इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    किसी कर्म को नैतिक या अनैतिक सिद्ध करने वाले निर्धारक तत्त्व कौन-से हैं ?

    21 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • किसी कृत्य को नैतिक, अनैतिक या निर्नैतिक माने जाने की आवश्यकता को संक्षिप्त में समझाएँ।
    • कर्म को नैतिक या अनैतिक सिद्ध करने वाले निर्धारक तत्त्वों को बिंदुवार लिखें।

    प्रायः सभी समाजों में दण्ड की व्यवस्था नैतिक सिद्धांतों के आलोक में लागू की जाती रही है। किसी मनुष्य का कृत्य नैतिक है, अनैतिक है या निर्नैतिक, इसकी सुनिश्चितता के उपरांत ही प्रायः दण्ड संबंधी निर्णय लिये जाते रहे हैं। निर्नैतिक कृत्यों में प्रायः अनैच्छिक कर्म और बच्चों द्वारा किये गए कार्य शामिल किये जाते हैं।

    किसी कर्म को नैतिक या अनैतिक सिद्ध करने वाले निर्धारक तत्त्वों में विभिन्न समाजों और कालों के दौरान बदलाव होता रहा है, लेकिन मुख्य रूप से माने गए निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित हैं-

    • कृत्य- कई बार समाज कुछ कृत्यों को स्पष्ट तौर पर अनैतिक घोषित कर देता है। वह कृत्य चाहे किसी के भी द्वारा या कैसी भी परिस्थितियों में ही क्यों न किया गया हो, अनैतिक ही समझा जाता है।
    • कर्त्ता- निश्चित तौर पर किसी कृत्य के नैतिक या अनैतिक होने के निर्धारण में कर्त्ता की एक बड़ी भूमिका होती है। मान लीजिये किसी व्यक्ति ने चोरी जैसा अनैतिक कृत्य किया परंतु ऐसा उसने अपनी गरीबी से तंग आकर किया। ऐसी स्थिति में इस व्यक्ति का कृत्य उस अमीर व्यक्ति के कृत्य से कम अनैतिक समझा जाएगा जिसने ऐशो-आराम के लिये कोई बैंक घोटाला किया हो।
    • पीड़ित/ लाभार्थी- किसी कृत्य को नैतिक या अनैतिक कहे जाने में पीड़ित या लाभार्थी को भी देखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर किसी गरीब की ज़मीन पर कब्ज़ा करना, किसी अमीर व्यक्ति की कीमती वस्तु हथियाने से ज़्यादा अनैतिक है। इसी प्रकार किसी वृद्ध को आजीविका का साधन प्रदान करना, किसी युवा को यह सुविधा देने से ज़्यादा नैतिक है। 
    • इरादा/ प्रयोजन- इरादे की भूमिका समाज में किसी कृत्य के नैतिक या अनैतिक होने के निर्धारण में बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। 
    • परिस्थितियाँ- किन परिस्थितियों में कोई कृत्य हुआ है, यह उस कृत्य के नैतिक या अनैतिक होने के निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभाता है। उदाहरण के तौर पर हत्या कारण अनैतिक है, परंतु कोई महिला बलात्कार की कोशिश करने वाले व्यक्ति की हत्या अपने बचाव के लिये कर दे, तो उसे अनैतिक नहीं माना जाएगा।
    • परिणाम- परिणाम के आधार पर किसी कृत्य को नैतिक या अनैतिक कहने के परिप्रेक्ष्य में एक प्रसिद्ध सिद्धांत है- दोहरे प्रभाव का सिद्धांत। जैसे- अच्छे इरादे से किये गए कृत्य के बाद प्राथमिक परिणाम सकारात्मक और द्वितीयक प्रभाव के रूप में कुछ अवांछित परिणाम पाते हैं, तो उस कृत्य को सिर्फ द्वितीयक प्रभाव के आधार पर अनैतिक नहीं कहा जा सकता। आधुनिक समाज एवं न्याय व्यवस्था भी प्रयोजन एवं परिस्थिति को परिणाम से प्राथमिक मानती है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2