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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 14 Feb, 2023
  • 27 min read
प्रारंभिक परीक्षा

H5N1- एवियन इन्फ्लूएंज़ा

स्तनधारियों में H5N1 (एवियन इन्फ्लूएंज़ा का उपप्रकार) के प्रसारित होने की हालिया रिपोर्टों ने मानव महामारी पैदा करने की वायरस की क्षमता के संदर्भ में चिंता जताई है।

  • कैस्पियन सागर के तट पर 700 से अधिक सीलों की सामूहिक मौत की घटना के बाद वैज्ञानिक वायरस की स्तनधारियों में संक्रमण की संभावित क्षमता (स्पिलओवर) की जाँच कर रहे हैं, जहाँ कुछ महीने पहले जंगली पक्षियों में H5N1 वैरिएंट की खोज की गई थी

H5N1- एवियन इन्फ्लूएंज़ा:  

  • परिचय:  
    • यह दुनिया भर में जंगली पक्षियों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एवियन इन्फ्लूएंज़ा (Avian Influenza- AI) टाइप A वायरस के कारण होने वाली बीमारी है।
      • कभी-कभी वायरस पक्षियों से स्तनधारियों को संक्रमित कर सकता है जिसे स्पिलओवर कहा जाता है, हालाँकि इसकी स्तनधारियों के बीच फैलने की संभावना दुर्लभ हो सकती है। 
    • H5N1, एवियन इन्फ्लूएंज़ा का उपप्रकार है, जिसमें संक्रमित पक्षियों, उनके मल या संक्रमित पक्षी शवों के संपर्क के माध्यम से अन्य स्तनधारियों जैसे कि मिंक, फेरेट्स, सील, घरेलू बिल्लियाँ और अन्य को संक्रमित करने की क्षमता होती है। 
  • मनुष्यों में लक्षण: 
    • हल्के से लेकर गंभीर इन्फ्लूएंज़ा जैसी बीमारियाँ जैसे- बुखार, खाँसी, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द, मतली, पेट में दर्द, दस्त, उल्टी आदि इसके लक्षणों के अंतर्गत आते हैं।
    • लोगों में गंभीर श्वसन बीमारी (जैसे- साँस लेने में कठिनाई, निमोनिया, तीव्र श्वसन समस्या, वायरल निमोनिया) और मानसिक स्थिति में बदलाव, दौरे पड़ना आदि भी देखे जा सकते हैं।
  • एवियन इन्फ्लूएंज़ा:  
    • वर्ष 2019 में भारत को एवियन इन्फ्लूएंज़ा (H5N1) मुक्त घोषित किया गया, जिसके विषय में विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (World Organization for Animal Health -OIE) को भी अधिसूचित किया गया है।
      • हालाँकि दिसंबर 2020 और वर्ष 2021 की शुरुआत में भारत के 15 राज्यों में मुर्गी पालन (Poultry) क्षेत्र में एवियन इन्फ्लूएंज़ा H5N1 और H5N8 के प्रकोप की सूचना मिली थी।
  • उपचार: 
    • ऐसे कुछ संकेत हैं जिनसे पता चलता है कि कुछ एंटीवायरल दवाएँ वायरस प्रतिकृति के लिये आवश्यक समय को कम कर सकती हैं और इससे जीवित रहने की संभावना बढ़ सकती हैं, लेकिन इस संबंध में और भी नैदानिक ​​अनुसंधान किया जाना आवश्यक है।
  • चिंताएँ:  
    • व्यापक H5N1 प्रकोपों का अत्यधिक आर्थिक प्रभाव पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप पोल्ट्री उद्योग को गंभीर नुकसान होता है, साथ ही पशु कल्याण एवं पर्यावरणीय चिंताओं के बढ़ने के अलावा खाद्य तथा टीका सुरक्षा संबंधी खतरा होता है।

इन्फ्लूएंज़ा वायरस के प्रकार: 

  • इन्फ्लूएंज़ा वायरस चार प्रकार के होते हैं: इन्फ्लूएंज़ा A, B, C और D
  • इन्फ्लूएंज़ा A और B दो प्रकार के इन्फ्लूएंज़ा हैं जो लगभग प्रत्येक वर्ष मौसमी संक्रमण जनित महामारी का कारण बनते हैं।
  • इन्फ्लूएंज़ा विषाणु C सामान्यतः मनुष्यों में प्रभाव डालता है लेकिन यह विषाणु कुत्तों एवं सूअरों को भी प्रभावित करता है। 
  • इन्फ्लूएंज़ा D मुख्य रूप से मवेशियों में पाया जाता है। इस विषाणु के अब तक मनुष्यों में संक्रमण या बीमारी उत्पन्न करने के कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

एवियन इन्फ्लूएंज़ा टाइप A वायरस

  • इन्फ्लूएंज़ा A वायरस को दो प्रकार के प्रोटीन HA (Hemagglutinin) और NA (Neuraminidase) के आधार पर 18HA एवं 11NA उप-प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। 
  • इन दो प्रोटीनों के कई संयोजन संभव हैं, जैसे- H5N1, H7N2, H9N6, H17N10, H18N11 आदि।
  • इन्फ्लूएंज़ा A वायरस के सभी ज्ञात उप-प्रकार पक्षियों को संक्रमित कर सकते हैं; H17N10 और H18N11 को छोड़कर, जो केवल चमगादड़ में पाए गए हैं। 

Influenza

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. H1N1 वायरस का उल्लेख कभी-कभी समाचारों में निम्नलिखित में से किस एक बीमारी के संदर्भ में किया जाता है? (2015) 

(a) एड्स 
(b) बर्ड फ्लू 
(c) डेंगू 
(d) स्वाइन फ्लू 

उत्तर: (d) 

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

माइक्रो-एलईडी

एप्पल (Apple) कथित तौर पर माइक्रो-एलईडी (Micro-LEDs) नामक एक नई डिस्प्ले तकनीक पर काम कर रहा है, जिसे डिस्प्ले उद्योग में अगली बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।

  • माइक्रो-एलईडी, स्व-प्रकाशमान डायोड हैं जिनमें ऑर्गेनिक लाइट एमिटिंग डायोड (OLED) डिस्प्ले तकनीक की तुलना में अधिक चमक और बेहतर रंग उत्पन्न होता है।  

माइक्रो-एलईडी (Micro-LEDs): 

  • परिचय:  
    • माइक्रो-एलईडी तकनीक नीलम के उपयोग पर आधारित है, जो अनिश्चित काल तक चमकने की क्षमता के लिये जानी जाती है।  
    • प्रौद्योगिकी में छोटे प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LEDs) का उपयोग शामिल है जो अधिक चमक और उच्च-गुणवत्ता वाला डिस्प्ले बनाने के लिये एक साथ संयोजित किये जाते हैं।
    • OLED डिस्प्ले के विपरीत माइक्रो-एलईडी डिस्प्ले अकार्बनिक सामग्री जैसे- गैलियम नाइट्राइड का उपयोग करते हैं।
    • एक माइक्रो-एलईडी एक सेंटीमीटर बाल के 200वें हिस्से जितना छोटा है। इनमें से प्रत्येक माइक्रो-एलईडी अर्द्धचालक है जो विद्युत संकेत प्राप्त करते हैं।
    • एक बार जब ये माइक्रो-एलईडी इकट्ठे हो जाते हैं, तो वे एक मॉड्यूल बनाते हैं। स्क्रीन बनाने के लिये कई मॉड्यूल को जोड़ा जाता है। 
  • लाभ:  
    • बेहतर कलर रिप्रोडक्शन और व्यूइंग एंगल के साथ ब्राइट स्क्रीन।
    • असीमित मापनीयता, क्योंकि माइक्रो-एलईडी डिस्प्ले रेज़ोल्यूशन-फ्री, बेजल-फ्री, रेशियो-फ्री और यहाँ तक कि साइज़-फ्री भी हैं।
    • व्यावहारिक उपयोग के लिये किसी भी रूप में स्क्रीन को स्वतंत्र रूप से आकार देने की क्षमता।
    • सेल्फ इमिसिव माइक्रो-एलईडी जो निजी तौर पर बैकलाइटिंग या कलर फिल्टर की आवश्यकता के बिना लाल, हरे और नीले रंग का उत्सर्जन करते हैं।
  • चुनौतियाँ:  
    • विनिर्माण जटिलता: माइक्रो-एलईडी के निर्माण की प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है क्योंकि उच्च गुणवत्ता वाली प्रदर्शन तकनीक के निर्माण हेतु कई कारकों पर सटीक नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
    • लागत: माइक्रो-एलईडी डिस्प्ले के निर्माण की लागत वर्तमान में बहुत अधिक है, अतः तकनीक को व्यापक रूप से अपनाने हेतु सस्ती होने में कुछ समय लग सकता है।
    • विद्युत की खपत: माइक्रो-एलईडी को संचालित करने हेतु बहुत अधिक विद्युत की आवश्यकता होती है, जो उन्हें अन्य प्रदर्शन तकनीकों की तुलना में कम ऊर्जा दक्ष बना सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. सड़क प्रकाश व्यवस्था के संदर्भ में, सोडियम बत्तियाँ एल.ई.डी. बत्तियों से किस प्रकार भिन्न हैं? (2021)

  1. सोडियम बत्तियाँ प्रकाश को 360 डिग्री में उत्पन्न करती हैं लेकिन एल.ई.डी. बत्तियों में ऐसा नहीं होता है।
  2. सड़क की बत्तियों के रूप में, सोडियम बत्तियों की उपयोगिता अवधि अधिक होती है।
  3. सोडियम बत्ती के दृश्य प्रकाश का स्पेक्ट्रम लगभग एकवर्णी होता है जबकि एल.ई.डी. बत्तियाँ सड़क प्रकाश व्यवस्था में सार्थक वर्ण सुविधाएँ (कलर एडवांटेज) प्रदान करते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 3 
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. कार्बनिक प्रकाश उत्सर्जी डायोड (आर्गेनिक लाइट एमित्तिंग डायोड/ओएलइडी) का उपयोग बहुत से साधनों अंकीय प्रदर्श (डिजिटल डिस्प्ले) सर्जित करने के लिये किया जाता है। द्रव्य क्रिस्टल प्रदर्शों की तुलना में OLED प्रदर्श किस प्रकार लाभकारी है? (2017)

  1. OLED प्रदर्श नम्य प्लास्टिक अवस्तरों पर संविरचित किये जा सकते हैं।
  2. OLEDs के प्रयोग से, वस्त्र में अन्तः स्थापित उपरिवेल्लनीय प्रदर्श रोल्ड-अप डिस्प्ले बनाये जा सकते हैं।
  3. OLEDs के प्रयोग से पारदर्शी प्रदर्श संभव हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त कथनों में से कोई भी सही नहीं है

उत्तर: (c)


प्रश्न. वर्ष 2014 में भौतिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से अकासाकी, अमानो और नाकामुरा को 1990 के दशक में नीली एलईडी के आविष्कार के लिये प्रदान किया गया था। इस आविष्कार ने मानव के दैनंदिन जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया है? (2021)

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

ब्लैक सोल्जर फ्लाई लार्वा और पोल्ट्री फीड

भारत विश्व के शीर्ष पाँच चिकन और अंडा उत्पादकों में से एक है, किंतु छोटे पोल्ट्री किसानों के समक्ष इस व्यवसाय में फीड की गुणवत्ता, मात्रा और लागत जैसी कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं।

  • ब्लैक सोल्जर फ्लाई का उच्च पोषण मूल्य इन चुनौतियों का समाधान करने के विकल्पों में से एक हो सकता है।

पोल्ट्री फीड से संबंधित चुनौतियाँ: 

  • पोल्ट्री उत्पादन की पूरी लागत में फीड का हिस्सा 70% तक होता है। इसके अलावा पोल्ट्री के लिये  आपूर्ति किया जाने वाला पारंपरिक फीड, मुख्य रूप से अनाज और सोया की आपूर्ति बढ़ती जनसंख्या की खाद्य मांगों के चलते प्रतिस्पर्द्धी बनी हुई है।  
  • बढ़ती लागत के अलावा पोल्ट्री क्षेत्र की स्थिरता हेतु फीड संसाधन उपलब्धता एक प्रमुख निर्धारक है।
  • ऐसा ही एक विकल्प ब्रुअर्स जैसा सूखा अनाज़ है, जो ब्रूइंग उद्योग का एक उपोत्पाद है।
    • हालाँकि प्रोटीन और अमीनो एसिड से भरपूर इसमें उच्च नमी और फाइबर सामग्री शामिल है। 
  • देश के कुछ हिस्सों में गेहूँ का एक और आर्थिक रूप से व्यवहार्य विकल्प चावल की भूसी है। इसमें गेहूँ के समान तुलनात्मक रूप से उपापचय योग्य ऊर्जा होती है।
    • हालाँकि अध्ययनों से पता चलता है कि चावल की भूसी को चारे में शामिल करने पर मुर्गियों के अंडा देने की क्षमता में गिरावट आई है।
  • उदाहरण के लिये ब्लैक सोल्जर फ्लाई (हर्मेटिया इल्यूसेंस) के लार्वा में उच्च पोषण क्षमता होती है, साथ ही इसे पालना आसान होता है। 

ब्लैक सोल्जर फ्लाई: 

  • परिचय: 
    • ब्लैक सोल्जर फ्लाई स्ट्रैटिओमाइडे परिवार की एक मक्खी (डिप्टेरा) है जो आमतौर पर विश्व के कई हिस्सों में पाई जाती है।
    • वे हल्के सफेद रंग की होती हैं और खाद्य अपशिष्ट से लेकर खाद तक विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थों को खाती हैं।
    • इनमें उच्च अपशिष्ट-से-बायोमास रूपांतरण की दक्षता होती है।
    • इसका मतलब है खुद को गर्म रखने के लिये बहुत अधिक ऊर्जा का उपयोग करने वाले गर्म खून वाले स्तनधारियों और पक्षियों के विपरीत यह मक्खी भोजन को शरीर के द्रव्यमान में कुशलता से परिवर्तित कर सकती है।

Black-Soldier-fly

  • उपयोगिता: 
    • वे मुर्गी पालन से जुड़े लोगों के लिये कम लागत, कम फुटप्रिंट, पर्यावरण की दृष्टि से लाभकारी और पूरी तरह से प्राकृतिक फीड हो सकती हैं।
    • लार्वा जैविक कचरे को उपयोगी विटामिन और खनिजों की एक विस्तृत शृंखला में परिवर्तित करने में सक्षम हैं।
      • इसलिये वे पशुओं के चारे के लिये एक व्यवहार्य विकल्प हैं क्योंकि वे कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम, लोहा, जस्ता, तांबा, मैंगनीज़ और अन्य खनिजों से भरपूर हैं।

Win-Win-Strategy

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

1- कृषि मृदाएँ पर्यावरण में नाइट्रोजन के ऑक्साइड निर्मुक्त करती हैं।
2- मवेशी पर्यावरण में अमोनिया निर्मुक्त करते हैं।
3- कुक्कुट उद्योग पर्यावरण में अभिक्रियाशील नाइट्रोजन यौगिक निर्मुक्त करते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


प्रारंभिक परीक्षा

दियोदर उल्कापिंड

भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL), अहमदाबाद के वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि 17 अगस्त, 2022 को गुजरात के बनासकांठा में दो गाँवों में दुर्घटनाग्रस्त हुए उल्कापिंड की पहचान ऑब्राइट के रूप में की गई है।

  • ऑब्राइट की खनिज संरचना को निर्धारित करने के लिये PRL समूह ने गामा-रे स्पेक्ट्रोमीटर का इस्तेमाल किया। समूह ने उल्कापिंड को मोनोमिक्ट ब्रैकिया के रूप में भी वर्गीकृत किया। 

ऑब्राइट से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • ऑब्राइट एक मोटे दाने वाली आग्नेय चट्टान है जो ऑक्सीजन की खराब परिस्थितियों में निर्मित होती है और इसमें ऐसे विदेशी खनिज होते हैं जो पृथ्वी पर नहीं पाए जाते हैं।
    • उदाहरण के लिये खनिज हेइडाइट को पहली बार बस्ती उल्कापिंड में वर्णित किया गया था।
  • भारत में सैकड़ों उल्कापिंड दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं, लेकिन यह किसी ऑब्राइट की केवल दूसरी रिकॉर्ड की गई दुर्घटना है। दियोदर उल्कापिंड का नाम उस तालुका के नाम पर रखा गया था जहाँ ये गाँव स्थित हैं।
    • इससे पहले ऑब्राइट की आखिरी दुर्घटना 2 दिसंबर, 1852 को बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुई थी।
  • उल्कापिंड का लगभग 90% हिस्सा ऑर्थोपायरॉक्सिन से बना था। पाइरोक्सीन ऐसे सिलिकेट होते हैं जिनमें सिलिका टेट्राहेड्रा (SiO4) की एकल शृंखला होती है; ऑर्थोपायरोक्सीन एक निश्चित संरचना वाले पाइरॉक्सीन हैं।
    • डायोपसाइड और जेडाइट जैसे पाइरोक्सीन का उपयोग रत्नों के रूप में किया गया है। स्पोडुमेन का इस्तेमाल ऐतिहासिक रूप से लिथियम अयस्क के रूप में किया गया था। पाइरॉक्सिन युक्त चट्टानों का उपयोग सीमेंट/बजरी (Crushed Stone) के निर्माण में भी किया जाता है जिनका उपयोग निर्माण कार्यों में किया जाता है।
  • ऑब्राइट्स वर्ष 1836 से विश्व भर में कम-से-कम 12 स्थानों पर दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं, इसमें अफ्रीका में 3 और संयुक्त राष्ट्र में 6 दुर्घटनाएँ शामिल हैं।

उल्कापिंड: 

  • परिचय:  
    • एक उल्कापिंड अंतरिक्ष के मलबे का एक ठोस टुकड़ा है जो पृथ्वी के वायुमंडल को पार कर पृथ्वी की सतह पर आ गिरता है।
  • उल्का (Meteor), उल्कापिंड (Meteorite) और क्षुद्रग्रह (Meteoroid) के बीच अंतर:
    • उल्का, उल्कापिंड और क्षुद्रग्रह के बीच अंतर का प्रमुख कारक उनकी दूरी अथवा उनकी अवस्थिति है। 
    • उल्कापिंड अंतरिक्ष में ऐसी वस्तुएँँ हैं जो आकार में धूलकणों से लेकर छोटे क्षुद्रग्रहों तक हो सकती हैं।
    • लेकिन यदि कोई क्षुद्रग्रह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर ज़मीन से टकराए तो उसे उल्कापिंड कहते हैं।

Meteorite

गामा किरण स्पेक्ट्रोमीटर:

  • गामा किरण स्पेक्ट्रोमीटर वैज्ञानिक उपकरण है जिसका उपयोग रेडियोधर्मी पदार्थों द्वारा उत्सर्जित गामा किरणों के ऊर्जा वितरण को मापने के लिये किया जाता है।
    • यह डेटा का विश्लेषण करने के लिये एक डिटेक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स और सॉफ्टवेयर से मिलकर बना होता है। 
  • परिणामस्वरूप गामा किरण स्पेक्ट्रम का उपयोग मौजूद रेडियोधर्मी समस्थानिकों और उनके सापेक्ष बहुतायत की पहचान करने के लिये किया जा सकता है। 
  • गामा किरण स्पेक्ट्रोमीटर का उपयोग पर्यावरण निगरानी, भूविज्ञान और परमाणु भौतिकी सहित विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों में किया जाता है।
  • इसका उपयोग प्राकृतिक स्रोतों जैसे कि चट्टानों और मिट्टी, साथ ही मानवजनित स्रोतों जैसे- परमाणु ऊर्जा संयंत्रों एवं चिकित्सा सुविधाओं द्वारा उत्सर्जित विकिरण का पता लगाने तथा मापन के लिये किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 14 फरवरी, 2023

विश्व रेडियो दिवस

भारत के प्रधानमंत्री ने 'विश्व रेडियो दिवस' पर रेडियो श्रोताओं और प्रसारण माध्यम से जुड़े अन्य लोगों को बधाई दी। यह प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम "रेडियो एंड पीस" है। 3 नवंबर, 2011 को यूनेस्को के 36वें सत्र ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने की घोषणा की, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा 13 फरवरी, 1946 को संयुक्त राष्ट्र रेडियो की स्थापना की गई थी। इस दिन को वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में अपनाया गया था। रेडियो के महत्त्व के बारे में जनता और मीडिया के बीच जागरूकता बढ़ाने तथा रेडियो के माध्यम से सूचना तक पहुँच को प्रोत्साहित करने के लिये प्रत्येक वर्ष यह दिन मनाया जाता है। भारत में लगभग 479 रेडियो स्टेशन हैं जो ऑल इंडिया रेडियो को दुनिया के सबसे बड़े प्रसारकों में से एक बनाते हैं। यह लगभग 99.19% भारतीय आबादी को कवर करता है। 

और पढ़ें… सामुदायिक रेडियो

"खनन प्रहरी" मोबाइल एप 

भारत सरकार ने अनधिकृत कोयला खनन गतिविधियों की सूचना देने के लिये "खनन प्रहरी" नामक एक मोबाइल एप और एक वेब एप कोयला खदान निगरानी और प्रबंधन प्रणाली (Coal Mine Surveillance and Management System- CMSMS) लॉन्च की है। यह मोबाइल एप कोयला मंत्रालय द्वारा विकसित किया गया है जो नागरिकों को घटना के स्थान से भू-टैग की गई तस्वीरों तथा टेक्स्ट के रूप में सूचना का उपयोग करके अवैध कोयला खनन की घटनाओं के बारे में रिपोर्ट करने में सक्षम बनाता है। इस संबंध में किये गए वैधानिक उपायों में शामिल हैं- कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973; खनिज रियायत नियम, 1960; कोलियरी नियंत्रण नियम, 2004’ खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957। इसके अलावा इन क्षेत्रों तक पहुँच और अवैध गतिविधियों को रोकने के लिये परित्यक्त खदानों के मुहाने पर कंक्रीट की दीवारें निर्मित की गई हैं। साथ ही मौजूदा सुरक्षा/CISF कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है और अवैध खनन के विभिन्न पहलुओं की निगरानी के लिये CIL (Coal India Ltd.) की कुछ सहायक कंपनियों में विभिन्न स्तरों पर समितियों/कार्यबलों का गठन किया गया है।

और पढ़ें…भारत में कोयला क्षेत्र

APEDA ने अपनी यात्रा के 37 साल पूरे किये 

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA), जिसे वर्ष 1986 में संसद के एक अधिनियम के माध्यम से स्थापित किया गया था, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत कार्य करता है। कृषि जिंसों के निर्यात को बढ़ावा देने हेतु APEDA को अधिकार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त APEDA को चीनी के आयात की निगरानी करने की ज़िम्मेदारी भी सौंपी गई है। 'वोकल फॉर लोकल' तथा 'आत्मनिर्भर भारत' के विचारों के अनुरूप APEDA स्थानीय रूप से प्राप्त जीआई (भौगोलिक संकेत) के साथ-साथ स्वदेशी, जातीय कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। विश्व व्यापार संगठन व्यापार डेटा के आधार पर भारत वित्त वर्ष 2021-22 में 24.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ कृषि उत्पादों का विश्व का आठवाँ सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। APEDA की हाल की कुछ पहलों में फार्मर कनेक्ट पोर्टल, वाराणसी कृषि-निर्यात हब (VAEH); बाजरा आदि के प्रचार के लिये बाजरा पोर्टल सम्मिलित है।

और पढ़े…APEDA

निर्माण से शक्ति पहल

कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) ने बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण के लिये 'निर्माण से शक्ति' नामक एक पहल की शुरुआत की है। 'निर्माण से शक्ति' पहल में चरणबद्ध तरीके से ईएसआई योजना अस्पतालों और औषधालयों का उन्नयन/आधुनिकीकरण, बेहतर आधुनिक सुविधाओं के साथ 100/200/500 बेड वाले अस्पतालों के लिये मानक डिज़ाइन तैयार करना, पर्यवेक्षण, निर्माण की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये नई भवन प्रौद्योगिकियों को अपनाने के साथ-साथ भूमि/संपत्ति दस्तावेज़ों का डिजिटलीकरण, परियोजना की निगरानी हेतु ऑनलाइन रीयल-टाइम डैशबोर्ड आदि शामिल हैं। कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के तहत कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESIC), एक बहुआयामी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली है जो इस योजना के तहत शामिल श्रमिक आबादी और उनके आश्रितों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये तैयार की गई है।

और पढ़ें… ESIC


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