भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला का सुदृढ़ीकरण
यह एडिटोरियल 02/06/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “India's critical mineral challenge threatens its 2030 economic goals” पर आधारित है। इस लेख में भारत के क्रिटिकल मिनरल्स पर आयात निर्भरता के खतरों को उजागर किया गया है, क्योंकि चीन द्वारा दुर्लभ मृदा तत्त्वों के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध इलेक्ट्रिक वाहन आपूर्ति शृंखलाओं के लिये संकट उत्पन्न कर सकते हैं।
प्रिलिम्स के लिये:क्रिटिकल मिनरल, जम्मू और कश्मीर में लिथियम भंडार, दुर्लभ मृदा आयात, आत्मनिर्भर भारत, भारत की 10 बिलियन डॉलर की सेमीकंडक्टर पहल, खनिज सुरक्षा भागीदारी, IndiaAI मिशन, सेमीकंडक्टर मिशन, विश्व आर्थिक मंच मेन्स के लिये:क्रिटिकल मिनरल्स का महत्त्व, भारत की क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला से संबंधित प्रमुख मुद्दे |
चीन द्वारा दुर्लभ मृदा चुंबकों (तत्त्वों) के निर्यात पर हाल ही में लगाए गए प्रतिबंधों ने भारत के बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहन (EV) क्षेत्र के लिये आपूर्ति संबंधी चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि देश क्रिटिकल मिनरल्स के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर है। यद्यपि भारत के पास कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे क्रिटिकल मिनरल्स का पर्याप्त भंडार है, फिर भी देश ने पारंपरिक रूप से अन्वेषण और प्रसंस्करण अवसंरचना के विकास पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया है। यह आयात-निर्भरता लिथियम, ग्रेफाइट एवं प्राकृतिक हाइड्रोजन और थोरियम जैसे उभरते संसाधनों सहित अन्य आवश्यक खनिजों तक भी विस्तृत है। चूँकि भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर है, इसलिये खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने तथा आयात-निर्भरता को घटाने के लिये देश में स्वदेशी खनन एवं प्रसंस्करण क्षमताओं का विकास अत्यावश्यक है।
भारत की विकास यात्रा में क्रिटिकल मिनरलों की क्या भूमिका है?
- नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार को गति देना: सोलर पैनल और पवन टरबाइनों के निर्माण में प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण खनिज — जैसे कि सिलिकॉन, टेल्यूरियम एवं रेयर अर्थ एलिमेंट्स (दुर्लभ मृदा तत्त्व) भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों की आधारशिला हैं।
- भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 50% गैर-जीवाश्म ऊर्जा प्राप्त करना है, जो कि मुख्य रूप से इन खनिजों पर निर्भर करता है।
- उदाहरण के लिये, भारत की सौर ऊर्जा क्षमता वर्ष 2024 में 64 गीगावाट तक पहुँच जाएगी, जबकि पवन ऊर्जा क्षमता वर्ष 2030 तक 42 गीगावाट से बढ़कर 140 गीगावाट हो जाएगी। इससे जलवायु परिवर्तन लक्ष्य को पूरा करने के लिये इन खनिजों की भारी माँग उत्पन्न होती है।
- इलेक्ट्रिकल इलेक्ट्रिकल व्हीकल (EV) के केंद्र स्थापित करने के लिये इलेक्ट्रानिक इलेक्ट्रिक वाहन (EV) का केंद्र होना आवश्यक है।
- वर्तमान में, भारत में 100% लिथियम और कोबाल्ट का आयात होता है, जिसमें चीन 70% से अधिक लिथियम आयात की आपूर्ति करता है। यह आपूर्ति भारत के EV उद्योग के विकास को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन को सुदृढ़ करना: गैलियम, जर्मेनियम और इंडियम जैसे खनिज सेमीकंडक्टर एवं उन्नत इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के मूलभूत घटक हैं (IndiaAI मिशन और सेमीकंडक्टर मिशन), जो भारत की उच्च-प्रौद्योगिकी निर्माण में आत्मनिर्भरता की लक्ष्यपूर्ति के लिये अत्यंत आवश्यक हैं।
- भारत इन खनिजों के लिये लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है, विशेषकर चीन से।
- हाल ही में मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप जैसे रणनीतिक साझेदारियों में सम्मिलित होने के माध्यम से भारत इन खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने और घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को प्रोत्साहित करने की दिशा में प्रयासरत है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा क्षमता में वृद्धि: टाइटेनियम, दुर्लभ मृदा तत्त्व और निकेल जैसे खनिज, एयरोस्पेस, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं रणनीतिक उपकरण निर्माण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत का रक्षा क्षेत्र इन खनिजों के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर है — टाइटेनियम के लिये 50% से अधिक और दुर्लभ मृदा तत्त्वों के लिये भी भारी मात्रा में निर्भरता है।
- सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय नीलामी प्रणाली, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये इन क्रिटिकल मिनरल्स पर नियंत्रण को सुदृढ़ करती है।
- आर्थिक वृद्धि और रोज़गार को प्रोत्साहन: क्रिटिकल मिनरलों का देश में खनन और प्रसंस्करण, खनिज-समृद्ध क्षेत्रों में औद्योगिक विकास एवं रोज़गार सृजन को गति दे सकता है।
- राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन का लक्ष्य वर्ष 2031 तक 10,000 कुशल श्रमिकों को प्रशिक्षित करना और 1,200 अन्वेषण परियोजनाएँ शुरू करना है।
- वेदांता और ओला इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों की भागीदारी वाली नीलामियाँ निजी क्षेत्र की बढ़ती सक्रियता को दर्शाती हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्थाएँ मज़बूत होती हैं तथा आयात पर निर्भरता घटती है।
भारत की क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- चीन पर अत्यधिक निर्भरता: भारत की क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला अत्यधिक रूप से चीन पर निर्भर है, जिससे एक ऐसा भू-राजनीतिक दबाव उत्पन्न होता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिये गंभीर खतरा बन गया है।
- लिथियम (82% आयात हिस्सा), बिस्मथ (85.6%) और सिलिकॉन (76%) जैसे खनिजों का अधिकांश हिस्सा चीन से आयात होता है, जिससे भारत द्विपक्षीय तनावों के बीच आपूर्ति-हस्तक्षेप की स्थिति में अत्यधिक सुभेद्य हो जाता है।
- हाल ही में चीन द्वारा दुर्लभ मृदा तत्त्वों के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध इस निर्भरता की सुभेद्यता को उजागर करते हैं।
- घरेलू अन्वेषण और नीलामी में अवरोध: पर्याप्त खनिज भंडार होने के बावजूद भारत में खनन गतिविधियाँ प्रशासनिक अड़चनों और अनाकर्षक नीलामी संरचनाओं से बाधित हैं, जो निजी निवेश को हतोत्साहित करती हैं।
- वर्ष 2023 के बाद से 100 से अधिक क्रिटिकल मिनरल्स खनिज खंडों की नीलामी की गई है, परंतु कई खंड अब भी बिना खरीदार के हैं। जून 2024 की 18 नीलामियों में से 14 तकनीकी बोलियों के अभाव में रद्द कर दी गईं, जो उद्योग में व्याप्त संदेह को दर्शाता है।
- जम्मू और कश्मीर में मिट्टी के रूप में लिथियम जैसी जटिल खनिज संरचनाएँ उच्च प्रारंभिक जोखिम पूंजी की माँग करती हैं, जिससे अन्वेषण कार्य और अधिक कठिन हो जाता है।
- खनिज प्रसंस्करण और परिष्करण पारितंत्र का अल्पविकास: भारत की आपूर्ति शृंखला की सबसे बड़ी बाधा इसकी नगण्य खनिज प्रसंस्करण क्षमता है, जिसके कारण देश को कच्चे अयस्क का निर्यात करना पड़ता है और महंगे परिष्कृत खनिजों का आयात करना पड़ता है।
- चीन, दुर्लभ मृदा तत्त्वों की प्रसंस्करण क्षमता का 87% और लिथियम परिष्करण का 58% नियंत्रित करता है, जिससे उसे वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर प्रभुत्व प्राप्त है।
- भारत की IREL, जिसकी वार्षिक क्षमता 6 लाख टन है, बैटरी-ग्रेड खनिजों की बढ़ती मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं है, जिससे देश की स्वदेशी EV (इलेक्ट्रिक वाहन) और सेमी कंडक्टर निर्माण की महत्त्वाकांक्षाओं में विलंब हो रहा है।
- यह प्रसंस्करण अंतर घरेलू स्तर पर 'मूल्य संवर्द्धन' की संभावना को क्षीण कर देता है।
- पर्यावरणीय और सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियाँ: खनन परियोजनाओं को पारिस्थितिक क्षरण, प्रदूषण और जनजातीय समुदायों के विस्थापन के कारण बढ़ती जाँच एवं विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जिससे परियोजनाओं में विलंब हो रहा है।
- अनेक महत्त्वपूर्ण खनिज भंडार पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और जनजातीय क्षेत्रों में स्थित हैं, जहाँ पर्यावरणीय स्वीकृतियाँ प्राप्त करना अत्यंत कठिन है।
- राजस्थान की दुर्लभ मृदा तत्त्व परियोजनाएँ ऐसी ही जटिलताओं के कारण ठप पड़ी हुई हैं। यदि ठोस ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) ढाँचे एवं समुदाय-आधारित सहभागिता नहीं अपनाई जाती, तो विरोध और अधिक तीव्र हो सकता है, जिससे खनन अनुज्ञाएँ तथा आपूर्ति सुरक्षा खतरे में पड़ सकती हैं।
- अस्थिर वैश्विक बाज़ार मूल्य और निवेश जोखिम: क्रिटिकल मिनरलों के मूल्य में तीव्र और अनिश्चित उतार-चढ़ाव नीति-निर्माताओं एवं विनिर्माताओं के लिये बड़ी चुनौती प्रस्तुत करते हैं।
- उदाहरणस्वरूप, वर्ष 2022 में 400% से अधिक की वृद्धि के बाद लिथियम की कीमत वर्ष 2023 में 75% तक गिर गई और कोबाल्ट की कीमत वर्ष 2022 के शीर्ष स्तर से दो-तिहाई तक कम हो गई है (विश्व आर्थिक मंच)।
- भू-राजनीतिक तनाव और निर्यात नियंत्रण के कारण आपूर्ति में व्यवधान के कारण कीमतों में उतार-चढ़ाव बढ़ जाता है।
- इस प्रकार की अस्थिरता हरित तकनीक परियोजनाओं की लागत को बढ़ाती है, बजट नियोजन को जटिल बनाती है और भारत के नवीकरणीय ऊर्जा तथा EV लक्ष्यों हेतु आवश्यक दीर्घकालिक निवेश को हतोत्साहित करती है।
- तकनीकी कमी और मानव पूंजी अंतराल: उन्नत खनन और लाभकारी प्रौद्योगिकियाँ गहरे एवं जटिल भंडारों के दोहन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन भारत में बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी व कुशल जनशक्ति दोनों का अभाव है।
- राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन की 10,000 श्रमिकों को प्रशिक्षित करने की योजना इस समस्या का समाधान करती है, लेकिन वर्तमान कमी के कारण परियोजना की समयसीमा धीमी हो रही है।
- रियासी में मिट्टी से लिथियम निष्कर्षण के लिये परिष्कृत हाइड्रोमेटलर्जिकल विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जो घरेलू स्तर पर उपलब्ध नहीं है, जिससे आयात पर निर्भरता बढ़ती है तथा रणनीतिक स्वायत्तता में विलंब होता है।
- नवीन चक्रीय अर्थव्यवस्था और पुनर्चक्रण अवसंरचना: क्रिटिकल मिनरलों के लिये भारत का पुनर्चक्रण कार्यढाँचा अविकसित है, जिससे ई-अपशिष्ट और निष्प्रयुक्त बैटरियों से इन खनिजों की पुनर्प्राप्ति सीमित रह जाती है। यह स्थिति न केवल खनिजों के आयात-निर्भरता को बढ़ाती है, बल्कि पर्यावरणीय प्रभाव को भी तीव्र करती है।
- यद्यपि सरकार ने लिथियम, कोबाल्ट जैसे 24 क्रिटिकल मिनरल्स के पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करने के लिये ₹1,500 करोड़ की प्रोत्साहन योजना की घोषणा की है, फिर भी वर्तमान पुनर्चक्रण अवसंरचना अत्यंत सीमित एवं अल्प-प्रभावी है।
- चीन और यूरोप द्वारा बैटरी स्क्रैप (ब्लैक मास) के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भारत को द्वितीयक कच्चे माल की उपलब्धता में कठिनाई हो रही है, जिससे सतत् एवं आत्मनिर्भर चक्रीय खनिज अर्थव्यवस्था की दिशा में देश की प्रगति अवरुद्ध हो रही है।
भारत अपनी क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- विनियामक कार्यढाँचे को सुव्यवस्थित करना और खनिज नीलामी प्रक्रियाओं को सरल बनाना: भारत को अन्वेषण और खनन पट्टों के तीव्र अनुदान को सक्षम करने, प्रशासनिक विलंब को कम करने तथा पारदर्शिता बढ़ाने के लिये अपने खनन कानूनों में सुधार एवं आधुनिकीकरण करना चाहिये।
- एकल खिड़की मंजूरी और डिजिटल भूमि एवं पर्यावरण अनुमोदन शुरू करने से परियोजना निष्पादन में तेज़ी आ सकती है।
- अन्वेषण-सह-खनन अधिकार जैसे लचीले नीलामी मॉडल से फर्मों को खोजे गए भंडारों का खनन करने की अनुमति देकर निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। इससे जोखिम पूंजी आकर्षित होगी तथा घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
- एकीकृत खनिज प्रसंस्करण पार्क: घरेलू स्तर पर मूल्यवर्द्धित उत्पाद बनाने के लिये उन्नत लाभकारी और शोधन प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित समर्पित खनिज प्रसंस्करण केंद्रों का विकास करना चाहिये।
- इन पार्कों से खनन, प्रसंस्करण और विनिर्माण इकाइयों की एक साथ स्थापना में सुविधा होगी, जिससे लॉजिस्टिक्स में सुधार होगा तथा लागत में कमी आएगी।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी और प्रौद्योगिकी अंतररण समझौते क्षमता निर्माण में तेज़ी ला सकते हैं। यह एकीकरण आपूर्ति शृंखला के समुत्थानशक्ति को बढ़ाएगा और आयातित परिष्कृत खनिजों पर निर्भरता को कम करेगा।
- वैकल्पिक सामग्रियों के लिये अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश: भारत के विशिष्ट भूविज्ञान के अनुरूप क्रिटिकल मिनरलों के विकल्प और पर्यावरण-अनुकूल निष्कर्षण तकनीकों को विकसित करने के लिये अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- शिक्षा जगत, उद्योग और सरकारी अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग से कम लागत वाली, संधारणीय खनन एवं पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
- मिट्टी से लिथियम जैसे जटिल स्रोतों से खनिज निष्कर्षण की तकनीक को प्राथमिकता देने से अप्रयुक्त घरेलू भंडारों को खोला जा सकेगा। इससे आयात पर निर्भरता और पर्यावरणीय प्रभाव कम होगा।
- रणनीतिक खनिज भंडारण और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण: वैश्विक आपूर्ति में आने वाले व्यवधानों और मूल्य अस्थिरता से सुरक्षा के लिये आवश्यक खनिजों के रणनीतिक भंडार का सृजन एवं रख-रखाव किया जाना चाहिये।
- इसके साथ ही, चीन के अतिरिक्त अन्य संसाधन-समृद्ध देशों के साथ द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय साझेदारियों को सुदृढ़ करके आयात स्रोतों में विविधता लाई जानी चाहिये।
- स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये दीर्घकालिक ऑफ-टेक समझौतों और संयुक्त उद्यमों को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये। यह दोहरा दृष्टिकोण भू-राजनीतिक जोखिमों को कम करते हुए निर्बाध उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
- विकास कौशल और विशेष कार्यक्रम प्रशिक्षण को बढ़ावा देना: एक दक्ष कार्यबल विकसित करने हेतु व्यापक क्षमतावर्द्धन पहलों की शुरुआत की जानी चाहिये, जो उन्नत खनन, खनिज प्रसंस्करण और पर्यावरण प्रबंधन में कुशल हो।
- प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और 'इंटरनेट ऑफ थिंग्स' (IoT) जैसी उभरती तकनीकों को सम्मिलित किया जाना चाहिये, ताकि सटीक खनन को प्रोत्साहन मिले।
- स्थानीय विशेषज्ञता को शीघ्र उन्नत करने के लिये वैश्विक उत्कृष्टता केंद्रों से सहयोग किया जाना चाहिये। औद्योगिक उत्कृष्टता और घरेलू खनिज महत्त्वपूर्ण उद्यमों को बढ़ाने के लिये एक मज़बूत प्रतिभा संयंत्र महत्त्वपूर्ण है।
- मान्यता प्राप्त पुनर्चक्रण के साथ-साथ वृत्ताकार उद्योग को बढ़ावा देना: ई-अपशिष्ट, बैटरी के स्क्रैप और खनन से उत्पन्न अपशिष्ट से क्रिटिकल मिनरल्स की पुनर्प्राप्ति हेतु वित्तीय अनुदानों एवं नियामकीय समर्थन के साथ नीतियाँ तैयार की जानी चाहिये।
- प्रमाणित पुनर्चक्रण अवसंरचना की स्थापना की जानी चाहिये तथा देशभर में अपशिष्ट संग्रहण तंत्र को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये।
- 'शहरी खनन' तकनीकों में नवाचार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और विनिर्माण में न्यूनतम पुनर्चक्रित सामग्री के मानकों को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये। इससे मूल खनिजों की मांग में कमी आएगी और पर्यावरणीय प्रभाव घटेगा।
- आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में पारदर्शिता और दक्षता हेतु डिजिटल तकनीकों का उपयोग: खनिजों की उत्पत्ति, गुणवत्ता और आपूर्ति शृंखला में गति की निगरानी हेतु ब्लॉकचेन एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित प्लेटफॉर्म अपनाए जाने चाहिये, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी तथा अवैध खनन एवं व्यापार में कमी आएगी।
- रियल-टाइम डेटा एनालिसिस से भंडारण प्रबंधन का अनुकूलन और आपूर्ति-मांग में असंतुलन का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
- डिजिटलीकरण से नियामकीय अनुपालन सरल होता है, निवेशकों का विश्वास बढ़ता है और भारत की 'जिम्मेदार स्रोत-प्राप्ति' (responsible sourcing) में वैश्विक साख मज़बूत होगी।
निष्कर्ष:
भारत की क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करना उसकी स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति, आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है। आयात निर्भरता को कम करने और स्थिरता स्थापित करने के लिये समग्र उपाय—जिनमें नियामक सुधार, उन्नत संसाधन प्रक्रमण, रणनीतिक विविधीकरण और चक्रीय अर्थव्यवस्था की पहल शामिल हैं, अति आवश्यक हैं। एक सक्रिय एवं समेकित दृष्टिकोण भारत को क्रिटिकल मिनरल्स के क्षेत्र में आत्मनिर्भर और अग्रणी देश के रूप में स्थापित करेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत की क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला के समरूप विवरण का विश्लेषण कीजिये और इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये व्यापक उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. भारत में गौण खनिज के प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न 2. भारत में 'ज़िला खनिज प्रतिष्ठान (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन्स)' का/के उद्देश्य क्या है/ हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न 1. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021) प्रश्न 2. “प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है।” विवेचना कीजिये। (2017) |