इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. राजद्रोह कानून औपनिवेशिक काल का एक कालातीत कानून है जिसे वर्तमान में प्रासंगिक होने के लिए एक व्यापक तरीके से सामयिक होने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।

    13 Sep, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • अपने उत्तर की शुरुआत राजद्रोह कानून के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर कीजिये।
    • राजद्रोह कानून के महत्व पर चर्चा कीजिये।
    • राजद्रोह कानून से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।

    परिचय

    राजद्रोह कानून को 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में अधिनियमित किया गया था, उस समय विधि निर्माताओं का मानना था कि सरकार के प्रति अच्छी राय रखने वाले विचारों को ही केवल अस्तित्व में या सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिये, क्योंकि गलत राय सरकार तथा राजशाही दोनों के लिये नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकती थी।

    इस कानून का मसौदा मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन वर्ष 1860 में भारतीय दंड सहिता (IPC) लागू करने के दौरान इस कानून को IPC में शामिल नहीं किया गया।

    धारा 124A को 1870 में जेम्स स्टीफन द्वारा पेश किये गए एक संशोधन द्वारा जोड़ा गया था जब इसने अपराध से निपटने के लिये एक विशिष्ट खंड की आवश्यकता महसूस की।

    वर्तमान में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत राजद्रोह एक अपराध है।

    प्रारूप

    राजद्रोह कानून का महत्त्व और चुनौतियाँ:

    • महत्त्व:
      • उचित प्रतिबंध:
        • भारत का संविधान अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध निर्धारित करता है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि यह सभी नागरिकों के लिये यह समान रूप से उपलब्ध हो।
      • एकता और अखंडता:
        • राजद्रोह कानून सरकार को राष्ट्र-विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों का सामना करने में सहायता करता है।
      • राज्य की स्थिरता को बनाए रखना:
        • यह निर्वाचित सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाने में सहायता करता है। कानून द्वारा स्थापित सरकार का निरंतर अस्तित्त्व राज्य की स्थिरता के लिये एक अनिवार्य शर्त है।
    • चुनौतियाँ:
      • औपनिवेशिक युग का अवशेष:
        • औपनिवेशिक शासकों ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों को रोकने हेतु राजद्रोह कानून का दुरूपयोग किया।
        • लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू भगत सिंह आदि स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों को ब्रिटिश शासन के तहत उनके "राजद्रोही" भाषणों, लेखन और गतिविधियों के लिये दोषी ठहराया गया था।
        • इस प्रकार राजद्रोह कानून का व्यापक उपयोग औपनिवेशिक युग की याद दिलाता है।
      • संविधान सभा का पक्ष:
        • संविधान सभा, संविधान में राजद्रोह को शामिल करने के लिये सहमत नहीं थी। सदस्यों का तर्क था कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करेगा।
        • उन्होंने तर्क दिया कि लोगों के विरोध के वैध और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों का दमन करने के लिये राजद्रोह कानून का एक हथियार के रूप में दुरूपयोग किया जा सकता है।
      • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की अवहेलना:
        • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1962 में केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में धारा 124A की संवैधानिकता पर अपना निर्णय दिया। इसने देशद्रोह की संवैधानिकता को बरकरार रखा लेकिन इसे अव्यवस्था पैदा करने का इरादा, कानून एवं व्यवस्था की गड़बड़ी तथा हिंसा के लिये उकसाने की गतिविधियों तक सीमित कर दिया।
        • इस प्रकार शिक्षाविदों, वकीलों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना है।
      • लोकतांत्रिक मूल्यों का दमन:
        • भारत मुख्य रूप से राजद्रोह कानून के कठोर और निरंतर उपयोग के कारण को तेज़ी से उभरते एक निर्वाचित निरंकुश राज्य के रूप में वर्णित किया जा रहा है।

    आगे की राह:

    • IPC की धारा 124A की उपयोगिता राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों से निपटने में है। हालांँकि सरकार के निर्णयों से असहमति और आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में मज़बूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्त्व हैं। इन्हें देशद्रोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
    • उच्च न्यायपालिका को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट और पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के प्रति संवेदनशील बनाने हेतु करना चाहिये
    • राजद्रोह की परिभाषा को केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को शामिल करने के संदर्भ में संकुचित किया जाना चाहिये।
    • देशद्रोह कानून के मनमाने इस्तेमाल के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये नागरिक समाज को पहल करनी चाहिये।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2