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राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को सुदृढ़ बनाना

  • 11 Dec 2025
  • 77 min read

प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM), संवैधानिक निकाय, अर्द्ध-न्यायिक अधिकार, अल्पसंख्यक, जनगणना 2011, उच्च न्यायालय, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC), राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)

मेन्स के लिये: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, इसके सामने आने वाली चुनौतियाँ और इसे सुदृढ़ करने के लिये आवश्यक कदम।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) में लंबित पदों को भरने के लिये कोई समय सीमा तय नहीं की है, भले ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस देरी पर सरकार से जवाब मांगा हो।

  • अप्रैल 2025 से राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) में कोई अध्यक्ष नहीं है और अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा सभी सदस्य पद रिक्त पड़े हुए हैं।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) क्या है?

  • परिचय: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) एक संवैधानिक निकाय है, जिसे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना तथा उनकी सुरक्षा एवं विकास सुनिश्चित करना है।
    • पहला सांविधिक आयोग 17 मई, 1993 को गठित किया गया था।
  • उत्पत्ति: अल्पसंख्यक आयोग (Minorities Commission- MC) की स्थापना वर्ष 1978 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव के माध्यम से की गई थी और वर्ष 1984 में इसे नवगठित कल्याण मंत्रालय के अधीन स्थानांतरित किया गया। वर्ष 1988 में कल्याण मंत्रालय ने आयोग के अधिकार क्षेत्र से भाषायी अल्पसंख्यकों को बाहर कर दिया।
    • कम-से-कम पाँच सदस्य, जिनमें अध्यक्ष भी शामिल हों, अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों (मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन) से से संबंधित होने चाहिये।
  • संरचना: NCM में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पाँच सदस्य होते हैं। इन्हें केंद्र सरकार द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से नामित किया जाता है जो प्रतिष्ठा, क्षमता और ईमानदारी के लिये जाने जाते हों।
  • कार्यादेश और अवधि: आयोग के पास अर्द्ध-न्यायिक अधिकार (Quasi-judicial powers) होते हैं और प्रत्येक सदस्य शामिल होने की तिथि से 3 वर्ष की अवधि के लिये कार्य करता है।
  • पद से हटाना: 

Removal_of_NCM_Chairperson_or_Member

भारत में अल्पसंख्यक कौन हैं और उनके संवैधानिक सुरक्षा उपाय क्या हैं?

  • अल्पसंख्यकों के संबंध में: भारत के संविधान में 'अल्पसंख्यक' शब्द को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, फिर भी यह धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अस्तित्व को मान्यता देता है।
    • NCM अधिनियम, 1992 एक वैधानिक परिभाषा प्रदान करता है, जिसमें अल्पसंख्यक को उस समुदाय के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे केंद्र सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से अल्पसंख्यक घोषित किया गया हो।
  • अल्पसंख्यक समुदाय: वर्ष 1993 में कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, भारत सरकार ने प्रारंभ में पाँच धार्मिक समुदायों—मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी (ज़रथुस्त्री) को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दी थी।
    • इस सूची में बाद में 2014 में जैन को शामिल किया गया, जिससे वे छठे अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय बने।
  • अल्पसंख्यकों की जनसंख्या:            

धर्म

संख्या (करोड़ में)

%

मुस्लिम

17.22

14.2

ईसाई

2.78

2.3

सिख

2.08

1.7

बौद्ध

0.84

0.7

जैन

0.45

0.4

कुल

23.37

19.30

स्रोत: जनगणना 2011

अल्पसंख्यकों के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपाय:

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • दीर्घकालिक रिक्तियाँ: राष्ट्रीय मुख्यमंत्री परिषद काफी हद तक निष्क्रिय रही है क्योंकि दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा इन पदों को भरने के लिये बार-बार याद दिलाने के बावजूद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य जैसे सभी प्रमुख पद रिक्त हैं।
  • सीमित स्वायत्तता: नियुक्तियाँ केंद्र सरकार के विवेक पर की जाती हैं, जिससे NCM की स्वतंत्रता और राजनीतिक तटस्थता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं तथा एक निष्पक्ष निगरानी संस्था के रूप में इसकी भूमिका कमज़ोर होती है।
  • अल्पसंख्यक की परिभाषा में अस्पष्टता: अल्पसंख्यक का दर्जा वर्तमान में केवल धर्म के आधार पर तय किया जाता है, जिसमें भाषाई और जातीय अल्पसंख्यक शामिल नहीं होते। इसका परिणाम यह होता है कि समान मान्यता की कमी और राज्य-स्तर पर अल्पसंख्यक निर्धारित करने को लेकर लगातार बहस बनी रहती है।
  • सलाहकारी प्रकृति और प्रवर्तन शक्ति का अभाव: एक वैधानिक निकाय होने के नाते , आयोग केवल सरकार को कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है, लेकिन उसके निर्णय बाध्यकारी नहीं होते हैं और वह प्रवर्तन या दंड नहीं दे सकता है , जिससे इसकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
  • संस्थागत विश्वसनीयता का क्षरण: एक निष्क्रिय आयोग न्यायिक बोझ को बढ़ाता है, क्योंकि लोग अदालती हस्तक्षेप के लिए इसे दरकिनार कर देते हैं और भारत की अल्पसंख्यक संरक्षण प्रतिबद्धताओं पर अंतरराष्ट्रीय जच का सामना करना पड़ सकता है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के कामकाज को सुदृढ़ करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • विधायी और संस्थागत सुधार: NCM को संवैधानिक दर्जा (NCSC/NCST की तर्ज पर) देने या NCM अधिनियम, 1992 में संशोधन कर इसकी सिफारिशों को बाध्यकारी बनाने की आवश्यकता है। साथ ही इसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शी मानदंड तय किये जाने चाहिये।
  • कार्यात्मक सशक्तीकरण: NCM को स्वतः संज्ञान लेने, अनुपालन न करने पर दंडात्मक कार्रवाई करने और स्वतंत्र जाँच करने की शक्ति प्रदान की जानी चाहिये। इसके लिये उसके जाँच तंत्र को एक समर्पित एवं प्रशिक्षित टीम के साथ मज़बूत किया जाना आवश्यक है।
  • न्यायिक निगरानी और समीक्षा: अदालतों को NCM के आदेशों की निगरानी करने और जनहित याचिकाओं में इसकी रिपोर्टों का उपयोग करने में सक्षम बनाया जाना चाहिये। साथ ही सुनवाई, परामर्श और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से जनसहभागिता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • शासन प्रणाली में एकीकरण: अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं जैसे छात्रवृत्ति और कौशल विकास की निगरानी को NCM की सूचना एवं संचार प्रणाली के साथ जोड़कर ज़मीनी स्तर पर उनके क्रियान्वयन का आकलन बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
    • इसके अलावा, समन्वित नीतिगत कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिये गृह, शिक्षा, सामाजिक न्याय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालयों की स्थायी अंतर-मंत्रालयी समिति बनाई जानी चाहिये।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना: सुदृढ़ प्रवर्तन तंत्र विकसित करने के लिये दक्षिण अफ्रीका के सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई समुदायों के आयोग तथा यूके के समानता एवं मानवाधिकार आयोग जैसे अंतर्राष्ट्रीय मॉडलों से प्रेरणा ली जा सकती है।

निष्कर्ष:

NCM में लंबे समय से खाली पदों और ढाँचागत कमज़ोरियों ने अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करने के इसके संवैधानिक कार्य को कमज़ोर कर दिया है। इसकी विश्वसनीयता को एक प्रभावी निगरानी संस्था के तौर पर बहाल करने और भारत की बहुलवादी संरचना की रक्षा के लिये तत्काल सुधार, जिसमें समय पर नियुक्तियाँ, विधायी सशक्तीकरण और बढ़ी हुई स्वायत्तता ज़रूरी हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. "अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा एक जीवंत लोकतंत्र की आधारशिला है।" इस कथन के आलोक में, भारत में अल्पसंख्यकों के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपायों और उन्हें लागू करने में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) क्या है?
यह NCM अधिनियम, 1992 के तहत एक वैधानिक निकाय है, जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है, जिसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और केंद्र सरकार द्वारा नामित पाँच सदस्य होते हैं।

2. NCM अधिनियम, 1992 के तहत किन समुदायों को आधिकारिक तौर पर अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता दी गई है?
छह धार्मिक समुदायों को अधिसूचित किया गया है: मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी (जोरोस्ट्रियन) और जैन। जैन समुदाय को 2014 में जोड़ा गया था।

3. भारत में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या का हिस्सा कितना है?
जनगणना 2011 के अनुसार, अल्पसंख्यक भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 19.3% हैं।

सारांश

  • अल्पसंख्यक अधिकारों के लिये एक प्रमुख वैधानिक निगरानी संस्था, NCM, निष्क्रिय हो गई है क्योंकि अप्रैल 2025 से इसके सभी पद रिक्त हैं, जिससे इसका जनादेश कमज़ोर हो गया है। 
  • इसकी संरचनात्मक कमज़ोरियों में सलाहकार की भूमिका, सरकार द्वारा नियंत्रित नियुक्तियाँ और केवल धर्म पर आधारित अल्पसंख्यक परिभाषा शामिल हैं। 
  • यद्यपि संवैधानिक सुरक्षा उपाय (जैसे अनुच्छेद 30) मौज़ूद हैं, फिर भी प्रवर्तन एक कार्यात्मक राष्ट्रीय नियंत्रण प्रणाली पर निर्भर करता है, इसकी निष्क्रियता न्यायिक बोझ को बढ़ाती है तथा सामुदायिक विश्वास को कम करती है । 
  • इसकी विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को बहाल करने के लिये तत्काल सुधारों की आवश्यकता है —समय पर नियुक्तियाँ, संवैधानिक या बाध्यकारी वैधानिक दर्जा, स्वप्रेरित और दंडात्मक शक्तियाँ और पारदर्शी चयन

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में यदि किसी धार्मिक संप्रदाय/समुदाय को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है तो वह किस विशेष लाभ का हकदार है? (2011)

  1. यह विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकता है।  
  2. भारत का राष्ट्रपति स्वतः ही लोकसभा के लिये किसी समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित करता है। 
  3. इसे प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का लाभ मिल सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल  2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक सांविधानिक स्थिति क्या थी? (2021)

(a) लोकतंत्रात्मक गणराज्य

(b) संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य

(c) संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य

(d) संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. भारत के संविधान की उद्देशिका है? (2020)

(a) संविधान का भाग है किंतु कोई विधिक प्रभाव नहीं रखती।

(b) संविधान का भाग नहीं है और कोई विधिक प्रभाव भी नहीं रखती।

(c) संविधान का भाग है और वैसा ही विधिक प्रभाव रखती है जैसा कि उसका कोई अन्य भाग।

(d) संविधान का भाग है किंतु उसके अन्य भागों से स्वतंत्र होकर उसका कोई विधिक प्रभाव नहीं है।

उत्तर: (d)

मेन्स:

प्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के कार्यान्वयन को लागू कर सकता है? मूल्यांकन कीजिये। (2018)

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