अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सामरिक स्वायत्तता: भारत के वैश्विक नेतृत्व का पथप्रदर्शक
- 08 Sep 2025
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यह एडिटोरियल 06/09/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “India’s strategic autonomy in a multipolar world” पर आधारित है। इस लेख में भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को एक कूटनीतिक अनिवार्यता के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जहाँ भारत प्रमुख शक्तियों से अपने शर्त्तों पर संवाद करता है। यह दृष्टिकोण 'सिद्धांतनिष्ठ बहुध्रुवीयता' को दर्शाता है, जो स्वतंत्र भी है और अलगाववादी भी नहीं।
प्रिलिम्स के लिये: चीन में SCO शिखर सम्मेलन, क्वाड, S-400 वायु रक्षा प्रणाली, राफेल जेट, वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट, भारत की G20 अध्यक्षता, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, SAARC, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र
मेन्स के लिये: भारत के सामरिक स्वायत्तता दृष्टिकोण के प्रमुख आयाम, भारत की सामरिक स्वायत्तता हेतु प्रयास से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ।
आज के विश्व में जहाँ शक्ति-समीकरण लगातार बदल रहे हैं और पारंपरिक गठबंधन टूट रहे हैं, वहाँ भारत की 'रणनीतिक स्वायत्तता' केवल एक बौद्धिक विचार नहीं रही, बल्कि एक व्यावहारिक कूटनीतिक अनिवार्यता भी बन गयी है। इस नीति से भारत अपनी संप्रभु निर्णय-क्षमता को सुरक्षित रखते हुए अमेरिका, चीन और रूस जैसी महाशक्तियों से अपने ही शर्त्तों पर संबंध रख पाता है। यह न तो अधीनता है और न ही मात्र प्रतिसंतुलन, बल्कि यह एक सैद्धांतिक जुड़ाव की नीति है, जहाँ कठोर गुटबद्धता से ऊपर राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी जाती है। यह अलगाववाद नहीं, बल्कि 'बहुध्रुवीय विश्व-दृष्टिकोण' का प्रतिबिंब को दर्शाता है और यह एक ऐसी कूटनीति है जो स्वतंत्रता को निर्भरता पर और आत्मनिर्णय को गुटीय बंधनों पर प्राथमिकता देती है।
भारत के सामरिक स्वायत्तता दृष्टिकोण के प्रमुख आयाम क्या हैं?
- महाशक्तियों के साथ बहु-संरेखण: भारत बिना किसी गुट में शामिल हुए, प्रमुख शक्तियों के साथ हित-आधारित जुड़ाव की नीति अपनाता है। यह नीति इसके लिये अमेरिका-चीन के बढ़ते तनाव के बीच रणनीतिक संतुलन (Hedging) में सहायक है।
- यह भारत-प्रशांत और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अमेरिका के साथ साझेदारी करता है, वहीं रूस के साथ गहरे रक्षा संबंध बनाए रखता है और बहुपक्षीय मंचों पर चीन के साथ संवाद भी करता है।
- अमेरिकी दबाव के बावजूद, भारत ने यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र के मतदान में भाग नहीं लिया और रूसी तेल आयात जारी रखा, जो अब भारत के कच्चे तेल के आयात का 35-40% है।
- भारत ने हाल ही में चीन में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जिसमें एक संशोधित एवं सशक्त बहुपक्षवाद का समर्थन किया गया तथा भारत-रूस-चीन संबंधों को और प्रगाढ़ करने पर ज़ोर दिया गया।
- इसके साथ ही भारत ने अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड सहयोग को और गहरा किया है, तथा वह 2025 के क्वाड शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने की तैयारी कर रहा है।
- स्वायत्त रक्षा क्षमता: भारत विभिन्न देशों से रक्षा उपकरणों का आयात करता है, जिसमें अमेरिका से विमान और समुद्री प्रणालियाँ (जैसे: MQ-9B ड्रोन), फ्राँस से लड़ाकू विमान तथा पनडुब्बियाँ (जैसे: राफेल जेट और स्कॉर्पीन पनडुब्बियाँ), रूस से विभिन्न सैन्य प्लेटफॉर्म और S-400 वायु रक्षा प्रणाली एवं इज़रायल से बाराक-8 जैसी उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ शामिल हैं।
- इसके अलावा, सामरिक स्वायत्तता, विशेष रूप से भू-राजनीतिक व्यवधानों और प्रतिबंध जोखिमों के बीच, बाह्य निर्भरता (सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची) को कम करने के लिये रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण पर तेज़ी से निर्भर करती है।
- इसका उद्देश्य प्रतिकूल सुरक्षा वातावरण में परिचालन लचीलापन और तकनीकी संप्रभुता सुनिश्चित करना है।
- भारत का रक्षा बजट सत्र 2025-26 में ₹6.81 लाख करोड़ है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 1.85% है, जिसमें पूंजीगत परिव्यय के लिये ₹1.8 लाख करोड़ शामिल हैं।
- फिलीपींस को तेजस LCA, INS विक्रांत और BrahMos जैसे स्वदेशी प्लेटफॉर्मों का निर्यात बढ़ती आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
- संतुलित हिंद-प्रशांत रणनीति: औपचारिक गठबंधनों से बचते हुए, भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में गठबंधन बनाकर तथा रणनीतिक लचीलेपन को बनाए रखते हुए, चीन के आक्रामक रुख को संतुलित करता है।
- यह क्वाड और IPEF जैसे लघु-पक्षीय समूहों के माध्यम से जुड़ता है, जबकि ASEAN, ऑस्ट्रेलिया और फ्राँस के साथ द्विपक्षीय कूटनीति बनाए रखता है।
- अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की हिंद महासागर में संयुक्त गश्ती इसके परिचालन सहयोग को दर्शाती है, लेकिन यह क्वाड को सैन्य गठबंधन का रूप देने से अस्वीकृत करता है।
- वर्ष 2024 में 21वें ASEAN-भारत शिखर सम्मेलन ने ASEAN के नेतृत्व वाली संरचना में भारत की केंद्रीयता की पुष्टि की, जिससे चीनी क्षेत्रीय आधिपत्य का विरोध हुआ।
- ग्लोबल साउथ का नेतृत्व: रणनीतिक स्वायत्तता में ग्लोबल साउथ के हितों को समर्थन देकर और संस्थागत सुधार की अनुशंसा करके एक बहुध्रुवीय व्यवस्था को आकार देना भी शामिल है। भारत गैर-पश्चिमी नेतृत्व प्रदान करने के लिये अपने विकासात्मक आख्यान और डिजिटल कूटनीति का लाभ उठाता है।
- भारत ने वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (2023) का आयोजन किया, जिसमें 125 देशों ने भाग लिया।
- भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान, इसने अफ्रीकी संघ को इसमें शामिल किया और अपनी एजेंडा-निर्धारण शक्ति का प्रदर्शन किया।
- भू-राजनैतिक-आर्थिक संतुलन रणनीति: भारत अपने व्यापारिक साझेदारों और निवेश स्रोतों में विविधता लाता है ताकि किसी एक देश या शक्ति (विशेषकर चीन और पश्चिमी देशों) पर निर्भरता कम हो तथा उनकी दबावपूर्ण आर्थिक कूटनीति का सामना कर सके। इससे भारत को अपनी नीतियों को सुरक्षित रखने और संरक्षणवादी प्रवृत्तियों के बीच भी बाज़ारों तक लचीली अभिगम्यता बनाने में सहायता मिलती है।
- उदाहरण के लिये, हाल ही में टैरिफ पुनर्संतुलन ने यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौतों को अंतिम रूप देने के भारत के प्रयासों को गति दी है, साथ ही लैटिन अमेरिका एवं अफ्रीका में बाज़ार के अवसरों का विस्तार करते हुए, इसके आर्थिक प्रभाव को और व्यापक बनाया है।
- प्रौद्योगिकी और डिजिटल संप्रभुता: AI, साइबर और सेमीकंडक्टर भू-राजनीति को संचालित करने के लिये डिजिटल रणनीतिक स्वायत्तता महत्त्वपूर्ण है। भारत का लक्ष्य क्षमता निर्माण एवं वैश्विक साझेदारी के माध्यम से उभरते तकनीकी शासन में एक नियम-निर्माता बनना है।
- प्रमुख कदमों में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 का अधिनियमन शामिल है, जो नागरिकों के डेटा की सुरक्षा के लिये एक मज़बूत कार्यढाँचा स्थापित करता है तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET) पहल की शुरुआत, जो AI, क्वांटम, 5G/6G एवं सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम में सहयोग को बढ़ावा देता है।
- भारत AI पर वैश्विक साझेदारी में भी शामिल हुआ (और वर्ष 2026 में AI इम्पैक्ट समिट की मेज़बानी करने वाला है) तथा अफ्रीका व दक्षिण पूर्व एशिया में इंडिया स्टैक के अंगीकरण का नेतृत्व कर रहा है।
- मुद्दा-आधारित बहुपक्षवाद: भारत गुटीय राजनीति के बजाय समता और संप्रभुता पर आधारित बहुपक्षवाद का समर्थन करता है और बिना किसी वैचारिक संरेखण के विविध समूहों में भाग लेता है।
- यह गतिशीलता को बनाए रखता है और एजेंडा नियंत्रण को अधिकतम करता है। भारत ने वर्ष 2023 SCO समिट की मेज़बानी की तथा साथ ही क्वाड एवं I2U2 में भी भाग लिया, जिससे उसकी ‘बहु-मंच कूटनीति’ का प्रदर्शन हुआ।
- इसने UNSC रिफॉर्म और WTO विवाद समाधान पुनरुद्धार पर ज़ोर दिया है, जिसमें G77 और BRICS ने UNSC में स्थायी सीट के लिये उसके दावे का समर्थन किया है।
- यह गतिशीलता को बनाए रखता है और एजेंडा नियंत्रण को अधिकतम करता है। भारत ने वर्ष 2023 SCO समिट की मेज़बानी की तथा साथ ही क्वाड एवं I2U2 में भी भाग लिया, जिससे उसकी ‘बहु-मंच कूटनीति’ का प्रदर्शन हुआ।
- समुत्थानशील आर्थिक राष्ट्रवाद: भारत आत्मनिर्भर भारत का उपयोग संरक्षणवाद के रूप में नहीं, बल्कि अस्थिर वैश्विक झटकों से घरेलू हितों की रक्षा के लिये एक समुत्थानशील रणनीति के रूप में करता है।
- यह खुले बाज़ारों को रणनीतिक औद्योगिक नीति के साथ जोड़ता है। आयातों को रोकने के लिये उच्च टैरिफ लगाने के बजाय, भारत सरकार ने उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की। यह नीति महत्त्वपूर्ण वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- इस रणनीतिक नीति ने भारत को मोबाइल फोनों के निवल आयातक से एक प्रमुख निर्यातक तक में बदल दिया है। वैश्विक कंपनियाँ, जो कभी केवल भारतीय बाज़ार में ही सेवा देती थीं, अब भारत को ‘विश्व के लिये निर्माण (Make for the World)’ के आधार के रूप में उपयोग कर रही हैं तथा भारत से अपने उत्पादों का निर्यात अन्य देशों में कर रही हैं।
- मानक कूटनीति और मूल्य-आधारित आउटरीच: भारत अपनी कूटनीति में बहुलतावाद, संप्रभुता और पारस्परिक सम्मान जैसे मूल्यों को शामिल करके स्वयं की अलग पहचान बनाता है, न कि केवल लेन-देन आधारित समझौते से। इससे भारत की वैधता विशेषकर उपनिवेशोत्तर एवं विकासशील देशों के बीच और मज़बूत होती है।
- भारत ने कश्मीर मुद्दे पर तुर्की के भिन्न रुख के बावजूद उसे मानवीय सहायता प्रदान की और कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक 'वैक्सीन मैत्री' पहल का नेतृत्व किया।
- इज़रायल-फिलिस्तीन के साथ इसकी असंबद्ध नीति और यूक्रेन के प्रति संतुलित रुख नैतिक व्यावहारिकता को दर्शाता है।
- जलवायु और विकासात्मक स्वायत्तता: भारत उन जलवायु संबंधी शर्तों का विरोध करता है जो उसकी विकासात्मक अनिवार्यताओं को बाधित कर सकती हैं, साथ ही स्वयं को हरित परिवर्तन में अग्रणी के रूप में स्थापित करता है। यहाँ रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करती है कि विकास के मार्ग राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित रहें और साथ ही वैश्विक स्तर पर विश्वसनीय भी रहें।
- भारत ने वर्ष 2021 में (9 वर्ष पूर्व) 40% गैर-जीवाश्म स्थापित क्षमता हासिल कर ली। इसके अलावा, भारत ने स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिये मिशन LiFE शुरू किया।
- साथ ही, भारत ने विकासात्मक आवश्यकताओं और जलवायु उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाते हुए, कोयले के उपयोग को ‘चरणबद्ध तरीके से समाप्त’ करने के बजाय ‘चरणबद्ध तरीके से न्यूनतम’ करने की लगातार अनुशंसा की है।
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता हेतु प्रयास से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण और महाशक्तियों का दबाव: अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के बढ़ने से भारत पर किसी एक पक्ष से जुड़ने का दबाव बढ़ रहा है, जिससे उसके स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की संभावना कम हो रही है।
- जब आर्थिक और सुरक्षा हित दोनों ही प्रतिद्वंद्वी गुटों से जुड़े हों, तो रणनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करना कठिन हो जाता है। यूक्रेन संघर्ष एवं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तनाव इस दुविधा को और बढ़ा देते हैं।
- अमेरिका-भारत संबंधों के बावजूद, वाशिंगटन ने भारत पर रूसी तेल आयात में कटौती करने और रक्षा संबंधों को कम करने का दबाव डाला है।
- वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन की आक्रामकता और भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार होने के साथ-साथ, निर्भरता की दुविधा और भी गंभीर हो गई है।
- रक्षा निर्भरता और तकनीकी खामियाँ: विदेशी रक्षा आयात पर भारी निर्भरता संकट की स्थिति में स्वायत्तता को सीमित करती है और भारत को प्रतिबंधों या दबाव का सामना करना पड़ता है। अभी भी महत्त्वपूर्ण तकनीक के मामले में स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास अवरुद्ध हो रहा है, जिससे प्रतिरोधक क्षमता और परिचालन स्वतंत्रता कमज़ोर हो रही है।
- भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक (SIPRI) है और 55% से अधिक रक्षा उपकरण अभी भी रूसी मूल के हैं।
- उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) की महत्त्वाकांक्षाओं के बावजूद, भारत के पास अभी भी एक विश्वसनीय स्वदेशी जेट इंजन का अभाव है, जिससे पूर्ण रक्षा आत्मनिर्भरता में विलंब हो रहा है।
- बहुपक्षीय मंचों में रणनीतिक अस्पष्टता: हालाँकि भारत विविध समूहों (क्वाड, SCO, BRICS) में शामिल है, लेकिन इनके आपसी मतभेद और अलग-अलग उद्देश्यों के कारण भारत से विरोधाभासी अपेक्षाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे भारत की भूमिका अस्पष्ट दिखती है और उसे सभी पक्षों से आलोचना झेलनी पड़ती है।
- यूक्रेन पर भारत के तटस्थ रुख की पश्चिमी देशों ने कड़ी आलोचना की, जबकि चीन के साथ SCO और BRICS में भागीदारी से हिंद-प्रशांत गठबंधनों में संदेह उत्पन्न होता है।
- ये तनाव तब स्पष्ट हुए जब भारत ने चीन के किंगदाओ में SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक में संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने से अस्वीकार कर दिया।
- तकनीकी निर्भरता और डिजिटल कमज़ोरियाँ: भारत डिजिटल सॉवरेनिटी की आकांक्षा रखता है, लेकिन फिर भी वेस्टर्न प्लेटफॉर्म और चीनी आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भर है। इससे तकनीकी प्रशासन और साइबर सुरक्षा में स्वायत्तता सीमित हो जाती है।
- भारत अपनी 90% से अधिक सेमीकंडक्टर आवश्यकताओं का आयात चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से करता है।
- महत्त्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals) आपूर्ति शृंखलाओं (जैसे: दुर्लभ मृदा तत्त्व) में चीन का प्रभुत्व कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रक्षा क्षेत्रों में दीर्घकालिक कमज़ोरी उत्पन्न करता है।
- क्षेत्रीय प्रभाव में बाधाएँ: क्षेत्रीय प्रधानता की भारत की आकांक्षा को चीन की हठधर्मिता, पाकिस्तान की छद्म रणनीति और धीमी क्षेत्रीय एकीकरण से चुनौती मिल रही है। यह दक्षिण एशिया में उसके नेतृत्व को कमज़ोर करता है।
- चीन की BRI और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजनाएँ POK से होकर गुजरती हैं, जो भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करती हैं, फिर भी क्षेत्रीय भागीदारी को आकर्षित करती हैं।
- SAARC के साथ भारत की सीमित सफलता, नेपाल, श्रीलंका और मालदीव में बुनियादी अवसंरचना एवं ऋण कूटनीति के माध्यम से चीन के बढ़ते प्रभाव के विपरीत है।
- संस्थागत सीमाएँ और नीतिगत सुसंगतता: सामरिक स्वायत्तता के लिये समग्र सरकारी समन्वय की आवश्यकता होती है, लेकिन खंडित नीति-निर्माण और प्रशासनिक जड़ता प्रतिक्रिया एवं कार्यान्वयन को धीमा कर देती है। दक्षता की कमी भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा डालती है।
- आंतरिक क्षेत्रीय प्रतिरोध के कारण यूरोपीय संघ के साथ भारत की मुक्त व्यापार समझौते (FTA) वार्ताएँ धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं।
- मेक-इन-इंडिया रक्षा परियोजनाओं में प्रायः विलंब, लागत में वृद्धि और सेवाओं और उद्योग के बीच समन्वय विफलताओं का सामना करना पड़ता है।
- घरेलू आर्थिक कमज़ोरियाँ: मज़बूत आर्थिक सुदृढ़ता के बिना, रणनीतिक स्वायत्तता अस्थिर हो जाती है। असंगठित क्षेत्र का बड़ा हिस्सा, आय असमानता और राजकोषीय दबाव राज्य की स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता को कम कर देते हैं।
- भारत का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद $2,500 से थोड़ा अधिक है, जो चीन के $12,000+ से बहुत कम है।
- भारत को विशिष्ट क्षेत्रों पर बढ़ते बाह्य दबावों का सामना करना पड़ रहा है: भारतीय वस्त्र उद्योग अमेरिकी टैरिफ के खतरे में है, इस्पात उद्योग यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) के प्रति सुभेद्य है और डेयरी क्षेत्र न्यूज़ीलैंड से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना कर रहा है।
- ऐसी कमज़ोरियाँ भारत की सौदाकारी-शक्ति को बाधित करती हैं और दीर्घकालिक रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने में आने वाली कमियों को उजागर करती हैं।
- खंडित वैश्विक शासन प्रणाली: बहुपक्षवाद के कमज़ोर होने से भारत के पास ऐसे प्रभावी संस्थान नहीं बचे हैं जिनके माध्यम से वह व्यापार, तकनीक और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अपनी रणनीतिक आवाज़ को बुलंद कर सके। सुधार अभी भी अप्राप्य बना हुआ है।
- व्यापक समर्थन के बावजूद, भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी चीन द्वारा अवरुद्ध और P5 सर्वसम्मति के अभाव में अटकी हुई है।
- विश्व व्यापार संगठन की विवाद निपटान प्रणाली अक्षम हो गई है, जिससे व्यापार दबाव को कानूनी रूप से चुनौती देने की भारत की क्षमता प्रभावित हो रही है।
वैश्विक एकीकरण से समझौता किये बिना भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता किस प्रकार बढ़ा सकता है?
- रणनीतिक अभिसरण के साथ बहु-संरेखण को गहन करना: भारत को वैचारिक जाल में फँसे बिना आर्थिक, सुरक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में प्रमुख शक्तियों के साथ जुड़कर संतुलित बहु-संरेखण को अपनाना चाहिये।
- सामरिक रूप से एकजुट होने के बजाय रणनीतिक अभिसरण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, जिससे साझेदारी में लचीलापन सुनिश्चित हो सके।
- सभी के साथ जुड़कर, लेकिन किसी के साथ उलझे बिना, भारत बिना अलगाव के स्वायत्तता को सुदृढ़ करता है। जैसा कि कहा जाता है, “रणनीतिक परिपक्वता पुराने संबंधों को तोड़े बिना नए संबंध बनाने में निहित है।”
- वैश्विक सहयोग के साथ स्वदेशीकरण में तीव्रता: रक्षा, सेमीकंडक्टर और AI में आत्मनिर्भरता महत्त्वपूर्ण है, लेकिन अलगाव के माध्यम से नहीं, बल्कि विश्वसनीय भागीदारों के साथ सह-विकास ही आगे की राह है।
- भारत को वैश्विक विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए कमज़ोरियों को कम करने के लिये स्तरित नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना चाहिये।
- आंतरिक निर्माण और बाह्य सहयोग के माध्यम से भारत प्रासंगिकता के साथ समुत्थानशीलता सुनिश्चित कर सकता है। वास्तव में, “संप्रभुता तभी धारणीय होती है जब वह आत्मनिर्भरता से संचालित हो।”
- उभरती प्रौद्योगिकियों में वैश्विक मानदंडों को आकार देना: भारत को वैश्विक डिजिटल नियमों, AI एथिक्स और साइबर गवर्नेंस को तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये ताकि नियमों का पालन करने से लेकर नियम-निर्माण की ओर कदम बढ़ाया जा सके।
- GPAI और इंडिया स्टैक जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से, यह विश्वसनीयता के साथ मानक स्थापित कर सकता है।
- “एल्गोरिदम के युग में, मानकों में ही संप्रभुता निहित है।” मानदंडों को आकार देने की क्षमता संप्रभुता को उतना ही बढ़ाती है जितना कि सीमाओं की रक्षा करना।
- कनेक्टिविटी में निहित समावेशी क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना: भारत को यूरेशिया, हिंद महासागर और दक्षिण पूर्व एशिया में खुले एवं पारदर्शी कनेक्टिविटी कार्यढाँचों का समर्थन करना चाहिये।
- IMEC, INSTC और चाबहार जैसी पहल सहकारी नेतृत्व को प्रदर्शित कर सकती हैं तथा चीन के BRI के विकल्प प्रदान कर सकती हैं।
- “कूटनीति तब सबसे तीव्र गति से आगे बढ़ती है जब वह सड़कों, रेल और केबलों पर चलती है।” आम सहमति के माध्यम से कनेक्टिविटी को सशक्त बनाकर, भारत एक रणनीतिक गुणक प्राप्त करता है।
- मुद्दा-आधारित मिनीलेटरल को संस्थागत बनाना: भारत को क्वाड, I2U2 एवं फ्राँस-यूएई त्रिपक्षीय पहल जैसे लचीले छोटे समूहों में अपनी भागीदारी को और गहरी करनी चाहिये।
- ये लचीले प्लेटफॉर्म सख्त गठबंधनों के बोझ के बिना केंद्रित सहयोग को सक्षम बनाते हैं।
- क्षेत्रों के अनुरूप मॉड्यूलर साझेदारियाँ भारत को स्वायत्त रहते हुए भी सक्रिय रहने में सक्षम बनाती हैं। जैसा कि कहा जाता है, “भू-राजनीति की बिसात पर, सामरिक गठबंधन कठोर गुटों को पराजित कर देते हैं।”
- भारतीय पहचान के साथ बहुपक्षवाद में सुधार: भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं का लोकतंत्रीकरण करने के साथ-साथ ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं के अनुरूप नए बहुपक्षीय कार्यढाँचे का निर्माण करना चाहिये।
- इसकी G20 अध्यक्षता और BRICS+ आउटरीच इस उद्देश्य को प्रदर्शित करते हैं। वर्तमान में नेतृत्व प्रतिरोध से नहीं, बल्कि नियमों को आकार देने से आता है। साथ ही, “वास्तविक रणनीतिक स्वायत्तता विश्व को आकार देने से आती है, न कि केवल उसमें सह-अस्तित्व में रहने से।”
- तकनीकी-सुरक्षा-व्यापार त्रिकोण तैयार करना: भारत को एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना चाहिये जहाँ तकनीकी अभिगम्यता, राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यापार नीति परस्पर सुदृढ़ हों।
- संतुलित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) ऐसे होने चाहिये जो बाज़ार का विस्तार करें लेकिन घरेलू सुरक्षा उपायों से समझौता न करें। भरोसेमंद तकनीकी हस्तांतरण से सेमीकंडक्टर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को सुरक्षित किया जा सकता है।
- मज़बूत डिजिटल और भौतिक अवसंरचना के निर्माण से आर्थिक एवं रणनीतिक स्वायत्तता दोनों मज़बूत होंगी।
- एक बहुध्रुवीय विश्व में, संप्रभुता अलगाव में नहीं, बल्कि परस्पर निर्भरता को आकार देने में निहित है।
- विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला गठबंधन का निर्माण: भारत को समान विचारधारा वाले साझेदारों के साथ सेमीकंडक्टर, दुर्लभ मृदा तत्त्व और हरित प्रौद्योगिकियों के लिये विविध एवं सुरक्षित आपूर्ति शृंखलाएँ बनानी चाहिये।
- पारदर्शी गलियारे और क्षेत्रीय केंद्र प्रतिद्वंद्वियों पर निर्भरता कम करते हुए समुत्थानशीलता बढ़ाते हैं। “21वीं सदी में आपूर्ति शृंखलाएँ नए रणनीतिक गठबंधन हैं।”
- प्रवासी समुदाय का एक रणनीतिक परिसंपत्ति के रूप में उपयोग: 207 देशों में निवास करने वाले भारत के प्रवासी समुदाय की संख्या बढ़कर 3.43 करोड़ हो गई है, जो इसे विश्व में सबसे बड़ा बनाता है तथा यह व्यापार, राजनीति और प्रौद्योगिकी में प्रभाव का एक विशाल संसाधन है।
- ज्ञान नेटवर्क, सांस्कृतिक अभिगम्यता तथा आर्थिक साझेदारी के माध्यम से संरचित जुड़ाव भारत के वैश्विक प्रभाव को बढ़ा सकता है।
- साथ ही, इस सॉफ्ट पावर को रणनीतिक पूंजी में बदलने के लिये प्रवासी भारतीय दिवस और प्रवासी निवेश मंचों जैसे संस्थागत तंत्रों को मज़बूत किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता हेतु प्रयास अलग-थलग रहने की नहीं, बल्कि अपनी शर्तों पर दृढ़ रहते हुए विश्व के साथ जुड़ने की है। यह एक ओर राष्ट्रीय संप्रभुता को संरक्षित करने और दूसरी ओर वैश्विक एकीकरण को अपनाने का संतुलन है, जहाँ धैर्य एवं सहयोग दोनों का महत्त्व है। नियमों को आकार देकर, साझेदारियाँ बनाकर और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करके, भारत एक बहुध्रुवीय व्यवस्था में एक आत्मविश्वासपूर्ण मार्ग प्रशस्त करता है। जैसा कि एस. जयशंकर ने उचित ही कहा है, “भारत का मार्ग विशेषतः आज के समय में केवल निष्क्रिय रहने का नहीं, बल्कि निर्णयकर्त्ता और दिशा-निर्धारक बनने का है।”
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत की रणनीतिक स्वायत्तता हेतु प्रयास को प्रायः 'सार्वभौमिकता की रक्षा' और 'वैश्विक एकीकरण' के बीच संतुलनकारी प्रयास के रूप में देखा जाता है। समालोचनात्मक विवेचना कीजिये कि यह दृष्टिकोण भारत की विदेश नीति के विकल्पों को किस प्रकार आकार देता है तथा इसकी विशेषता और सीमाओं को भी रेखांकित कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
मेन्स
प्रश्न 1. ‘मोतियों के हार’ (द स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स) से आप क्या समझते हैं ? यह भारत को किस प्रकार प्रभावित करता है ? इसका सामना करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदमों की संक्षिप्त रूपरेखा दीजिये। (2013)
प्रश्न 2. “वैश्वीकरण के क्षीण होने के साथ, शीत युद्ध के बाद की दुनिया संप्रभु राष्ट्रवाद का स्थल बनती जा रही है।” स्पष्ट कीजिये। (2025)
प्रश्न 3. “पूर्व और पश्चिम के बीच नाजुक असंतुलन और यू.एस.ए. बनाम रूस-चीनी गठबंधन के बीच उलझन के कारण संयुक्त राष्ट्र में सुधार प्रक्रिया अभी भी अनसुलझी है।” इस संबंध में पूर्व-पश्चिम नीति टकरावों की जाँच और आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2025)