भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में विकास-रोज़गार का अंतर
यह एडिटोरियल 24/06/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Getting to a new level in India’s online gaming sector” पर आधारित है, यह लेख भारत की आर्थिक वृद्धि और रोज़गार सृजन के बीच बढ़ते अंतर को दर्शाता है, क्योंकि मुद्रास्फीति कम हो रही है लेकिन बेरोज़गारी बढ़ रही है। क्षेत्रीय सुधारों के बावजूद, अर्थव्यवस्था का विस्तार रोज़गार संकट को दूर करने में विफल रहा है।
प्रिलिम्स के लिये:कौशल भारत, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, मेक इन इंडिया कार्यक्रम, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, केंद्रीय बजट 2024-25, GDP में विभिन्न क्षेत्रों का योगदान मेन्स के लिये:बेरोज़गारी पर अंकुश लगाने में भारत की प्रमुख प्रगति, भारत में विकास और रोज़गार सृजन के बीच असंतुलन में योगदान देने वाले कारक। |
जब मई 2025 में भारत की महँगाई दर घटकर 2.8% के स्तर पर पहुँच गई, उसी समय बेरोज़गारी दर 5.1% से बढ़कर 5.8% हो गई, जो आर्थिक प्राथमिकताओं के बीच एक चिंताजनक असंतुलन को उजागर करता है। कृषि क्षेत्र का अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन खाद्य महँगाई को नियंत्रण में रखने में सहायक रहा, लेकिन इस क्षेत्रीय पुनर्संतुलन का व्यापक स्तर पर रोज़गार सृजन में संरेखण नहीं हो सका। ऐसी स्थिति में भारत को अपने आर्थिक विकास के साथ-साथ रोज़गार सृजन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि विकास के लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुँच सकें और भविष्य की नीति में रोज़गार निर्माण एक केंद्रीय स्तंभ बन सके।
बेरोज़गारी पर नियंत्रण में भारत की प्रमुख प्रगति क्या है?
- कौशल भारत मिशन और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): भारत ने अपनी कार्यबल को प्रशिक्षित करने के लिये ‘कौशल भारत’ और ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)’ जैसी पहलों के माध्यम से उल्लेखनीय प्रगति की है।
- इन कार्यक्रमों का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार विशिष्ट कौशल प्रदान करना है, जिससे विशेषकर युवाओं और महिलाओं की रोज़गार क्षमता बढ़ाई जा सके।
- अब तक प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 1.37 करोड़ से अधिक अभ्यर्थियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है, जो बेरोज़गारी को कम करने के प्रयासों को दर्शाता है।
- मेक इन इंडिया और PIL पहल: मेक इन इंडिया कार्यक्रम और उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने तथा विदेशी निवेश को आकर्षित करके रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने में आधारशिला रही है।
- इस पहल से विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में मदद मिली है तथा इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में लाखों नौकरियाँ उत्पन्न हुई हैं।
- उदाहरण के लिये, विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार सत्र 2017-18 में 57 मिलियन से बढ़कर सत्र 2019-20 में 62.4 मिलियन हो गया, जो इस पहल के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है।
- डिजिटल साक्षरता और बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना: डिजिटल इंडिया अभियान के माध्यम से, भारत सरकार ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता और बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है।
- इस पहल का उद्देश्य डिजिटल विभाजन को कम करना है तथा नागरिकों को ऑनलाइन शिक्षा, नौकरी के अवसरों और सरकारी सेवाओं तक पहुँच प्रदान करना है।
- इस प्रयास के एक भाग के रूप में, प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल अक्षरा अभियान का लक्ष्य छह करोड़ ग्रामीण नागरिकों को डिजिटल रूप से साक्षर बनाना है, जिससे उन्हें आधुनिक अर्थव्यवस्था में भाग लेने के लिये सशक्त बनाया जा सके।
- रोज़गार सृजन के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी: भारत ने बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा जैसे उच्च क्षमता वाले क्षेत्रों में रोज़गार सृजन के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की ओर तेज़ी से रुख किया है।
- ये सहयोग स्थायी नौकरियों के सृजन में सहायक होंगे तथा निजी निवेश को भी आकर्षित करेंगे।
- 111 लाख करोड़ रुपए के निवेश लक्ष्य वाली राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) का लक्ष्य विभिन्न क्षेत्रों में लाखों रोज़गार सृजित करना है।
- ये सहयोग स्थायी नौकरियों के सृजन में सहायक होंगे तथा निजी निवेश को भी आकर्षित करेंगे।
- युवाओं के लिये लक्षित रोज़गार सृजन योजनाएँ: केंद्रीय बजट 2024-25 में, भारत सरकार ने युवा बेरोज़गारी को दूर करने के लिये लक्षित योजनायाँ शुरू कीं, जिसमें पाँच वर्षों में कौशल विकास और रोज़गार सृजन के लिये 2 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए।
- इन पहलों में पहली बार रोज़गार करने वाले कर्मचारियों के लिये प्रोत्साहन, विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार सृजन के लिये समर्थन तथा नौकरी की गुणवत्ता एवं कार्य स्थितियों में सुधार के लिये योजनाएँ शामिल हैं।
- युवा रोज़गार पर ध्यान केंद्रित करके, सरकार का लक्ष्य उभरते कार्यबल के लिये बेहतर अवसर प्रदान करना है।
- विकासशील श्रम बाज़ार सुधार: भारत ने रोज़गार की स्थिति में सुधार, श्रम कानूनों को सरल बनाने तथा कार्यबल के औपचारिकीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण श्रम सुधार किये हैं।
- वेतन संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता और सामाजिक सुरक्षा संहिता का उद्देश्य अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये रोज़गार की सुरक्षा बढ़ाना, उचित वेतन सुनिश्चित करना एवं सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देना है।
- इन सुधारों का उद्देश्य अधिकाधिक श्रमिकों को औपचारिक रोज़गार तथा नौकरी की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
- वेतन संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता और सामाजिक सुरक्षा संहिता का उद्देश्य अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये रोज़गार की सुरक्षा बढ़ाना, उचित वेतन सुनिश्चित करना एवं सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देना है।
नोट : रोज़गार सृजन में हाल की महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, आर्थिक विस्तार और रोज़गार सृजन के बीच के अंतर देश के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
भारत में विकास और रोज़गार सृजन के बीच अंतर उत्पन्न करने वाले कारक क्या हैं?
- पूंजी-प्रधान विकास मॉडल की ओर बदलाव: भारतीय अर्थव्यवस्था का पूंजी-प्रधान क्षेत्रों, विशेषकर विनिर्माण और सेवाओं की ओर बदलाव, रोज़गार सृजन को सीमित कर रहा है।
- जैसे-जैसे पूंजी बढ़ती है, यह प्रायः श्रम की जगह ले लेती है, जिससे श्रमिकों की ज़रूरत कम हो जाती है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2014-23 के बीच भारत का पूंजी स्टॉक 74% तथा रोज़गार में केवल 36% की वृद्धि हुई, जिससे पूंजी-श्रम अनुपात बढ़ गया।
- यह असंगतता इस बात को उजागर करती है कि विकास के कारण रोज़गार के अवसर उत्पन्न नहीं हो रहे हैं, विशेष रूप से श्रम-प्रधान क्षेत्रों में।
- जैसे-जैसे पूंजी बढ़ती है, यह प्रायः श्रम की जगह ले लेती है, जिससे श्रमिकों की ज़रूरत कम हो जाती है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2014-23 के बीच भारत का पूंजी स्टॉक 74% तथा रोज़गार में केवल 36% की वृद्धि हुई, जिससे पूंजी-श्रम अनुपात बढ़ गया।
- कार्यबल का बढ़ता अनौपचारिकीकरण: भारत के अनौपचारिक क्षेत्र में वृद्धि स्थिर, औपचारिक रोज़गार सृजन के लिये अनुकूल नहीं है।
- भारत के कार्यबल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक, कम वेतन वाली और असुरक्षित नौकरियों में लगा हुआ है।
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि के बावजूद अनौपचारिक रोज़गार में वृद्धि जारी है, जिससे सीमित लाभ और नौकरी सुरक्षा वाले श्रमिक प्रभावित हो रहे हैं।
- अनौपचारिक क्षेत्र अब भारत के कार्यबल का लगभग 80-90% हिस्सा है। इस क्षेत्र का विस्तार रोज़गार सृजन को दर्शाता है लेकिन कई लोगों के लिये काम की गुणवत्ता या मज़दूरी में सुधार करने में विफल रहता है।
- इसके अलावा, आर्थिक सर्वेक्षण (2023-24) के अनुसार, कुल कार्यबल का 57.3 प्रतिशत स्व-नियोजित है और 18.3 प्रतिशत घरेलू उद्यमों में अवैतनिक श्रमिक के रूप में काम कर रहे हैं।
- कौशल विकास और बाज़ार की आवश्यकताओं के बीच असंतुलन: भारत की कौशल विकास पहल, हालाँकि व्यापक है, प्रायः श्रम बाज़ार की उभरती मांगों के साथ संरेखित नहीं होती है।
- स्किल इंडिया और PMKVY जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से प्रदान किये जाने वाले कौशल, प्रायः श्रमिकों को उच्च स्तरीय नौकरी बाज़ार, विशेषकर डिजिटल और औद्योगिक क्षेत्रों के लिये तैयार करने में विफल हो जाते हैं।
- प्रयासों के बावजूद, बेरोज़गारी दर बढ़कर 5.8% हो गई, जो कौशल अंतराल और अपर्याप्त कुशल कार्यबल की ओर संकेत करती है।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के तहत 13.7 मिलियन अभ्यर्थियों को प्रशिक्षित किया गया है, लेकिन केवल 18% या 2.4 मिलियन को ही सफलतापूर्वक नौकरी मिल पाई है।
- विनिर्माण क्षेत्र में धीमी वृद्धि: विनिर्माण क्षेत्र, जो ऐतिहासिक रूप से रोज़गार सृजन का प्रमुख क्षेत्र रहा है, भारत की बढ़ती श्रम शक्ति को समाहित करने के लिये आवश्यक स्तर का विस्तार नहीं कर पाया है।
- सेवाओं और प्रौद्योगिकी-आधारित विकास पर ध्यान केंद्रित करने से विनिर्माण से ध्यान हट गया है, जो आमतौर पर अधिक रोज़गार सृजित करता है।
- मेक इन इंडिया पहल के बावजूद, विनिर्माण क्षेत्र ने सत्र 2019-20 में 62.4 मिलियन लोगों को रोज़गार दिया, जो सत्र 2017-18 में 57 मिलियन से मामूली वृद्धि है। यह धीमी वृद्धि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन करने में असमर्थता को दर्शाती है।
- इसके अलावा, SME क्षेत्र में रोज़गार सृजन की काफी संभावनाएँ हैं, लेकिन दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करने के लिये इसे अधिक स्थिर नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है।
- नव स्थापित SME में से लगभग 25-30% 5 वर्षों के भीतर विफल हो जाते हैं, जो इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के समक्ष चुनौतियों का संकेत देता है।
- कृषि पर निर्भरता और सीमित विविधीकरण: भारत के कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है, जो अत्यधिक मौसमी है और स्थायी रोज़गार प्रदान नहीं करती है।
- PLFS 2022-23 के अनुसार, भारत का 45.76% कार्यबल कृषि में है, लेकिन यह क्षेत्र अपनी कम उत्पादकता और मौसमी प्रकृति के कारण पर्याप्त स्थिर रोज़गार सृजन करने में असमर्थ है।
- सरकारी नौकरियों के प्रति उच्च अपेक्षाएँ: भारत में बड़ी संख्या में लोग अभी भी सरकारी नौकरियों को प्राथमिकता देते हैं तथा इसे सुरक्षित और स्थिर कॅरियर विकल्प मानते हैं।
- यह आकांक्षा कभी-कभी बाज़ार में उपलब्ध रोज़गार के प्रकार और कार्यबल की अपेक्षाओं के बीच अंतर उत्पन्न कर देती है।
- यद्यपि निजी क्षेत्र का विस्तार हुआ है, तथापि सरकारी नौकरियों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई है, जिसके कारण कुछ व्यक्ति इन पदों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं, तथा व्यापक अर्थव्यवस्था में अन्य अवसरों से वंचित रह जाते हैं।
रोज़गार सृजन के साथ विकास को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- श्रम-प्रधान विनिर्माण को बढ़ावा देना: विकास को रोज़गार के साथ जोड़ने के लिये, भारत को वस्त्र, परिधान और खाद्य प्रसंस्करण जैसे श्रम-प्रधान विनिर्माण क्षेत्रों की ओर रुख करना चाहिये।
- इस रणनीति में लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) का विस्तार करना, उन्हें कर प्रोत्साहन, सब्सिडी तथा कम लागत वाले श्रम तक पहुँच प्रदान करना शामिल है।
- ऐसे क्षेत्रों में मानव पूंजी पर निर्भरता के कारण बड़े पैमाने पर रोज़गार उत्पन्न होने की अधिक संभावना होती है।
- इन क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर भारत पर्याप्त रोज़गार अवसर उत्पन्न कर सकता है और आयात पर निर्भरता कम कर सकता है तथा आत्मनिर्भर, निर्यात-संचालित विकास को बढ़ावा दे सकता है।
- ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना: एक प्रमुख उपाय ग्रामीण भारत में उद्यमिता को बढ़ावा देना है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलेगा और शहरी केंद्रों की ओर पलायन कम होगा।
- ऋण तक पहुँच को सरल बनाकर, बाज़ार संपर्कों में सुधार करके तथा उद्यमिता प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करके, ग्रामीण समुदाय सतत् व्यवसाय मॉडल तैयार कर सकते हैं।
- सरकारी सहायता के साथ-साथ सड़क, विद्युत् और इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसे उन्नत ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के नेटवर्क से ग्रामीण आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि विकास भौगोलिक दृष्टि से समावेशी हो।
- शिक्षा में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ाना: वर्तमान में तेज़ी से विकसित हो रहे रोज़गार बाज़ार में, भारत को गतिशील सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से शिक्षा और रोज़गार के बीच के अंतर को कम करना होगा।
- पाठ्यक्रम डिज़ाइन में उद्योगों को शामिल करके और संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों की पेशकश करके, भारत शैक्षिक उत्पादन को श्रम बाज़ार की मांग के अनुरूप बना सकता है।
- ये सहयोग AI, स्वचालन और डेटा एनालिटिक्स से उभरते उद्योगों के अनुरूप कुशल कार्यबल विकसित करने में मदद करेंगे, जिससे स्नातकों के लिये बेहतर नौकरी की व्यवस्था हो सकेगी।
- हरित रोज़गार और सतत् उद्योगों का विकास: भारत को विकास को बढ़ावा देने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा, सतत् कृषि और इलेक्ट्रिक गतिशीलता जैसे क्षेत्रों में हरित रोज़गार को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक ध्यान के साथ, भारत में पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के साथ-साथ उच्च रोज़गार उत्पन्न करने वाले उद्योगों, जैसे: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करके हरित अर्थव्यवस्था में अग्रणी के रूप में उभरने की क्षमता है।
- उद्योग-विशिष्ट रोज़गार सृजन नीतियाँ: भारत को स्वास्थ्य सेवा, प्रौद्योगिकी और निर्माण जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों के अनुरूप क्षेत्रीय रोज़गार सृजन रणनीतियों को लागू करना चाहिये।
- नीतियों को इन क्षेत्रों में व्यवसायों के लिये लक्षित प्रोत्साहनों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि स्थानीय स्तर पर भर्ती, कर्मचारियों को उन्नत कौशल तथा रोज़गार बाजार का निर्माण किया जा सके।
- कर राहत और सब्सिडीयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने से इन क्षेत्रों में श्रम अवशोषण में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
- समुत्थानशीलन और समावेशिता के लिये श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन में तेज़ी लाना: भारत को अपने श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन में तेज़ी लानी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे आज के उभरते रोज़गार बाज़ार की आवश्यकताओं के लिये अधिक समावेशी और अनुकूलनीय हों।
- इसके अलावा, गिग रोज़गार, संविदा श्रम और अनौपचारिक कार्य में अधिक सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल लाभ एवं पेंशन योजनाओं जैसी कानूनी सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
- व्यापार सुगमता हेतु श्रम संहिता को सरल बनाने से, श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करने के साथ-साथ रोज़गार के औपचारिकीकरण को बढ़ावा मिलेगा, जिससे नियोक्ताओं के लिये गुणवत्तापूर्ण, अच्छे वेतन वाली नौकरियों का सृजन अधिक आकर्षक हो जाएगा।
- रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये सार्वजनिक अवसंरचना निवेश: भारत परिवहन, स्वास्थ्य सेवा और शहरी विकास जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सार्वजनिक अवसंरचना निवेश को बढ़ाकर रोज़गार सृजन को बढ़ावा दे सकता है।
- उच्च रोज़गार वाली बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर ध्यान होना चाहिये जो कुशल और अकुशल दोनों प्रकार के श्रमिकों के लिये रोज़गार उत्पन्न कर सके।
- इसके अतिरिक्त, सड़कों, बंदरगाहों और हवाई अड्डों जैसे लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे में सुधार से परिचालन लागत कम होगी, व्यवसायों को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाया जा सकेगा तथा उद्योगों में रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
- कृषि से गैर-कृषि नौकरियों में संक्रमण को सुगम बनाना: भारत को कृषि से गैर-कृषि क्षेत्रों, जैसे विनिर्माण, सेवा और कृषि प्रसंस्करण में श्रमिकों के संक्रमण को सुगम बनाना होगा।
- निर्माण, वस्त्र और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के लिये अनुकूलित कौशल उन्नयन कार्यक्रम प्रदान करने से श्रमिकों को अधिक उत्पादक, उच्च वेतन वाली नौकरियों की ओर संक्रमण में सहायता मिलेगी।
- कृषि आधारित लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये वित्तीय और अवसंरचनात्मक सहायता के साथ-साथ ग्रामीण युवाओं के लिये केंद्रित प्रशिक्षण केंद्रों से ऐसे रोज़गार सृजित किये जा सकते हैं जो बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप हों तथा कृषि उत्पादकता में भी सुधारात्मक हो।
- रोज़गार सृजन करने वाले व्यवसायों के लिये कर प्रोत्साहन: भारत सरकार रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित करने वाले व्यवसायों के लिये कर प्रोत्साहन शुरू कर सकती है, विशेष रूप से निर्माण, कृषि प्रसंस्करण और विनिर्माण जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों में।
- कॉर्पोरेट कर में छूट, कम ब्याज दर पर ऋण और रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित करने वाले लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये अनुदान की पेशकश से व्यापार विस्तार एवं रोज़गार सृजन को प्रोत्साहन मिलेगा।
- इस दृष्टिकोण से न केवल औपचारिक क्षेत्र में नौकरियायाँ बढ़ेंगी, बल्कि अविकसित क्षेत्रों में विकास को भी प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे रोज़गार परिदृश्य में संतुलन आएगा।
निष्कर्ष:
भारत की आर्थिक संवृद्धि को रोज़गार सृजन के साथ बेहतर ढंग से जोड़ा जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि समृद्धि से देश की समग्र आबादी को लाभ मिले। यद्यपि कौशल विकास, विनिर्माण और बुनियादी ढाँचे में प्रगति हुई है, तथापि पूंजी-गहन विकास की ओर बदलाव एवं अनौपचारिक कार्यबल में वृद्धि जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। विकास को पूरक बनाने के लिये भारत को श्रम-गहन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने, ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने और सभी के लिये अवसर उत्पन्न करने वाले सतत् उद्योगों में निवेश करने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन के बीच असंतुलन उत्पन्न करने वाले अंतर्निहित कारक क्या हैं तथा इस चुनौती से निपटने के लिये क्या उपाय लागू किये जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है? (2016) (a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना उत्तर: (a) प्रश्न 2. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013) (a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं उत्तर:(c) मेन्सप्रश्न 1. भारत में सबसे अधिक बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023) प्रश्न 2. हाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2015) |