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लिपुलेख दर्रा

  • 21 Aug 2025
  • 11 min read

स्रोत: IE

भारत ने लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत-चीन सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर नेपाल की आपत्तियों को खारिज कर दिया है और यह स्पष्ट किया है कि नेपाल के दावे ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं हैं।

  • नेपाल की आपत्ति: नेपाल का दावा है कि लिपुलेख उनके संविधान के अनुसार उसके क्षेत्र का हिस्सा है।
  • भारत की स्थिति: भारत ने दोहराया कि लिपुलेख दर्रे के माध्यम से सीमा व्यापार वर्ष 1954 में शुरू हुआ था तथा कोविड-19 के कारण हुई रुकावटों से पहले यह कई दशकों तक जारी रहा।
  • लिपुलेख दर्रा: यह उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में एक उच्च-ऊँचाई वाला पर्वतीय दर्रा है, जो भारत, नेपाल और चीन की त्रिजंक्शन (तीन देशों की सीमा) के निकट स्थित है, जो उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है।
    • रणनीतिक रूप से स्थित, यह उच्च हिमालय के लिये एक द्वार का कार्य करता है और ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय उपमहाद्वीप को तिब्बती पठार से जोड़ने वाला प्राचीन व्यापार मार्ग रहा है।
    • लिपुलेख वर्ष 1992 में चीन के साथ व्यापार के लिये खोला जाने वाला पहला भारतीय सीमा चौकी था, इसके बाद हिमाचल प्रदेश में शिपकी ला (1994) और सिक्किम में नाथू ला (2006) खोले गए।
    • पुराना लिपुलेख दर्रा, जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले की व्यास घाटी में स्थित है, कैलाश मानसरोवर यात्रा का हिस्सा होने के कारण अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है।

 

और पढ़ें: कैलाश मानसरोवर यात्रा को जोड़ने वाले भू-रणनीतिक दर्रे

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