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भारत में घृणापूर्ण भाषण पर अंकुश लगाना

  • 09 Dec 2025
  • 81 min read

प्रिलिम्स के लिये: विधि आयोग की रिपोर्ट, अनुच्छेद 19(1)(a), न्यायालय की अवमानना, भारतीय न्याय संहिता, अस्पृश्यता, सर्वोच्च न्यायालय (SC)। 

मेन्स के लिये: घृणापूर्ण भाषण और उससे संबंधित संवैधानिक, विधिक एवं न्यायिक प्रावधान। घृणापूर्ण भाषण पर अंकुश लगाने हेतु उठाए गए कदम तथा प्रभावी नियमन हेतु आवश्यक अन्य कदम।

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों?

कर्नाटक, घृणापूर्ण भाषण तथा घृणा‑आधारित अपराधों पर रोक लगाने के लिये पृथक विधेयक लाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है — “कर्नाटक हेट स्पीच एंड हेट क्राइम्स (प्रिवेंशन) बिल, 2025”।

  • इस विधेयक का उद्देश्य भारतीय दंड विधि में विद्यमान उस विधायी रिक्ति को भरना है, जहाँ घृणापूर्ण भाषण’ की संकल्पना राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में बार‑बार प्रयुक्त होने के बावजूद अब भी विधिक रूप से परिभाषित नहीं है।.

कर्नाटक हेट स्पीच एंड हेट क्राइम्स (प्रिवेंशन) बिल, 2025 के प्रमुख प्रावधान

  • घृणापूर्ण भाषण की परिभाषा: विधेयक घृणापूर्ण भाषण को ऐसी अभिव्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, यौन अभिविन्यास, जन्म स्थान या विकलांगता के आधार पर किसी व्यक्ति या समूह के विरुद्ध हानि पहुँचाती हो या सौहार्द बिगाड़ने का उद्देश्य रखती हो।
  • सामूहिक दायित्व: विधेयक में संगठनात्मक जवाबदेही का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत ज़िम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्तियों को दोषी ठहराया जा सकता है, यदि घृणापूर्ण भाषण उनके संगठन से जुड़ा हो।
  • इंटरनेट विनियमन: यह विधेयक राज्य सरकार को ऑनलाइन घृणापूर्ण सामग्री को ब्लॉक करने या हटाने का अधिकार देता है, जिससे घृणापूर्ण भाषण के डिजिटल प्रसार को रोका जा सके।

घृणापूर्ण भाषण क्या है?

  • 267वीं विधि आयोग रिपोर्ट (2017) के अनुसार, घृणापूर्ण भाषण का अर्थ है नस्ल, जातीयता, लिंग, धर्म, यौन अभिविन्यास आदि के आधार पर समूहों के विरुद्ध घृणा प्रसारित करने या सौहार्द बिगाड़ने के उद्देश्य से कहे गए शब्द या कार्य।
    • इस प्रकार इसमें भय पैदा करने, हिंसा भड़काने के उद्देश्य से अभिव्यक्त या लिखे गए शब्द, संकेत या दृश्य शामिल हैं।
  • संवैधानिक ढाँचा: अनुच्छेद 19(1)(a) भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है, जबकि अनुच्छेद 19(2) संप्रभुता, सुरक्षा, लोक व्यवस्था, नैतिकता, गरिमा, विदेशी संबंधों की रक्षा करने और मानहानि, न्यायालय की अवमानना या अपराधों के कृत्य से रोकने के लिये उचित सीमाओं की अनुमति देता है
  • विधिक ढाँचा: 
    • भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023: BNS की धारा 196, पूर्व में भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 153 (a) धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने पर दंड का प्रावधान करती है।
      • धारा 299 (पूर्व में IPC 295A) धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से ऐच्छिक रूप से किये गए कार्यों को दंडित करती है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: इस अधिनियम की धारा 66A का उपयोग ऑनलाइन घृणापूर्ण भाषण को रोकने के लिये किया गया था, किंतु श्रेया सिंघल केस, 2015 में अस्पष्टता के कारण इसे रद्द कर दिया गया थ।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951: RPA, 1951 की धारा 8 उन लोगों को प्रतिबंधित करती है जो धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास या भाषा के आधार पर सामूहिक शत्रुता को बढ़ावा देने या सामाजिक सद्भाव को हानि पहुँचाने के कार्य के दोषी पाए जाते हैं।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: यह किसी भी व्यक्ति को दंडित करता है जो जानबूझकर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य का अपमान करता है।
    • नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955  यह शब्दों, संकेतों, दृश्य चित्रणों या अन्य माध्यमों से अस्पृश्यता को प्रोत्साहित करने पर दंड का प्रावधान करता है।

भारत में घृणापूर्ण भाषण से संबंधित प्रमुख निर्णय क्या हैं?

  • शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ एवं अन्य, 2022: सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने घृणा की बढ़ती स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए पुलिस को औपचारिक शिकायतों की प्रतीक्षा किये बिना स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
  • तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने घृणापूर्ण भाषण से प्रेरित भीड़ हिंसा के समाधान के लिये IPC की धारा 153 और 295A के तहत दिशानिर्देश जारी किये, जिसमें लिंचिंग और गौरक्षकों की रोकथाम हेतु एक ज़िला नोडल अधिकारी की नियुक्ति भी शामिल है।
  • प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ, 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने विधि आयोग से घृणापूर्ण भाषण को परिभाषित करने पर विचार करने और इसके निवारण हेतु निर्वाचन आयोग को सशक्त बनाने के तरीकों की अनुशंसा करने को कहा।
  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ, 2015: सर्वोच्च न्यायालय ने IT अधिनियम, 2000 की धारा 66A को रद्द कर दिया। न्यायालय ने माना कि यह विधान बहुत अस्पष्ट था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता था, क्योंकि ‘क्षोभ’ और ‘अपमान’ जैसे शब्द अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध नहीं माने जा सकते थे।

भारत ने घृणापूर्ण भाषण पर अंकुश लगाने के लिये क्या प्रयास किये हैं?

  • विधि आयोग: 267वीं विधि आयोग रिपोर्ट (2017) ने घृणा फैलाने और हिंसा भड़काने को अपराध घोषित करने के लिये IPC में धारा 153C और 505A जोड़ने की अनुशंसा की।
  • विधिक पहल: वर्ष 2022 में, घृणापूर्ण भाषण और घृणा अपराध (निवारण) विधेयक, 2022 (निजी सदस्य विधेयक) को राज्यसभा में पेश किया गया था ताकि घृणापूर्ण भाषण को ऐसी अभिव्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सके जो भेदभाव, घृणा या हिंसा को उकसाती, बढ़ावा देती या प्रसारित करती है, लेकिन यह पारित नहीं हो पाया।
  • समितियाँ: 
    • विश्वनाथन समिति 2015: इसने धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय, लिंग, लैंगिक पहचान, यौन अभिविन्यास, जन्मस्थान, निवास, भाषा, विकलांगता या जनजाति के आधार पर अपराधों के लिये उकसाने पर दो साल तक के कार्यावास और 5,000 रुपये के जुर्माने के साथ IPC में धारा 153C(b) और 505A जोड़ने का प्रस्ताव रखा।
    • बेजबरुआ समिति 2014: इसने IPC की धारा 153C (मानव गरिमा के विरुद्ध कृत्यों को बढ़ावा देना) में संशोधन कर पाँच वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया तथा IPC की धारा 509A (किसी विशेष जाति का अपमान करना) में संशोधन कर तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माने का प्रावधान किया।

भारत में घृणापूर्ण भाषण पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • विधिक प्रवर्तन: हिंसा या भेदभाव का प्रसार वाली अभिव्यक्तियों को लक्षित करने वाले घृणापूर्ण भाषणों के लिये एक सटीक विधिक परिभाषा तैयार की जाए। गंभीर मामलों में जुर्माने से लेकर कारावास तक एवं दंड का स्पष्ट प्रावधान किया जाना आवश्यक है। BNS, 2023 में विशिष्ट धाराएँ जोड़कर विश्वनाथन और बेजबरुआ समिति की सिफारिशों को लागू किया जाना चाहिये। 
  • सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टिकोण: स्कूल कार्यक्रमों और सार्वजनिक अभियानों में मीडिया साक्षरता और समालोचनात्मक चिंतन को शामिल किया जाए ताकि घृणा फैलाने वाले कृत्यों के विरुद्ध आमजन को जागरूक किया जा सके। हानिकारक रूढ़ियों के निवारण हेतु विश्वसनीय सामुदायिक अभिव्यक्तियों को प्रोत्साहित किया जाए।
  • संस्थागत तंत्र: गोपनीयता सुरक्षा उपायों के साथ घृणापूर्ण भाषण की प्रवृत्तियों की निगरानी हेतु स्वतंत्र निरीक्षण निकायों की स्थापना की जाए तथा व्हिसिलब्लोअर्स के संरक्षण के साथ सुरक्षित, गोपनीय रिपोर्टिंग हेतु समुचित तंत्र बनाया जाए।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: सांस्कृतिक संवेदनशीलता के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घृणापूर्ण भाषण के समाधान हेतु अंतर्राष्ट्रीय समझौते विकसित करना तथा प्रभावी प्रति-रणनीतियों को साझा करने के लिये वैश्विक मंच स्थापित करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

कर्नाटक हेट स्पीच एंड हेट क्राइम्स (प्रिवेंशन) बिल, घृणापूर्ण भाषणों को संहिताबद्ध करने और उन्हें कठोर दंड देने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है, जो विधायी रिक्ति को भरता है। इसकी सफलता एक स्पष्ट, संवैधानिक परिभाषा, सुदृढ़ प्रवर्तन तंत्र एवं एक संतुलित दृष्टिकोण पर निर्भर करेगी जो सामाजिक सद्भाव और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार, दोनों की रक्षा करे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: घृणापूर्ण भाषण केवल एक विधिक विषय नहीं है, बल्कि एक सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दा भी है। घृणापूर्ण भाषण के विरुद्ध एक सुदृढ़ समाज के निर्माण में विधिक ढाँचे के पूरक उपकरण के रूप में शैक्षिक, सामाजिक और तकनीकी उपायों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत में घृणापूर्ण भाषण पर प्रतिबंध लगाने का संवैधानिक आधार क्या है?
संविधान का अनुच्छेद 19(2) लोक व्यवस्था, संप्रभुता, सुरक्षा के हित में तथा अन्य आधारों के अतिरिक्त अपराध के कृत्यों के निवारण हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(ए)) पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है।

2. सर्वोच्च न्यायालय ने IT अधिनियम, 2000 की धारा 66A को क्यों रद्द कर दिया?
श्रेया सिंघल मामले (2015) में इसे संवैधानिक रूप से अस्पष्ट और अतिव्यापक होने तथा अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करने के कारण रद्द कर दिया गया था।

3. घृणापूर्ण भाषण पर 267वीं विधि आयोग रिपोर्ट (2017) की प्रमुख सिफारिश क्या थी?
इसने घृणा फैलाने और हिंसा भड़काने को विशेष रूप से आपराधिक बनाने के लिये IPC में नई धाराएँ 153C और 505A जोड़ने की सिफारिश की।

सारांश

  • भारत में, घृणास्पद भाषण के विरुद्ध संहिताबद्ध विधान का अभाव है तथा इस संबंध प्रावधान अस्पष्ट हैं एवं दोषसिद्धि की दर भी कम है। 
  • प्रस्तावित कर्नाटक हेट स्पीच एंड हेट क्राइम्स (प्रिवेंशन) बिल का उद्देश्य घृणास्पद भाषण को परिभाषित करके, 2-10 साल की कठोर सजा निर्धारित करके एवं संगठनों के लिये सामूहिक दायित्व लागू करके इस अंतर को भरना है। 
  • यह वर्ष 2017 के विधि आयोग की रिपोर्ट जैसी विगत अनुशंसाओं के अनुरूप है  और बढ़ते घृणास्पद भाषण पर सर्वोच्च न्यायालय की चिंताओं का अनुसरण करता है। 
  • यह विधेयक विशिष्ट, प्रवर्तनीय उपायों के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक सद्भाव के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत ‘निजता का अधिकार’ संरक्षित है? (2021)

(a)अनुच्छेद  15
(b)अनुच्छेद  19
(c)अनुच्छेद  21
(d)अनुच्छेद  29

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही और समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध।
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिये राज्य नीति के निदेशक तत्त्व।
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ।
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध।

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न आप 'वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य' संकल्पना से क्या समझते हैं? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं? चर्चा कीजिये। (2014)

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