प्रश्न. भारत एक तेजी से जटिल और गतिशील भू-राजनीतिक वातावरण का सामना कर रहा है। चर्चा कीजिये कि भारत किस प्रकार अपनी बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं को विदेश नीति में रणनीतिक स्वायत्तता के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- वैश्विक भू-राजनीति में भारत की स्थिति तथा सामरिक स्वायत्तता के साथ बहुपक्षवाद को संतुलित करने के महत्त्व का परिचय दीजिये।
- उन प्रमुख बहुपक्षीय मंचों पर चर्चा कीजिये जहाँ भारत शामिल है, साथ ही भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की अवधारणा पर भी प्रकाश डालिये तथा चर्चा कीजिये कि भारत किस प्रकार बहुपक्षीय सहयोग और रणनीतिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखता है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
"भारतीय विदेश नीति का उद्देश्य भारतीय जनता की सेवा करना है। इस उत्तरदायित्व को निभाने के लिये हम जो कुछ भी आवश्यक होगा, वह करेंगे।" – एस. जयशंकर।
भारत की विदेश नीति बहुपक्षीय सहयोग और रणनीतिक स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाये रखती है। एक बहुध्रुवीय विश्व में उभरती शक्ति के रूप में भारत वैश्विक मंचों पर सक्रिय भागीदारी करता है, साथ ही अपनी नीतियों को राष्ट्रीय हितों के अनुरूप निर्धारित करने की स्वतंत्रता की रक्षा भी करता है।
मुख्य भाग:
परिवर्तित भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत की बहुपक्षीय भागीदारी
- BRICS और G20: भारत BRICS और G20 जैसे वैश्विक मंचों में सक्रिय रूप से भाग लेता है। ये मंच भारत को उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के साथ अपने संबंध मज़बूत करने का अवसर प्रदान करते हैं तथा विकासशील देशों को प्रभावित करने वाले वैश्विक मुद्दों पर अपनी चिंताओं को सामने रखने का माध्यम भी बनते हैं।
- वर्ष 2023 में G20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने अफ्रीकी संघ को वैश्विक मंच पर विशेष स्थान दिलवाकर यह दर्शाया कि वह विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई को पाटने में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है।
- क्वाड: भारत की अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ रणनीतिक मंच 'क्वाड' में भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि वह क्षेत्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने, 'मुक्त एवं समावेशी इंडो-पैसिफिक' क्षेत्र को बढ़ावा देने तथा इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव का संतुलन साधने के प्रति प्रतिबद्ध है।
- शंघाई सहयोग संगठन (SCO): SCO में भारत की भागीदारी क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में इसकी भूमिका को रेखांकित करती है।
- SCO भारत को चीन और रूस दोनों के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है, जिससे मध्य एशिया में उसके हितों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ जटिल क्षेत्रीय गतिशीलता का प्रबंधन भी संभव हो सकेगा।
- संयुक्त राष्ट्र एवं वैश्विक संस्थाएँ: भारत संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं का एक सक्रिय सदस्य है तथा उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की लगातार मांग की है ताकि यह संस्था वर्तमान वैश्विक यथार्थ का अधिक बेहतर प्रतिनिधित्व कर सके।
- भारत की जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वार्ताओं में सक्रिय भूमिका तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ जैसे प्रयास यह दर्शाते हैं कि वह वैश्विक चुनौतियों से निपटने हेतु गंभीर और सक्रिय है।
- जलवायु परिवर्तन और व्यापार: भारत जलवायु वार्ताओं और विश्व व्यापार संगठन (WTO) से जुड़ी चर्चाओं में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है ताकि वैश्विक आर्थिक ढाँचे विशेषतः जलवायु न्याय एवं व्यापार असंतुलन के संदर्भ में विकासशील देशों की आवश्यकताओं को समुचित स्थान मिल सके।
बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में रणनीतिक स्वायत्तता:
- विदेश संबंधों में स्वतंत्रता: भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की परंपरा, शीतयुद्ध काल की गुटनिरपेक्ष नीति में निहित रही है, जो आज भी उसके प्रमुख शक्तियों से स्वतंत्र संवाद जैसे: — अमेरिका से आर्थिक और रणनीतिक सहयोग, रूस से रक्षा तथा ऊर्जा संबंध तथा चीन से सीमाई तनावों के बावजूद संवाद, के रूप में जारी है।
- पश्चिमी देशों से अपने संबंधों को प्रगाढ़ करते हुए भी भारत ने रूस के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को बनाए रखा है।
- स्वतंत्र रक्षा नीति: भारत की रक्षा खरीद रणनीति इसकी रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाती है। भारत ने रक्षा उपकरणों के अपने स्रोतों में विविधता लाकर फ्राँस से राफेल जेट, अमेरिका से MQ-9B ड्रोन खरीदे हैं और रूस के साथ अपना रक्षा सहयोग जारी रखा है।
- यह विविधीकरण भारत को किसी एक शक्ति पर अत्यधिक निर्भरता से बचने में मदद करेगा, साथ ही अपनी रक्षा क्षमताओं को भी बढ़ाएगा।
- आर्थिक और व्यापारिक संबंध: वर्ष 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से हटने का भारत का निर्णय आर्थिक मामलों में उसकी रणनीतिक स्वायत्तता का उदाहरण है, जिसमें चीन के प्रभुत्व वाले बहुपक्षीय व्यापार ब्लॉक में शामिल होने की तुलना में घरेलू आर्थिक हितों को प्राथमिकता दी गई।
- यह निर्णय स्थानीय उद्योगों की सुरक्षा तथा यह सुनिश्चित करने के लिये लिया गया कि भारत की आर्थिक नीतियाँ लचीली बनी रहें।
परिवर्तित भू-राजनीतिक परिदृश्य में बहुपक्षीयता और स्वायत्तता के बीच संतुलन:
- सूक्ष्म संतुलन: रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान भारत ने रूस तथा पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों में एक सूक्ष्म संतुलन बनाए रखा है। भारत ने एक ओर रूस के साथ अपनी सहभागिता जारी रखी है, वहीं दूसरी ओर युद्ध के दुष्परिणामों पर चिंता व्यक्त करते हुए शांतिपूर्ण समाधान का आग्रह भी किया है।
- इसी प्रकार, भारत ने वर्ष 2023 में हमास द्वारा किये गये हमले की भर्त्सना कर इज़रायल के प्रति अपनी संवेदनशीलता प्रकट की, साथ ही फलस्तीनी मुद्दे पर दो-राष्ट्र समाधान की शांतिपूर्ण दिशा में प्रयास का समर्थन कर संतुलित रुख अपनाया।
- मध्य पूर्व कूटनीति: भारत की 'I2U2' (भारत, इस्राइल, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका) समूह में सक्रिय भागीदारी यह दर्शाती है कि वह मध्य-पूर्व में अपने सामरिक हितों को संतुलित रूप से साध रहा है। भारत एक ओर इस्राइल के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखता है, तो दूसरी ओर ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह जैसे परियोजनाओं के माध्यम से अपनी दीर्घकालिक साझेदारी को भी कायम रखे हुए है।
- भारत ने एक ओर इज़रायल के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखे हैं, साथ ही ईरान के साथ अपने दीर्घकालिक संबंधों (चाबहार बंदरगाह जैसी पहल के माध्यम से) को भी बनाए रखा है।
निष्कर्ष:
भारत की विदेश नीति बहुपक्षीय सहयोग और सामरिक स्वायत्तता के मध्य एक संतुलित दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती है। एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में भारत को चाहिये कि वह इस संतुलन को और अधिक परिष्कृत करता रहे, ताकि वह अपनी राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके तथा एक पारस्परिक रूप से जुड़ी हुई विश्व व्यवस्था में अपनी संप्रभुता बनाए रख सके।