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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 12 Jul, 2025
  • 16 min read
रैपिड फायर

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC)

स्रोत: IE

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने रोम संविधि के अनुच्छेद 7(1)(h) के तहत अफगानिस्तान में व्यवस्थित लैंगिक और राजनीतिक उत्पीड़न को मानवता के विरुद्ध अपराध मानते हुए तालिबान नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किये हैं।

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC)

  • ICC: ICC विश्व का पहला स्थायी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय है, जिसकी स्थापना वैश्विक रूप से सबसे गंभीर अपराधों के लिये व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने के लिये की गई है। 
    • इसका मुख्यालय हेग, नीदरलैंड्स में है और यह रोम संविधि द्वारा शासित होता है, जो ICC की स्थापना संधि है। इसे 17 जुलाई, 1998 को अपनाया गया था तथा यह 1 जुलाई, 2002 से प्रभावी हुई।
  • ICC के अंतर्गत अपराध: रोम संविधि ICC को चार प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय अपराधों पर अधिकार क्षेत्र प्रदान करती है:
    • जनसंहार 
    • मानवता के विरुद्ध अपराध 
    • युद्ध अपराध 
    • आक्रामकता का अपराध
  • अधिकार क्षेत्र और अधिदेश: ICC गंभीर अंतर्राष्ट्रीय अपराधों के लिये राज्यों पर नहीं, बल्कि व्यक्तियों पर मुकदमा चलाता है, जिसमे 1 जुलाई, 2002 के बाद किये गए अपराध (जिस दिन रोम संविधि लागू हुई थी) शामिल हैं।
    • यह तभी कार्य करता है जब राष्ट्रीय न्यायक्षेत्र मुकदमा चलाने के लिये अनिच्छुक या असमर्थ हो।
    • ICC का अधिकार क्षेत्र उन देशों में होता है जो रोम संविधि के पक्षकार हैं, या उन गैर-सदस्य देशों में जिन्हें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा ICC को संदर्भित किया गया हो।
  • ICC के पक्षकार:
    • रोम संविधि को ब्रिटेन और अधिकांश यूरोपीय देशों सहित 125 देशों द्वारा अनुमोदित किया जा चुका है। 30 से अधिक अन्य देशों ने इस पर हस्ताक्षर तो किये हैं, लेकिन अभी तक इस संधि का अनुमोदन नहीं किया है।
    • अफगानिस्तान वर्ष 2003 से इसका सदस्य है, जबकि भारत , अमेरिका, इज़रायल, चीन जैसे देश ICC के पक्षकार नहीं हैं।
      • भारत ने अपनी संप्रभुता और न्यायालय की रूपरेखा में UNSC को प्रदत्त संदर्भ शक्तियों को लेकर आपत्ति जताई है।
  • संरचना: प्रेसीडेंसी, न्यायिक प्रभाग, अभियोजक का कार्यालय और रजिस्ट्री इसके 4 मुख्य अंग हैं।
    • सदस्य देशों के प्रतिनिधियों से बनी राज्य दलों की सभा (ASP) विधायी निगरानी प्रदान करती है तथा ICC का उचित प्रशासन सुनिश्चित करती है।
  • प्रवर्तन: ICC के पास अपनी कोई पुलिस या प्रवर्तन तंत्र नहीं है। यह आरोपित व्यक्तियों की गिरफ्तारी, संपत्ति फ्रीज़ करना और अपने निर्णयों को लागू करने के लिये सदस्य देशों के स्वैच्छिक सहयोग पर निर्भर करता है।

और पढ़ें: अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC), ICJ कार्यवाही: दक्षिण अफ्रीका बनाम इज़रायल


रैपिड फायर

हिमालय और कश्मीर का जलवायु परिवर्तन

स्रोत: पी.आई.बी

लखनऊ स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (BSIP) के वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किये गए एक अभूतपूर्व अध्ययन से पता चला है कि कश्मीर घाटी, जो अब अपनी ठंडी, भूमध्यसागरीय-प्रकार की जलवायु के लिये जानी जाती है, लगभग 4 मिलियन वर्ष पहले एक गर्म, आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र था।

  • BSIP की स्थापना वर्ष 1946 में पैलियोबॉटनी में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये की गई थी जिसकी इसकी आधारशिला वर्ष 1949 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी। इसे यूनेस्को का समर्थन (1951-53) प्राप्त हुआ और यह वर्ष 1969 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DSP) द्वारा वित्त पोषित एक स्वायत्त निकाय बन गया।

कश्मीर के जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन:

  • अध्ययन के परिणाम: BSIP में संग्रहीत जीवाश्म पत्तियों के समृद्ध संग्रह पर आधारित यह अध्ययन, उपोष्णकटिबंधीय जीवाश्म नमूनों और कश्मीर के वर्तमान समशीतोष्ण वनस्पतियों के बीच जलवायु संबंधी विविधता के कारण किया गया, जिसने कश्मीर घाटी के जलवायु और विवर्तनिक इतिहास में अपनी वैज्ञानिक जाँच शुरू करने के लिये प्रेरित किया।
  • प्रयुक्त वैज्ञानिक तकनीकें: कश्मीर की पुराजलवायु के पुनर्निर्माण के लिये, अध्ययन में दो प्रमुख विधियों का उपयोग किया गया - CLAMP (क्लाइमेट लीफ एनालिसिस मल्टीवेरिएट प्रोग्राम) का प्रयोग करते हुए, तापमान और वर्षा के प्रारूप को निर्धारित करने के लिये जीवाश्म पत्तियों के आकार, माप और किनारों की जाँच की। उन्होंने जलवायु सीमाओं का अनुमान लगाने के लिये सह-अस्तित्व दृष्टिकोण की मदद से जीवाश्म पौधों को उनके आधुनिक संबंधियों के साथ क्रॉस-चेक भी किया।
  • मुख्य निष्कर्ष: कश्मीर के करेवा तलछट से प्राप्त जीवाश्म पत्तियों से पता चलता है कि घाटी में कभी हरे-भरे उपोष्णकटिबंधीय जंगल हुआ करते थे।
  • कई जीवाश्म गर्म और आर्द्र जलवायु की आधुनिक प्रजातियों से मिलते जुलते हैं, जो आज की अल्पाइन और शंकुधारी वनस्पतियों से बिल्कुल अलग हैं।
  • अध्ययन में इस जलवायु परिवर्तन का कारण उप-हिमालयी प्रणाली के भाग पीर पंजाल पर्वतमाला के विवर्तनिकी उत्थान (टेक्टॉनिक अपलिफ्ट) को बताया गया है।

    • इस उत्थान ने भू-वैज्ञानिक अवरोध के रूप में कार्य किया, जिससे भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून अवरुद्ध हो गया, जिससे वर्षा कम हो गई और भू-वैज्ञानिक समय-सीमा में क्षेत्र की जलवायु में परिवर्तन हुआ।
  • अध्ययन का महत्त्व: यह अध्ययन टेक्टोनिक गतिविधि को पारिस्थितिकी तंत्र परिवर्तन के साथ जोड़कर जलवायु मॉडलिंग को बढ़ाता है, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की संवेदनशीलता पर प्रकाश डालता है, और मानसून की गतिशीलता, हिमनदों के पिघलने और स्थलाकृति के अंतर्क्रियाओं को समझने के लिये अनुरूपता प्रदान करता है। 
    • यह जैवविविधता संरक्षण, आपदा तैयारी और नाजुक पर्वतीय क्षेत्रों में सतत् विकास के लिये पुराजलवायु अनुसंधान की नीतिगत प्रासंगिकता को रेखांकित करता है।

और पढ़ें: हिमालय में चरम मौसमी घटनाओं का बढ़ता खतरा


रैपिड फायर

वैश्विक HIV/AIDS के विरुद्ध लड़ाई और खतरे

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

UNAIDS अनुसार अमेरिका द्वारा PEPFAR (प्रेसिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर एड्स रिलीफ) के लिये फंडिंग अचानक रोके जाने से HIV/AIDS के खिलाफ दशकों की प्रगति पर संकट उत्पन्न हो गया है।

  • जनवरी 2025 में, अमेरिका ने अचानक अपनी 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिज्ञा वापस ले ली, जिससे वर्ष 2029 तक एड्स से संबंधित 40 लाख और मौतें और 60 लाख नए HIV संक्रमण होने की आशंका है।
  • एक सफल इंजेक्टेबल दवा येज़्तुगो (Yeztugo) ने 100% रोकथाम प्रभावशीलता दिखाई है, लेकिन इसकी अत्यधिक कीमत के कारण यह अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों की पहुँच से बाहर है।
  • PEPFAR (प्रेसिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर एड्स रिलीफ), जिसे वर्ष 2003 में शुरू किया गया था, का उद्देश्य मानव इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) संक्रमणों को रोकना और जीवन बचाना है।
  • UNAIDS (HIV/AIDS पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम) संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख वैश्विक एजेंसी है, जो निम्नलिखित लक्ष्यों के लिये समर्पित है:
    • वर्ष 2030 तक एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में समाप्त करना
    • 11 संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों (जैसे WHO, UNICEF, World Bank) के बीच HIV प्रतिक्रिया का समन्वय करना
    • रोकथाम, उपचार और देखभाल तक समान पहुँच का समर्थन करना

और पढ़ें: US एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट


रैपिड फायर

वुलर झील में कमल का पुनरुद्धार

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

1992 की बाढ़ के कारण तीन दशकों की पारिस्थितिक निष्क्रियता के बाद वुलर संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण (WUCMA) के नेतृत्व में केंद्रित संरक्षण प्रयासों के कारण कश्मीर की वुलर झील में एक बार फिर कमल के फूल खिलने लगे हैं।

  • कमल के तने (जिन्हें स्थानीय रूप से नादरू कहा जाता है) वर्ष 1992 से विकसित नहीं हो सके, क्योंकि बीज भारी गाद के नीचे दब गए थे, लेकिन प्रकंद (रेंगने वाली जड़ के डंठल ) गहराई में जीवित रहे और गाद हटाये जाने के बाद अंकुरित हो गए।

वुलर झील

  • यह भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है और एशिया ( रूस के साइबेरिया में बैकाल झील के बाद) की दूसरी सबसे बड़ी झील है, जो जम्मू-कश्मीर में बांदीपोरा तथा सोपोर के बीच स्थित है।
  • भूगोल: यह हरामुक पर्वत की तलहटी में स्थित है और झेलम नदी के साथ-साथ 25 अन्य नदियाँ इसे पानी उपलब्ध कराती हैं।
    • इसके केंद्र में एक छोटा सा द्वीप है जिसे जैना लंक (Zaina Lank) कहा जाता है, जिसका निर्माण कश्मीर के 8 वें सुल्तान जैनुल-अबी-दीन ने करवाया था।
  • पारिस्थितिक महत्त्व: 1990 में इसे रामसर कन्वेंशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया गया था।
  • भूविज्ञान: इस झील का बेसिन टेक्टोनिक गतिविधि के कारण बना है। इसे प्राचीन सतीसर झील का अवशेष भी माना जाता है।
  • एवियन जीव: वुलर झील 56 पक्षी प्रजातियों, 39 मछली प्रजातियों और 20 से अधिक प्रकार के पौधों का आवास है ।
    • यहाँ पाई जाने वाली उल्लेखनीय प्रवासी पक्षी प्रजातियों में सफेद पेट वाला बगुला, गुलाबी सिर वाली बत्तख, बेयर पोचार्ड और कश्मीर कैटफिश शामिल हैं।

कमल (नेलुम्बो न्यूसीफेरा)

  • कमल एक बारहमासी पौधा है जिसके फूल कटोरे के आकार के होते हैं और पंखुड़ियाँ 8 से 12 इंच व्यास की होती हैं। 
    • यह एक जलीय पौधा है जो पोषक तत्त्वों से भरपूर, धुंधली परिस्थितियों में पनपता है। 
  • यह गुलाबी, पीले या सफेद रंग में होता है। 
  • इसे भारत के राष्ट्रीय पुष्प के रूप में मान्यता प्राप्त है। कमल हिंदू और बौद्ध धर्मों का एक आवर्ती प्रतीक है।

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और पढ़ें: सिंधु जल संधि से संबंधित विवाद


रैपिड फायर

INS निस्तार

स्रोत: पी.आई.बी

भारतीय नौसेना ने हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (एचएसएल), विशाखापत्तनम द्वारा निर्मित अपने पहला स्वदेशी रूप से निर्मित डाइविंग सपोर्ट वेसल (DSV) INS निस्तार को शामिल किया है।

  • डाइविंग सपोर्ट वेसल (DSV) एक विशेष प्रकार का नौसैनिक पोत होता है, जिसे पानी के भीतर संचालन, जैसे गोताखोरों की तैनाती, बचाव अभियान, और पनडुब्बी चालक दल की पुनर्प्राप्ति जैसे कार्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है।

INS_Nistar

INS निस्तार:

  • तकनीकी विशिष्टताएँ: गोताखोरी सहायता पोत में लगभग 120 मीटर की लंबाई और 10,000 टन से अधिक भार विस्थापन की क्षमता है।
    • यह पोत 60 दिनों से अधिक समय तक समुद्र में टिके रहने में सक्षम है, हेलीकॉप्टर संचालन में सहायक है, और इसमें 15 टन क्षमता वाला सबसी क्रेन लगा है जो गहरे समुद्र में पुनर्प्राप्ति अभियानों में सहायता करता है।
  • परिचालन क्षमताएँ: INS निस्तार पनडुब्बी बचाव के लिये गहरे जलमग्न बचाव पोतों (DSRV) के लिये मदर शिप के रूप में कार्य करता है, इसमें सटीक स्टेशन-कीपिंग के लिये डायनामिक पोजिशनिंग सिस्टम (DPS), समुद्र तल मानचित्रण के लिये साइड-स्कैन सोनार की सुविधा है तथा यह खोज, पुनर्प्राप्ति, गोताखोरी और बचाव कार्यों में सहायता करता है।
    • जलावतरण के बाद, इस पोत को गहरे समुद्र में गोताखोरी और पनडुब्बी बचाव कार्यों में क्षमताओं को बढ़ाने के लिये पूर्वी नौसेना कमान में शामिल किया जाएगा।
  • विरासत और महत्त्व: INS निस्तार, उस मूल पोत की विरासत को आगे बढ़ाता है जिसे वर्ष 1969 में सोवियत संघ से प्राप्त किया गया था और 1989 में सेवामुक्त किया गया था। यह पोत भारत की पनडुब्बी बचाव क्षमताओं को अत्यधिक सशक्त बनाता है, रणनीतिक समुद्री आत्मनिर्भरता को मज़बूत करता है तथा हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की "नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर" की भूमिका को और सुदृढ़ करता है।

और पढ़ें: INS निर्देशक


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