शासन व्यवस्था
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिये भारत की नीति
यह एडिटोरियल 30/05/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “The road to Universal Health Coverage in India” पर आधारित है। इस लेख में आयुष्मान भारत के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिये किये जा रहे प्रयासों को सामने लाया गया है, साथ ही यह भी रेखांकित किया गया है कि अभी भी लगभग 40 करोड़ लोग स्वास्थ्य बीमा से वंचित हैं। यह लेख इस बात पर बल देता है कि तेज़ी से बढ़ते निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के साथ-साथ प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में सार्वजनिक निवेश को भी सुदृढ़ करना आवश्यक है।
प्रिलिम्स के लिये:आयुष्मान भारत, आयुष्मान आरोग्य मंदिर, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, चिकित्सा उपकरण नीति-2023, गैर-संचारी रोग, जूनोटिक रोग मेन्स के लिये:भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में हाल ही में हुए प्रमुख विकास, भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे |
भारत अपनी स्वास्थ्य सेवा यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, आयुष्मान भारत पहल ने वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को लक्षित किया है, जबकि निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र वर्ष 2026 तक अनुमानित 610 बिलियन डॉलर तक तेज़ी से विस्तार कर रहा है। आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय को 60-70% से घटाकर 39.4% करने की प्रगति के बावजूद, लगभग 400 मिलियन भारतीयों के पास अभी भी स्वास्थ्य बीमा कवरेज नहीं है, विशेष रूप से आउट पेशेंट (बाह्य रोगी) देखभाल को प्रभावित करता है, जो स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले व्यय का दो-तिहाई हिस्सा है। आगे की राह के लिये निजी क्षेत्र के विकास को निवारक और प्राथमिक देखभाल में मज़बूत सार्वजनिक निवेश के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है ताकि क्रय शक्ति के बजाय आवश्यकता के आधार पर स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में हाल ही में हुए प्रमुख विकास क्या हैं?
- आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के माध्यम से विस्तार: सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और तृतीयक सुविधाओं पर भार कम करने के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को सुदृढ़ करना महत्त्वपूर्ण है।
- आयुष्मान भारत पहल के तहत मार्च 2024 तक 1.7 लाख से अधिक स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों का कायाकल्प इस फोकस का उदाहरण है।
- ये केंद्र समग्र स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करते हुए योग और आयुष सहित निवारक, प्रोत्साहन एवं पुनर्वास देखभाल को एकीकृत करते हैं।
- वर्ष 2018-19 से वर्ष 2023-24 तक AAM में 46.6% की CAGR से वृद्धि हुई।
- सार्वजनिक अस्पतालों की वृद्धि में वृद्धि: सुदृढ़ स्वास्थ्य सेवा वितरण बुनियादी अवसंरचना की उपलब्धता पर निर्भर करता है; इसलिये, सार्वजनिक अस्पतालों की वृद्धि से सुगम्यता और सामर्थ्य में सुधार होता है।
- वर्ष 2005 में 7,008 अस्पतालों से वर्ष 2021 में 60,621 तक, भारत ने सार्वजनिक अस्पतालों में 14.4% की CAGR दर्ज की, जो बड़े पैमाने पर बुनियादी अवसंरचना के विस्तार को दर्शाती है।
- इस विस्तार से शहरी अस्पतालों पर दबाव कम हुआ है और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की सुगम्यता में भी सुधार हो रहा है, जो समतापूर्ण स्वास्थ्य परिणामों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- स्वास्थ्य सेवा वितरण में डिजिटल परिवर्तन: डिजिटल उपकरण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं, दक्षता, पारदर्शिता और डेटा-संचालित निर्णय लेने में सुधार कर रहे हैं।
- आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, Co-WIN, आरोग्य सेतु और ई-संजीवनी जैसी पहलों ने लाखों लोगों को डिजिटल रूप से जोड़ा है, जिससे टेलीमेडिसिन एवं महामारी के शमन में सुधार हुआ है।
- स्वास्थ्य पेशेवर रजिस्ट्री (HPR) पर 2.96 लाख से अधिक स्वास्थ्य पेशेवर पंजीकृत हैं, जिससे देश भर में अंतर-संचालनीय डिजिटल सेवाएँ संभव हो रही हैं।
- PM-JAY के माध्यम से स्वास्थ्य बीमा कवरेज का विस्तार: वित्तीय जोखिम संरक्षण और व्यापक स्वास्थ्य बीमा कवरेज, विनाशकारी खर्चों को कम करने के लिये आवश्यक हैं।
- PM-JAY लगभग 15 करोड़ परिवारों को कवरेज प्रदान करता है, जिसमें प्रति परिवार 5 लाख रुपए प्रतिवर्ष, 1,900 पैकेजों के साथ द्वितीयक एवं तृतीयक देखभाल शामिल है तथा इसमें कोई पूर्व-मौजूदा स्थिति अपवर्जन नहीं है।
- अब तक 81,979 करोड़ रुपए मूल्य के 6.5 करोड़ अस्पताल में भर्ती की अनुमति दी गई है, जो पैमाने और प्रभाव को दर्शाता है।
- रोग निगरानी और रोकथाम पर अधिक ध्यान: संचारी रोगों का शीघ्र पता लगाना और रोकथाम स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- वर्ष 2004 से क्रियाशील एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP) प्रकोप की त्वरित प्रतिक्रिया के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी को सुदृढ़ करता है।
- जननी सुरक्षा योजनाओं के साथ मिलकर ये कार्यक्रम रुग्णता और मृत्यु दर को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के उपयोग और गुणवत्ता मानकों में वृद्धि: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में बढ़ता विश्वास स्पष्ट है, क्योंकि वर्ष 2014 के बाद से सरकारी अस्पतालों की OPD एवं IPD की हिस्सेदारी में 25% से अधिक की वृद्धि हुई है, जो बेहतर पहुँच एवं सामर्थ्य को दर्शाता है।
- अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिये राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानकों (NQAS) के कार्यान्वयन से मानक सेवा गुणवत्ता सुनिश्चित होती है तथा राष्ट्रव्यापी स्तर पर रोगी सुरक्षा एवं संतुष्टि को बढ़ावा मिलता है।
- बढ़ता फार्मास्युटिकल उद्योग और चिकित्सा उपकरण क्षेत्र: भारत का फार्मा क्षेत्र, जिसे ‘विश्व की फार्मेसी’ कहा जाता है, वर्ष 2030 तक 130 बिलियन डॉलर के अनुमानित बाज़ार आकार के साथ विस्तार कर रहा है, जिससे किफायती पहुँच और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- चिकित्सा उपकरण नीति-2023 घरेलू विनिर्माण क्षमता एवं गुणवत्ता को बढ़ाती है तथा आयात निर्भरता को कम करने एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिये मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहलों के साथ संरेखित करती है।
- सुदृढ़ स्वास्थ्य सेवा कार्यबल और शिक्षा: पर्याप्त, कुशल कार्यबल गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ है; इसलिये, भारत ने चिकित्सा और नर्सिंग शिक्षा को बढ़ावा दिया है।
- पंजीकृत नर्सों की संख्या वर्ष 2005 में 14.81 लाख से बढ़कर वर्ष 2022 में 36.14 लाख हो गई (CAGR ~4.9%), जबकि एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या 6.6 लाख से बढ़कर 13.08 लाख हो गई (CAGR ~ 4.1%)।
- वित्त वर्ष 2023 के बजट में 157 नए नर्सिंग कॉलेजों से कार्यबल की कमी और भारतीय नर्सों की वैश्विक मांग को पूरा किया जाएगा।
भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय: कम और असमान सार्वजनिक व्यय से बुनियादी अवसंरचना, कार्यबल एवं स्वास्थ्य सेवा में गुणवत्ता सुधार में बाधा आती है।
- भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) (सत्र 2022-23) का सिर्फ 2.1% है, जो 15वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित 2.5% से कम है।
- इससे बढ़ती मांग के बावजूद महत्त्वपूर्ण सेवाओं का विस्तार सीमित हो जाता है। कई विकसित देश स्वास्थ्य के लिये सकल घरेलू उत्पाद का 5-10% आवंटित करते हैं, जो भारत की कम निवेश चुनौती को रेखांकित करता है।
- निरंतर उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (OOPE): उच्च OOPE वित्तीय कठिनाई का कारण बनता है और लाखों लोगों के गरीबी का करण बनता है, जिससे कमज़ोर आबादी के लिये स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच सीमित हो जाती है।
- प्रगति के बावजूद, OOPE 39.4% पर बना हुआ है, जिसमें बाह्य रोगी देखभाल पर होने वाला व्यय दो-तिहाई है।
- अकेले दवाओं का योगदान OOPE में 67% से अधिक है, जो किफायती दवाओं और बीमा कवरेज विस्तार की आवश्यकता पर बल देता है।
- एकसमान मानकों के अभाव और अनियंत्रित व्यावसायीकरण के परिणामस्वरूप गुणवत्ता में भिन्नता एवं लागत अधिक होती है।
- अपर्याप्त बीमा कवरेज और बाह्य रोगी देखभाल पर ध्यान: लगभग 400 मिलियन भारतीय बीमा से वंचित हैं (विशेष रूप से बाह्य रोगी व्यय के लिये) जो स्वास्थ्य देखभाल लागतों पर हावी है।
- PM-JAY मुख्य रूप से अस्पताल में भर्ती मरीजों को कवर करता है, जिससे बाह्य रोगी और दीर्घकालिक देखभाल को कवर नहीं किया जाता है, जिससे वहनीयता एवं शीघ्र हस्तक्षेप प्रभावित होता है।
- व्यापक कवरेज में अंतर वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज लक्ष्यों में बाधा डालता है।
- स्वास्थ्य सेवा कार्यबल का विषम वितरण और कमी: यद्यपि डॉक्टरों और नर्सों की संख्या में वृद्धि हुई है, फिर भी शहरी-ग्रामीण और सार्वजनिक-निजी असंतुलन बहुत अधिक है, जो पहुँच एवं गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है।
- यद्यपि भारत का डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:854 है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 1:1000 से बेहतर है, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी भारी कमी है तथा एकीकृत चिकित्सा की बढ़ती मांग के बावजूद पंजीकृत आयुष चिकित्सकों का अभी भी कम उपयोग हो रहा है।
- इसके अलावा, निजी सुविधाएँ मुख्यतः शहरी और समृद्ध आबादी को ही लाभ पहुँचाती हैं, जिससे असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
- यद्यपि भारत का डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:854 है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 1:1000 से बेहतर है, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी भारी कमी है तथा एकीकृत चिकित्सा की बढ़ती मांग के बावजूद पंजीकृत आयुष चिकित्सकों का अभी भी कम उपयोग हो रहा है।
- सार्वजनिक सुविधाओं में बुनियादी अवसंरचना की कमी और गुणवत्ता का अंतर: हालाँकि सार्वजनिक अस्पतालों का विस्तार हुआ है, लेकिन कई अस्पताल अभी भी अपर्याप्त बिस्तरों, उपकरणों और रखरखाव से पीड़ित हैं, जिससे मरीजों की स्थिति प्रभावित हो रही है।
- भारत में अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या प्रति 1,000 की आबादी पर लगभग 0.5 है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति 1,000 आबादी पर 3 बिस्तरों के मानक से काफी कम है।
- राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानकों (NQAS) के बावजूद, विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में गुणवत्ता में अंतर बना हुआ है।
- निवारक और प्राथमिक देखभाल पर सीमित ज़ोर: स्वास्थ्य सेवा, निवारक और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के बजाय उपचारात्मक तृतीयक देखभाल की ओर झुकी हुई है।
- गैर-संचारी रोगों (NCD) के कारण अब 60% से अधिक मौतें हो रही हैं, फिर भी रोकथाम के उपाय अपर्याप्त हैं।
- स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों को सुदृढ़ बनाने का कार्य जारी है, लेकिन इसमें तेज़ी लाने और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के साथ एकीकरण की आवश्यकता है।
- डिजिटल स्वास्थ्य एकीकरण में डेटा गोपनीयता के मुद्दे: जबकि डिजिटल स्वास्थ्य पहल में प्रगति हुई है, अंतर-संचालनीयता, डेटा गोपनीयता और समावेशन अभी भी मुद्दे बने हुए हैं।
- उदाहरण के लिये, भारतीय स्वास्थ्य सेवा उद्योग को वर्ष 2022 में 1.9 मिलियन से अधिक साइबर हमलों का सामना करना पड़ा। पिछले पाँच वर्षों में भारत भर में हुए प्रमुख साइबर अटैक में AIIMS दिल्ली और सफदरजंग अस्पताल सहित अस्पताल शामिल थे।
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल नेटवर्क को सुदृढ़ और एकीकृत करना: आयुष्मान आरोग्य मंदिरों को जीवंत केंद्रों में परिवर्तित करना चाहिये जो न केवल व्यापक प्राथमिक देखभाल प्रदान करें बल्कि स्वच्छता (स्वच्छ भारत), पोषण (पोषण अभियान) और शिक्षा पहलों के साथ तालमेल भी बिठाते हों।
- यह एकीकृत मॉडल स्वास्थ्य निर्धारकों को समग्र रूप से बढ़ाएगा, रोग का शीघ्र पता लगाने को बढ़ावा देगा तथा तृतीयक देखभाल के बोझ को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करेगा।
- मज़बूत रेफरल संपर्क बनाना तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और उच्चतर केंद्रों में निर्बाध डेटा प्रवाह सुनिश्चित करना देखभाल की निरंतरता एवं पहुँच में समानता को संस्थागत बना सकता है।
- स्वास्थ्य कार्यबल क्षमता में क्रांतिकारी बदलाव: ग्रामीण सेवा बॉण्ड, त्वरित कॅरियर प्रगति और वित्तीय पुरस्कारों को शामिल करते हुए एक प्रोत्साहन-संचालित पारिस्थितिकी तंत्र को अपनाया जाना चाहिये, ताकि वंचित क्षेत्रों में स्वास्थ्य पेशेवरों को बनाए रखा जा सके।
- चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रम को सामुदायिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाना चाहिये तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं के माध्यम से आयुष चिकित्सकों सहित बहुविषयक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के लिये प्रशिक्षण को शामिल किया जाना चाहिये।
- इससे भारत के महामारी विज्ञान संबंधी संक्रमण और जनसांख्यिकीय विविधता के अनुरूप एक लचीला, बहुमुखी कार्यबल तैयार होगा।
- बाह्य रोगी, निवारक और दीर्घकालिक देखभाल को समग्र रूप से कवर करने के लिये सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा का विस्तार करना: भारत बाह्य रोगी निदान, दवाओं और निवारक जाँच को शामिल करने के लिये PM-JAY एवं बीमा योजनाओं पर पुनर्विचार (केवल प्रारंभिक चरणों में सबसे कमज़ोर वर्ग के लिये) कर सकता है, जिससे आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय के बड़े हिस्से से निपटा जा सके।
- दीर्घकालिक रोगों के प्रबंधन, हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करने तथा अस्पताल में भर्ती होने की संख्या कम करने के लिये शीघ्र मॉड्यूलर बीमा उत्पाद शुरू किया जाना चाहिये।
- यह प्रतिमान बदलाव सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिये वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ संरेखित करते हुए वित्तीय जोखिम सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।
- डिजिटल निगरानी के साथ निजी स्वास्थ्य सेवा के लिये एकीकृत नियामक कार्यढाँचा: निजी प्रदाताओं के बीच व्यापक गुणवत्ता मानकों, नैतिक मूल्य निर्धारण और शिकायत निवारण को लागू करने के लिये सशक्त एक केंद्रीकृत नियामक प्राधिकरण बनाया जाना चाहिये।
- रियल टाइम मॉनिटरिंग और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये इस कार्यढाँचे को ABDM एवं अस्पताल मान्यता निकायों जैसे डिजिटल स्वास्थ्य पहलों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- इस तरह के सामंजस्य से विश्वास बढ़ेगा, शोषणकारी प्रथाओं में कमी आएगी और समान स्वास्थ्य सेवा वितरण को बढ़ावा मिलेगा।
- डेटा-सक्षम, रोगी-केंद्रित देखभाल को बढ़ावा देना: पूर्वानुमानित रोग मॉडलिंग, संसाधन अनुकूलन और व्यक्तिगत देखभाल मार्गों के लिये AI-संचालित एनालिटिक्स से जुड़े अंतर-संचालनीय डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन में तेज़ी लाया जाना चाहिये।
- ABDM के अंतर्गत स्वास्थ्य पेशेवर रजिस्ट्री और स्वास्थ्य देखभाल सुविधा रजिस्ट्री पर स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और सुविधाओं का 100% पंजीकरण सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- इसके साथ ही, नागरिकों का विश्वास बढ़ाने और एथिकल डेटा उपयोग को बढ़ावा देने के लिये कड़े डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा कार्यढाँचे को लागू किया जाना चाहिये।
- फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों में नवाचार और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना: चिकित्सा उपकरण नीति- 2023 के तहत सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिये तथा ऑर्गन बायोप्रिंटिंग, रोबोटिक्स और AI डायग्नोस्टिक्स जैसी अग्रणी प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान एवं विकास निधि में वृद्धि की जानी चाहिये।
- भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये आपूर्ति शृंखलाओं में पिछड़े एकीकरण को सुगम बनाया जाना चाहिये तथा विनियामक अनुमोदन को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये।
- इन पहलों को मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत मिशन के साथ जोड़कर भारत को किफायती, उच्च गुणवत्ता वाले स्वास्थ्य सेवा नवाचार के वैश्विक केंद्र में बदलना चाहिये।
स्वास्थ्य सेवा में भारत अन्य देशों से क्या सीख ले सकता है?
- सार्वभौमिक प्राथमिक देखभाल पहुँच: समुदाय-आधारित प्राथमिक देखभाल कवरेज के लिये ब्राज़ील की परिवार स्वास्थ्य रणनीति को अपनाना चाहिये।
- कुशल स्वास्थ्य वित्तपोषण: आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय को कम करने के लिये थाईलैंड की सार्वभौमिक कवरेज योजना से सीख लेनी चाहिये।
- डिजिटल स्वास्थ्य एकीकरण: निर्बाध डेटा साझाकरण के लिये एस्टोनिया की राष्ट्रव्यापी ई-स्वास्थ्य रिकॉर्ड प्रणाली का अनुकरण करना चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी सहयोग: जर्मनी के विनियमित निजी बीमा और सार्वजनिक प्रणाली तालमेल का अध्ययन करना चाहिये।
- निवारक स्वास्थ्य फोकस: फिनलैंड के सफल गैर-संचारी रोग निवारण कार्यक्रमों को शामिल करना (उत्तरी करेलिया परियोजना) चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत का स्वास्थ्य सेवा परिवर्तन सतत् विकास लक्ष्य 3 (उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली) के साथ संरेखित सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाता है। प्रतिक्रियात्मक देखभाल से निवारक देखभाल की ओर बढ़ने के लिये भारत को अपने निजी स्वास्थ्य क्षेत्र की तीव्र वृद्धि को प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणालियों में सार्वजनिक निवेश, डिजिटल एकीकरण एवं स्वास्थ्य कार्यबल के विस्तार के साथ संतुलित करना आवश्यक है। एक जन-केंद्रित, समावेशी और समुत्थानशील स्वास्थ्य देखभाल पारितंत्र अनिवार्य है, ताकि वर्ष 2030 तक सभी के लिये समतामूलक पहुँच एवं वित्तीय संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. “भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली तेज़ी से डिजिटलीकरण और निजी क्षेत्र के विस्तार का साक्ष्य बन रही है, फिर भी लाखों लोगों के लिये समान पहुँच एवं वित्तीय सुरक्षा अभी भी दूर है।” विवेचना कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न 1. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (2021) |