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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. डिजिटल डिवाइड से समाज में असमानता और विषमता उत्पन्न होती है तथा इससे शिक्षा तक असमान पहुँच की समस्या भी पैदा होती है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    20 Sep, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • अपने उत्तर की शुरुआत डिजिटल डिवाइड के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर कीजिये।
    • डिजिटल डिवाइड के परिणामों और डिजिटल डिवाइड को कम करने के लिये उठाए गए कदमों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।

    परिचय

    यह जनसांख्यिकी और आधुनिक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तक पहुँच वाले क्षेत्रों और उन तक पहुँच नहीं होने के बीच का अंतर है।

    यह विकसित और विकासशील देशों, शहरी तथा ग्रामीण आबादी, युवा एवं शिक्षित बनाम वृद्ध और कम शिक्षित व्यक्तियों, पुरुषों और महिलाओं के बीच मौज़ूद है।

    भारत में शहरी-ग्रामीण विभाजन डिजिटल अंतराल का सबसे बड़ा कारक है।.

    प्रारूप

    • डिजिटल डिवाइड के परिणाम
      • वंचितों पर सर्वाधिक दबदबा:
        • ‘आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों [EWS]/वंचित समूहों [DG] से संबंधित बच्चों को अपनी शिक्षा पूरी नहीं करने का परिणाम भुगतना पड़ रहा है, साथ ही इस दौरान इंटरनेट और कंप्यूटर तक पहुँच की कमी के कारण कुछ बच्चों को पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी है।
        • वे बच्चे बाल श्रम अथवा बाल तस्करी के प्रति भी सुभेद्य हो गए हैं।
      • अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा:
        • गरीब बच्चे प्रायः ऑनलाइन मौजूद सूचनाओं से वंचित रह जाते हैं और इस प्रकार वे हमेशा के लिये पिछड़ जाते हैं, जिसका प्रभाव उनके शैक्षिक प्रदर्शन पर पड़ता है।
        • इस प्रकार इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम छात्र और कम विशेषाधिकार प्राप्त छात्रों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।
      • सीखने की क्षमता में असमानता:
        • निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों के लोग प्रायः वंचित होते हैं और पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिये उन्हें लंबे समय तक बोझिल अध्ययन की स्थिति से गुज़रना पड़ता है।
        • जबकि अमीर परिवारों से संबंधित छात्र आसानी से स्कूली शिक्षा सामग्री को ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं।
      • गरीबों के बीच उत्पादकता में कमी:
        • अधिकांश अविकसित देशों या ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित अनुसंधान क्षमताओं और अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण आधे-अधूरे स्नातक पैदा होते हैं, क्योंकि प्रशिक्षण उपकरणों की कमी के साथ-साथ इन क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी भी सीमित है।
    • शिक्षा के अधिकार हेतु संवैधानिक प्रावधान:
      • मूलतः भारतीय संविधान के ‘भाग-IV’ [‘राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत के तहत अनुच्छेद-45 और अनुच्छेद 39-(f)] में राज्य द्वारा वित्तपोषित शिक्षा के साथ-साथ समान एवं सुलभ शिक्षा का प्रावधान किया गया है।
      • वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन ने ‘शिक्षा के अधिकार’ को संविधान के भाग-III में मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया था।
        • इसने अनुच्छेद-21A को संविधान में शामिल किया, जिसके तहत 6-14 वर्ष के बीच के बच्चों के लिये शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दिया गया।
        • इसके पश्चात् ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009’ लागू किया गया।
    • संबंधित पहलें:
      • ‘स्वयं’ पोर्टल: स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव लर्निंग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स (SWAYAM) एक एकीकृत मंच है जो स्कूल (9वीं- 12वीं) से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक ऑनलाइन पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
      • अब तक SWAYAM पर 2769 बड़े पैमाने के ऑनलाइन कोर्सेज (Massive Open Online Courses- MOOC) बड़े पैमाने पर ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रम) की पेशकश की गई है, जिसमें लगभग 1.02 करोड़ छात्रों ने विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला लिया है।
      • राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी : National Digital Library (NDL): भारत की राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी (National Digital Library of India-NDL) एक एकल-खिड़की खोज सुविधा (Single-Window Search Facility) के तहत सीखने के संसाधनों के आभासी भंडार का एक ढाँचा विकसित करने की परियोजना है।
      • स्वयंप्रभा टीवी चैनल: यह 24X7 आधार पर देश में सभी जगह डायरेक्ट टू होम (Direct to Home- DTH) के माध्यम से 32 उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षिक चैनल प्रदान करने की एक पहल है। इसमें पाठ्यक्रम आधारित पाठ्य सामग्री होती है जो विविध विषयों को कवर करती है।
      • त्वरित प्रतिक्रिया: Quick Response (QR) छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों और शिक्षकों को डिजिटल संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिये QR कोड बनाए गए हैं।

    आगे की राह

    • यद्यपि स्कूल अब धीरे-धीरे महामारी के घटते वक्र के कारण फिर से खुल रहे हैं, किंतु अभी भी ‘बच्चों के लिये ऑनलाइन सुविधाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के साथ-साथ उन्हें पर्याप्त कंप्यूटर-आधारित उपकरण प्रदान करने की आवश्यकता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है’।
    • कम सुविधा प्राप्त वाले उन छात्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जिनके पास ई-लर्निंग तक पहुँच नहीं है।
    • प्रत्येक बच्चे के लिये मौलिक अधिकार के रूप में अच्छी गुणवत्ता वाली समान शिक्षा सुनिश्चित करने हेतु भी प्रयास किया जाना आवश्यक है।
    • सरकार को राज्य एवं केंद्र के सभी स्तरों पर समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी सामाजिक स्तर के बच्चों को पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हों और संसाधनों की कमी से प्रभावित लोग शिक्षा तक पहुँच से वंचित न रह जाएँ।

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