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राष्ट्रीय भूकंपीय जोखिम मानचित्र
चर्चा में क्यों?
भारतीय मानक ब्यूरो ने अद्यतन राष्ट्रीय भूकंपीय जोखिम मानचित्र जारी किया है, जिसमें संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र को नव-निर्मित उच्चतम जोखिम ज़ोन VI में रखा गया है, जो इसकी अत्यधिक विवर्तनिक संवेदनशीलता को दर्शाता है तथा राष्ट्रीय भूकंप-जोखिम मूल्यांकन में महत्वपूर्ण संशोधन करता है।
मुख्य बिंदु
- नवीन मानचित्र संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र (जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक) को ज़ोन VI में वर्गीकृत करता है, जो हिमालयी फ्रंटल थ्रस्ट पर लगातार बने रहने वाले टेक्टोनिक दबाव के कारण उच्चतम भूकंपीय जोखिम वाला क्षेत्र है।
- भारत का लगभग 61% भूभाग अब मध्यम से उच्च भूकंपीय जोखिम वाले ज़ोन के रूप में वर्गीकृत है, जिसके लिये अद्यतन भवन संहिता (building codes), सख्त भूमि-उपयोग मानदंड (land-use norms) और अनिवार्य संरचनात्मक सुरक्षा अनुपालन (structural safety compliance) की आवश्यकता है।
- अद्यतन क्षेत्रीकरण (zonation) में संभाव्य भूकंपीय जोखिम मॉडलिंग का उपयोग किया गया है, जिसमें सक्रिय भ्रंश, विदारण व्यवहार (rupture behaviour) और तनाव संचय (strain accumulation) पर नए डेटा को शामिल किया गया है तथा पुराने नियतात्मक मानचित्रों का स्थान लिया गया है।
- संशोधित मानचित्र के तहत, दो जोखिम श्रेणियों के बीच की सीमा पर स्थित किसी भी शहर को उच्च जोखिम वाले ज़ोन (higher-risk zone) में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
- भूकंपीय जोखिम न केवल पहाड़ी राज्यों में बल्कि हिमालय से सटे मैदानी इलाकों में भी बढ़ गया है, जिनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, पूर्वोत्तर, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली NCR के के भाग शामिल हैं।
भारत में भूकंपीय ज़ोन
- भारत के पूर्व वर्गीकरण में ज़ोन II, III, IV, V थे - जिसमें ज़ोन V सबसे अधिक जोखिम वाला क्षेत्र था।
- हिमालय विश्व के सबसे सक्रिय टकराव क्षेत्रों (collision zones) में से एक है, जो भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के अभिसरण (~5 सेमी/वर्ष) के कारण निर्मित हुआ है।
- प्रमुख ऐतिहासिक भूकंप: कांगड़ा (1905), बिहार-नेपाल (1934), असम (1950), कश्मीर (2005), सिक्किम (2011), नेपाल (2015) हैं।
- IS 1893, IS 4326 और राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC) भूकंपीय सुरक्षा को नियंत्रित करते हैं; नवीन मानचित्र के लागू होने पर व्यापक संशोधन की आवश्यकता होगी।
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भागीरथी नदी में गाद स्तर में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
उत्तरकाशी (उत्तराखंड) में भागीरथी नदी में खतरनाक स्तर पर बालू एवं तलछट का संचयन हो रहा है, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि खुदाई पर प्रतिबंध से बाढ़ का खतरा बढ़ गया है और नदी तट अस्थिर हो गए हैं, जिससे शहर की अवसंरचना पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
मुख्य बिंदु
मुद्दे के बारे में:
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने वर्ष 2012 में भागीरथी में खुदाई/उत्खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था, ताकि नदी की पारिस्थितिकी संवेदनशीलता की सुरक्षा की जा सके, क्योंकि यह भागीरथी पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) के अंतर्गत आती है।
- अधिकारियों के अनुसार लगातार तलछट जमा होने से नदी का जलस्तर बढ़ गया है, विशेषकर उत्तरकाशी ज़िला मुख्यालय के पास, जिससे जल वहन क्षमता घट गई है।
- नदी तल ऊँचा होने के कारण अचानक बाढ़, तट कटाव और मानसून में अतिप्रवाह की संभावना बढ़ जाती है, जिससे नदी के निकट स्थित घर, बाज़ार तथा सरकारी भवनों को खतरा हो सकता है।
- राज्य सरकार एक प्रस्ताव तैयार कर रही है, जिसमें NGT से अनुरोध किया जाएगा कि अन्य हिमालयी राज्यों की बाढ़-प्रवण नदियों की तरह वैज्ञानिक तरीके से बालू और तलछट निकालने की अनुमति दी जाए।
भागीरथी नदी के बारे में:
- भागीरथी गंगा की दो प्रमुख धाराओं में से एक है और यह गंगोत्री (उत्तराखंड) के गौमुख ग्लेशियर से निकलती है।
- यह गंगोत्री-हर्षिल-उत्तरकाशी-टिहरी मार्ग से बहकर देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलती है और गंगा का निर्माण करती है।
- यह गंगोत्री – हर्षिल – उत्तरकाशी – टिहरी से प्रवाहित होती हुई देवप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है, जहाँ ये दोनों मिलकर गंगा का निर्माण करती हैं।
- गौमुख से उत्तरकाशी तक का क्षेत्र संवेदनशील हिमालयी पारिस्थितिकी का हिस्सा है और जल विद्युत, खनन तथा निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 2012 में इसे इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के रूप में अधिसूचित किया गया।
- यह क्षेत्र तीव्र ढाल, उच्च तलछट भार और भूस्खलन, बादल फटने तथा हिमनद पिघलने के प्रति संवेदनशील है, जिससे नदी तल की ऊँचाई बाढ़ जोखिम का महत्त्वपूर्ण कारण बनती है।
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