दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में न्यायिक विलंब (Judicial Delays) की समस्या उत्तरोतर गंभीर होती जा रही है। भारत में न्यायिक विलंब के क्या कारण है एवं इसके समाधान के लिए उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में क्या दिशा-निर्देश दिए हैं?

    23 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    भारत में न्यायिक विलंब एक बड़ी समस्या है एवं लाखों मामले लंबित पड़े हैं। इस समस्या को देखते हुए हाल ही में एक अवलोकन में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों को यह समझना चाहिए कि न्यायिक सेवा केवल नौकरी नहीं है बल्कि न्याय उपलब्ध कराने के लिए एक मिशन है।

    उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 में कैदियों के जीवन एवं स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार के अंतर्गत निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई के अधिकार को भी शामिल किया है। न्यायालय ने यह अनुमान लगाया कि यदि फैसले त्वरित और बिना विलंब के हों तो देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1-2% तक की वृद्धि संभव है।

    न्यायिक विलंब के कारण-

      • जनसंख्या के अनुपात में न्यायाधीशों की कम संख्या-भारत में 10 लाख जनसंख्या पर केवल 17 न्यायाधीश हैं जबकि अमेरिका में यह आँकड़ा 151 एवं चीन में 170 है। 1987 में ‘विधि आयोग’ ने अपनी रिपोर्ट के प्रति 10 लाख जनसख्ंया पर 50 न्यायाधीशों का प्रस्ताव दिया था, लेकिन अब भी न केवल इनकी अधिकतम स्वीकृत पदों की संख्या काफी कम है बल्कि अधीनस्थ न्यायपालिका में लगभग 5000 पद खाली भी पड़े हैं।
      • न्यायाधीशों की नियुक्तियों के मामले में गतिरोध-उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधानिक घोषित करने के पश्चा
    • त् न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए ‘मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर’ (MoP) को अंतिम रूप देने में 1 वर्ष से अधिक का समय लगा, जबकि विभिन्न उच्च न्यायालयों में रिक्त पदों की संख्या स्वीकृत पदों के लगभग 50% तक पहुँच गई थी।
    • अकुशल और धीमी प्रक्रिया-मामलों के बार-बार स्थगन के कारण न्याय प्राप्ति में लंबा समय लग जाता है।
    • पुलिस के पास प्रशिक्षण का अभाव-पुलिस के पास साक्ष्यों के वैज्ञानिक संग्रहण हेतु प्रशिक्षण का अभाव है तथा पुलिस प्रायः अपने कर्त्तव्यों को पूरा करने में विफल रहती है, जिससे सुनवाई में देरी होती है।

    समाधान के लिये उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश

    • उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे समयबद्ध सुनवाई कर आपराधिक मामलों एवं जमानत याचिकाओं का निस्तारण करें।
    • उच्चतम न्यायालय ने सुझाव दिया कि जमानत याचिकाओं पर अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा एक सप्ताह में एवं उच्च न्यायालयों द्वारा एक महीने में फैसला कर लेना चाहिए।
    • जहाँ ओरापी हिरासत में हैं, उनका न्यायिक परीक्षण (Judicial trial) 6 माह के अंदर एवं सत्र परीक्षण (session trial) 2 साल के अंदर पूरा कर लिया जाना चाहिए।
    • उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को यह निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि अधीनस्थ न्यायालय 2017 के अंत से अगले 5 वर्ष तक अपने लंबित मामलों का निपटान कर लें। उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों की कार्रवाइयों पर निगरानी रखे एवं निर्णय में निर्धारित समय सीमा का उपयोग न्यायिक अधिकारियों की वार्षिक गोपनीयता रिपोर्टों में न्यायिक प्रदर्शन का आकलन करने में करे।
    • उच्च न्यायालयों में लंबित ऐसे मामले जिनमें आरोपी 5 वर्ष से अधिक समय से हिरासत में है, उन्हें जल्दी पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। जेलों में बंद कैदियों में से 50% से अधिक ऐसे है जो बिना जमानत अथवा ट्रायल के लंबे समय से जेलों में बंद हैं। ऐसे कैदियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है अतः जिन्होंने अपनी संभावित अधिकतम सजा से अधिक समय जेलों में गुजार लिया है उन्हें व्यक्तिगत बॉन्ड पर रिहा कर देना चाहिए।

    ये निर्देश न्यायिक-विलंब को कम करने की दिशा में उच्चतम न्यायालय के नवोन्मेषी कदम साबित होंगे तथा निष्पक्ष एवं त्वरित सुनवाई के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाकर गरीब और वंचित सामाजिक समूहों के लिए न्याय सुनिश्चित हो सकेगा।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow