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एडिटोरियल

  • 21 Mar, 2024
  • 30 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नेबरहुड फर्स्ट नीति पर पुनर्विचार

यह एडिटोरियल 20/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Ties that epitomise India’s neighbourhood first policy” लेख पर आधारित है। इसमें वर्तमान समय में भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के महत्त्व और अंतर्निहित चुनौतियों की चर्चा की गई है। प्रसंग में भूटान-भारत संबंधों का उदाहरण दिया गया है जहाँ दोनों देश ने समय की कसौटी पर सफलतापूर्वक सद्भावना एवं भरोसे का निर्माण किया है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN), ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP), इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, गुजराल सिद्धांत, समुद्री बचाव समन्वय केंद्र (MRCC)

मेन्स के लिये:

भारत के अपने पड़ोसियों के साथ संबंध, भारत की पहल और पड़ोसियों के साथ समझौते, नेबरहुड फर्स्ट नीति संबंधित चुनौतियाँ।

अपने पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देना भारत की विदेश नीति का केंद्रीय सिद्धांत रहा है। भारत के लिये एशिया और विश्व स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिये उपमहाद्वीप में अपने निकटतम क्षेत्र को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना महत्त्वपूर्ण है। पड़ोसी देशों में बार-बार उत्पन्न राजनीतिक या आर्थिक चुनौतियाँ प्रायः भारत के फोकस को पुनः उपमहाद्वीप की ओर ले आती हैं, जिससे व्यापक क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने की उसकी क्षमता सीमित हो जाती है।

पड़ोसी देशों के बीच वैश्विक और आंतरिक राजनीतिक एवं आर्थिक परिदृश्य में हालिया बदलाव के साथ, भारत के पास अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ (Neighbourhood First Policy- NFP) को सबल बनाने का एक नया अवसर उत्पन्न हुआ है जिसका उसे पूरा लाभ उठाना चाहिये। यदि भारत इस भूभाग में चीन की चालबाज़ी का मुक़ाबला करना चाहता है तो भूटान के साथ उसके संबंधों में देखी गई गर्मजोशी और निकटता को संपूर्ण निकटतम एवं विस्तारित पड़ोस तक बढ़ाया जाना चाहिये ।

भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति:

वर्ष 1947 से ही नेबरहुड फर्स्ट नीति अपने सार में भारत की विदेश नीति का एक महत्त्वपूर्ण अंग रही है, जो निकटतम पड़ोसी देशों के साथ सुदृढ़ संबंध का निर्माण करने, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और साझा मुद्दों को संबोधित करने पर केंद्रित है।

  • परिचय:
    • नेबरहुड फर्स्ट नीति की अवधारणा वर्ष 2008 में अस्तित्व में आई। भारत अपनी नेबरहुड फर्स्ट नीति के तहत सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण एवं पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंध विकसित करने के लिये प्रतिबद्ध है। भारत एक सक्रिय विकास भागीदार है और इन पड़ोसी देशों में कई परियोजनाओं के क्रियान्वयन से संलग्न रहा है।
    • पड़ोसी देशों के साथ संलग्नता का भारत का दृष्टिकोण परामर्श, गैर-पारस्परिकता और ठोस परिणाम प्राप्त करने पर केंद्रित रहा है। यह दृष्टिकोण कनेक्टिविटी, आधारभूत संरचना, विकास सहयोग, सुरक्षा और लोगों के बीच बेहतर संपर्क को बढ़ावा देने को प्राथमिकता देता है।
  • भारत का पड़ोस:
    • निकटतम पड़ोस:
      • भारत दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ भौगोलिक भूमि एवं समुद्री सीमाएँ साझा करता है। इन देशों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।
      • भारत इन देशों के साथ सभ्यतागत संबंध साझा करता है, जो साझा इतिहास, संस्कृति और लोगों के परस्पर व्यापक संपर्कों से चिह्नित होता है।
    • विस्तारित पड़ोस:
      • विस्तारित पड़ोस में वे देश शामिल हैं जो भौगोलिक रूप से तो भारत से कुछ दूर अवस्थित हैं, जैसे कि हिंद महासागर क्षेत्र, दक्षिण-पूर्व एशिया या पश्चिम एशिया के देश, लेकिन भारत के साथ उल्लेखनीय राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं रणनीतिक संबंध रखते हैं।

  • उद्देश्य:
    • कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना:
      • भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के सदस्यों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। ये समझौते सीमाओं के पार संसाधन, ऊर्जा, माल, श्रम और सूचना का मुक्त प्रवाह सुनिश्चित करते हैं।
    • पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार लाना:
      • निकटतम पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार को प्राथमिकता दी गई है क्योंकि विकास के एजेंडे को साकार करने के लिये दक्षिण एशिया में शांति आवश्यक है।
      • यह पड़ोसी देशों के साथ संलग्न होने और संवाद के माध्यम से राजनीतिक संपर्क बनाने के रूप में सशक्त क्षेत्रीय कूटनीति पर केंद्रित है।
    • आर्थिक सहयोग:
      • यह पड़ोसी देशों के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने पर केंद्रित है। भारत ने क्षेत्र में विकास के एक माध्यम के रूप में ‘सार्क’ में भागीदारी की है और पर्याप्त निवेश किया है।
      • ऐसा ही एक उदाहरण ऊर्जा विकास (मोटर वाहन, जलशक्ति प्रबंधन और इंटर-ग्रिड कनेक्टिविटी) के लिये बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) समूह का गठन है।

भारत के लिये नेबरहुड फर्स्ट नीति का महत्त्व:

  • चीनी प्रभाव का मुक़ाबला करना:
    • पड़ोसी देशों के साथ सहयोग हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीनी प्रभाव का मुक़ाबला करने में भारत के रणनीतिक हितों की पूर्ति करता है। यह सहयोग क्षेत्र में ‘शुद्ध सुरक्षा प्रदाता’ बनने की भारत की आकांक्षा के अनुरूप है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा बढ़ेगी।
  • बहुपक्षीय मंचों पर समर्थन:
    • UNSC, WTO और IMF जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर ‘ग्लोबल साउथ’ के प्रतिनिधि के रूप में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका के लिये पड़ोसी भागीदारों के साथ सहयोग आवश्यक है।
    • भारत बहुपक्षीय मंचों पर संलग्नता के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों में एक क्षेत्रीय/उप-क्षेत्रीय आयाम पेश करता है, जिससे क्षेत्र की गहरी समझ को बढ़ावा मिलता है।
  • क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करना:
    • क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखने और अलगाववादी खतरों से निपटने के भारत के प्रयासों के लिये पड़ोसी देशों का सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण के लिये, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद को संबोधित करने के लिये म्यांमार के साथ सहयोग महत्त्वपूर्ण है, जो संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के लिये पारस्परिक सम्मान के महत्त्व को उजागर करता है।
  • समुद्री सुरक्षा बढ़ाना:
    • समुद्री सुरक्षा को सशक्त करने के लिये मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों के साथ प्रभावी सहयोग आवश्यक है।
    • समुद्री क्षेत्र में खतरों के प्रति संवेदनशीलता को देखते हुए, इस तरह का सहयोग भारत को अपने जल क्षेत्र की प्रभावी ढंग से निगरानी करने और आतंकवाद जैसी अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों का मुक़ाबला करने में सक्षम बनाता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा को संबोधित करना:
    • नेपाल एवं भूटान जैसे उत्तरी पड़ोसियों के साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ सहयोग भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • चूँकि भारत के तेल एवं गैस आयात का एक बड़ा भाग समुद्री मार्गों से होकर गुज़रता है, ऊर्जा आपूर्ति में किसी व्यवधान पर रोक के लिये पड़ोसी देशों के साथ सहयोग अपरिहार्य है।
  • विकास की कमी को दूर करना:
    • पड़ोसी देशों के साथ सक्रिय संलग्नता से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के विकास में भी मदद मिलती है।
    • उदाहरण के लिये, पूर्वोत्तर भारत में माल के पारगमन और ट्रांस-शिपमेंट के लिये बांग्लादेश द्वारा अपने बंदरगाहों के उपयोग की मंज़ूरी देना विकास अंतराल को दूर करने के लिये क्षेत्रीय सहयोग की क्षमता को उजागर करता है।
  • ‘सॉफ्ट पावर’ कूटनीति का लाभ उठाना:
    • पड़ोसी देशों के साथ भारत के समृद्ध सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंध इसकी ‘सॉफ्ट पावर’ कूटनीति की आधारशिला के रूप में कार्य करते हैं। सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और साझा विरासत पर बल देने के रूप में भारत लोगों के परस्पर संबंधों को सुदृढ़ करता है और क्षेत्र में अपने प्रभाव की वृद्धि करता है। यह राजनयिक संबंधों को सुदृढ़ करने में सॉफ्ट पावर कूटनीति की क्षमता का परिचायक है।

भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति के लिये भारत-भूटान संबंधों से प्राप्त अनुभव:

  • परस्पर सम्मान एवं समन्वय:
    • दोनों राष्ट्र एक-दूसरे को बराबरी से देखते हैं, एक-दूसरे के साथ अत्यंत सम्मान का व्यवहार करते हैं और लंबे समय से यह मानते रहे हैं कि आकार (क्षेत्रफल, जनसंख्या के संदर्भ में) वास्तव में दो संप्रभु राष्ट्रों के बीच संबंधों में कोई भूमिका नहीं रखता है।
    • इस प्रकार, भारत ने भूटानी अस्मिता, भूटान की अनूठी धार्मिक प्रथाओं और अपनी जीवन शैली को बनाये रखते हुए आर्थिक रूप से समृद्ध होने की उसकी इच्छा का लगातार सम्मान किया है।
      • दूसरी ओर, भूटान को लंबे समय से यह भरोसा रहा है कि उसके दक्षिणी पड़ोस (भारत) से उसकी संप्रभुता या अस्मिता को कोई वास्तविक खतरा नहीं है। इसने अपनी वृद्धि, विकास और समृद्धि में सहायता के लिये भारत की ओर हाथ आगे बढ़ा रखा है।
  • सतत् परियोजना- गेलेफू में सहयोग:
    • विदेशी निवेश को आकर्षित करने और भूटान की समृद्धि को आगे बढ़ाने के लिये गेलेफू को एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) की तरह विकसित करने की योजना है। स्वाभाविक रूप से, भारत (और उसकी व्यावसायिक इकाइयों) से इस प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद की जा रही है।
    • इसके साथ ही, ‘गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी’ (GMC) का उद्देश्य संवहनीयता, कल्याण और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को सबसे आगे रखना है। ऐसी परियोजना से भूटान के लोगों को उच्च आय स्तर तक ले जाने की उम्मीद है, साथ ही कार्बन नकारात्मक देश के रूप में भूटान पर इसके प्रभाव के बारे में किसी भी चिंता को दूर किया जा सकेगा।
  • लगातार और नियमित संवाद:
    • यह सामान्य समझ है कि किसी भी संबंध को—चाहे वह दो व्यक्तियों के बीच हो या दो देशों के बीच—निरंतर परिपालन, नियमित संवाद और बहुत अधिक देखभाल एवं सहयोग की आवश्यकता होती है।
      • भूटान और भारत के प्रधानमंत्रियों की एक-दूसरे के देशों की लगातार यात्राएँ दोनों सरकारों द्वारा संबंधों पर दिये जा रहे गंभीर ध्यान को उजागर करती हैं।
      • यह भारत-भूटान संबंधों की निरंतर वृद्धि एवं विकास के लिये एक अच्छा संकेत है। यह भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति दृष्टिकोण का प्रतीक है।
  • जलविद्युत और नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग:
    • जलविद्युत सहयोग भूटान के साथ भारत के संबंधों का प्रमुख आधार है। दोनों देशों की सरकारों द्वारा कई सहकारी पनबिजली परियोजनाओं (जैसे 1,020 मेगावाट क्षमता की ताला पनबिजली परियोजना) को क्रियान्वित किया गया है, जो भारत को स्वच्छ बिजली की आपूर्ति करती है और थिम्पू को राजस्व का एक नियमित प्रवाह प्रदान करती है, जिसके कारण भूटान अल्प-विकसित देशों की श्रेणी से बाहर आ गया है।
      • विलंबित पुनात्सांगचू-II जलविद्युत परियोजना (Punatsangchhu-II hydropower project) के वर्ष 2024 में पूरा होने की उम्मीद है, जो जलविद्युत के क्षेत्र में सहयोग के सरकार-सरकार मॉडल का एक और सफल उदाहरण है।
  • भारत की विकास सहायता:
    • भारत भूटान के लिये एक प्रमुख विकास सहायता भागीदार भी रहा है और हाल ही में समाप्त हुई उसकी 12वीं पंचवर्षीय योजना में 5,000 करोड़ रुपये का योगदान दिया है।
    • विकास सहायता की इस प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत केवल उन परियोजनाओं पर कार्य शुरू नहीं करता जो उसके लिये लाभकारी हैं, बल्कि भूटानी लोगों की प्राथमिकताओं पर भी गंभीर ध्यान देता है ताकि उनके लिये प्रत्यक्ष लाभकारी परियोजनाओं का निर्माण किया जा सके।

नेबरहुड फर्स्ट नीति से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ:

  • निकटतम बनाम विस्तारित पड़ोस:
    • कई विशेषज्ञों का तर्क है कि पड़ोसी देशों के प्रति भारत का दृष्टिकोण मौजूदा संबंधों को आकार देने के बजाय उन्हें प्रबंधित करने के बारे में अधिक रहा है। स्पष्ट नीति ढाँचे की इस कमी ने क्षेत्रीय नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न की है।
    • भारत के निकटतम एवं विस्तारित पड़ोसी देशों दोनों पर दोहरे फोकस ने दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों पर स्पष्ट एवं एकल रूप से बल देने में बाधा उत्पन्न की है , जिससे अपूर्ण लक्ष्य और अनिश्चित परिणाम की स्थिति बनी है।
  • द्विपक्षीय संबंधों में चुनौतियाँ:
    • क्षेत्र के कुछ देशों के बीच तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों ने क्षेत्रीय नीतियों को लागू करने में उल्लेखनीय चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं। उदाहरण के लिये, पिछले सार्क शिखर सम्मेलन में तीन प्रस्तावित समझौतों में से केवल एक पर हस्ताक्षर किये गए क्योंकि पाकिस्तान द्वारा अन्य दो पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया गया था।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
    • पारगम्य सीमाओं का अस्तित्व, पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से समर्थन और क्षेत्र में उग्रवाद का उदय भारत के अंदर आतंकवादी गतिविधियों के उद्भव में योगदान देता है। इसके अतिरिक्त, ‘गोल्डन ट्राइएंगल’ और ‘गोल्डन क्रिसेंट’ से भारत की निकटता इसकी नशीली दवाओं की तस्करी संबंधी समस्याओं को बढ़ाती है।
  • चीन की OBOR पहल का प्रभाव:
    • वन बेल्ट वन रोड (OBOR) पहल के कारण सार्क देशों के साथ चीन का व्यापार तेज़ी से बढ़ा है। श्रीलंका, मालदीव और नेपाल जैसे भारत के पड़ोसियों ने वैकल्पिक साझेदारी की तलाश में कई बार भारत के विरुद्ध ‘चाइनीज़ कार्ड’ का इस्तेमाल किया है।
  • असमान व्यवहार की धारणाएँ:
    • भारत के पड़ोसी देशों को प्रायः यह महसूस होता रहा है कि भारत उनके साथ बराबरी का व्यवहार नहीं करता है। बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों में भारत की सैन्य भागीदारी को अभी भी क्षेत्रीय आशंकाओं के प्रमाण के रूप में देखा जाता है।
  • कमज़ोर अवसंरचना का प्रभाव:
    • सीमावर्ती क्षेत्रों में कमज़ोर अवसंरचना मुक्त व्यापार और निवेश सौदों के प्रभाव को सीमित कर देती है। उदाहरण के लिये, 1960 के दशक में भारत और पूर्वी पाकिस्तान के बीच आज के बांग्लादेश की तुलना में अधिक रेलवे संपर्क मौजूद थे।
  • घरेलू-राजनीतिक पहलू:
    • भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति प्रायः घरेलू राजनीतिक कारकों एवं जातीय पहलुओं से प्रभावित होती रही है। उदाहरण के लिये, बांग्लादेश के साथ तीस्ता जल समझौते में पश्चिम बंगाल के विरोध के कारण देरी हुई और श्रीलंकाई तमिल संघर्ष के लिये समर्थन जातीय संबंधों से प्रेरित था।
  • भारत की ऋण सहायता के कार्यान्वयन की चुनौतियाँ:
    • हालाँकि पड़ोसी देशों के लिये भारत की लाइन ऑफ क्रेडिट (LOC) परियोजनाओं में व्यापक वृद्धि हुई है, लेकिन उनके कार्यान्वयन में देरी हो रही है। इससे निराशा एवं अविश्वास की स्थिति बन सकती है और क्षेत्र में भारत के प्रभाव में कमी आ सकती है।
    • इसके अतिरिक्त, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रति क्षेत्र की संवेदनशीलता विकास प्रयासों के लिये अन्य महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ खड़ी करती हैं।

भारत के NFP को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये सुझाव:

विदेश मामलों की स्थायी समिति ने जुलाई 2023 में भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें नीति को अधिक प्रभावी बनाने के लिये निम्नलिखित प्रमुख टिप्पणियाँ और अनुशंसाएँ शामिल हैं:

  • आतंकवाद और अवैध प्रवासन:
    • पिछले तीस वर्षों में भारत को अपने पड़ोसी देशों से खतरों, तनाव और संभावित आतंकवादी हमलों का सामना करना पड़ा है। अवैध प्रवासन, हथियार तस्करी और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी चुनौतियाँ उन्नत सीमा सुरक्षा अवसंरचना की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
    • समिति ने अवैध प्रवासन के परिणामस्वरूप हो रहे जनसांख्यिकीय बदलावों की निगरानी करने का सुझाव दिया है और इस मुद्दे से निपटने के लिये विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय एवं राज्य सरकारों के बीच घनिष्ठ सहयोग की वकालत की है।
  • चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध:
    • चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध विवादास्पद मुद्दों से ग्रस्त रहे हैं, जिनमें पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद चिंता का एक प्रमुख विषय है। समिति ने आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की भूमिका के बारे में क्षेत्रीय और बहुपक्षीय संगठनों को सुग्राही बनाने के लिये उनके साथ संलग्नता की सिफ़ारिश की है।
    • नेबरहुड फर्स्ट नीति के तहत आतंकवाद से मुक़ाबले के लिये एक साझा मंच स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिये। समिति ने यह भी अनुशंसा की है कि भारत सरकार को पाकिस्तान के साथ आर्थिक संबंध स्थापित करने चाहिये।
  • सीमा अवसंरचना में निवेश:
    • समिति ने भारत के सीमावर्ती अवसंरचना में कमी और सीमावर्ती क्षेत्रों को स्थिर एवं विकसित करने की आवश्यकता पर भी ध्यान केंद्रित किया। पड़ोसी देशों से संलग्नता के लिये सीमा पार सड़कों, रेलवे और अंतर्देशीय जलमार्ग एवं बंदरगाहों जैसे कनेक्टिविटी अवसंरचना में सुधार की आवश्यकता जताई गई।
    • समिति ने क्षेत्रीय ढाँचे के तहत कनेक्टिविटी अवसंरचना के लिये एक क्षेत्रीय विकास निधि (regional development fund) स्थापित करने की व्यवहार्यता तलाशने की सिफ़ारिश की।
  • भारत की ऋण सहायता परियोजनाओं की निगरानी करना:
    • पड़ोसी देशों के लिये भारत की ऋण सहायता या लाइन ऑफ क्रेडिट वर्ष 2014 में 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 14.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई। समिति ने यह भी दर्ज किया कि भारत का 50% वैश्विक नरम ऋण (global soft lending) इसके पड़ोसी देशों को जाता है।
    • इसने विदेश मंत्रालय को नियमित निगरानी के माध्यम से ऐसी LOC परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिये प्रभावी कदम उठाने की अनुशंसा की। संयुक्त परियोजना निगरानी समितियों और निरीक्षण तंत्र को सशक्त कर पड़ोसी देशों में विकास परियोजनाओं को निश्चित समयसीमा में पूरा किया जाना चाहिये।
  • रक्षा और समुद्री सुरक्षा:
    • रक्षा सहयोग भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों की कुंजी है । मालदीव, म्यांमार और नेपाल जैसे विभिन्न देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किये जाते हैं।
    • समिति ने अनुशंसा की है कि मंत्रालय को भारत के विस्तारित पड़ोस में समुद्री डोमेन जागरूकता बढ़ाने के लिये पहल करनी चाहिये।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास:
    • भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति (Act East policy) एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने विस्तारित पड़ोस पर केंद्रित है। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र कई पड़ोसी देशों के साथ भूमि सीमा साझा करता है।
      • पूर्वोत्तर राज्यों का आर्थिक विकास नेबरहुड फर्स्ट नीति और एक्ट ईस्ट नीति की सफलता का अभिन्न अंग है।
    • समिति ने मंत्रालय से इन दोनों नीतियों के बीच तालमेल बनाए रखने की सिफ़ारिश की। इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र की कनेक्टिविटी, आर्थिक विकास और सुरक्षा में सुधार लाने में मदद मिल सकती है।
  • पर्यटन का संवर्द्धन:
    • वर्ष 2020 से भारत मालदीव जैसे दक्षिण एशियाई देशों में पर्यटक आगमन का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। बांग्लादेश से बड़ी संख्या में पर्यटक चिकित्सा उपचार के लिये भारत आते रहे हैं।
    • कई भारतीय धार्मिक पर्यटन के लिये नेपाल जाते हैं। समिति ने नेबरहुड फर्स्ट नीति के तहत पर्यटन क्षेत्र में (चिकित्सा पर्यटन सहित) निवेश को बढ़ावा देने की सिफ़ारिश की।
  • बहुपक्षीय संगठन:
    • पड़ोसी देशों के साथ भारत की संलग्नता बहुपक्षीय और क्षेत्रीय तंत्रों द्वारा संचालित है। इसमें सार्क और बिम्सटेक जैसे संगठन शामिल हैं।
    • समिति ने माना कि नेबरहुड फर्स्ट नीति का प्रभाव ज़मीनी स्तर पर व्यापक रूप से अनुभव किया जाना चाहिये। इसके लिये संस्थागत और बहुपक्षीय/क्षेत्रीय तंत्र को मज़बूत करने की आवश्यकता है। समिति ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंध ढाँचे की समय-समय पर समीक्षा करने की अनुशंसा की।

निष्कर्ष:

निस्संदेह पिछले दो दशकों में भारत के समक्ष अपने पड़ोस में मौजूद चुनौतियाँ और अधिक जटिल एवं संभावित रूप से खतरनाक हो गई हैं। भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति राजनीतिक और लोगों के परस्पर संपर्क, दोनों स्तरों पर लगातार संलग्नता पर आधारित होनी चाहिये। क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को वृहत उत्साह के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिये जबकि सुरक्षा चिंताओं को विश्व के अन्य भागों में प्रयुक्त लागत प्रभावी, कुशल एवं विश्वसनीय तकनीकी उपायों के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति के उद्देश्यों और राजनयिक संबंधों में इसके महत्त्व की व्याख्या कीजिये। नेबरहुड फर्स्ट नीति को लागू करने में भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की भी चर्चा कीजिये और उन्हें दूर करने के उपाय सुझाइये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला हाथी दर्रा का उल्लेख निम्नलिखित में से किसके मामलों के संदर्भ में किया गया है? (2009)

(a) बांग्लादेश
(b) भारत
(c) नेपाल
(d) श्रीलंका

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार मूल्य में लगातार वृद्धि हुई है।
  2.  "कपड़ा और कपड़े से निर्मित वस्तुएँ" भारत व बांग्लादेश के बीच व्यापार की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु है।
  3.  नेपाल पिछले पांँच वर्षों में दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश रहा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।" इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2017)


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