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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन) का संक्षिप्त परिचय देते हुए, वर्तमान में नाटो के समक्ष आने वाली समस्याओं की चर्चा करें।

    23 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संक्षिप्त परिचय

    • नाटो के समक्ष चुनौतियाँ

    • निष्कर्ष

    नाटो, 29 उत्तर अमेरिकी तथा यूरोपीय राष्ट्रों का एक अंतर-सरकारी सैन्य गठबंधन है। शीत युद्ध के दौरान सदस्य राष्ट्रों को साम्यवादी देशों द्वारा उत्पन्न खतरों से सुरक्षा प्रदान करने के लिये 4 अप्रैल, 1949 को इसका गठन किया गया था। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राज्य अमेरिका की इच्छा इसके माध्यम से यूरोप में अपनी उपस्थिति बनाए रखना था। नाटो का उद्देश्य राजनीतिक तथा सैन्य साधनों के माध्यम से अपने सदस्यों को स्वतंत्रता तथा सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता था।

    नाटो सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत पर आधारित है। ज्ञातव्य है कि नाटो के अनुच्छेद 5 में यह उल्लिखित है कि, नाटो के किसी एक सदस्य पर किया गया एक सशस्त्र आक्रमण सभी सदस्यों पर आक्रमण माना जाएगा।

    वर्तमान चुनौतियाँ

    • परंपरागत रूप से अमेरिका नाटो में सर्वाधिक योगदान करने वाला देश रहा है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि इससे जुड़े अन्य सदस्य इसमें पर्याप्त योगदान नहीं दे रहे। वर्तमान में प्रमुख देशों में केवल ब्रिटेन ही अपनी सुरक्षा पर अपने GDP का 28 प्रतिशत व्यय करता है। प्रांस द्वारा अपनी सुरक्षा पर GDP का 1.8 प्रतिशत तथा जर्मनी द्वारा 1.2 प्रतिशत भाग व्यय किया जाता है।
    • रूस के साथ संबंधों को पुनर्व्यवस्थित करने के संदर्भ में हितों का टकराव  परिलक्षित होता है।
    • लोकतांत्रिक ह्रास, जो नाटो के सदस्य राष्ट्रों में दृष्टिगोचर हो रहा है। उदाहरण- हंगरी खुले तौर पर एक अनुदार लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है। इसके अतिरिक्त, हंगरी तथा तुर्की के साथ रूस की बढ़ती निकटता, लोकतांत्रिक ह्रास के सुरक्षा निहितार्थों तथा सहयोगियों के मध्य उत्पन्न अविश्वास के कारण संयुक्त निर्णय, संचार एवं संचालन संबंधी निहितार्थ होगें।
    • चीन वर्तमान में तीन स्तरों पर नाटों के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहा है-
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य गतिविधियों का विस्तार तथा अफ्रीका एवं मध्य पूर्व में अधिक आक्रामक उपस्थिति;
    • चीन तथा अमेरिका के मध्य महाशक्ति बनने अथवा बने रहने की होड़ जहाँ यूरोप इन सब के केंद्र में फंसा हुआ है। 
    • चीन का अधिकतम एवं तकनीकी फुलटप्रिंट, जो यूरोपीय देशों के औद्योगिक तथा तकनीकी आधार के समक्ष खतरा उत्पन्न कर रहा है।

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