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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    देश में बुनियादी ढांचे की कमियों को दूर करने के लिये सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) सर्वोत्कृष्ट है, हालाँकि, भारत में पीपीपी परियोजनाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    06 Jul, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सार्वजनकि निजी भागीदारी का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • बताइये कि कैसे पी.पी.पी. देश में बुनियादी अवसंरचना की कमी को दूर करने के लिये अत्यंत आवश्यक है।
    • भारत में पी.पी.पी. परियोजनाओं के कुशल क्रियान्वयन के मार्ग में उपस्थित प्रमुख चुनौतियों को बताइये।
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    सार्वजनिक निजी भागीदारी से तात्पर्य सरकार अथवा उसकी किसी वैधानिक संस्था एवं निजी क्षेत्र के बीच किसी परियोजना के निर्माण हेतु किये गए दीर्घकालिक समझौते से है। इस समझौते के तहत निजी क्षेत्र शुल्क लेकर ढाँचागत सुविधा प्रदान करता है। इसमें दोनों पक्ष मिलकर एक स्पेशल पर्पज व्हीकल (एस.पी.वी.) का निर्माण करते हैं। देश में बुनियादी अवसंरचना अंतराल को कम करने में

    पी.पी.पी. की आवश्यकता को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-

    • पी.पी.पी. की सहायता से धीमी गति से चल रही अथवा रुकी हुई परियोजनाओं को कुशलता से पूरा किया जा सकता है।
    • परियोजनाओं को पूरा करने के लिये मानव संस्थापन एवं पूंजी का कुशल अनुप्रयोग सुनिश्चित कर उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।
    • निजी कंपनियाँ निर्माण, डिज़ाइन एवं संचालन की उत्कृष्ट पद्धतियों का प्रयोग कर सुस्त एवं लचर सार्वजनिक परियोजनाओं का दक्षतापूर्वक निर्माण कर सकती है।
    • देश में तीव्रता से बढ़ती जनंसख्या की अवसंरचना आवश्यकताओं की पूर्ति में सरकारी ढाँचा नाकाफी प्रतीत हो रहा है। ऐसे में निजी क्षेत्र का सहयोग अपरिहार्य प्रतीत हो रहा है।
    • बंदरगाह निर्माण, एयरपोर्ट निर्माण, सड़क निर्माण तथा रेलवे अवसंरचना निर्माण आदि को समय पर पूरा करने एवं परियोजना लागत में कमी लाने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी लाभदायक है।
    • पी.पी.पी. मॉडल में निजी वित्तीय संसाधनों का प्रयोग किया जाता है, जिससे परियोजना निर्माण पर सरकारी वित्तीयन की आवश्यकता नहीं होती, इससे सरकारी वित्त का प्रयोग अन्य कल्याणकारी गतिविधियों में किया जा सकता है।
    • उपर्युक्त लाभों के बावजूद भारत पी.पी.पी. मॉडल के समक्ष कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं जिन्हें निम्नवत् देखा जा सकता है-
    • भारत में वर्तमान में कोई स्वतंत्र पी.पी.पी. नियामक निकाय नहीं है, जिस कारण विवादों का समाधान समय पर नहीं होता, जिससे परियोजनाएँ ठप पड़ जाती हैं।
    • पी.पी.पी. के तहत चलाई जा रही परियोजनाओं संबंधी व्यवहार्यता रिपोर्ट, समझौतों आदि संबंधी व्यापक डेटाबेस की कमी है, जिससे इन परियोजनाओं संबंधी पारदर्शिता में कमी आती है।
    • विभिन्न स्तरों पर बड़ी एवं जटिल परियोजनाओं को पूरा करने की सीमित संस्थागत क्षमता पी.पी.पी. परियोजना को नुकसान पहुँचाती है।
    • पी.पी.पी. परियोजनाओं के लिये ऋण हेतु निजी क्षेत्र वाणिज्यिक बैंकों पर निर्भर होता है। कई बार निजी कंपनियाँ बैंकों के ऋण की वापसी नहीं करतीं, जिससे बैंकों के एन.पी.ए. में वृद्धि होती है।
    • भारतीय अर्थव्यवस्था कई बार राजकोषीय अनिश्चितता के दौर से गुज़रती है, जो कि नए निवेशकों को राजकोषीय स्थिरता प्रदान नहीं कर पाती, जिससे निजी निवेश हतोत्साहित होता है।

    वस्तुत: पी.पी.पी. परियोजनाओं की सफलता काफी हद तक हितकारक के बीच विश्वास तथा इन परियोजनाओं को क्रियान्वित करने की मज़बूत संस्थागत क्षमता पर निर्भर करती है। भारत में तीव्रता से बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बुनियादी ढाँचे में निजी निवेश की आवश्यकता है। इसके साथ ही केलकर समिति की सिफारिशों, जैसे- समर्पित राष्ट्रीय पी.पी.पी. ट्रिब्यूनल तथा राष्ट्रीय पी.पी.पी. संस्थान आदि को लागू किये जाने की आवश्यकता है।

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