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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. "ग्रामीण विकेंद्रीकरण के लिये भारत की प्रतिबद्धता के बावजूद, पंचायतें अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकीं हैं।" चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    05 Apr, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारतीय संविधान में भारत में विकेंद्रीकरण के लिये किये गए प्रावधानों को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • संक्षेप में बताइये कि भारत अपनी इस प्रतिबद्धता में कहाँ तक सफल हो पाया है।
    • विकेंद्रीकरण के लक्ष्य की प्राप्ति में निहित चुनौतियों को बताइये।
    • संतुलित निष्कर्ष दीजिये।

    भारत एक लोकतांत्रिक संसदीय शासन व्यवस्था वाला गणराज्य है जहाँ राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है जो कि मिलकर भारतीय संघ का निर्माण करते हैं तथा साथ ही भारतीय संविधान ग्राम स्तर पर भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना करने हेतु पंचायती राज संस्थाओं को मान्यता प्रदान करता है, जो कि शासन का सबसे निचला स्तर बनाता है तथा विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देता है।

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद-40 के अनुसार, राज्य ग्राम पंचायतों के संगठन के लिये कदम उठाएगा और उन्हें ऐसी शक्तियाँ एवं प्राधिकार प्रदान करेगा जो कि स्वशासन के लिये अनिवार्य हों। 73वें संविधान संशोधन द्वारा भारत में पंचायतों की स्थापना की गई जिसने शासन में जनभागीदारी के एक नवीन युग की शुरुआत की तथा ‘लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण’ की नींव डाली। जिसकी सहायता से ग्राम स्तर पर निम्नलिखित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकी-

    • ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये।
    • लोकप्रिय प्रशासन के लिये एक संस्थागत ढाँचा प्रदान करने हेतु।
    • सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन लाने हेतु एक माध्यम के रूप में।
    • स्थानीय गतिशीलता प्रदान करने हेतु।
    • विकास योजनाओं के निर्माण एवं कार्यान्वयन में सहायता हेतु।
    • समाज के कमज़ोर वर्गों की समस्याओं के समाधान हेतु तथा उनमें नेतृत्व विकास के लिये।
    • पंचायतों को आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिये कार्यक्रमों की योजना बनाने तथा उन्हें लागू करने की शक्ति एवं दायित्व प्रदान करने हेतु।

    लेकिन विकेंद्रीकरण की दिशा में आशापूर्ण शुरुआत के बावजूद अधिकांश राज्यों में पंचायतें राजनीतिक दबाव अथवा विकास नीतियों में बदलाव की भेंट चढ़ गई जिसके पीछे निम्न कारण विद्यमान हैं-

    • पंचायती राज संस्थाओं को शक्तियाँ तथा संसाधन पर्याप्त नहीं दिये गए जिससे इन संस्थाओं की अवनति हुई।
    • यद्यपि 73वें संविधान संशोधन में पंचायतें स्वशासन की संस्थाओं के रूप में स्थापित की गई किंतु इन निकायों को आमतौर पर केवल संघीय एवं राज्य सरकार के कार्यक्रमों को चलाने वाले एजेंटों के रूप में देखा गया। इनके लिये भी समय पर वित्त उपलब्ध नहीं कराया गया।
    • स्थानीय स्तर पर विशेषज्ञता एवं आवश्यक जानकारी के अभाव के कारण नियोजन प्रक्रिया में अधिक प्रगति नहीं देखी गई।
    • विकास प्रक्रिया में ग्रामीण गरीबों को शामिल न करने के परिणामस्वरूप गैर कृषि श्रमिकों और भूमिहीन श्रमिकों को और अधिक वंचित करती है।
    • स्थानीय संसाधनों, ज्ञान, कौशल और सामूहिक ज्ञान की उपेक्षा की गई।
    • सरकारी मशीनरी में विभिन्न स्तरों पर एक ‘सुपीरीयर’ रवैये तथा ग्रामीणों का ‘निष्क्रिय’ एवं ‘अधीनस्थ’ रवैये का होना।
    • बगैर शर्तों को समझे विकास कार्यक्रमों को लागू करना, तकनीकी विशेषज्ञों का स्थानीय सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक वास्तविकताओं से जुड़ा न होना।

    अनुच्छेद-40 की वास्तविक संभावना केवल इस निर्देश में नहीं है कि उन्हें मात्र संवैधानिक रूप से स्थापित कर दिया जाए बल्कि उन्हें शक्तियाँ तथा प्राधिकार भी उपलब्ध करवाने होंगे ताकि ये गांधी जी के ‘स्वराज’ के विचार को वास्तविक कर पाएं तथा सत्ता का वास्तविक विकेंद्रीकरण हो सके।

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