता सुनिश्चित करती है:

    • विधायिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय के संवैधानिक आदर्शों में निहित है।
    • विधायिका में महिलाओं की अधिक भागीदारी लैंगिक रूढ़िवादिता से लड़ने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करेगी और सरकार की न्यायपालिका तथा कार्यकारी शाखाओं जैसे अन्य निर्णयों में महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व के लिये मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
    • विधायिका में महिलाओं की भागीदारी सतत् विकास लक्ष्यों (विशेष रूप से एसडीजी 5 और एसडीजी 16) के अनुसार लैंगिक समानता और समावेशिता प्राप्त करेगी, जो सार्वजनिक संस्थानों में लैंगिक समानता और महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने का आह्वान करती है।
    • संस्थागत पहुँच और संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने से महिलाओं की राजनीतिक लामबंदी बढ़ सकती है
    • राजनीतिक भागीदारी का एक अधिक लिंग-समावेशी विमर्श राजनीति और शासन की संस्थाओं में महिलाओं के वर्णनात्मक और वास्तविक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करेगा।

    संसद में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के समाधान के लिये उठाए गए कदम:

    • महिला आरक्षण विधेयक 2008:
      • यह भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में सभी सीटों में से एक-तिहाई सीटों को महिलाओं के लिये आरक्षित करने हेतु भारत के संविधान में संशोधन करने का प्रस्ताव करता है।
    • पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिये आरक्षण:
      • संविधान का अनुच्छेद 243D पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करता है, जहाँ प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या और पंचायतों के अध्यक्षों के पदों की संख्या में से कम-से-कम एक तिहाई को महिलाओं के लिये आरक्षित किया गया है।
    • महिला सशक्तीकरण पर संसदीय समिति:
      • महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु वर्ष 1997 में संसद की 11वीं लोकसभा के दौरान पहली बार महिला सशक्तीकरण समिति का गठन किया गया था।
      • समिति के सदस्यों से अपेक्षा की गई थी कि वे पार्टी संबद्धताओं से सीमित न रहते हुए महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये मिलकर काम करेंगे।

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