शासन व्यवस्था
भारत में निर्वाचन प्रणाली में सुधार
- 11 Aug 2025
- 166 min read
यह एडिटोरियल 11/08/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “The ECI’s lack of transparency is worrying” पर आधारित है। इस लेख के तहत बिहार में SIR के दौरान मतदाताओं के नाम हटाने में पारदर्शिता की कमी और संशोधन के पीछे अस्पष्ट तर्क पर प्रकाश डाला गया है, जो इस बात को रेखांकित करता है कि निष्पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये चुनावी सुधारों में अधिक जवाबदेही एवं औचित्य की आवश्यकता है।
प्रिलिम्स के लिये: भारत की निर्वाचन प्रणाली, चुनावी बॉण्ड, भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार), भारत सरकार अधिनियम, 1935, अनुच्छेद 32, 61वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1989, सूचना का अधिकार अधिनियम, आदर्श आचार संहिता (MCC), लोकतांत्रिक सुधार संघ (ADR), जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951
मेन्स के लिये: भारत में चुनाव सुधार: संबंधित मुद्दे और आगे की राह
भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूचियों के हाल ही में किये गए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) ने पारदर्शिता की कमी के कारण चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं। यह प्रक्रिया, जिसमें लाखों मतदाता अभिलेखों का सत्यापन शामिल है, बहुत कम सार्वजनिक जानकारी या परामर्श के साथ की गई थी। यह स्थिति चुनावी सुधारों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है जो चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता, जवाबदेही एवं जनता के विश्वास को बेहतर बनाने पर केंद्रित हों।
भारत में निर्वाचन प्रणाली किस प्रकार विकसित हुई है?
स्वतंत्रता-पूर्व युग:
- भारत सरकार अधिनियम, 1858: ब्रिटिश राज ने नियंत्रण ग्रहण कर लिया; कोई प्रतिनिधि शासन नहीं था।
- भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 और 1892: विधान परिषदों में भारतीयों की सीमित भागीदारी की शुरुआत की, लेकिन चुनावी प्रतिनिधित्व के बिना।
- भारत सरकार अधिनियम, 1909 (मॉर्ले-मिंटो सुधार): मुसलमानों के लिये पृथक निर्वाचिका के साथ सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की शुरुआत की।
- भारतीयों के लिये सीमित चुनावी प्रतिनिधित्व का पहला उदाहरण।
- भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार): संपत्ति के मालिकों और करदाताओं को शामिल करने के लिये निर्वाचन क्षेत्र का विस्तार किया।
- प्रांतीय परिषदों में आंशिक भारतीय प्रतिनिधित्व के साथ द्वैध शासन की शुरुआत की।
- भारत शासन अधिनियम, 1935: प्रांतीय स्वायत्तता प्रदान की और निर्वाचन क्षेत्रों का विस्तार किया।
स्वतंत्रता-उत्तर युग:
- संविधान सभा की बहसें: सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को एक मौलिक सिद्धांत के रूप में अपनाया गया और चुनावों के लिये एक समावेशी, लोकतांत्रिक प्रक्रिया सुनिश्चित की गई।
- चुनावों को नियंत्रित करने वाले अनुच्छेद:
- अनुच्छेद 324: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की निगरानी हेतु भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की स्थापना।
- अनुच्छेद 325-329: चुनावों की रूपरेखा, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और भेदभाव का निषेध सुनिश्चित करना।
चुनावी प्रणाली में प्रमुख विकास:
- प्रारंभिक आम चुनाव (1951-52): सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ आयोजित पहला लोकतांत्रिक चुनाव।
- 17.3 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने भाग लिया; 85% निरक्षर थे, जिसके कारण राजनीतिक दलों के लिये चुनाव चिह्न जैसे नवीन उपायों की आवश्यकता पड़ी।
- ECI का संस्थागत सुदृढ़ीकरण: प्रारंभ में, आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त होता था।
- वर्ष 1989 में, ECI एक बहु-सदस्यीय निकाय बन गया।
- वर्ष 1990 में यह कुछ समय के लिये एकल-सदस्यीय निकाय में बदल गया, लेकिन वर्ष 1993 से, यह तीन-सदस्यीय निकाय (एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त) के रूप में कार्य कर रहा है।
- मतदान हेतु निर्धारित आयु में कमी: 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1989 ने मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी, जिससे चुनावी प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी संभव हुई।
- सूचना का अधिकार अधिनियम (2005): राजनीतिक दलों को सार्वजनिक निगरानी के दायरे में लाया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 में राजनीतिक दलों को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये अपने उम्मीदवारों का संपूर्ण आपराधिक इतिहास प्रकाशित करने का आदेश दिया।
- आदर्श आचार संहिता (MCC): इसकी शुरुआत वर्ष 1960 में केरल में हुई थी तथा वर्ष 1979 तक राजनीतिक दलों की भागीदारी के साथ इसका विस्तार किया गया।
- टी.एन. शेषन (मुख्य निर्वाचन आयुक्त) का कार्यकाल आदर्श आचार संहिता के सख्त प्रवर्तन और वर्ष 1993 में मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) की शुरुआत के लिये जाना जाता है।
- प्रमुख तकनीकी एकीकरण:
- वर्ष 1989: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का प्रावधान किया गया।
- वर्ष 2011: पारदर्शिता बढ़ाने के लिये वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) का प्रोटोटाइप विकसित किया गया और वर्ष 2013 में पहली बार इसका प्रयोग किया गया।
- उपरोक्त में से कोई नहीं (NOTA) का परिचय: वर्ष 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद, EVM में NOTA विकल्प को शामिल किया गया, जिससे मतदाता किसी भी प्रत्याशी को चुनने से विरत रहते हुए भी मतपत्र की गोपनीयता बनाए रख सकते हैं।
- चुनावी बॉण्ड योजना: यह योजना वर्ष 2018 में शुरू की गई थी, जिससे राजनीतिक दलों को गुमनाम धन मुहैया कराया जा सकता है।
- फरवरी 2024 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) बनाम भारत संघ के मामले में सर्वसम्मति से इस योजना और संबंधित संशोधनों को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया।
भारत में चुनावी सुधारों की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- लगातार चुनावी कदाचार आदर्श आचार संहिता के प्रवर्तन को कमज़ोर कर रहे हैं: मतदाता रिश्वतखोरी, बूथ कैप्चरिंग और AI, विशेष रूप से डीपफेक द्वारा बढ़ाई गई अन्य अवैध प्रथाएँ, चुनावों की अखंडता को लगातार कमज़ोर कर रही हैं। ये गतिविधियाँ मतदाताओं की इच्छा को विकृत करती हैं और कुछ क्षेत्रों में, धमकी एवं हेरफेर का माहौल बनाती हैं।
- उत्तर प्रदेश में वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, निर्वाचन आयोग को 200 से अधिक शिकायतें मिलीं, जिनमें कथित बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को डराने-धमकाने और EVM में खराबी जैसी शिकायतें शामिल थीं, जो चुनावी कदाचार की लगातार चुनौती को उजागर करती हैं।
- निर्वाचन आयोग ने वर्ष 2024 के विधानसभा उपचुनावों के दौरान महाराष्ट्र और झारखंड में 1,000 करोड़ रुपए से अधिक की रिकॉर्ड ज़ब्ती की सूचना दी, जो वर्ष 2019 की तुलना में सात गुना अधिक है।
- आचार संहिता का उद्देश्य चुनाव प्रचार के दौरान निष्पक्षता सुनिश्चित करना है, लेकिन इसका प्रवर्तन असंगत रहा है। उल्लंघन प्रायः अनियंत्रित रहते हैं या विलंब से निपटाए जाते हैं, जिससे इसका निवारक प्रभाव कम हो जाता है।
- 'स्टार प्रचारकों' की अनुचित भाषा का प्रयोग करने, जातिगत और सांप्रदायिक अपील करने के लिये आलोचना की गई है, जो प्रचार प्रक्रिया की अखंडता को कमज़ोर करती हैं तथा आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करती हैं।
- उत्तर प्रदेश में वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, निर्वाचन आयोग को 200 से अधिक शिकायतें मिलीं, जिनमें कथित बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को डराने-धमकाने और EVM में खराबी जैसी शिकायतें शामिल थीं, जो चुनावी कदाचार की लगातार चुनौती को उजागर करती हैं।
- मतदाता सूची की सटीकता संबंधी चिंताएँ: सटीक और अद्यतन मतदाता सूचियाँ स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के लिये आवश्यक हैं। हालाँकि, डुप्लिकेट प्रविष्टियाँ, गलत विवरण, पुरानी जानकारी और पात्र मतदाताओं को गलत तरीके से बाहर करने जैसी समस्याएँ लगातार बनी हुई हैं।
- वर्ष 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) ने तब चिंताएँ उत्पन्न कर दीं जब लगभग 65 लाख नामों को प्रारूप मतदाता सूचियों से बाहर कर दिया गया।
- इस बड़े पैमाने पर विलोपन ने विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले और प्रवासी समुदायों के बीच, संभावित मताधिकार से वंचित होने की आशंकाएँ उत्पन्न कर दीं।
- वर्ष 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) ने तब चिंताएँ उत्पन्न कर दीं जब लगभग 65 लाख नामों को प्रारूप मतदाता सूचियों से बाहर कर दिया गया।
- राजनीति का अपराधीकरण: लोकतांत्रिक सुधार संघ (ADR) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्ष 2024 में निर्वाचित 46% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं, जिनमें से 31% पर बलात्कार, हत्या और अपहरण जैसे गंभीर आरोप हैं।
- बिबेक देबरॉय ने राजनीति के अपराधीकरण और अपराधियों के राजनीतिकरण की बढ़ती प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है।
- राजनीतिक दल प्रायः ऐसे उम्मीदवारों को इसलिये मैदान में उतारते हैं क्योंकि उन्हें उनके वित्तीय संसाधनों या बाहुबल के कारण अधिक ‘जीतने योग्य’ माना जाता है।
- राजनीति का यह अपराधीकरण एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह निर्वाचित प्रतिनिधियों में जनता के विश्वास को कम करता है और राजनीतिक व्यवस्था की अखंडता के लिये एक गंभीर चुनौती पेश करता है।
- चुनाव अभियानों में मीडिया का दुरुपयोग: राजनीतिक दल प्रायः पक्षपातपूर्ण बयानबाज़ी फैलाने या जनमत को प्रभावित करने के लिये पारंपरिक और डिजिटल, दोनों तरह के मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं।
- इसमें पेड न्यूज़, फर्ज़ी खबरें और बिना पर्याप्त जाँच-पड़ताल के व्यापक रूप से प्रसारित किये जाने वाले असत्यापित दावे शामिल हैं। राजनीतिक दल विशिष्ट मतदाता वर्गों को अपने संदेशों से प्रभावित करने के लिये सूक्ष्म-लक्ष्यीकरण तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं।
- यह पत्रकारिता और दुष्प्रचार के बीच के अंतर को समाप्त कर देता है, जिससे धनी दलों को बयानबाज़ी पर हावी होने का मौका मिल जाता है।
- मीडिया का यह हेरफेर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमज़ोर करता है और चुनावों की निष्पक्षता को विकृत करता है।
- इससे निपटने के लिये निर्वाचन आयोग की मीडिया प्रमाणन और निगरानी समितियाँ (MCMC) स्थापित की गई हैं, फिर भी विशाल मीडिया परिदृश्य, विशेष रूप से क्षेत्रीय एवं ऑनलाइन माध्यमों की निगरानी करने की उनकी क्षमता सीमित है।
- पूर्ण VVPAT सत्यापन का अभाव अविश्वास को बढ़ावा दे रहा है: EVM और VVPAT प्रक्रिया के साथ मुख्य समस्या भौतिक सत्यापन का सीमित दायरा है, जो राजनीतिक दलों एवं मतदाताओं के एक वर्ग के बीच विश्वास की कमी उत्पन्न करता है।
- यद्यपि मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) प्रणाली को सत्यापन योग्य पेपर ट्रेल प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था, फिर भी निर्वाचन आयोग केवल प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पाँच मतदान केंद्रों के एक छोटे, यादृच्छिक नमूने में VVPAT पर्चियों की अनिवार्य गणना (जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समर्थित है) करता है।
- यह सीमित नमूना आकार, जहाँ सांख्यिकीय रूप से निर्वाचन आयोग द्वारा पर्याप्त माना जाता है, वहीं आलोचकों का तर्क है कि संभावित छेड़छाड़ या मशीन की खराबी के बारे में व्यापक संदेह को दूर करने के लिये यह अपर्याप्त है।
- यद्यपि मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) प्रणाली को सत्यापन योग्य पेपर ट्रेल प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था, फिर भी निर्वाचन आयोग केवल प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पाँच मतदान केंद्रों के एक छोटे, यादृच्छिक नमूने में VVPAT पर्चियों की अनिवार्य गणना (जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समर्थित है) करता है।
- अनियमित चुनाव व्यय: राजनीतिक दल प्रायः व्यय सीमा से अधिक व्यय करते हैं, सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ का अनुमान है कि वर्ष 2024 के चुनावों में लगभग ₹1,00,000 करोड़ खर्च किये गए थे। दलों के लिये व्यय सीमा का अभाव चुनाव प्रक्रिया पर धन के असमान प्रभाव को अनुमति देता है, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
- यह अनियमित व्यय एक असमान खेल का मैदान तैयार करता है, जहाँ आर्थिक रूप से मज़बूत दलों को लाभ होता है, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है, जो चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को कमज़ोर करता है।
- कड़े नियमों का अभाव भारत में धन और राजनीति के दुष्चक्र को और बढ़ा देता है।
- इसके अतिरिक्त, यह अनियंत्रित व्यय/खर्च रेवड़ी संस्कृति (फ्रीबीज़ कल्चर) को बढ़ावा देता है, जिससे चुनावी प्रणाली की शुचिता और भी प्रभावित होती है।
- राजनीति में प्रतिनिधित्व और भागीदारी में अंतराल: महिलाओं और सीमांत समुदायों को मतदान एवं निर्णय लेने के क्षेत्र, दोनों से बाहर रखा जाता है।
- वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में, भारतीय संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 13.6% था।
- नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 में राजनीति में महिलाओं की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये 33% आरक्षण का आह्वान किया गया है, लेकिन इसका कार्यान्वयन वर्ष 2029 के बाद ही होने वाला है।
- भागीदारी के संदर्भ में, लाखों प्रवासी प्रभावी रूप से मताधिकार से वंचित हैं क्योंकि वे भौतिक, संगठनात्मक या प्रबंधकीय व्यवस्थाओं से जुड़ी कठिनाइयों एवं कानूनी बाधाओं के कारण अपने गृह निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान नहीं कर सकते।
- रिमोट वोटिंग मशीन (RVM) शुरू करने के निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव को रुचि और आलोचना दोनों का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से इसकी व्यवहार्यता के संबंध में।
- वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में, भारतीय संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 13.6% था।
- आंतरिक-दलीय लोकतंत्र का अभाव: राजनीतिक दलों में प्रायः पारदर्शिता और आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होता है, जिसके कारण केंद्रीकृत निर्णय प्रक्रिया एवं वंशवादी राजनीति को बढ़ावा मिलता है।
- वर्तमान में, भारत में राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतांत्रिक विनियमन के लिये कोई वैधानिक समर्थन नहीं है और एकमात्र नियामक प्रावधान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के अंतर्गत है।
- यह ज़मीनी स्तर के नेताओं के अवसरों को कम करता है और जवाबदेही को कमज़ोर करता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 के 30% लोकसभा सांसद राजनीतिक परिवारों से थे, जो भारत में वंशवादी राजनीति की गहरी जड़ें जमाए हुए प्रकृति को दर्शाता है।
- वर्तमान में, भारत में राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतांत्रिक विनियमन के लिये कोई वैधानिक समर्थन नहीं है और एकमात्र नियामक प्रावधान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के अंतर्गत है।
- निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर चिंताएँ: चुनावी उल्लंघनों से निपटने में पक्षपात और विलंब की धारणाओं के कारण निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता एवं निष्पक्षता को लेकर चिंताएँ उभरी हैं।
- इन चिंताओं ने निर्वाचन आयोग की स्वतंत्र रूप से कार्य करने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की क्षमता पर प्रश्न खड़े कर दिये हैं।
- मार्च 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिये एक तटस्थ तीन-सदस्यीय पैनल का प्रस्ताव रखा था, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे। यह पैनल संसद द्वारा कानून पारित होने तक कार्यपालिका के प्रभाव को कम करने के एक अंतरिम उपाय के रूप में बनाया गया था।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 ने मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को नियुक्त किया, जिससे कार्यपालिका को दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हुआ। इस बदलाव ने न्यायालय के उद्देश्य को कमज़ोर करने की चिंताएँ उत्पन्न की हैं और वर्तमान में यह संवैधानिक जाँच के दायरे में है।
भारत में निर्वाचन प्रणाली को मज़बूत बनाने के लिये किन प्रमुख सुधारों की आवश्यकता है?
- एक साथ चुनाव कराने की दिशा में प्रगति: कोविंद समिति के अनुसार लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराना, चुनावी प्रक्रिया में आने वाली व्यवस्थागत चुनौतियों और वित्तीय व्यय को घटा सकता है तथा बार-बार होने वाले चुनावों से शासन-कार्य में होने वाले व्यवधान को कम कर सकता है।
- इसके लिये संवैधानिक संशोधनों और कार्यकालों के समन्वय की आवश्यकता होगी, लेकिन यह राजनीतिक सहमति से संभव है।
- कार्यान्वयन में देशव्यापी कार्यान्वयन से पहले चुनिंदा राज्यों में पायलट परीक्षण शामिल हो सकते हैं।
- आदर्श आचार संहिता (MCC) के प्रवर्तन को सख्त करना: निर्वाचन आयोग के पास आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले किसी भी नेता का 'स्टार प्रचारक' का दर्जा रद्द करने का अधिकार होना चाहिये। इससे उम्मीदवारों को अपने प्रचार के लिये वित्तीय सहायता से वंचित किया जा सकेगा, जिससे आदर्श आचार संहिता का और अधिक कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित होगा।
- निर्वाचन आयोग को प्रतीक आदेश, 1968 के तहत अपनी मौजूदा शक्तियों का प्रयोग करके ऐसे किसी भी राजनीतिक दल की मान्यता निलंबित या वापस लेनी चाहिये जो आदर्श आचार संहिता या निर्वाचन आयोग के वैध निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है।
- निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता और शक्तियों को सुदृढ़ बनाना: अन्य संवैधानिक निकायों की तरह, निर्वाचन आयोग का बजट भारत की संचित निधि से वहन किया जाना चाहिये, जिससे वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित हो और आयोग पर संभावित राजनीतिक प्रभाव को रोका जा सके।
- जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया है, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में चयन समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाना चाहिये, जिससे आयोग की स्वतंत्रता बढ़ेगी और कार्यपालिका का प्रभाव कम होगा।
- राजनीतिक आपराधिक मामलों के लिये त्वरित न्यायालय: निर्वाचित प्रतिनिधियों से जुड़े आपराधिक मामलों को निपटाने के लिये समर्पित फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित किये जाने चाहिये, ताकि एक निश्चित समय सीमा, अधिमानतः एक वर्ष, के भीतर निर्णय सुनिश्चित हो सकें।
- इससे गंभीर आरोपों वाले व्यक्तियों को सत्ता के पदों पर बने रहने से रोकने में सहायता मिलेगी और लंबी सुनवाई से बचा जा सकेगा।
- ऐसा तंत्र जवाबदेही को सुदृढ़ करता है, राजनीति में आपराधिक घुसपैठ को रोकता है और दिनेश गोस्वामी समिति की सिफारिशों पर आधारित है।
- अनिवार्य आंतरिक-दलीय लोकतंत्र: पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये उम्मीदवारों एवं नेताओं के चयन हेतु राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक चुनाव अनिवार्य किये जाने चाहिये।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन करके अनुपालन न करने पर दंड, जैसे: कि पार्टियों का पंजीकरण रद्द करना, का प्रावधान किया जाना चाहिये।
- अनुपालन को प्रोत्साहित करने के लिये, इन सुधारों का पालन करने वाले राजनीतिक दलों को अतिरिक्त सार्वजनिक धन से प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन करके अनुपालन न करने पर दंड, जैसे: कि पार्टियों का पंजीकरण रद्द करना, का प्रावधान किया जाना चाहिये।
- डिजिटल प्रचार प्रबंधन: डिजिटल प्रचार को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिये, निर्वाचन आयोग को सोशल मीडिया विज्ञापन और ऑनलाइन राजनीतिक कंटेंट के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिये।
- इसमें भुगतान किये गए राजनीतिक विज्ञापनों में पारदर्शिता सुनिश्चित करना, प्रायोजकों और व्यय का खुलासा करना तथा गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिये सभी डिजिटल सामग्री की तथ्य-जाँच करना शामिल है।
- इसके अलावा, निर्वाचन आयोग को राजनीतिक अभियानों के लिये स्व-नियमन तंत्र और ऑडिट ट्रेल्स बनाने हेतु सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के साथ सहयोग करना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, चुनाव अवधि के दौरान डीपफेक कंटेंट का शीघ्र पता लगाने और उसे हटाने के लिये एक विधिक अधिदेश लागू करना चाहिये, जिसमें रचनाकारों एवं प्रसारकों के लिये कठोर दंड का प्रावधान हो।
- रेवड़ी संस्कृति (फ्रीबीज़ कल्चर) का मुकाबला: वास्तविक कल्याणकारी पहलों और अस्थिर मुफ्त उपहारों के बीच अंतर करने के लिये चुनावी वादों के लिये दिशानिर्देश स्थापित किये जाने चाहिये।
- निर्वाचन आयोग (EC) राजनीतिक दलों से उनके चुनावी वादों के लिये वित्तीय रोडमैप प्रस्तुत करने की मांग कर सकता है।
- असंवहनीय योजनाओं का प्रस्ताव रखने वाले दलों को अनिवार्य प्रकटीकरण के माध्यम से सार्वजनिक रूप से जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त, सूचित निर्णय लेने को सुनिश्चित करने के लिये ऐसे मुफ्त कार्यक्रमों के दीर्घकालिक प्रभावों पर मतदाताओं को शिक्षित करना आवश्यक है।
- चुनावों के राज्य वित्त पोषण पर इंद्रजीत गुप्ता समिति की सिफारिशों के अनुरूप, विनियमित, आवश्यकता-आधारित अभियान संसाधन प्रदान करने से अत्यधिक एवं वित्तीय रूप से गैर-जिम्मेदार वादों को बढ़ावा देने वाले प्रतिस्पर्द्धी लोकलुभावन प्रवृत्ति को कम किया जा सकता है।
- निर्वाचन आयोग (EC) राजनीतिक दलों से उनके चुनावी वादों के लिये वित्तीय रोडमैप प्रस्तुत करने की मांग कर सकता है।
- मतदाता मतदान में सुधार: मतदाता मतदान में वृद्धि के लिये, निर्वाचन आयोग को लक्षित अभियानों और सामुदायिक संपर्क के माध्यम से, विशेष रूप से ग्रामीण एवं सीमांत क्षेत्रों में, मतदाता जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- “मैं भारत हूँ” अभियान मतदाता जागरूकता और भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
- मतदान को और अधिक सुलभ बनाने के लिये, विशेष रूप से महिलाओं एवं प्रवासी श्रमिकों के लिये, मोबाइल मतदाता पंजीकरण इकाइयाँ तथा ऑनलाइन मतदान सुविधाएँ शुरू की जा सकती हैं।
- RVM के लिये निर्वाचन आयोग का प्रस्ताव एक आशाजनक पहल है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये गहन परीक्षण एवं सख्त सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है।
- EVM और VVPAT सत्यापन प्रक्रिया को बेहतर बनाना: EVM गणना और VVPAT पर्चियों के मिलान के लिये नमूना आकार को राज्यों को बड़े क्षेत्रों में विभाजित करके वैज्ञानिक रूप से निर्धारित किया जाना चाहिये।
- एक भी त्रुटि होने की स्थिति में, मतगणना प्रक्रिया में सांख्यिकीय विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये उस क्षेत्र के VVPAT पर्चियों की पूरी गणना अनिवार्य होनी चाहिये।
- EVM के एक सेट से वोटों को एकत्रित करने के लिये 'टोटलाइज़र' मशीनों की शुरुआत पर विचार किया जाना चाहिये।
- इस कदम से पारदर्शिता बढ़ेगी और बूथ स्तर पर छेड़छाड़ की संभावना कम होगी।
निष्कर्ष
भारत की निर्वाचन प्रणाली का भविष्य निरंतर नवाचार और सुधार पर निर्भर करता है। पारदर्शिता, समावेशी प्रतिनिधित्व और उत्तरदायी शासन को प्राथमिकता देकर, देश इस प्रणाली में मौजूदा कमियों को दूर कर सकता है। जैसे-जैसे भारत विकसित हो रहा है, लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करने, संस्थाओं में विश्वास बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये कि प्रत्येक मतदाता की आवाज़ सुनी जाए। उचित नीतिगत सुधारों और जनभागीदारी के सही संयोजन के माध्यम से भारत की निर्वाचन प्रणाली, विश्व के लिये लोकतंत्र का वास्तविक मार्गदर्शक बन सकती है। भविष्य के लिये सक्षम निर्वाचन प्रणाली का निर्माण चार ‘E’ — Empowerment (सशक्तीकरण), Equity (समानता), Efficiency (कार्यकुशलता) और Ethics (नैतिकता) पर आधारित होना चाहिये ताकि भारतीय लोकतंत्र की भावना सुरक्षित रह सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. भारत की निर्वाचन प्रणाली पिछले कुछ वर्षों में बहुत हद तक विकसित हुई है, लेकिन कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। भारत की निर्वाचन प्रक्रिया में प्रमुख समस्याओं पर चर्चा कीजिये तथा ऐसे सुधार सुझाइये, जो प्रणाली की निष्पक्षता, पारदर्शिता और समावेशन को सुदृढ़ कर सकें। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
- भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है।
- संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनावों दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
- निर्वाचन आयोग मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (d)
प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
- भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है।
- 1991 में लोकसभा चुनाव में श्री देवी लाल ने तीन लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था।
- वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निवार्चन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन-क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिये, जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) 2 और 3
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न 1. भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017)