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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘यदि संवैधानिक पद प्राप्त व्यक्ति अपने राजनीतिक दल से असंम्बद्ध रहने में असमर्थ है, तटस्थता तथा स्वतंत्रता की भावना के विरुद्ध व्यवहार करता है तो ऐसा व्यक्ति लोक विश्वास तथा भरोसे का पात्र होने की संभावना की उपेक्षा कर देता है।’ ‘तटस्थता’ के सिद्धांत को समझाते हुए संवैधानिक पदों के संदर्भ में तटस्थता के सिद्धांत के महत्त्व की विवेचना कीजिये।

    18 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका।

    • तटस्थता का सिद्धांत क्या है ?

    • तटस्थता के सिद्धांत का महत्त्व।

    • निष्कर्ष।

    हाल ही में कर्नाटक विधान सभा मामले के संदर्भ में उपर्युक्त टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई। न्यायालय द्वारा इससे पूर्व भी विभिन्न निर्णयों के माध्यम से लोकसभा/विधानसभा अध्यक्ष तथा राज्यपाल जैसे प्राधिकारियों को ‘तटस्थता के सिद्धांत के प्रति विश्वसनीय बने रहने तथा ‘बढ़ते जा रहे राजनीतिक दबाव’ के बाद भी दृढ़ रहने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

    विगत वर्षों में केंद्र सरकार की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG), भारतीय रिज़र्व बैंक, निर्वाचन आयोग आदि के साथ संघर्ष का स्थिति देखी गयी।

    राजनीतिक तटस्थता संवैधानिक लोकतंत्र का मूल आधार है। तटस्थता से आशय वस्तुत: दो पक्षों के मध्य संघर्ष की स्थिति में स्वयं को ‘तृतीय’ पक्ष के रूप में प्रस्तुत करना है। इस प्रकार तटस्थता का सिद्धांत, संघर्षरत पक्षों के विवादों के समाधान हेतु तटस्थता का विकल्प प्रदान करने तथा उनके संघर्ष में सम्मिलत न होने की मांग करता है।

    संवैधानिक पदों के संदर्भ में तटस्थता के सिद्धांत का महत्त्व:

    • संवैधानिक विश्वास को बनाए रखना: अध्यक्ष, राज्यपाल, निर्वाचन आयुक्त आदि पदों में संवैधानिक विश्वास निहित है, अतः इन्हें अपने कृत्यों में तटस्थता सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है।
    • राजनीतिक निष्पक्षता सुनिश्चित करना: राज्यपाल, अध्यक्ष, CAG और निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक पदों द्वारा अपनी व्यापक संवैधानिक शक्तियों का उपयोग राजनीतिक तटस्थता एवं निष्पक्षता की ‘‘पवित्र’’ परंपरा के अनुरूप होना चाहिये।
    • हालाँकि,उत्तराखंड एवं अरूणाचल प्रदेश के मामले में इस प्रकार की पवित्र परंपरा का क्षरण दिखा है, जहाँ दोनों राज्यों के विधानसभा अध्यक्षों ने 10वीं अनुसूची के तहत विधायकों को निरर्ह घोषित करने के लिये अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके सत्तारूढ़ दल को बहुमत में रखने में सहायता प्रदान की थी।
    • संघवाद को बनाए रखना: भारत में, शक्ति-संतुलन का झुकाव संघ की ओर हैं। परंतु, राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद का महत्त्व इस तथ्य को इंगित करता है कि वह केंद्र एवं राज्यों के मध्य प्रभावी संचार स्थापित करने में संघीय ढाँचे के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण माध्यम है।
    • अभिशासन में निरंतरता और कार्यपालिका पर नियंत्रण बनाए रखने में सहायक: संवैधानिक पद, जैसे- अध्यक्ष और राज्यपाल एक-दूसरे से स्वतंत्र होकर या समन्वय स्थापित कर राज्य सरकारों के भावी स्थायित्व का निर्धारण कर सकते हैं।
    • राज्यपाल की भूमिका राज्य में शासन की निरंतरता सुनिश्चित करने, यहाँ तक कि संवैधानिक संकट के समय भी सरकार के विभिन्न स्तरों के मध्य अनौपचारिक विवादों में एक तटस्थ मध्यस्थ की होती है। इसके अतिरिक्त वह जनता की अंत:चेतना के रक्षक के रूप में भी कार्य करता है।
    • निष्पक्ष निर्वाचन प्रणाली और लोकतंत्र को सुदृढ़ करने में सहायक: निर्वाचन किसी भी देश की शासन प्रणाली की गुणवत्ता को महत्त्वपूर्ण आधार प्रदान करता है। इस प्रकार इसमें किसी देश के दीर्घकालिक लोकतांत्रिक विकास को अधिक समृद्ध अथवा अवरुद्ध करने की क्षमता निहित है। इसलिये इस संदर्भ में निर्वाचन आयोग की तटस्थता अत्यधिक महत्त्वपूर्ण एवं मूल्यवान हो जाती है।
    • अर्थव्यवस्था के विकास को बनाए रखने में सहयोगी: CAG जैसे संवैधानिक पद की स्वतंत्रता, शक्तियाँ और उत्तरदायित्व के निर्वहन के लिये लेखा परीक्षक एवं लेखा परीक्षण व लेखांकन में संलग्र उनके द्वारा नियुक्त कर्मचारियों हेतु उच्च स्तरीय नैतिकता की आवश्यकता होती है।
    • CAG के लिये सामान्य मानकों में विधायिका एवं कार्यपालिका से स्वतंत्रता शामिल है ताकि सरकार द्वारा किये गए किसी भी प्रकार के आर्थिक कदाचार या सरकारी धन के अपव्यय को इंगित किया जा सके।

    निष्कर्षतः राजनीतिक तटस्थता के सिद्धांत के अंतर्गत संवैधानिक पदाधिकारियों को विवादित प्रश्नों पर तटस्थ रहने की आवश्यकता होती है तथा यह सिद्धांत सहिष्णुता एवं विचारों की स्वतंत्रता के परंपरागत उदारवादी सिद्धांतों का विस्तार है। इस प्रकार राजनीतिक तटस्थता न केवल संवैधानिक पदों पर अपितु वर्तमान सरकार पर भी कर्त्तव्यों का आरोपण करती है। राजनेताओं द्वारा स्वतंत्र संवैधानिक कार्यालयों को राजनीतिक हस्तक्षेप से संरक्षण प्रदान करना चाहिये तथा साथ ही इन्हें राजनीतिक गतिविधियों के वाद-विवाद में सम्मिलित नहीं करना चाहिये।

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