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डेली न्यूज़

  • 27 May, 2025
  • 35 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

नगरीय जैवविविधता का उन्नयन

प्रिलिम्स के लिये:

जैवविधता, अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस, संयुक्त राष्ट्र, जैवविविधता कन्वेंशन (CBD), संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता दशक, नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव, वेटलैंड्स, भारतीय वन सर्वेक्षण (2023), कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (GBF), सतत् विकास लक्ष्य (SDGs), आरक्षित वन, रामसर साइट, मियावाकी पद्धति। 

मेन्स के लिये:

भारत में शहरी जैवविविधता की आवश्यकता तथा शहरी जैवविविधता के उन्नयन के तरीके।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

नगरीय जैवविविधता हमारी पृथ्वी तथा मानव कल्याण के लिये निर्णायक है, लेकिन जलवायु परिवर्तन तथा अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण इसके समक्ष खतरा बना हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता दिवस (22 मई) पर, “प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत् विकास” थीम के साथ शहरी विकास में पारिस्थितिकी संरक्षण को एकीकृत करने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया।

नगरीय जैवविविधता क्या है?

  • परिचय: नगरीय जैवविविधता से तात्पर्य नगरीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं (पौधे, जानवर, कवक और सूक्ष्मजीव) की विविधता से है। 
    • इसमें मानव-प्रधान वातावरण में रहने वाले सभी जैव रूप शामिल हैं जैसे पार्क, बगीचे, हरित छतें, आर्द्रभूमि और निर्मित अवसंरचनाएँ। 
  • प्रमुख घटक: 
    • ग्रीन स्पेस: पार्क, उद्यान, हरित पट्टी, लॉन, सड़क किनारे के वृक्ष।
    • ब्लू स्पेस: झीलें, नदियाँ, नहरें, तालाब, आर्द्रभूमि।
    • निर्मित अवसंरचनाएँ: दीवारें, छतें और आवास संबंधी इमारतें (जिनमें चमगादड़ और पक्षी भी वास करते हैं)।
    • वन्यजीव गलियारे: ऐसे रास्ते जो जानवरों को हरे-भरे क्षेत्रों (जैसे, वृक्ष युक्त सड़कें) के बीच घूमने की सुविधा देते हैं। 
  • प्रमुख उदाहरण:
    • शहरों के भीतर आर्द्रभूमियाँ, उदाहरण के लिये दिल्ली में ओखला पक्षी अभयारण्य, बेंगलुरु में वर्थुर झील।
    • शहरी वन और जैव विविधता पार्क, उदाहरण के लिये चेन्नई में अरिग्नार अन्ना प्राणी उद्यान। 
    • शहरों से होकर प्रवाहित होने वाली नदियाँ और झीलें जलीय जैव विविधता को बढ़ावा देती हैं (उदाहरण के लिये पुणे में, मुथा एवं मुला नदियाँ उच्च जैव विविधता प्रदर्शित करती हैं, जिनमें कई मीठे जल की अकशेरुकी प्रजातियाँ पाई जाती हैं)। 

भारत के लिये नगरीय जैवविविधता संरक्षण का क्या महत्त्व है?

  • जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण को कम करना: शहरी हरित स्थान नगरीय ऊष्मा द्वीप (UHI) प्रभाव को कम करते हैं, उदाहरण के लिये फ्रैंकफर्ट की हरित पट्टियों ने तापमान को 3.5°C तक कम कर दिया। 
  • स्वास्थ्य और कल्याण लाभ: पार्क और हरित स्थान "कंक्रीट के वनों" से एक महत्त्वपूर्ण राहत प्रदान करते हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं, तनाव को कम करते हैं एवं मनोरंजन के अवसर प्रदान करते हैं। साथ ही, ये मधुमक्खियों व तितलियों जैसे महत्त्वपूर्ण परागणकर्ताओं का भी समर्थन करते हैं, जो खाद्य आपूर्ति को सुरक्षित करने में मदद करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, ग्रीन वॉल दिल्ली को राजस्थान से पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली गर्म रेगिस्तानी पवनों से बचाती हैं।
  • आर्थिक लाभ: बड़े शहरों में शहरी वृक्ष प्रतिवर्ष 8 करोड़ रुपये प्रति वर्ग किलोमीटर मूल्य की पारिस्थितिकी सेवाएंँ प्रदान करते हैं, जिनमें वायु शुद्धिकरण, तापमान नियंत्रण, वर्षा जल प्रबंधन और सौंदर्य संबंधी लाभ शामिल हैं।
    • पार्कों और जल निकायों की निकटता से संपत्ति का मूल्य भी बढ़ता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: कुनमिंग मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (GBF) लक्ष्य 12 शहरी नियोजन में हरे और नीले स्थानों को एकीकृत करने पर ज़ोर देता है।
    • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDG) लक्ष्य 11 (संवहनीय शहर और समुदाय) शहरों को समावेशी, सुरक्षित, लचीला एवं  संवहनीय बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

भारत में नगरीय जैवविविधता को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • शहरी क्षेत्रों का अनियंत्रित विस्तार: वर्ष 2025 में, वैश्विक जनसंख्या का लगभग 50% हिस्सा शहरी क्षेत्रों में रहता है, अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह 70% तक पहुँच जाएगा, जिससे प्राकृतिक हरित स्थानों पर दबाव बढ़ेगा।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (2023) से पता चलता है कि प्रमुख शहरों में औसत वन क्षेत्र सिर्फ 10.26% है, जिसमें मुंबई में सबसे अधिक 25.43% और अहमदाबाद में सबसे कम 3.27% है।
    • वर्ष 2021 से 2023 के बीच, चेन्नई और हैदराबाद ने क्रमशः 2.6 और 1.6 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र खोया, जो जैव विविधता की कीमत पर नगरीय विकास को दर्शाता है। 
  • हीट आइलैंड प्रभाव: दिल्ली जैसे कंक्रीट-प्रधान शहर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 4–6°C अधिक गर्म होते हैं, जिससे नगरीय वन्यजीवों पर दबाव पड़ता है।
    • सतही नगरीय ताप द्वीप प्रभाव पक्षियों को उपनगरीय क्षेत्रों की ओर ले जाता है, जिससे उनके प्रजनन और भोजन खोजने की क्षमता प्रभावित होती है।
  • नगरीय आर्द्रभूमियों और जलाशयों का ह्रास: रामसर स्थल ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स पर अतिक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा है, जिससे नॉर्दर्न पिंटेल जैसे प्रवासी पक्षियों के लिये आवश्यक आवास संकट में पड़ रहे हैं।
    • चिंताजनक रूप से, आज चेन्नई की केवल 15% आर्द्रभूमियाँ ही बची हैं—यह पहले के दशकों में 80% से भारी गिरावट है, जब नगर का नगरीय क्षेत्रफल कहीं छोटा था।
  • प्रदूषण: नगरीय प्रदूषणवायु, जल, मृदा और ध्वनिपशु स्वास्थ्य, संचार और पारिस्थितिक तंत्रों को बाधित करके जैव विविधता को नुकसान पहुँचाता है, जैसा कि दिल्ली की विषैली वायु और बेंगलुरु की प्रदूषित बेलंदूर झील में देखा गया है।

 भारत में नगरीय जैवविविधता को बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • हरित अवसंरचना को बढ़ावा देना: पार्कों, नगरीय वनों, आर्द्रभूमियों और हरित छतों जैसी हरित अवसंरचना को बढ़ावा देना नगरीय जैव विविधता और जलवायु प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करता है।
    • UN Habitat के 3-30-300 नियम को अपनाना—दृश्य में 3 पेड़, 30% छत्र आवरण और 300 मीटर के भीतर पार्क—पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बढ़ाता है, नगरों को ठंडा करता है और वन्यजीवों का समर्थन करता है।
  • नगरीय जैव विविधता सूचकांक का विकास: नगरीय जैव विविधता सूचकांक, जो वर्तमान में तेलंगाना और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में क्रियान्वित किया जा रहा है, स्थानीय प्रजातियों, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और शासन का आकलन करता है, ताकि नगरों को संरक्षण और संवर्द्धित मानव कल्याण के लिये स्थानीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (LBSAP) बनाने में सहायता मिल सके, और इसे चरणबद्ध तरीके से सभी प्रमुख भारतीय नगरों में विस्तारित किया जाना चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्थानीय पर्यावरण पहल परिषद (ICLEI) एशिया ने कोच्चि, गंगटोक और नागपुर जैसे नगरों के लिये 23 संकेतकों का उपयोग करके नगरीय जैव विविधता सूचकांक विकसित किया है।
  • नगरीय जलाशयों का संरक्षण और पुनर्स्थापना: नगरीय झीलों में कचरा निपटान को नियंत्रित करने और सीवेज प्रदूषण का उपचार पारंपरिक या प्राकृतिक उपायों से करने की तत्काल आवश्यकता है, साथ ही झीलों और आर्द्रभूमियों के और क्षरण को रोकने के लिये कानूनी सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, गिन्डी में मद्रास रेस क्लब की भूमि को भूजल पुनर्भरण बढ़ाने के लिये झील में परिवर्तित किया जा रहा है, जबकि चेन्नई का पल्लिकारनै दलदल—जो कभी बंजर भूमि और कूड़ेदान था—आंशिक रूप से पुनर्स्थापित किया गया है और इसे संरक्षित वन तथा रामसर स्थल घोषित किया गया है।
  • विकेंद्रीकृत हरितीकरण: विकेंद्रीकृत हरितीकरण समुदायों को पॉकेट पार्क, उद्यानों और सड़क के वृक्षों के माध्यम से सशक्त बनाता है, जिससे स्थानीय जैवविविधता में वृद्धि होती है।
    • उदाहरण के लिये, चेन्नई के कोयंबेडु बाज़ार परियोजना 2021 ने 141 पौधों की प्रजातियों को पुनर्जीवित किया और प्रमुख पक्षियों और तितलियों की प्रजातियों को आकर्षित किया, जो छोटे शहरी भूमि पर प्राकृतिक तीन-स्तरीय वन की नकल करके मियावाकी पद्धति से बेहतर प्रदर्शन था।
  • शहरी नियोजन में जैवविविधता को एकीकृत करना: भारत में शहरी जैवविविधता को बढ़ाने के लिये अनिवार्य प्रभाव आकलन और हरित गलियारों और आवास संपर्क के साथ शहर-स्तरीय कार्य योजनाओं के माध्यम से शहरी नियोजन में जैवविविधता को एकीकृत करना आवश्यक है।
    • कठोर दंड और प्रवर्तन की आवश्यकता है ताकि पर्यावरणीय उल्लंघनों को रोका जा सके और सतत् शहरी विकास सुनिश्चित किया जा सके।
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हैदराबाद के कांचा गाचीबोवली क्षेत्र में IT विकास के लिये बड़े पैमाने पर वनोन्मूलन के विरुद्ध कठोर कार्रवाई ने शहरी जैवविविधता संरक्षण हेतु एक महत्त्वपूर्ण मिसाल स्थापित की है।

अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता दिवस

  • जैवविविधता परिचय: संयुक्त राष्ट्र ने 22 मई को जैवविविधता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस (IDB) के रूप में घोषित किया ताकि जैवविविधता के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके।
    • मूल रूप से यह दिवस 29 दिसंबर को मनाया जाता था, जो जैवविविधता पर कन्वेंशन (CBD) के लागू होने का प्रतीक था। 
    • हालाँकि, वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र ने 1992 में इसी दिन CBD के टेक्स्ट को अपनाने के सम्मान में तिथि को 22 मई कर दिया।
  • जैवविविधता: जैवविविधता एक अवधारणा है, जिसे पहली बार 1985 में वाल्टर जी. रोसेन द्वारा गढ़ा गया था और इसमें पौधों, पशुओं और सूक्ष्मजीवों की व्यापक विविधता शामिल है, साथ ही प्रजातियों के भीतर आनुवंशिक अंतर (जैसे विभिन्न फसल किस्में और पशुधन नस्लें ) और पारिस्थितिक तंत्र की विविधता (झीलें, वन, रेगिस्तान, कृषि परिदृश्य) जहाँ कई जीवित प्राणी परस्पर क्रिया करते हैं।
    • ये संसाधन मानव सभ्यता की नींव हैं जैसे,
      • मछलियाँ लगभग 3 अरब लोगों के लिये 20% पशु प्रोटीन उपलब्ध कराती हैं। 
      • पौधे मानव आहार का  80% से अधिक हिस्सा बनाते हैं और
      • विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 80% लोग बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल के लिये पारंपरिक पौधों पर आधारित दवाओं पर निर्भर हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने वर्ष 2011-2020 को जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र दशक के रूप में नामित किया है, जिसका उद्देश्य जैव विविधता के लिये एक रणनीतिक योजना के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाना है।

निष्कर्ष

नगरीय जैवविविधता जलवायु सहिष्णुता, स्वास्थ्य और आर्थिक समृद्धि के लिये महत्त्वपूर्ण है। बढ़ते शहरीकरण के साथ, 3-30-300 नियम, सिटी बायोडायवर्सिटी इंडेक्स और समुदाय-संचालित संरक्षण जैसी नीतियों के माध्यम से हरे-नीले स्थानों को एकीकृत करना महत्त्वपूर्ण है। कानूनी संरक्षण, विकेंद्रीकृत हरितीकरण और आर्द्रभूमि पुनर्स्थापन भविष्य की पीढ़ियों के लिये पारिस्थितिक सद्भाव के साथ विकास को संतुलित करते हुए सतत् शहरों को सुनिश्चित कर सकती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: "प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत् विकास" शहरी जैवविविधता के संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण है। तेज़ी से शहरीकरण हो रहे शहरों में जैवविविधता को बढ़ावा देने के लिये चुनौतियों और रणनीतियों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. बेहतर नगरीय भविष्य की दिशा में कार्यरत संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र पर्यावास (UN-Habitat) की भूमिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संयुक्त राष्ट्र पर्यावास को आज्ञापित किया गया है कि वह सामाजिक एवं पर्यावरणीय दृष्टि से धारणीय ऐसे कस्बों एवं शहरों को संवर्द्धित करे जो सभी को पर्याप्त आश्रय प्रदान करते हों। 
  2.  इसके साझीदार सिर्फ सरकारें या स्थानीय नगर प्राधिकरण ही हैं। 
  3.  संयुक्त राष्ट्र पर्यावास, सुरक्षित पेयजल व आधारभूत स्वच्छता तक पहुँच बढ़ाने और गरीबी कम करने के लिये संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था के समग्र उद्देश्य में योगदान करता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और विस्तृत मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न 1. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारम्बारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रें में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये।   (2016)

प्रश्न 2. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं?  (2014)


शासन व्यवस्था

पूर्वोत्तर भारत फ्रंटियर से फ्रंटरनर तक

प्रिलिम्स के लिये:

पूर्वोत्तर क्षेत्र, लिविंग रूट ब्रिज, काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, इनर लाइन परमिट, पीएम-डिवाइन, सिलीगुड़ी कॉरिडोर

मेन्स के लिये:

एक्ट ईस्ट नीति और पूर्वोत्तर भारत की भूमिका, पूर्वोत्तर में सीमा प्रबंधन और राष्ट्रीय सुरक्षा

स्रोत:द हिंदू

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री ने "राइजिंग नॉर्थईस्ट: द इन्वेस्टर समिट" में घोषणा की कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) अब भारत की विकास यात्रा में एक "सीमांत" (फ्रंटियर) नहीं बल्कि एक "अग्रणी" (फ्रंटरनर) बन गया है। उन्होंने इस क्षेत्र के रणनीतिक महत्त्व और आर्थिक संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए ज़ोर दिया कि यह क्षेत्र दक्षिणपूर्व एशिया के साथ व्यापार के लिये एक प्रवेशद्वार के रूप में उभर रहा है।

नोट: पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER) ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की निवेश और व्यापार क्षमता को उजागर करने के लिये राइजिंग नॉर्थईस्ट: द इन्वेस्टर समिट का आयोजन किया है। 

  • इस पहल का उद्देश्य पूर्वोत्तर क्षेत्र को आसियान और BBAN (बांग्लादेश, भूटान, नेपाल) देशों के साथ रणनीतिक संपर्क के साथ एक गतिशील आर्थिक गलियारे के रूप में पेश करना है।
  • राइजिंग नॉर्थ ईस्ट इन्वेस्टर्स समिट 2025 में अभूतपूर्व 4.3 लाख करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित हुआ, जिससे पूर्वोत्तर क्षेत्र के भारत की अगली आर्थिक महाशक्ति बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

पूर्वोत्तर भारत के विकास में अग्रणी बनकर कैसे उभर रहा है?

  • जैव-अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधन: पूर्वोत्तर क्षेत्र, जिसे 'अष्ट लक्ष्मी' कहा जाता है, नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि-आधारित उद्योगों, पारिस्थितिकी-पर्यटन एवं रणनीतिक विनिर्माण में क्षेत्र की विशाल क्षमता को दर्शाता है।
  • क्षेत्र की जैवविविधता का उपयोग हरित विकास के लिये किया जा रहा है। असम चाय उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र है, जबकि अरुणाचल प्रदेश बाँस आधारित उद्योगों में अग्रणी है।
  • इस क्षेत्र में भारत की पनबिजली क्षमता का 40% (~ 62,000 मेगावाट) मौजूद है, फिर भी केवल 6.9% का ही उपयोग किया जाता है। सौर ऊर्जा क्षमता 57,360 मेगावाट होने का अनुमान है, जबकि स्थापित क्षमता केवल 17% है।
  • पर्यटन और मानव पूंजी की ताकत: उत्तर पूर्व की प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध संस्कृति इसे पर्यावरण अनुकूल और सतत् पर्यटन के लिये एक आदर्श गंतव्य बनाती है।   
    • मुख्य आकर्षणों में मेघालय के लिविंग रूट ब्रिज, सिक्किम का इको-पर्यटन, असम में काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और कामाख्या मंदिर, तथा मणिपुर की लोकटक झील शामिल हैं। ये स्थल स्थानीय आजीविका को बढ़ावा देते हैं और पर्यावरण-अनुकूल यात्रा को प्रोत्साहित करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र (NER) में उच्च साक्षरता दर (~80%) और अंग्रेज़ी बोलने वाली जनसंख्या के बड़े अनुपात क्षेत्र की कार्यबल तत्परता में योगदान देता है।
    • मणिपुर और मिज़ोरम जैसे राज्य फुटबॉल, मुक्केबाज़ी और भारोत्तोलन जैसे खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर अग्रणी हैं।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार: उत्तर-पूर्व भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति का केंद्र है, जो इसे आसियान और इंडो-पैसिफिक बाज़ारों के लिये एक सेतु बनाता है।
    • भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कालादान बहु-मोडल ट्रांज़िट परिवहन परियोजना जैसी योजनाएँ क्षेत्रीय संपर्क को सुदृढ़ कर रही हैं।
    • म्याँमार में सित्तवे और बांग्लादेश में चटगाँव जैसे बंदरगाहों का विकास उत्तर-पूर्व भारत को प्रमुख हिंद महासागर शिपिंग मार्गों से जोड़ेगा, जिससे भारत-आसियान व्यापार अगले दशक में 125 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 200 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण: उत्तर-पूर्व भारत (NER) पाँच देशों (म्याँमार, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत/चीन) के साथ 5,484 कि.मी. लंबी सीमा साझा करता है और राष्ट्रीय सुरक्षा में अग्रिम भूमिका निभाता है।
    • सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक और आर्थिक रेखा है, जो उत्तर-पूर्व भारत को देश के अन्य भागों से जोड़ता है और भूटान, बांग्लादेश और नेपाल के साथ व्यापार के लिये एक प्रमुख पारगमन केंद्र के रूप में कार्य करता है।
  • बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा: केंद्र सरकार ने उत्तर-पूर्व क्षेत्र के लिये सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के बजट का 10% हिस्सा आवंटित कर फंडिंग में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की है।
    • वर्ष 2018 में शुरू की गई पूर्वोत्तर विशेष अवसंरचना विकास योजना (NESIDS) के अंतर्गत सड़कों, जल और विद्युत् के लिये 1 अरब अमेरिकी डॉलर का आवंटन किया गया है।
    • अरुणाचल प्रदेश में सेला सुरंग जैसी परियोजनाएँ दूरस्थ क्षेत्रों में हर मौसम में कनेक्टिविटी को सुधार रही हैं। असम में प्रस्तावित सेमीकंडक्टर संयंत्र जैसी नई पहलें उच्च प्रौद्योगिकी औद्योगिक निवेश की दिशा में बदलाव का संकेत देती हैं।

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पूर्वोत्तर भारत को अग्रणी बनाने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • ऐतिहासिक विद्रोह और सुरक्षा संबंधी मुद्दे: नागा, मिज़ो, ULFA, NDFB जैसे दशकों पुराने विद्रोही आंदोलनों ने अस्थिरता उत्पन्न की, जिससे निवेश और विकास प्रभावित हुए।
    • बांग्लादेश और म्याँमार से सीमा पार घुसपैठ ने लगातार सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं।
      • वर्ष 2023 में मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हुई जातीय हिंसा, गहरे तनाव एवं नाजुक अंतर-सामुदायिक संबंधों को उज़ागर करती है  तथा पहचान की राजनीति एकीकृत विकास के दृष्टिकोण को रोकती है। 
      • "बाहरी लोगों" का भय और इनर लाइन परमिट (ILP) को जारी रखने की मांग प्रवास, निवेश व उद्यमिता के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न करती है।
  • कृषि संकट और रोज़गार अंतराल: यद्यपि कृषि यहाँ का मुख्य आधार है, फिर भी इस क्षेत्र को कम उत्पादकता व आधुनिक तकनीकों की कमी जैसी गंभीर समस्याओं  का सामना करना पड़ रहा है।
  • पूर्वोत्तर में बिचौलियों का बोलबाला है, जिसकी वजह से किसान कर्ज और कम आय के जाल में फँस जाते हैं। यहाँ तक ​​कि सहकारी समितियों को भी इन बिचौलियों से मुकाबला करने में संघर्ष करना पड़ता है।
  • उच्च साक्षरता और अंग्रेज़ी दक्षता के बावजूद, उद्योग-तैयार कौशल की कमी रोज़गार-क्षमता को प्रभावित करती है।
    • कम पर्यटक संख्या: सीमित संपर्क, सुरक्षा चिंताओं और कमज़ोर विपणन के कारण इस क्षेत्र की विशाल पर्यटन क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है।
    • केंद्रीय निधियों पर निर्भरता: कई पूर्वोत्तर राज्य केंद्र सरकार के सहयोग पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जो कम राजकोषीय आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
    • सीमित औद्योगिक आधार: औद्योगिक विकास असमान है और उच्च रसद लागत बड़े पैमाने पर निवेश को हतोत्साहित करती है।
    • भौगोलिक बाधाएँ और पर्यावरणीय भेद्यता: कठिन भूभाग, बार-बार आने वाली बाढ़ और भूस्खलन बुनियादी ढाँचे के विकास व कनेक्टिविटी में बाधा डालते हैं।
      • पूर्वोत्तर में अक्सर बाढ़, भूस्खलन और अनियमित वर्षा होती है, जिससे बुनियादी ढाँचे व आजीविका को नुकसान पहुँचता है। 
      • वर्ष 2022 में असम में आई बाढ़, जिसने लाखों लोगों को विस्थापित किया, इस क्षेत्र की पारिस्थितिक भेद्यता को उज़ागर करती है, जबकि जलवायु परिवर्तन कृषि और जल सुरक्षा के लिये खतरा है।
  • मादक पदार्थों की तस्करी: गोल्डन ट्राइंगल से निकटता के कारण पूर्वोत्तर क्षेत्र मादक पदार्थों की तस्करी के प्रति संवेदनशील है, विशेष रूप से मणिपुर और मिज़ोरम में।
  • युवाओं में मादक द्रव्यों की लत बढ़ रही है, जिससे स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर बोझ बढ़ रहा है और सामाजिक ताना-बाना बिगड़ रहा है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र को भारत के विकास में अग्रणी किस प्रकार बनाया जा सकता है?

  • पर्यटन और सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: स्वदेश दर्शन 2.0 और देखो अपना देश पहल के तहत इको-पर्यटन, आध्यात्मिक पर्यटन एवं नृजातीय ग्राम सर्किट विकसित करना चाहिये।
    • स्टार्टअप इंडिया और मुद्रा ऋण के तहत प्रशिक्षण एवं सूक्ष्म ऋण के माध्यम से होमस्टे मॉडल के साथ सांस्कृतिक उद्यमिता को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • इस क्षेत्र को सॉफ्ट पाॅवर हब के रूप में स्थापित करने के क्रम में अधिकाधिक अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक उत्सवों (जैसे हॉर्नबिल और पैंग ल्हाब्सोल) का आयोजन करना चाहिये।
  • मानव पूंजी का विकास: IIT-गुवाहाटी जैसे संस्थानों के साथ साझेदारी में बहु-विषयक विश्वविद्यालय एवं कौशल केंद्र स्थापित करने चाहिये। क्षेत्रीय कौशल संस्कृति (जैसे हस्तशिल्प, कृषि-तकनीक, आतिथ्य, आपदा प्रतिक्रिया) के अनुसार कौशल विकास करना चाहिये।
    • जैविक कृषि को बढ़ावा देना: NE-RACE के माध्यम से बेहतर बाज़ार पहुँच के साथ मध्यस्थों के बोझ को कम करना चाहिये।
      • MOVCDNER के अंतर्गत ब्रांडिंग और विपणन सहायता के साथ-साथ जैविक उत्पादों हेतु मूल्य प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिये।
    • गहन औद्योगिकीकरण: रियल टाइम मॉनिटरिंग, ​​तीव्र अनुमोदन तथा लक्षित क्षेत्रों (जैसे जैविक खाद्य, हस्तशिल्प, फार्मा और कृषि प्रसंस्करण) के साथ NEIDS का पुनरुद्धार करना चाहिये।
      • औद्योगिक विकास तथा सीमापार व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्लग-एंड-प्ले बुनियादी ढाँचे के साथ विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) के समान नगालैंड, मणिपुर और मिज़ोरम में सीमा आर्थिक क्षेत्र (BEZs) की स्थापना करनी चाहिये।
  • बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: 5G कॉरिडोर, डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम और प्रत्येक राज्य की राजधानी में तकनीकी केंद्रों के माध्यम से भारतनेट के क्रियान्वयन में तीव्रता लानी चाहिये।
    • बेहतर अंतिम-मील हवाई संपर्क के क्रम में UDAN योजना का विस्तार किया जाना चाहिये।
  • उग्रवाद और जातीय संघर्षों का समाधान: समावेशी स्थानीय शासन, अंतर-सामुदायिक कार्यक्रम, रोज़गार सृजन तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के माध्यम से जातीय सामंजस्य को बढ़ावा देना चाहिये। 
    • लोकुर समिति (वर्ष 1965) ने आदिवासियों के भूमि अधिकारों की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए रोज़गार में सुधार और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से निपटने के क्रम में कल्याणकारी योजनाओं को बढ़ावा देने की सिफारिश की थी।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत की एक्ट ईस्ट नीति एवं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विकसित भू-राजनीतिक गतिशीलता के संदर्भ में पूर्वोत्तर भारत के सामरिक महत्व पर चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

Q. उत्तर-पूर्वी भारत में उपप्लवियों की सीमा के आरपार आवाजाही, सीमा की पुलिसिंग के सामने अनेक सुरक्षा चुनौतियों में से केवल एक है। भारत-म्याँमार सीमा के आरपार वर्तमान में आरंभ होने वाली विभिन्न चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। साथ ही चुनौतियों का प्रतिरोध करने के कदमों पर चर्चा कीजिये। (2019)


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