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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. जैव-उर्वरक क्या हैं? वे भारतीय कृषि को कैसे लाभान्वित कर सकते हैं? (250 शब्द)

    26 Oct, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने के दृष्टिकोण:

    • जैव-उर्वरक के बारे में संक्षेप में चर्चा कीजिये।
    • जैव-उर्वरक के प्रकार एवं उदाहरण दीजिए।
    • भारत में कृषि को बदलने में इसकी क्षमता पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    पृष्ठभूमि:

    • एक जैव-उर्वरक, उर्वरक का एक प्रकार है जो जैविक स्रोतों से प्राप्त होता है, जिसमें जैविक खाद, पशु खाद, मुर्गी के अपशिष्ट और घरेलू वाहित मल शामिल हैं।

    प्रकार:

    • इसके अलावा, उन्हें दो खंडों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
      • जैव उर्वरक और जैविक खाद-
        • जैव-उर्वरक:
          • जैव उर्वरक ठोस या तरल वाहकों से संबंधित जीवित सूक्ष्मजीवों से बने होते हैं और खेती योग्य भूमि के लिए उपयोगी होते हैं, क्योंकि ये सूक्ष्म जीव मृदा और / या फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करते हैं।
            • उदाहरण: राइज़ोबियम, एज़ोस्पिरिलियम, एज़ोटोबैक्टर, फॉस्फोबैक्टीरिया, ब्लू ग्रीन शैवाल (BGA), माइकोराइज़ा, एज़ोला।
        • जैविक खाद:
          • दूसरी ओर, जैविक खाद, आंशिक रूप से विघटित जैविक पदार्थ जैसे बायोगैस संयंत्र, खाद और वर्मीकम्पोस्ट से पाचक संबंधी जैविक पदार्थों को संदर्भित करता है, जो मृदा/ फसलों को पोषक तत्व प्रदान करता है और उपज में सुधार करता है।
    • भारत में जैव उर्वरक की संभावना:
      • नगरों से उत्पन्न होने वाले ठोस अपशिष्टों का उपयोग:
        • जैसा कि भारत 150,000 टन से अधिक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) का उत्पादन करता है और इसे उत्पादक तरीके से उपयोग करके कृषि क्षेत्र को रूपांतरित किया जा सकता है।
        • 80% की संग्रहण क्षमता और नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) के जैविक भाग को 50% मानते हुए, भारत में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाला कुल जैविक अपशिष्ट प्रति दिन लगभग 65,000 टन है। यदि इसका आधा भाग भी बायोगैस उद्योग में लगा दिया जाए, तो सरकार जीवाश्मों और उर्वरकों के आयात में कमी करके इसका लाभ उठा सकती है।
      • बायोगैस अपशिष्टों का उपयोग:
        • जैव उर्वरक बहुत महत्त्वपूर्ण है जिसे डाइजेस्ट भी कहा जाता है तथा बायोगैस संयंत्र का अपशिष्ट है।
        • इसके अलावा, बायोगैस का उपयोग ऊष्मन, विद्युत् क्षेत्र और यहाँ तक कि वाहनों हेतु (उन्नयन के बाद) भी किया जा सकता है, जबकि डाइजेस्ट दूसरी हरित क्रांति के दृष्टिकोण को साकार करने में मदद कर सकता है।
      • मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि करने में सहायक :
        • इसके अलावा, डाइजेस्ट अपने मानक पोषण महत्त्व के अलावा, लगातार न्यूनीकृत होती मृदा को जैविक कार्बन तत्त्व प्रदान कर सकता है।
        • वर्तमान में, भारत में जैव-उर्वरक का उत्पादन 110,000 टन से अधिक है।

    निष्कर्ष:

    • मिट्टी पर संश्लिष्ट उर्वरक के हानिकारक प्रभावों के बारे में बढ़ती जागरूकता, बढ़ती स्वास्थ्य चिंताओं, शहरी जनसंख्या आधार का विस्तार और खाद्य वस्तुओं पर उपभोक्ता व्यय में वृद्धि के कारण जैविक खेती के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसके अलावा यह संश्लिष्ट उर्वरकों के उपयोग को पूरी तरह से खत्म करने में भी सक्षम है।

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