विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी समन्वय
यह एडिटोरियल 25/06/2025 को द लाइवमिंट में प्रकाशित “Space race: Is competition among Indian startups ready for lift-off?” लेख पर आधारित है। यह लेख भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के उभरते परिदृश्य को सामने लाता है, जहाँ HAL और स्काईरूट व अग्निकुल जैसे निजी स्टार्टअप के साथ ISRO का सहयोग नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं।
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र, विक्रम-एस, लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान, PSLV रॉकेट, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड, GSAT-7, बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967), अंतरिक्ष मलबा शमन दिशा-निर्देश (2007) मेन्स के लिये:भारत के अंतरिक्ष उद्योग के विस्तार में निजी क्षेत्र की भूमिका, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी संस्थाओं के एकीकरण से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ। |
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र एक परिवर्तनकारी चरण का सामना कर रहा है, जो निजी संस्थाओं की बढ़ती भागीदारी से प्रेरित है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने रणनीतिक रूप से उपग्रह लांचर निर्माण को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को आउटसोर्स किया है, जिससे पुन: प्रयोज्य रॉकेट और कक्षीय सुरक्षा जैसी उन्नत तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। यह कदम स्काईरूट एयरोस्पेस, अग्निकुल कॉसमॉस और पिक्सल जैसे निजी स्टार्टअप के प्रयासों का पूरक है। चूँकि भारत एक वैश्विक अंतरिक्ष केंद्र बनने का लक्ष्य रखता है, इसलिये सार्वजनिक संस्थानों और निजी उद्यमों के बीच तालमेल देश की अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण है।
भारत के अंतरिक्ष उद्योग के विस्तार में निजी क्षेत्र किस प्रकार योगदान दे रहा है?
- IN-SPACe के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी: वर्ष 2020 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना एक ऐतिहासिक बदलाव था, जिससे भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्रों की भागीदारी बढ़ गई।
- इसरो और गैर-सरकारी संस्थाओं (NGO) के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर, IN-SPACe ने उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी को काफी हद तक बढ़ा दिया है।
- उदाहरण के लिये, एक निजी कंपनी, स्काईरूट एयरोस्पेस, वर्ष 2022 में सबऑर्बिटल रॉकेट, विक्रम-एस, लॉन्च करने वाली पहली कंपनी बन गई।
- अंतरिक्ष स्टार्टअप और नवाचार: भारत के अंतरिक्ष स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में तीव्र वृद्धि देखी गई है, जिसमें अग्निकुल कॉसमॉस और ध्रुव स्पेस जैसे स्टार्टअप प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी, उपग्रह निर्माण और अंतरिक्ष सेवाओं में अग्रणी हैं।
- अग्निकुल का मोबाइल लॉन्चपैड "धनुष" तकनीकी प्रगति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। सिर्फ वर्ष 2021 में ही भारतीय अंतरिक्ष स्टार्टअप्स ने 68 मिलियन डॉलर का निवेश प्राप्त किया, जो वर्ष-दर-वर्ष 196% की वृद्धि को दर्शाता है।
- बढ़ी हुई सार्वजनिक-निजी भागीदारी: महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष अवसंरचना के निर्माण के लिये इसरो और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), गोदरेज एयरोस्पेस और L&T जैसी उद्योग की दिग्गज कंपनियों के बीच साझेदारी के माध्यम से सार्वजनिक-निजी सहयोग को और बढ़ावा मिला है।
- ये कंपनियाँ प्रक्षेपण वाहनों, अंतरिक्ष यान और उपग्रह उप-प्रणालियों के लिये घटकों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ती है।
- उदाहरण के लिये इसरो के साथ HAL की साझेदारी 60 से अधिक सफल प्रक्षेपणों के लिये PSLV रॉकेट घटकों के निर्माण में सहायक रही है।
- नये प्रक्षेपण वाहनों और बुनियादी ढाँचे का विकास: निजी क्षेत्र के साथ भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के सहयोग से प्रक्षेपण वाहनों में नवाचारों को बढ़ावा मिला है, जैसे लघु उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (SSLV) और पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहन (RLV) का विकास।
- देश भर में अंतरिक्ष पार्कों की स्थापना छोटे उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण सेवाओं के लिये केंद्र के रूप में भी काम करेगी, जिससे निजी क्षेत्र की भागीदारी को और बढ़ावा मिलेगा।
- वर्ष 2023 में, SSLVI प्रौद्योगिकी के सफल परीक्षण हुए, जो वाणिज्यिक अनुप्रयोगों के लिये आवश्यक छोटे उपग्रहों के लिये सस्ती, मांग पर प्रक्षेपण सेवाएँ प्रदान करने की दिशा में एक कदम होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और व्यावसायीकरण: अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिये खोलने से वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में भारत की स्थिति मज़बूत हुई है।
- विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण जैसी पहलों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ, इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ने भारत की उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं के निर्यात में मदद की है।
- वर्ष 2023 में, इसरो विदेशी देशों के लिये 42 उपग्रहों को लॉन्च करेगा, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष व्यावसायीकरण में भारत की बढ़ती उपस्थिति में योगदान मिलेगा।
- अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोग और सामाजिक प्रभाव: अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों, विशेषकर संचार, सुदूर संवेदन और पृथ्वी अवलोकन में, इसरो और निजी क्षेत्र दोनों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- ये प्रौद्योगिकियाँ डिजिटल समावेशन को बढ़ावा, कृषि में सुधार और आपदा प्रबंधन को बढ़ा रही हैं।
- इसरो और निजी संस्थाओं द्वारा उपग्रह समूहों और पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों के प्रक्षेपण से कृषि, दूरसंचार और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में बदलाव आ रहा है।
- वर्ष 2025 तक उपग्रह सेवाओं से अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 36% का योगदान होने की उम्मीद है, जिसमें रिमोट सेंसिंग भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि दर दर्ज करेगी।
- तकनीकी उन्नति और हरित प्रणोदन: भारत का अंतरिक्ष उद्योग रॉकेटों के लिये हरित प्रणोदन प्रणालियों जैसी धारणीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के विकास में भी अग्रणी है।
- बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस जैसी स्टार्टअप कंपनियाँ इन प्रौद्योगिकियों में अग्रणी हैं, जिनका लक्ष्य अंतरिक्ष मिशनों के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है।
- यह अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह प्रक्षेपण प्रणालियों में पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों को अपनाने की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप है।
- बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस ने पहले ही ब्रिटेन और फ्राँस की कंपनियों के साथ प्रणोदन प्रणालियों के लिये समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जो अंतरिक्ष स्थिरता में भारत के नवाचार का परिचायक है।
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी संस्थाओं के एकीकरण से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?
- नियामक एवं नीतिगत चुनौतियाँ: भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी संस्थाओं के एकीकरण से संबंधित प्रमुख चिंताओं में से एक व्यापक तथा स्पष्ट नियामक ढाँचे का अभाव है।
- यद्यपि IN-SPACe की स्थापना निजी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिये की गई है, फिर भी ऐसी पारदर्शी नीतियों की आवश्यकता है जो अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन के साथ बौद्धिक संपदा अधिकारों और अंतरिक्ष मिशनों संबंधी मुद्दों को हल करने पर केंद्रित हों।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, निजी संस्थाओं द्वारा IN-SPACe के समक्ष 300 से अधिक आवेदन किए गए, जो स्पष्ट दिशानिर्देशों की मांग का संकेत देते हैं।
- हालाँकि केवल 51 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जो नियामक चिंताओं के कारण अनिश्चितता को दर्शाता है।
- बौद्धिक संपदा (IP) संबंधी चिंताएँ: निजी कंपनियाँ अक्सर अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिये स्वामित्व वाली प्रौद्योगिकियों का विकास करती हैं, लेकिन इसरो के साथ मौजूदा सहयोग उनके स्वामित्व अधिकारों को सीमित कर देता है।
- यह प्रतिबंध निजी अभिकर्त्ताओं को नवाचार में निवेश करने से हतोत्साहित कर सकता है, क्योंकि उन्हें अपनी प्रौद्योगिकियों पर नियंत्रण खोने का जोखिम रहता है, जिससे दीर्घकालिक विकास सीमित हो सकता है।
- आलोचकों ने इस बात पर चिंता जताई है कि इसरो का मौजूदा मॉडल निजी कंपनियों को विनिर्माण भूमिकाओं तक सीमित रखता है। कई स्टार्टअप संस्थापकों के अनुसार, यह मुद्दा निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी में बाधक है।
- वित्तीय स्थिरता और निवेश अंतराल: भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी अभिकर्त्ताओं को व्यापक वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें जोखिम पूंजी तक सीमित पहुँच तथा उच्च प्रारंभिक निवेश लागत शामिल हैं।
- सरकार के 1000 करोड़ रुपए के वेंचर कैपिटल फंड के बावजूद, अंतरिक्ष संबंधी स्टार्टअप्स को पर्याप्त धन जुटाने में संघर्ष (विशेष रूप से शुरुआती चरण के विकास में) करना पड़ रहा है।
- बाज़ार में जोखिम की धीमी स्वीकृति के कारण अंतरिक्ष कंपनियों के लिये स्थायी निवेश हासिल करना कठिन हो जाता है।
- स्पेस कैपिटल के एक विश्लेषण के अनुसार, अंतरिक्ष उद्योग में निवेश वर्ष 2021 के 47 बिलियन डॉलर से घटकर वर्ष 2022 में 20 बिलियन डॉलर रह गया।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक चिंताएँ: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में दोहरे उपयोग (नागरिक और सैन्य दोनों) की क्षमताएँ हैं, जिससे निजी कंपनियों के शामिल होने से राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- भारत की अंतरिक्ष गतिविधियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं तथा GSAT 7 जैसे उपग्रह सैन्य उद्देश्यों के लिये कार्य करते हैं।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी से संवेदनशील डेटा या प्रौद्योगिकियों के गलत हाथों में जाने का जोखिम बढ़ जाता है।
- इस प्रकार, यह सुनिश्चित करना कि निजी संस्थाएँ राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से समझौता न करें, भारत के लिये एक प्रमुख मुद्दा है।
- तकनीकी अंतराल और विशेषज्ञता संबंधी बाधाएँ: भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में कई निजी संस्थाओं के पास उस गहन तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव है जिसे इसरो ने दशकों में विकसित किया है।
- यद्यपि स्टार्टअप्स प्रक्षेपण यानों और छोटे उपग्रहों जैसे क्षेत्रों में नवाचार कर रहे हैं लेकिन उन्नत प्रौद्योगिकियों (जैसे कि अंतरिक्ष कक्षा में ईंधन भरना) तथा अंतरिक्ष विज्ञान संबंधी उपकरणों के क्षेत्र में अभी भी यह सीमित बने हुए हैं।
- इस अंतराल से अपने अंतरिक्ष मिशनों को बढ़ावा देने तथा विविधता लाने की निजी कंपनियों की क्षमता सीमित हो जाती है।
- उदाहरण के लिये, अग्निकुल और स्काईरूट कम लागत वाले रॉकेटों में अग्रणी हैं, लेकिन बड़े पैमाने के मिशनों के लिये इनमें क्षमताओं का अभाव है।
- विखंडित उद्योग और बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र का अभाव: भारत का अंतरिक्ष उद्योग अभी भी विखंडित है, जिसमें 200 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप उपग्रह उप-प्रणालियों, प्रणोदन तथा प्रक्षेपण यानों जैसे विभिन्न घटकों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
- इस विखंडन के कारण अकुशलताएँ विकसित होती हैं, क्योंकि विभिन्न अभिकर्त्ताओं (विशेषकर सार्वजनिक और निजी संस्थाओं) के बीच समन्वय न होना एक प्रमुख चुनौती है।
- एकीकरण संबंधी चुनौतियों के कारण अंतरिक्ष सेवाओं का व्यावसायीकरण धीमा बना हुआ है।
- कुशल कार्यबल की कमी: भारत के निजी अंतरिक्ष क्षेत्र में कुशल कार्यबल की कमी एक प्रमुख चुनौती है।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की जटिलता के आलोक में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, प्रणोदन और उपग्रह संचार सहित विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की शिक्षा और प्रशिक्षण अवसंरचना कुशल पेशेवरों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये अपर्याप्त है।
भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सक्रिय सार्वजनिक-निजी भागीदारी को किस प्रकार बढ़ावा दिया जा सकता है?
- निजी अभिकर्ताओं के लिये नियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करना: भारत को एक स्पष्ट और व्यापक नियामक ढाँचे के विकास में तेज़ी लानी चाहिये जो उपग्रह लाइसेंसिंग, अंतरिक्ष अपशिष्ट प्रबंधन एवं बौद्धिक संपदा अधिकार जैसी प्रमुख चिंताओं को संबोधित करे।
- निजी कम्पनियों के लिये सुव्यवस्थित, एकल-खिड़की अनुमोदन प्रक्रिया स्थापित करने से विलंब कम होगा तथा सार्वजनिक एवं निजी संस्थाओं के बीच अधिक कुशल कार्य संबंध को बढ़ावा मिलेगा।
- उत्तरदायित्व एवं सुरक्षा मानकों पर स्पष्ट दिशा-निर्देशों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय विनियमों के अनुपालन को प्रोत्साहित करने से निजी अभिकर्ताओं में आत्मविश्वास उत्पन्न होगा तथा परिचालन संबंधी अनिश्चितताएँ भी कम होंगी।
- एकीकृत अंतरिक्ष नवाचार पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्माण: सरकार अंतरिक्ष नवाचार केंद्रों के निर्माण की सुविधा प्रदान कर सकती है, जहाँ स्टार्टअप, स्थापित अंतरिक्ष कंपनियाँ तथा शैक्षणिक संस्थान एक सुसंगत पारिस्थितिकी तंत्र में सहयोग करते हैं।
- इन केंद्रों को साझा बुनियादी ढाँचे, जैसे परीक्षण सुविधाएँ, विनिर्माण संयंत्र एवं अनुसंधान प्रयोगशालाएँ स्थापित करानी चाहिये , जिन्हें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों से वित्त पोषण प्राप्त हो।
- इसके अतिरिक्त, ये केंद्र इसरो से निजी संस्थाओं तक ज्ञान हस्तांतरण को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे वे दोनों क्षेत्रों के बीच तालमेल बनाए रखते हुए अत्याधुनिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का निर्माण करने में सक्षम होंगे।
- वित्तीय सहायता के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी नवाचार को प्रोत्साहित करना: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में निजी क्षेत्र के नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिये, भारत को उच्च जोखिम, उच्च लाभ वाली अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिये समर्पित वित्तपोषण योजनाएँ स्थापित करनी चाहिये ।
- इसमें अगली पीढ़ी की प्रणोदन प्रणाली, पुन: प्रयोज्य रॉकेट तथा उन्नत उपग्रह प्रौद्योगिकियों को विकसित करने वाले स्टार्टअप्स एवं एमएसएमई के लिये कम ब्याज दर वाले ऋण, अनुदान और कर प्रोत्साहन शामिल हैं ।
- उद्योग जगत के योगदान के बराबर सार्वजनिक-निजी संयुक्त अनुसंधान एवं विकास निधि की स्थापना से निजी क्षेत्र के अभिकर्त्ता अग्रणी प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिये प्रेरित होंगे।
- निजी विकास को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी अनुबंधों का लाभ उठाना: सरकार उपग्रह निर्माण, अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं एवं प्रक्षेपण वाहनों में शामिल निजी कंपनियों के लिये दीर्घकालिक, गारंटीकृत अनुबंधों की पेशकश करके सक्रिय भूमिका निभा सकती है।
- ये अनुबंध संचार, मौसम निगरानी एवं रक्षा जैसे क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र की आवश्यकताओं से जुड़े होने चाहिये ।
- अंतरिक्ष सेवाओं के लिये प्राथमिक ग्राहक बनकर, सरकार निजी कंपनियों को लगातार राजस्व प्रदान कर सकती है, जिससे उन्हें परिचालन का विस्तार करने, नवाचार करने और अपने कारोबार को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
- विशिष्ट अंतरिक्ष कार्यबल का विकास: सार्वजनिक-निजी भागीदारी के विकास को समर्थन देने के लिये, भारत को अत्यधिक कुशल कार्यबल के विकास में निवेश करना चाहिये, जो शैक्षणिक अनुसंधान, उद्योग की मांग एवं अंतरिक्ष मिशनों के बीच की खाई को पाट सके।
- विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं उद्योग-अकादमिक साझेदारियों की स्थापना से इंजीनियरों, वैज्ञानिकों एवं तकनीशियनों को उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक कौशल से लैस किया जा सकेगा ।
- सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में समान रूप से कुशल कार्यबल को बढ़ावा देकर, भारत भविष्य के अंतरिक्ष प्रयासों को समर्थन देने के लिये प्रतिभा की एक सतत् राह सुनिश्चित कर सकता है।
- अंतरिक्ष अवसंरचना में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना: सरकार को स्पेसपोर्ट, उपग्रह परीक्षण सुविधाओं एवं अनुसंधान केंद्रों के विकास के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (ppp) मॉडल की पेशकश करके अंतरिक्ष अवसंरचना में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- इसे सार्वजनिक-निजी भागीदारी (ppp) वित्तपोषण तंत्र के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जहाँ निजी संस्थाएं साझा स्वामित्व, परिचालन अधिकार या राजस्व-साझाकरण मॉडल के आश्वासन के साथ बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करती हैं ।
- इससे एक स्थायी बुनियादी ढाँचा आधार तैयार होगा जो निजी क्षेत्र के विकास के साथ सरकार के अंतरिक्ष मिशन दोनों को समर्थन देगा।
- उन्नत बौद्धिक संपदा एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण नीति की स्थापना: भारत को एक मज़बूत बौद्धिक संपदा (IP) और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण नीति लागू करनी चाहिये जो निजी कंपनियों को इसरो जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं के सहयोग से विकसित नवाचारों का स्वामित्व बनाए रखने में सक्षम बनाती है।
- ऐसी नीति निजी अभिकर्ताओं को अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करेगी, साथ ही यह भी सुनिश्चित करेगी कि वे अपने द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों से व्यावसायिक रूप से लाभान्वित हों।
- यह दृष्टिकोण दोनों क्षेत्रों के हितों को संरेखित करके और अधिक साझेदारियों को प्रोत्साहित करेगा तथा निजी संस्थाओं को वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये बौद्धिक संपदा का लाभ उठाने में सक्षम बनाएगा, जिससे नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
- भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के निर्यात को बढ़ावा देना: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये, भारत को निजी संस्थाओं द्वारा विकसित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिये।
- उपग्रह प्रक्षेपण, पृथ्वी अवलोकन सेवाओं अथवा अंतरिक्ष आधारित संचार प्रणालियों के लिये भारतीय निजी कम्पनियों और विदेशी सरकारों या निगमों के बीच साझेदारी को सुविधाजनक बनाकर इसे प्राप्त किया जा सकता है ।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये मंच बनाने में सहायता प्रदान कर सकती है, जिससे भारत के निजी अंतरिक्ष उद्योग की वैश्विक उपस्थिति को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष:
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र बढ़ी हुई सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से महत्त्वपूर्ण वृद्धि के लिये तैयार है । बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967) तथा अंतरिक्ष मलबे शमन दिशा-निर्देशों (2007) के अनुरूप विनियमों को सुव्यवस्थित करके, भारत नवाचार को बढ़ावा दे सकता है और अंतर्राष्ट्रीय अनुपालन सुनिश्चित कर सकता है। कार्यबल विकास एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों को प्राथमिकता देने से भारत को राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अधिक प्रभावी ढंग से एकीकरण में सहायता प्राप्त होगी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत के अंतरिक्ष उद्योग के विस्तार में निजी क्षेत्र की भूमिका की जाँच कीजिये। निजी भागीदारी बढ़ाने से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा इस क्षेत्र में प्रभावी सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने के उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न: भारत की अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगी? (2019) प्रश्न: अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की? (2016) प्रश्न: भारत के तीसरे चंद्रमा मिशन का मुख्य कार्य क्या है जिसे इसके पहले के मिशन में हासिल नहीं किया जा सका? जिन देशों ने इस कार्य को हासिल कर लिया है उनकी सूची दीजिये। प्रक्षेपित अंतरिक्ष यान की उपप्रणालियों को प्रस्तुत कीजिये और विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के ‘आभासी प्रक्षेपण नियंत्रण केंद्र’ की उस भूमिका का वर्णन कीजिये जिसने श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण में योगदान दिया है।(2023) |