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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    निम्नलिखित समकालिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता की आवश्यकता का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। I. शरणार्थी समस्या II. जलवायु परिवर्तन समझौते III. नाभिकीय निःशस्त्रीकरण और हथियारों की होड़

    14 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    नैतिकता जो कि किसी व्यक्ति विशेष के लिये एक मार्गदर्शक स्रोत के रूप में कार्य करती है यह समाज व देशों के बीच खुशनुमा व स्वस्थ्य संबंध बनाने में भी सहायक होती है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता को अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता कहते हैं, जिसके तहत वैश्वीकरण के इस दौर में राज्यों के बीच नैतिक दायित्वों की सीमा व संभावनाओं की चर्चा की जाती है। विश्व में ऐसे कई मुद्दे हैं जिनमें अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता की आवश्यकता है। जैसे शरणार्थी समस्या, जलवायु परिवर्तन समझौते, नाभिकीय निःशस्त्रीकरण और हथियारों की होड़ आदि।

    1. शरणार्थी समस्याः पश्चिमी एशिया एवं म्यांमार में गृहयुद्ध, आईएसआईएस जैसे अनेक आतंकी समूहों के उदय के कारण वहाँ के लोगों शरणार्थी के रूप में एक अच्छे भविष्य के लिये अन्य देशों की ओर पलायन कर रहे हैं लेकिन इस बड़े स्तर के प्रवास की पड़ोसी या अन्य विकसित या विकासशील देशों के द्वारा स्वीकार नहीं किया जा रहा है।

    हंगरी जैसे देशों ने तो बल का प्रयोग करके शरणार्थियों के प्रवेश को रोका। यह यूरोपीय एवं अन्य देशों के लिये एक नैतिक दुविधा बन गई है कि वे मानवता के आधार पर शरणार्थियों को स्वीकार करें या अपने नागरिकों के हितों व अर्थव्यवस्था की रक्षा करें। फिर भी शरणार्थियों को मारना, उन्हें सागर के बीच में खाने व पीने के पानी के बिना रोकना विकसित देशों की समानुभूति व दया भाव की कमी को दिखाता है। राष्ट्रों को ऐसी समस्याओं जो कि गृहयुद्ध व आतंकी समूहों के कारण हो रही हो उनके प्रति संवेदनशील होना चाहिये और उन्हें आपस में संगठित होकर मजबूती के साथ अपनी क्षमताओं के अनुसार दूर करने का प्रयास करना चाहिये।

    2. जलवायु परिवर्तन समझौतेः जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी समझौते जैसे पेरिस सम्मेलन इत्यादि की सफलता तभी तय की जा सकेगी जब विश्व के सभी देश समान रूप से इस समस्या को महत्त्व दें तथा समान लेकिन अलग-अलग उत्तरदायित्व (CBDR) के सिद्धांत पर सहमत हों। इससे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विकसित देशों के अधिक उत्सर्जन के कारण अधिक जवाबदेही व विश्व के सभी देशों की गरीब, कमजोर व सुभेद्य जनसंख्या के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित होगी।

    3. नाभिकीय निःशस्त्रीकरण और हथियारों की होड़: विश्व परमाणु बम से होने वाली क्षति को देख चुका है। इसके बावजूद भी वैश्विक शक्तियाँ व अन्य राष्ट्रों की नाभिकीय हथियारों के स्टॉक बढ़ाने की असंवेदनशीलता यह दर्शाती है कि वे पृथ्वी एवं मानव जाति के भविष्य के बारे में गंभीर नहीं है।

    उपरोक्त मुद्दों की चर्चा के बाद यह कहा जा सकता है कि पृथ्वी इस वैश्वीकरण के युग में एक बड़े घर की तरह है जिसमें एक किनारे पर घटित होने वाली घटना घर के दूसरे किनारे को प्रभावित करेगी। समय की मांग यह है कि एक-दूसरे को समझा जाए, शांति के लिये एकत्रित हुआ जाए और वैश्विक व द्विपक्षीय समस्याओं का मिलकर हल निकाला जाए।

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