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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा महासागरीय ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा घोषित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। यह कदम बढ़ते हुए ऊर्जा संकट के समाधान में कहाँ तक सहायक सिद्ध होगा, इसके पक्ष व विपक्ष में अपने तर्क दीजिये। (250 शब्द)

    05 Sep, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • महासागरीय ऊर्जा का परिचय देते हुए उसके प्रकारों का वर्णन कीजिये।

    • यह ऊर्जा संकट के समाधान में किस प्रकार सहायक है, यह भी बताइये।

    • इसके उपयोग से संबधित चुनौतियों के बारे में बताइये।

    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    महासागर धरती की सतह का 70 प्रतिशत भाग घेरे हुए हैं और ज्वार ऊर्जा, तरंग ऊर्जा तथा महासागरीय तापीय ऊर्जा आदि के रूप में ऊर्जा की एक विशाल राशि का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारे समुद्र और महासागरों की ऊर्जा क्षमता हमारी वर्तमान ऊर्जा आवश्यकताओं से कहीं अधिक है।

    महासागरीय ऊर्जा के विभिन्न रूप -

    ज्वारीय ऊर्जा (Tidal Energy)

    घूर्णन गति करती पृथ्वी पर मुख्य रूप से चंद्रमा के गुरुत्वीय खिंचाव के कारण सागरों में जल का स्तर बढ़ता व गिरता रहता है। इस परिघटना को ज्वार-भाटा कहते हैं। ज्वार-भाटे में जल स्तर के चढ़ने तथा गिरने से ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती है। ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बांध का निर्माण करके किया जाता है।

    तरंग ऊर्जा (Wave Energy)

    समुद्र तट के निकट विशाल तरंगों की गतिज ऊर्जा को भी विद्युत उत्पन्न करने के लिये ट्रेप किया जा सकता है। महासागरों के पृष्ठ पर आर-पार बहने वाली प्रबल पवन तरंगों को उत्पन्न करती है। तरंग ऊर्जा का वहीं पर व्यावहारिक उपयोग हो सकता है जहाँ तरंगें अत्यंत प्रबल हों।

    महासागरीय तापीय ऊर्जा (OTEC)

    समुद्रों अथवा महासागरों के पृष्ठ का जल सूर्य द्वारा तप्त हो जाता है जबकि इनके गहराई वाले भाग का जल अपेक्षाकृत ठंडा होता है। ताप में इस अंतर का उपयोग सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र (Ocean Thermal Energy Conversion Plant -OTEC) में ऊर्जा प्राप्त करने के लिये किया जाता है।

    महासागरीय ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा की श्रेणी में लाए जाने से यह उत्पादन को व्यापारिक दृष्टि से सरल और सस्ता बनाएगा तथा इसके उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। यह गौर करने वाली बात है कि पिछले 150-200 वर्षों में मनुष्य ने ऊर्जा ज़रुरतों को पूरा करने के लिये पृथ्वी की सतह के नीचे दबे संसाधनों पर भरोसा किया है। लेकिन अब वक़्त आ गया है कि सुरक्षित भविष्य के लिये महासागरीय ऊर्जा जैसे उपलब्ध संसाधनों का ज़्यादा-से-ज़्यादा उपयोग किया जाए। भारत के समुद्र तट की कुल लंबाई 7516.6 किलोमीटर है, जिससे लगभग 12455 मेगावाट ज्वारीय ऊर्जा, लगभग 40,000 मेगावाट तरंग ऊर्जा तथा लगभग 1,80,000 मेगावाट थर्मल ऊर्जा प्राप्त होने का अनुमान है। इस क्षेत्र में विकास से आर्थिक विकास, ईंधन की वृद्धि, कार्बन फुटप्रिंट (Carbon Footprint) में कमी और रोज़गार में वृद्धि जैसे सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त होंगे।

    महासागरों की ऊर्जा क्षमता (ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा तथा महासागरीय तापीय ऊर्जा) अति विशाल है, परंतु इसके दक्षतापूर्ण व्यापारिक दोहन में कठिनाइयाँ हैं। इसके अतिरिक्त महासागरीय ऊर्जा के दोहन की तकनीकें भी अत्यंत महँगी हैं अतः यह अल्प विकसित और विकासशील देशों हेतु वहनीय नहीं है तथा इसका उत्पादन केवल तटीय प्रदेशों में ही किया जा सकता है।

    भारत की बात करें तो यह एक तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है और किसी भी अर्थव्यवस्था में ‘ऊर्जा तथा वित्त’ ईंधन का काम करते हैं। महासागरीय ऊर्जा के क्षेत्र में विकास से भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ सतत विकास के लक्ष्यों को भी प्राप्त कर पाएगा। इसके लिये हमें महासागरीय ऊर्जा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के साथ सहकारी संघवाद व उच्च तकनीक की प्राप्ति पर ज़ोर देना होगा जो नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में गुणवत्ता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करेगा।

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