इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    खुसरो की कविता के आधार पर उनकी लोक-चेतना पर संक्षिप्त निबंध लिखिये। (2013, प्रथम प्रश्न-पत्र, 2 ख)

    14 Nov, 2017 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    किसी भी साहित्य की लोक-चेतना की मात्रा व गुणवत्ता का निर्धारण इस तथ्य से होता है कि वह अपने समाज की विशिष्टताओं, प्रवृत्तियों व समस्याओं को किस सीमा तक अपने में समाविष्ट करता है। इस दृष्टि से यदि खुसरो की कविता का विश्लेषण किया जाए तो उनकी लोकचेतना के कई आयाम उभरकर सामने आते हैं।

    खुसरो का काल हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के संपर्क व संघर्ष का काल था। ऐसे समय में उन्होंने प्रेम व भाईचारे के मूल्यों की प्रतिष्ठा स्थापित कर अपनी लोकचेतना प्रकट की-

    "खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार।
    जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।।"

    खुसरो ने समाज में मौजूद लिंगगत भेद को उभारकर सच्चे जनकवि का परिचय दिया। निम्नलिखित पंक्तियों में बेटी द्वारा लिंगगत भेदभाव की शिकायत को इस प्रकार उभारा है-

    "काहे को बियाहे परदेस, सुन बाबुल मोरे,
    भइया को दीहे बाबुल महला-दुमहला,
     हमको दिहे परदेस, सुन बाबुल मोरे।"

    इसी प्रकार, खुसरो ने अपने ज्ञानमूलक साहित्य जिसमें पहेलियाँ, मुकरियाँ व दो सुखने शामिल हैं, के माध्यम से मनोरंजनपरक व बाल साहित्य रचा। बालकों की कोमल जिज्ञासाओं को उन्होंने अपने साहित्य में इस प्रकार शामिल किया-

    "एक थाल मोती से भरा, सबके सिर औंधा धरा।
    चारों ओर वह थाली फिरे, मोती उससे एक न गिरे।।"

    खुसरो समाज के प्रति भी काफी संवेदनशील थे। उनकी संवेदनशीलता उनके साहित्य में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। एक गीत में उन्होंने एक पाखण्डी साधु के चरित्र का पर्दाफाश करते हुए कहा है-                 

    “उज्जल बरन, अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
    देखत में तो साधु है, निपट पाप की खान।।”

    खुसरो ने तात्कालिक द्वंद्वात्मक व संघर्षमयी स्थितियों में समन्वय की चेतना के माध्यम से एक सजग कवि होने का परिचय दिया। विभिन्न कलाओं फारसी व ब्रज भाषा, सूफी व हिन्दू दर्शन आदि के मध्य समन्वय स्थापित किया।  

    निष्कर्ष रूप में खुसरो को यदि हिन्दी साहित्य का प्रथम जनकवि कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनकी यही परंपरा आगे चलकर कबीर, तुलसी व नागार्जुन तक जाकर शिखर पर पहुँचती है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2