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एडिटोरियल

  • 17 Feb, 2025
  • 32 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सुरक्षित और समृद्ध हिंद महासागर क्षेत्र का निर्माण

यह एडिटोरियल 15/02/2025 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “What India needs to do in the Indian Ocean” पर आधारित है। यह लेख हिंद महासागर के सामरिक महत्त्व पर प्रकाश डालता है, जिस पर कभी भारत का प्रभुत्व था, लेकिन अब वैश्विक शक्तियाँ इस पर विवाद कर रही हैं। आठवें हिंद महासागर सम्मेलन में इसके बढ़ते भू-राजनीतिक महत्त्व और भारत की नई समुद्री आकांक्षाओं पर प्रकाश डाला गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

हिंद महासागर, सागरमाला परियोजना, SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) विज़न, हिंद-प्रशांत महासागर पहल, क्वाड, BIMSTEC, ASEAN, सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र, जिबूती आचार संहिता (DCoC) और जेद्दा संशोधन, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह 

मेन्स के लिये:

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के प्रमुख हित, हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के लिये प्रमुख रणनीतिक चिंताएँ। 

हिंद महासागर, जिसका नाम भारत के सहस्राब्दी पुराने सभ्यतागत प्रभाव से लिया गया है, ग्लोबल कंटेनर शिपिंग के 70% का निर्वहन करने वाला एक महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग है। यद्यपि भारत ने पहली सहस्राब्दी में इन जल क्षेत्रों पर प्रभुत्व स्थापित किया था, जिससे उसका आर्थिक वर्चस्व बना। लेकिन आज, जैसे-जैसे वैश्विक शक्ति हिंद महासागर क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हो रही है, इस जल क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ती जा रही है, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस और चीन जैसी प्रमुख शक्तियाँ प्रभाव के लिये होड़ कर रही हैं। मस्कट में चल रहा आठवाँ हिंद महासागर सम्मेलन, जिसमें 30 देशों के विदेश मंत्री एक साथ आ रहे हैं, वैश्विक भू-राजनीति में इस क्षेत्र के बढ़ते महत्त्व और भारत की नई समुद्री आकांक्षाओं को रेखांकित करता है।

Indian Ocean Region

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के प्रमुख हित क्या हैं? 

  • आर्थिक जीवनरेखा और व्यापार प्रभुत्व: हिंद महासागर भारत का प्राथमिक व्यापार मार्ग है, जो इसके लगभग 80% बाह्य व्यापार और 90% ऊर्जा आयात का वहन करता है। 
    • वित्त वर्ष 2022 में भारत के सभी प्रमुख बंदरगाहों ने 720.29 मिलियन टन (MT) कार्गो यातायात का प्रबंधन किया। वित्त वर्ष 2023 में भारत का व्यापारिक निर्यात 451 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 
    • आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा को बनाये रखने के लिये मुक्त एवं सुरक्षित समुद्री मार्ग सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। 
      • सरकार की सागरमाला परियोजना निर्यात को बढ़ावा देने और रसद लागत को कम करने के लिये बंदरगाह आधारित विकास पर केंद्रित है।
  • भू-राजनीतिक और सामरिक प्रभाव: भारत का उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं का प्रतिकार करना चाहता है, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिये खतरा हैं।
  • समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद निरोध: हिंद महासागर समुद्री डकैती, तस्करी और समुद्र आधारित आतंकवाद का केंद्र है, जिससे समुद्री सुरक्षा एक प्रमुख प्राथमिकता बन गई है। 
    • भारत ने बेड़े के आधुनिकीकरण, गश्त बढ़ाने और खुफिया जानकारी साझा करने के समझौतों के माध्यम से नौसैनिक क्षमताओं को मज़बूत किया है। 
    • गुरुग्राम स्थित सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) समुद्री खतरों पर नज़र रखता है और क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग को बढ़ाव देता है।
    • भारतीय नौसेना ने मलक्का जलडमरूमध्य सहित प्रमुख अवरोध बिंदुओं पर मिशन-आधारित तैनाती (MBD) तैनात की है।

Maritime Chokepoints

  • ऊर्जा सुरक्षा और ब्लू इकॉनमी का विस्तार: मध्य पूर्व से ऊर्जा आयात को सुरक्षित करने और भारत की ब्लू इकॉनमी की क्षमता का विस्तार करने के लिये हिंद महासागर महत्त्वपूर्ण है।
  • अवसंरचना विकास और कनेक्टिविटी: अपनी आर्थिक और सामरिक स्थिति को मज़बूत करने के लिये भारत हिंद महासागर क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण अवसंरचना का विकास कर रहा है। 
    • ईरान में चाबहार बंदरगाह और म्याँमार में सित्तवे बंदरगाह जैसी परियोजनाएँ क्षेत्रीय व्यापार एवं संपर्क को बढ़ावा देती हैं। 
    • द्वीप विकास और स्मार्ट बंदरगाहों के लिये जापान एवं ASEAN के साथ सहयोग से भारत की समुद्री रसद व्यवस्था मज़बूत होगी।
    • वर्ष 2035 तक भारत बंदरगाह परियोजनाओं में 82 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की योजना के साथ मज़बूत बुनियादी अवसंरचना के विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण नेतृत्व: चूँकि समुद्र का बढ़ता स्तर तटीय शहरों और द्वीपीय देशों के लिये खतरा बन रहा है, भारत हिंद महासागर क्षेत्र में जलवायु अनुकूलन के प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है। 
    • आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहलें सतत् विकास को बढ़ावा देती हैं।
      • जून 2024 में, CDRI ने अपने IRIS कार्यक्रम के माध्यम से लघु द्वीप विकासशील राज्यों (SIDS) में आपदा-रोधी बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करने के लिये 8 मिलियन डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई।
    • जलवायु कूटनीति को मज़बूत करने से एक जिम्मेदार महासागरीय देश के रूप में भारत की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
      • पर्यावरण-अनुकूल तटीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये 12 भारतीय समुद्र तटों को ब्लू फ्लैग प्रमाणन प्रदान किया गया है।
  • सॉफ्ट पावर को मज़बूत करने वाले सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध: दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका के साथ भारत के ऐतिहासिक सागरीय संबंध इसे IOR में एक वास्तविक अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करते हैं। 
    • बौद्ध धर्म के प्रसार और प्राचीन व्यापार नेटवर्क सहित साझा सभ्यतागत संबंध भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाते हैं। 
    • प्रोजेक्ट मौसम और नौसैनिक सद्भावना मिशनों के माध्यम से सांस्कृतिक कूटनीति गहन क्षेत्रीय सहभागिता को बढ़ावा देती है।
    • उदाहरण के लिये भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन (IAFS) अफ्रीकी देशों के साथ सहयोग को सुदृढ़ करता है तथा क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है। 
      • इसके अलावा, भारत ग्लोबल साउथ के एक अग्रणी समर्थक के रूप में उभरा है, जो विभिन्न हिंद महासागर देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है।

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के लिये प्रमुख रणनीतिक चिंताएँ क्या हैं? 

  • चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति और घेराव की रणनीति: स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के माध्यम से हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत की समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिये खतरा है। 
    • हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी सैन्य अड्डे, दोहरे प्रयोग वाले बंदरगाह और निरंतर नौसैनिक गश्त भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को चुनौती देते हैं। 
    • श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह और पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को पट्टे पर देने से बीजिंग को भारत के महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों के निकट प्रभाव जमाने का अवसर मिल गया है। 
    • चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में 17 रणनीतिक बंदरगाहों में निवेश किया है, जिनमें जिबूती का नौसैनिक अड्डा और कंबोडिया में रीम नौसैनिक अड्डा भी शामिल है।
      • वर्ष 2023 में, चीनी अनुसंधान एवं जासूसी पोत शि यान 6 ने मालदीव में डॉक किया, जिससे सुरक्षा संबंधी चिंता उत्पन्न हुई।
  • समुद्री सुरक्षा खतरे— समुद्री डकैती, आतंकवाद और अवैध गतिविधियाँ: हिंद महासागर में समुद्री डकैती, आयुधों की तस्करी और आतंकवाद में वृद्धि से व्यापार मार्ग बाधित होते हैं तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होता है। 
    • सोमाली समुद्री डकैती और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी नेटवर्क का पुनरुत्थान निरंतर खतरा उत्पन्न कर रहा है ।
    • अरब सागर में मादक पदार्थों और मानव तस्करी के नेटवर्क क्षेत्रीय स्थिरता और कानून प्रवर्तन क्षमताओं को कमज़ोर करते हैं। 
      • भारतीय नौसेना ने अपने ऑपरेशन संकल्प के तहत दिसंबर 2023 के मध्य से मार्च 2024 तक अरब सागर में 18 बचाव अभियान चलाए।
    • इसके अलावा, चीनी डीप-सी ट्रॉलर्स (गहन समुद्र में चलने वाले जहाज़) सहित विदेशी जहाज़ों द्वारा अविनियमित मत्स्यन से भारत के समुद्री संसाधन नष्ट हो रहे हैं।
  • भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा और बढ़ती विदेशी सैन्य उपस्थिति: हिंद महासागर में तीव्र भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा देखी जा रही है, जिसमें अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्राँस और रूस अपनी नौसैनिक तैनाती बढ़ा रहे हैं। 
    • विश्व की प्रमुख शक्तियाँ (जैसे अमेरिका और रूस) विभिन्न स्थानों पर अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रही हैं। अमेरिका ने डिएगो गार्सिया में एक नौसैनिक बेस स्थापित किया है, जबकि रूस ने सूडान में अपनी पहली नौसैनिक बेस स्थापित किया है, जिससे इन राष्ट्रों को लाल सागर में महत्त्वपूर्ण रणनीतिक स्थिति मिल रही है। चूँकि लाल सागर एक अत्यधिक व्यस्त व्यापार मार्ग है, और इस पर नियंत्रण रखना वैश्विक व्यापार एवं सुरक्षा के लिये आवश्यक है।
      • विदेशी शक्तियों द्वारा महत्त्वपूर्ण बंदरगाहों और बुनियादी अवसंरचना को पट्टे पर देने से क्षेत्रीय सुरक्षा को आयाम देने की भारत की क्षमता सीमित हो जाती है।
    • AUKUS संधि (2021) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पश्चिमी उपस्थिति को और मज़बूत कर रही है, जिससे IOR में शक्ति गतिशीलता में बदलाव आ रहा है।
  • हिंद महासागर में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय जोखिम: समुद्र का बढ़ता स्तर, निरंतर चक्रवाती घटनाएँ और प्रवाल भित्तियों का क्षरण भारत की तटीय सुरक्षा एवं समुद्री अर्थव्यवस्था के लिये खतरा है। 
    • मालदीव और सेशेल्स जैसे द्वीपीय देशों से जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों का विस्थापन भू-राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन सकता है। 
    • हिंद महासागर सबसे तेज़ी से गर्म होते महासागरों में से एक बन गया है, जिसके कारण भारतीय उपमहाद्वीप पर हीट वेव्स और अत्यधिक वर्षा के भयंकर परिणाम होते हैं।
    • इसके अलावा, वर्ष 2024 में पश्चिमी हिंद महासागर में प्रवाल विरंजन (coral bleaching) की घटना अधिक गंभीर रही, क्योंकि एल नीनो और धनात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) की स्थिति इसके लिये जिम्मेदार थीं।
  • कमज़ोर नौसैनिक अवसंरचना और जहाज़ निर्माण क्षमता में कमी: भारत का नौसैनिक आधुनिकीकरण और घरेलू जहाज़ निर्माण उद्योग वैश्विक मानकों से पीछे है, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति प्रक्षेपण की इसकी क्षमता सीमित हो गई है। 
    • पनडुब्बियों और विमानवाहक पोतों सहित उन्नत नौसैनिक उपकरणों के लिये विदेशी आयात पर निर्भरता परिचालन में बाधा डालती है।
    • प्रमुख भारतीय बंदरगाहों पर बुनियादी अवसंरचना की बाधाएँ रसद और समुद्री व्यापार की दक्षता को कम करती हैं।
    • वैश्विक जहाज़ निर्माण में भारत मात्र 0.06% हिस्सेदारी के साथ 20वें स्थान पर है, जबकि अकेले चीन की हिस्सेदारी 50% से अधिक है। 
      • भारतीय शिपयार्डों का वार्षिक जहाज़ निर्माण उत्पादन केवल 0.072 मिलियन GT है।
  • साइबर सुरक्षा खतरे और अंडर-सी केबल भेद्यता: वर्तमान में अंडर-सी केबल विश्व के 99% से अधिक इंटरनेट ट्रैफिक का संचार करते हैं।
    • भारत एशिया एक्सप्रेस (IAX) और भारत यूरोप एक्सप्रेस (IEX) अंडर-सी केबलों की स्थापना, एशिया एवं यूरोप के साथ भारत की कनेक्टिविटी में एक बड़ी प्रगति का प्रतीक है।
      • इससे साइबर खतरों के प्रति हमारी सुभेद्यता अत्यधिक बढ़ जाती है। 
    • बंदरगाहों और नौसैनिक संजालों सहित भारत के समुद्री बुनियादी अवसंरचना पर बढ़ते साइबर हमले, सुदृढ़ साइबर सुरक्षा उपायों की आवश्यकता को उजागर करते हैं। 
    • वर्ष 2021 में, रिकॉर्डेड फ्यूचर नामक एक साइबर सुरक्षा कंपनी ने यह पाया कि चीन से जुड़े किसी समूह ने भारतीय समुद्री पोर्ट के साथ एक नेटवर्क कनेक्शन स्थापित किया था और कुछ कनेक्शन अभी भी चालू हैं। इस तरह के कनेक्शन साइबर सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का कारण हैं, क्योंकि यह संकेत दे सकता है कि कुछ संवेदनशील जानकारी साझा हो रही है जो एक साइबर हमले का जोखिम है।

हिंद महासागर में कौन-से प्रमुख बहुपक्षीय समूह हैं जिनका भारत हिस्सा है?

  • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA): समुद्री सुरक्षा, व्यापार, ब्लू इकॉनमी और आपदा समुत्थानशीलन में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
    • भारत की भूमिका: संस्थापक सदस्य, सुरक्षा, व्यापार और क्लाइमेट एक्शन में पहल को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाना।
  • हिंद महासागर नौसैनिक संगोष्ठी (IONS)
    • उद्देश्य: हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को मज़बूत करना।
    • भारत की भूमिका: भारतीय नौसेना द्वारा पहल (वर्ष 2008); संयुक्त अभ्यास और सूचना-साझाकरण में प्रमुख भागीदार।
  • बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC)
    • उद्देश्य: सुरक्षा, व्यापार, संपर्क और आपदा प्रबंधन में बंगाल की खाड़ी के तटवर्ती देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग।
    • भारत की भूमिका: सुरक्षा, परिवहन संपर्क और ऊर्जा सहयोग में अग्रणी देश।
  • कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) 
    • उद्देश्य: आतंकवाद, साइबर खतरों और HADR पर ध्यान केंद्रित करते हुए हिंद महासागर में क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करना।
    • भारत की भूमिका: श्रीलंका और मालदीव के साथ संस्थापक सदस्य;
  • इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (IPOI)
    • उद्देश्य: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्वतंत्र, खुली और नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था को बढ़ावा देना।
    • भारत की भूमिका: भारत द्वारा शुरू किया गया (वर्ष 2019); समुद्री सुरक्षा और कनेक्टिविटी के प्रयासों का नेतृत्व करता है।
  • जिबूती आचार संहिता (DCoC) और जेद्दा संशोधन 
    • उद्देश्य: पश्चिमी हिंद महासागर में समुद्री डकैती, अवैध मत्स्यन और समुद्री अपराधों का मुकाबला करना।
    • भारत की भूमिका: पर्यवेक्षक राष्ट्र, क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा पहलों का समर्थन करना।
  • क्वाड (भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया)
    • उद्देश्य: समुद्री सुरक्षा, नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करना।
    • भारत की भूमिका: संयुक्त नौसैनिक अभ्यास (मालाबार) और हिंद महासागर क्षेत्र में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में सक्रिय।
  • ASEAN-भारत समुद्री सहयोग
    • यह ASEAN और भारत के बीच समुद्री परिवहन सहयोग को बढ़ावा देता है तथा बंदरगाहों के विकास में संभावित निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।

हिंद महासागर में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • नौसेना और समुद्री क्षमताओं का विस्तार: भारत को अपनी शक्ति को प्रभावी ढंग से प्रदर्शित करने के लिये अधिक विमान वाहक, परमाणु पनडुब्बियों और बहु-भूमिका वाले युद्धपोतों को शामिल करके अपनी समुद्री नौसेना के विस्तार में तेज़ी लानी चाहिये।
    • प्रमुख अवरोध बिंदुओं पर मिशन-आधारित तैनाती (MBD) को मज़बूत करने से समुद्री क्षेत्र में जागरूकता बढ़ेगी।
    • एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल (A2/AD) क्षमताओं और अंडर-सी सर्विलांस नेटवर्क विकसित करने से बाह्य सैन्य खतरों का मुकाबला किया जा सकेगा।
    • AI-संचालित समुद्री खुफिया जानकारी और साइबर-समुत्थानशील नौसैनिक प्रणालियों में निवेश से तकनीकी श्रेष्ठता सुनिश्चित होगी।
      • क्षेत्रीय साझेदारों के साथ रसद समझौतों को सुदृढ़ करने से हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सतत् नौसैनिक संचालन संभव हो सकेगा।
  • भारतीय नेतृत्व वाले बुनियादी अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देना: भारत को डायमंड ऑफ नेकलेस रणनीति के माध्यम से चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) का मुकाबला करने के लिये सह-विकास मॉडल के तहत रणनीतिक बंदरगाह बुनियादी अवसंरचना के विकास का नेतृत्व करना चाहिये।
    • चाबहार बंदरगाह (ईरान), सबांग बंदरगाह (इंडोनेशिया) और सित्तवे बंदरगाह (म्याँमार) जैसी परियोजनाओं को मज़बूत करने से व्यापार एवं संपर्क बढ़ेगा। 
    • कांडला, कोच्चि और विशाखापत्तनम जैसे भारतीय बंदरगाहों को ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में उन्नत करने से भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। 
    • द्वीपीय देशों में भारत के नेतृत्व में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) की स्थापना से सतत् क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलेगा।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा साझेदारी को गहन करना: भारत को भारत-फ्राँस और UAE समुद्री साझेदारी अभ्यास तथा इंडो-पैसिफिक क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे रक्षा सहयोग कार्यढाँचे को संस्थागत बनाना चाहिये। 
    • नौसैनिक उपकरणों और स्वदेशी जहाज़ निर्माण परियोजनाओं के रक्षा निर्यात का विस्तार करने से क्षेत्रीय आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा। 
    • साझेदार देशों में तटीय राडार नेटवर्क स्थापित करने से साझी समुद्री डोमेन जागरूकता में सुधार होगा। 
    • मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) क्षमताओं को बढ़ाने से भारत क्षेत्रीय संकटों में प्रथम प्रतिक्रियादाता के रूप में स्थापित हो सकेगा।
  • आर्थिक और व्यापार कूटनीति को मज़बूत करना: भारत को हिंद महासागर में नए व्यापार गलियारों के विकास में तेज़ी लानी चाहिये, जैसे कि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC)।
    • मुद्रा विनिमय समझौते और क्षेत्रीय भुगतान तंत्र विकसित करने से बाह्य मुद्राओं पर व्यापार निर्भरता कम हो जाएगी। 
    • मात्स्यिकी, समुद्री खनन, अपतटीय पवन ऊर्जा और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी में संयुक्त उद्यमों के माध्यम से ब्लू इकॉनमी सहयोग को बढ़ाने से पारस्परिक आर्थिक लाभ उत्पन्न होगा।
    • ‘मेक इन इंडिया’ नौसैनिक जहाज़ निर्माण सहयोग को बढ़ावा देने से क्षेत्रीय समुद्री उद्योग के विकास को समर्थन मिलेगा। 
      • क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण के लिये BIMSTEC और IORA का लाभ उठाने से भारत का आर्थिक नेतृत्व मज़बूत होगा।
  • एक मज़बूत साइबर और डिजिटल रणनीति की स्थापना: भारत को विदेशी नेटवर्क पर निर्भरता कम करने के लिये सुरक्षित समुद्री डेटा केबल, 5G विस्तार और स्वदेशी उपग्रह-आधारित नेविगेशन (NavIC) में निवेश करना चाहिये।
    • आधार, UPI (UAE की तरह) और कोविन जैसी डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) परियोजनाओं का हिंद महासागर क्षेत्र के देशों में विस्तार करने से भारत का तकनीकी प्रभाव बढ़ेगा। 
    • भारतीय बंदरगाहों, नौसैनिक नेटवर्क और तेल अवसंरचना के लिये साइबर सुरक्षा कार्यढाँचे को सुदृढ़ करने से डिजिटल खतरों से सुरक्षा मिलेगी। 
    • डेटा गवर्नेंस और AI सहयोग पर ASEAN एवं अफ्रीका के साथ सहयोग करने से एक क्षेत्रीय डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होगा।
  • जलवायु और सतत् विकास नेतृत्व को सुदृढ़ बनाना: भारत को ग्रीन शिपिंग कॉरिडोर का नेतृत्व करना चाहिये और समुद्री व्यापार में डीकार्बोनाइज़ेशन को बढ़ावा देना चाहिये ताकि वह स्वयं को एक स्थायी अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित कर सके। 
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के तहत सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं का विस्तार करने से क्षेत्रीय ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी। 
    • मैंग्रोव पुनरुद्धार और महासागर संरक्षण कार्यक्रम जैसी ब्लू कार्बन पहलों को विकसित करने से भारत की पारिस्थितिक कूटनीति मज़बूत होगी। 
    • समुद्र आधारित पारिस्थितिकी पर्यटन और संधारणीय मत्स्यन प्रबंधन को प्रोत्साहित करने से सागरीय जैव-विविधता को संरक्षित करते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
  • सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देना: भारत को प्रोजेक्ट मौसम, बौद्ध सर्किट कूटनीति और IOR देशों के लिये शिक्षा छात्रवृत्ति के माध्यम से ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंधों को गहन करना चाहिये।
    • पर्यटन, चिकित्सा कूटनीति और छात्र विनिमय कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों के बीच संबंधों को मज़बूत करने से भारत की क्षेत्रीय सद्भावना बढ़ेगी।
    • DD इंडिया और भारतीय समाचार एजेंसियों के माध्यम से क्षेत्रीय भाषा में प्रसारण और डिजिटल अभिगम को बढ़ावा देने से बाह्य आख्यानों का मुकाबला किया जा सकेगा।
    • आयुर्वेद, योग और पारंपरिक चिकित्सा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने से भारत का सांस्कृतिक प्रभाव मज़बूत होगा।

निष्कर्ष: 

हिंद महासागर में भारत के सामरिक हित इसके ऐतिहासिक समुद्री महत्त्व और सुरक्षा, व्यापार एवं क्षेत्रीय सहयोग पर इसके समकालीन फोकस से आकार लेते हैं। जैसा कि भारतीय प्रधानमंत्री ने भारतीय कूटनीति के स्तंभों के रूप में 5S कार्यढाँचे- सम्मान, संवाद, सहयोग, समृद्धि और शांति पर ज़ोर दिया तथा SAGAR और इंडो-पैसिफिक महासागर पहल जैसी पहलों के माध्यम से, भारत इस क्षेत्र को अधिक स्थिरता, संवहनीयता एवं साझा विकास की ओर ले जाने के लिये तैयार है, जिससे हिंद महासागर में एक संतुलित वैश्विक व्यवस्था सुनिश्चित होगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत की विदेश नीति के संदर्भ में हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के सामरिक महत्त्व का आकलन कीजिये। बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा के बीच भारत इस क्षेत्र में अपना प्रभाव किस प्रकार स्थापित कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. भारत निम्नलिखित में से किसका/किनका सदस्य है? (2015)

  1. एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एशिया-पैसिफिक इकनॉमिक कोऑपरेशन)
  2. दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन (एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशन्स)
  3. पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईस्ट एशिया समिट)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) भारत इनमें से किसी का सदस्य नहीं है

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न 1. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020)


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