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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “मुक्त वाक् एवं अभिव्यक्ति का अधिकार लोकतंत्र का एक आवश्यक घटक है।” इस कथन के संदर्भ में राजद्रोह क़ानून की वर्तमान प्रासंगिकता पर टिप्पणी कीजिये।

    05 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में प्रश्नगत कथन को स्पष्ट करें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में राजद्रोह क़ानून की ऐतिहासिकता को बताते हुए वर्तमान में इसकी   प्रासंगिकता पर चर्चा करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    लोकतंत्र सही मायनों में लोकतंत्र तभी माना जाता है, जब सरकार के प्रति व्यक्त असहमति और आलोचना का भी तहेदिल से स्वागत किया जाए। लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के अनुसार “बोले या लिखे गए शब्दों या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रस्तुति द्वारा, जो कोई भी भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, असंतोष उत्पन्न करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, उसे आजीवन कारावास या तीन वर्ष तक की कैद और ज़ुर्माना अथवा इन सभी से दंडित किया जाएगा।"

    ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों के दमन हेतु 1870 में सेक्शन 124A को आईपीसी के छठे अध्याय में जोड़ा गया। आज़ादी के बाद से ही मानवाधिकार संगठन, सरकार द्वारा इस क़ानून के दुरुपयोग की आशंका को लेकर आवाज़ उठाते रहे हैं। वर्तमान में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा शांतिपूर्ण असहमति या आलोचना को लोकतंत्र में सेफ्टीवाल्व की तरह बताया गया है।

    गौरतलब है कि केंद्र और राज्यों की सरकारों द्वारा पहले भी कार्यकर्त्ताओं, विरोधियों, लेखकों और यहाँ तक ​​कि कार्टूनिस्टों के खिलाफ इस धारा का प्रयोग कर उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। अब महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि असहमति और आलोचना की भाषा और देशद्रोह की भाषा में अंतर क्या है? क्या केवल सरकार की नीतियों से असहमति और आलोचना के कारण किसी को देशद्रोह का आरोपी ठहराया जाना सही है? इस संदर्भ में विधि आयोग ने अपने परामर्श पत्र में कुछ बिंदुओं को रेखांकित किया है :

    • एक जीवंत लोकतंत्र में सरकार के प्रति असहमति और उसकी आलोचना सार्वजनिक बहस का प्रमुख मुद्दा है।
    • मुक्त वाक् एवं अभिव्यक्ति का अधिकार लोकतंत्र का एक आवश्यक घटक है, के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 124A, जिसके अंतर्गत राजद्रोह का प्रावधान किया गया है, पर पुनः विचार करने या उसे रद्द करने की आवश्यकता है।
    • पत्र में कहा गया है कि भारत को राजद्रोह के कानून को क्यों बरकरार रखना चाहिये जबकि, इसकी शुरुआत अंग्रेज़ों ने भारतीयों के दमन के लिये की थी और उन्होंने अपने देश में इस कानून को समाप्त कर दिया है।
    • राज्य की कार्रवाइयों के प्रति असहमति की अभिव्यक्ति को राजद्रोह के रूप में नहीं माना जा सकता है। एक ऐसा विचार जो कि सरकार की नीतियों के अनुरूप नहीं है, की अभिव्यक्ति मात्र से व्यक्ति पर राजद्रोह का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
    • गौरतलब है कि अपने इतिहास की आलोचना करने और प्रतिकार करने का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत सुरक्षित है।
    • राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा करना आवश्यक है, लेकिन इसका दुरुपयोग स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर नियंत्रण स्थापित करने के उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिये।
    • लोकतंत्र में ‘एक ही पुस्तक से गीतों का गायन’ देशभक्ति का मापदंड नहीं है। लोगों को अपने अनुसार देशभक्ति को अभिव्यक्त करने का अधिकार होना चाहिये।
    • अनुचित प्रतिबंधों से बचने के लिये मुक्त वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों की सावधानी पूर्वक जाँच करनी चाहिये।

    राष्ट्रीय अखंडता की सुरक्षा के साथ ही नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देना एक सफल लोकतंत्र की परिचायक है। अतः धारा 124A पर पुनर्विचार कर इसे पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है, तभी इसकी वर्तमान प्रासंगिकता सार्थक सिद्ध हो सकेगी।

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