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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये- 1. सुख 2. अंतराल का सिद्धांत

    21 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    1. सुखः सुखवादी विचारक सुख को सर्वोच्च शुभ मानते हैं और सर्वोच्च शुभ वही है जो आनंद देता है। इसे दो तरह से परिभाषित किया गया है : (i). नकारात्मक  (ii). सकारात्मक। सुख की नकारात्मक परिभाषा में “शारीरिक पीड़ा और मानसिक कष्ट का अभाव ही सुख है। सुख का चरम स्तर दुख के पूर्ण विनाश में है।”  सिज़विक ने सुख की सकारात्मक परिभाषा में सुख को एक अनुभूति बताया है जिसे विवेकशील प्राणी अनुभव करने पर वांछनीय समझते हैं और अन्य अनुभूतियों की तुलना में प्राथमिकता देते हैं।

    कुछ सुखवादी सुख तथा आनंद में भेद करते हैं, जबकि कुछ अन्य इन्हें एक ही मानते हैं। सुख और आनंद के मध्य अंतर निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है।

    • सुख का संबंध शरीर या इंद्रियों से है जबकि आनंद का संबंध बुद्धि, मन या भावना से है।
    • सुख प्रायः क्षणिक व अस्थायी होता है जबकि आनंद में अपेक्षाकृत अधिक स्थायित्व होता है।
    • सुख में तीव्रता अधिक होती है जबकि आनंद में तीव्रता अपेक्षाकृत कम होती है।
    • स्वादिष्ट भोजन, उत्तेजक पेय पदार्थ आदि सुख प्रदान करते है जबकि साहित्य, कला, ज्ञान, दार्शनिक चिंतन, आध्यात्मिक चिंतन, स्नेह, परोपकार आदि से आनंद प्राप्त होता है।

    2. अंतरात्मा का सिद्धांतः अंतः प्रज्ञावाद के क्षेत्र में अंतरात्मा का सिद्धांत बटलर की देन है। उसका मानना है कि मनुष्य के भीतर कई प्रवृत्तियाँ होती हैं जिन्हें चार वर्गों में बाँटा जा सकता है- विशिष्ट प्रवृत्तियाँ, आत्मप्रेम, परोपकार तथा अंतरात्मा। 

    आदर्श स्वभाव वह है जिसमें सभी प्रवृत्तियाँ उचित संबंध में रहकर कार्य करती हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक अच्छी राजव्यवस्था में सरकार के विभिन्न अंग संविधान के अनुसार सुसंगत रहकर कार्य करते हैं।

    अंतरात्मा के दो पक्ष हैं- ज्ञानात्मक तथा अधिकारात्मक। ज्ञानात्मक पक्ष बताता है कि क्या उचित है तथा क्या अनुचित, जबकि अधिकारात्मक पक्ष हमें आदेश देता है कि हम उचित कार्य करें। नैतिक दृष्टि से शेष प्रवृत्तियों की तुलना में सर्वोच्च स्तर पर होते हुए भी अंतरात्मा में इतनी शक्ति नहीं है कि वह ज़बरन उचित कार्य करवा ही ले क्योंकि कई बार मनुष्य अनैतिक प्रेरणाओं के दबाव में उसके कार्यों को अनदेखा कर देता है।

    अंतरात्मा का सिद्धांत यद्यपि नैतिकता पर आधारित है तथापि अत्यंत आत्मनिष्ठ होने के कारण अलग-अलग व्यक्तियों की अंतरात्मा नैतिकता विरोधी आदेश दे सकती है। इसके अलावा, बुरे से बुरा व्यक्ति भी अपने कर्मों को अंतरात्मा के नाम पर सही ठहरा सकता है।

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