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भारत की अपतटीय पवन ऊर्जा के लिये रोडमैप

  • 21 Jul 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजना 

मेन्स के लिये 

अपतटीय पवन ऊर्जा की संभावनाएँ एवं लाभ,  पवन ऊर्जा से संबंधित चुनौतियाँ एवं नीतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने वर्ष 2022 तक 5 गीगावाट का मध्‍यकालिक लक्ष्‍य और वर्ष 2030 तक 30 गीगावाट का दीर्घकालिक लक्ष्‍य घोषित किया गया है। 

  • भारत की तटरेखा 7,600 किमी. है जिसके माध्यम से 127 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।

प्रमुख बिंदु 

अपतटीय पवन ऊर्जा के बारे में:

  • वर्तमान में पवन ऊर्जा के सामान्यत: दो प्रकार है : तटवर्ती पवन फार्म जो भूमि पर स्थित पवन टर्बाइनों के व्यापक रूप में स्थापित हैं और अपतटीय पवन फार्म जो जल निकायों में स्थित प्रतिष्ठान हैं।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा का तात्पर्य जल निकायों के अंदर पवन फार्मों की स्थापना से है। वे बिजली उत्पन्न करने के लिये समुद्री हवाओं का उपयोग करते हैं। ये पवन फार्म या तो फिक्स्ड-फाउंडेशन टर्बाइन (Fixed-Foundation Turbines) या फ्लोटिंग विंड टर्बाइन (Floating wind Turbines) का उपयोग करते हैं।
    • एक फिक्स्ड-फाउंडेशन टर्बाइन उथले जल में निर्मित होता है, जबकि एक फ्लोटिंग विंड टर्बाइन गहरे जल में निर्मित होता है जहाँ इसकी नींव समुद्र तल से लगी होती है। फ्लोटिंग विंड फार्म अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में हैं।
  • अपतटीय पवन फार्म को तट से कम-से-कम 200 समुद्री मील और समुद्र में 50 फीट गहरा होना चाहिये।
  •  अपतटीय पवन टर्बाइन बिजली उत्पादन करते हैं जो समुद्र तल में दबे केबलों के माध्यम से तट पर वापस आ जाती है।

भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति:

  • मार्च 2021 में एक वर्ष में भारत की पवन बिजली उत्पादन क्षमता 39.2 गीगावाट (GW) तक पहुँच गई है। अगले पांँच वर्षों में और 20 गीगावाट अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त होने की उम्मीद है।
  • वर्ष 2010 और 2020 के बीच पवन उत्पादन की कुल वार्षिक वृद्धि दर 11.39% रही है, जबकि स्थापित क्षमता के मामले में यह दर 8.78% रही है।
  • व्यावसायिक रूप से दोहन योग्य 95% से अधिक संसाधन सात राज्यों में स्थित हैं: आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु।

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लाभ:

  • जल निकायों पर हवा की गति अधिक और दिशा सुसंगत होती है, जिसके परिणामस्वरूप अपतटीय पवन फार्म मानक स्थापित क्षमता से अधिक बिजली उत्पन्न करते हैं।
  • तटवर्ती टर्बाइनों की तुलना में ऊर्जा की समान क्षमता का उत्पादन करने के लिये कम अपतटीय टर्बाइनों की आवश्यकता होती है।
  • अपतटीय पवन फार्म में तटवर्ती पवन फार्म की तुलना में अधिक उपयोग क्षमता (CUF) होती है। इसलिये अपतटीय पवन ऊर्जा लंबे समय तक संचालन की अनुमति देती है। 
    • एक विंड टर्बाइन CUF औसत आउटपुट ऊर्जा के लिये अधिकतम ऊर्जा क्षमताओं के विभाजन के समान है।
  • बड़ी और ऊँची अपतटीय पवन चक्कियों का निर्माण संभव है, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि होती है।
  • इसके अतिरिक्त पवन का प्रवाह पहाड़ियों या इमारतों द्वारा बाधित नहीं होता है।

चुनौतियाँ:

  • अत्यधिक स्थापना लागत:
    • भारत में स्थानीय सबस्ट्रक्चर निर्माताओं, इनस्टॉलेशन जहाज़ों और प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी है। अपतटीय पवन टर्बाइनों को तटवर्ती पवन फार्मों की तुलना में मज़बूत संरचनाओं की आवश्यकता होती है। यह उच्च स्थापना लागत का कारण बन सकता है।
  • अत्यधिक रखरखाव लागत:
    • समुद्री लहरों और तेज़ हवाओं के कारण, विशेष रूप से तूफान के दौरान पवन टर्बाइनों को नुकसान हो सकता है, जिसके कारण अपतटीय पवन फार्मों को रखरखाव की आवश्यकता होती है, जो कि अधिक महँगा हो सकता है।

पवन ऊर्जा से संबंधित नीतियाँ:

  • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति: राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, ट्रांसमिशन बुनियादी अवसंरचना तथा भूमि के इष्टतम एवं कुशल उपयोग के लिये बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर फोटोवोल्टिक हाइब्रिड सिस्टम को बढ़ावा देने हेतु एक अवसंरचना का निर्माण करना है।
  • राष्‍ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति: राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को अक्तूबर 2015 में भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में 7600 किलोमीटर की भारतीय तटरेखा के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करने के उद्देश्य से अधिसूचित किया गया था।

आगे की राह

  • अक्षय खरीद दायित्व: इसके माध्यम से बिजली वितरण कंपनियाँ, खुली पहुँच वाले उपभोक्ता और कैप्टिव उपयोगकर्त्ता अपनी कुल बिजली खपत के हिस्से के रूप में स्वच्छ ऊर्जा खरीद सकते हैं।
  • कम कर: भारत में जीएसटी कानून, बिजली और इसकी बिक्री को जीएसटी से छूट देता है। इसके विपरीत पवन ऊर्जा उत्पादन कंपनियाँ परियोजना की स्थापना के लिये वस्तुओं और/या सेवाओं की खरीद हेतु जीएसटी का भुगतान करते समय इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credit) का दावा नहीं कर सकती हैं।
  • फीड-इन टैरिफ: डिस्कॉम फीड-इन टैरिफ (Feed-in Tariff- FiT) नियमों को अपना सकते हैं और अपतटीय पवन ऊर्जा खरीद को अनिवार्य बना सकते हैं। एफआईटी को प्रत्येक अपतटीय पवन परियोजना के अनुरूप बनाया जा सकता है। एफआईटी का उपयोग विकास के शुरुआती चरणों में अपतटीय पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये किया जा सकता है जब तक कि यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य न हो जाए।
  • डीम्ड जनरेशन प्रोविन: राज्य लोड डिस्पैच सेंटर (State Load Dispatch Centre) की बड़ी मात्रा में बिजली को अवशोषित करने में असमर्थता के कारण अपतटीय पवन परियोजनाओं को कटौती की चिंताओं के खिलाफ संरक्षित करने की आवश्यकता है। इसके लिये अपतटीय पवन को "डीम्ड जेनरेशन प्रोविन" (Deemed Generation Provision) किया जा सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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