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डेली न्यूज़

  • 25 Jul, 2020
  • 42 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये 

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, भारतीय रिज़र्व बैंक 

मेन्स के लिये

वित्तीय प्रणाली पर COVID-19 का प्रभाव और बैंकिंग प्रणाली में NPA की समस्या 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report) का 21वाँ अंक जारी किया है

प्रमुख बिंदु

  • RBI ने COVID-19 महामारी और राष्ट्रीयव्यापी लॉकडाउन के प्रभावस्वरूप बैंकिंग क्षेत्र के लिये गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets) में काफी वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की है।
  • रिपोर्ट जारी करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने चेतावनी दी है कि RBI द्वारा क्रेडिट जोखिम के आधार पर किये गए परीक्षणों से संकेत मिलता है कि सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (SCBs) का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात मौजूदा परिस्थितियों के तहत मार्च 2020 में 8.5 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2021 तक 12.5 प्रतिशत हो सकता है।
    • उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, यह अनुपात मार्च 2000 के सकल NPA अनुपात (12.7 प्रतिशत) के बाद सबसे अधिक है।
    • गौरतलब है कि बीते माह में एसएंडपी ग्लोबल (S&P Global) नामक निजी कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि बैंकों का सकल NPA अनुपात 13-14 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
  • RBI की इस अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि यदि आर्थिक स्थितियाँ और अधिक बिगड़ती हैं, तो सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात 14.7 प्रतिशत तक भी पहुँच सकता है।
  • RBI की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2020 में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (SCBs) का पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) घटकर 14.8 प्रतिशत हो गया है, जो कि सितंबर 2019 में 15 प्रतिशत था।
    • RBI के अनुमान के अनुसार, मौजूदा परिस्थितियों में मार्च 2021 तक यह अनुपात 13.3 प्रतिशत पर पहुँच सकता है, और यदि आर्थिक परिस्थितियाँ और बिगड़ती हैं तो यह अनुपात 11.8 प्रतिशत तक पहुँच सकता है।
    • पूँजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR) को पूँजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (Capital-to-Risk Weighted Assets Ratio-CRAR) के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली छमाही के दौरान बैंक ऋण काफी कमजोर रहा था, और  मार्च 2020 तक में भी यह 5.9 प्रतिशत तक नीचे गिर गया।
  • रिपोर्ट के मुताबिक, संपत्ति प्रबंधन कंपनियाँ और म्यूचुअल फंड वित्तीय प्रणाली में सबसे बड़े फंड प्रदाता रहे, जिनके बाद बीमा कंपनियों का स्थान है, वहीं गैर-बैंकिंग‍ वित्तीय कंपनियों (NBFCs) ने वित्तीय प्रणाली में सबसे अधिक उधार प्राप्त किया था।
  • वित्तीय प्रणाली पर COVID-19 का प्रभाव
    • RBI ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा है कि COVID-19 महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण बैंकों की ऋण वृद्धि में भारी गिरावट देखने को मिली है और लाखों लोग बेरोज़गार हो गए हैं। 
    • रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 से मुकाबले में एक अभूतपूर्व पैमाने पर राजकोषीय, मौद्रिक और नियामक हस्तक्षेपों के संयोजन ने वित्तीय बाज़ारों के सामान्य कामकाज को सुनिश्चित किया है।
    • RBI ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार के वित्त में कुछ गिरावट आने की संभावना है, क्योंकि COVID-19 महामारी से संबंधित व्यवधानों के कारण सरकार का राजस्व भी काफी प्रभावित हुआ है।

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    वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट

    • वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) भारतीय रिज़र्व बैंक का एक अर्द्धवार्षिक प्रकाशन है जो भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता का समग्र मूल्यांकन प्रस्तुत करती है।
    • साथ ही यह वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा करती है।

    आगे की राह

    • RBI द्वारा जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में नियामक संस्थाओं और सरकार ने वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये कई नीतिगत उपाय किये हैं और देश के वंचित तथा संवेदनशील वर्ग के समक्ष मौजूद संकट को कम किया है, किंतु इसके बावजूद अल्पकाल में अर्थव्यवस्था के समक्ष कई चुनौतियाँ मौजूद हैं, जिनसे निपटना अभी शेष है।

    स्रोत: द हिंदू


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    RBI की स्वायत्तता में कमी: उर्जित पटेल

    प्रीलिम्स के लिये:

    दबावग्रस्त परिसंपतियाँ, RBI का 7 जून, 2019 का सर्कुलर 

    मेन्स के लिये:

    बैंकिंग प्रणाली से जुड़ी समस्याएँ 

    चर्चा में क्यों?

    भारतीय रिज़र्व बैंक’ के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने अपनी नई किताब ‘ओवरड्राफ्ट: सेविंग द इंडियन सेवर’ में ‘दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड' (IBC) और बेड लोन के मामले में केंद्रीय बैंक की शक्तियों को कम करने के लिये वर्तमान सरकार की आलोचना की है।

    प्रमुख बिंदु:

    • उर्जित पटेल एक प्रमुख भारतीय अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने 4 सितंबर 2016 से 10 दिसंबर 2018 तक भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के 24 वें गवर्नर के रूप में कार्य किया।
    • उन्होंने सितंबर 2019 में अपना कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व ही व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए, 10 दिसंबर 2018 को अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।

     जून, 2019 के सर्कुलर की आलोचना:

    • उर्जित पटेल ने अपनी किताब में RBI के 7 जून, 2019 के सर्कुलर की आलोचना की है। 
    • जून 2019 के  सर्कुलर के माध्यम से RBI ने बैंकिंग क्षेत्र में दबावग्रस्त या ‘गैर निष्पादित परिसंपत्तियों’ (NPA) से निपटने के लिये मानदंडों का एक नया सेट जारी किया गया।
      • जून 2019 का सर्कुलर फरवरी 2018 के सर्कुलर के स्थान पर जारी किया गया था। 
    •  पूर्व RBI गवर्नर के अनुसार, जून 2019 के सर्कुलर में दिवालियापन से जुड़े प्रावधान को सरकार द्वारा कमज़ोर बनाया गया है।  
    • नवीन सर्कुलर ऋणदाताओं को एक संकल्प रणनीति तैयार करने के लिये 30 दिन की समीक्षा अवधि प्रदान करता है, जबकि पूर्व का सर्कुलर (फरवरी 2018) ऋणदाताओं को एक दिन का डिफ़ॉल्ट होने पर भी एक संकल्प रणनीति शुरू करने के लिये मज़बूर करता है। इस प्रकार नवीन सर्कुलर डिफ़ॉल्टरों को बच निकलने में मदद करता है। 
    • RBI के फरवरी 2018 के सर्कुलर को सरकार द्वारा इस आधार पर वापस लेने का अनुरोध किया गया कि इस सर्कुलर से 'सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों' (MSMEs) को विशेष रूप से नुकसान होगा। जबकि वास्तविकता में उधारकर्त्ताओं के इस वर्ग को नए नियमों में स्पष्ट रूप से संरक्षित किया गया था। 

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    RBI की शक्तियों में कमी:

    • वित्तीय स्थिरता को संरक्षित करने (Preserving Financial Stability) से संबंधित कई विषयों पर RBI की वास्तविक शक्तियों (De Facto Powers) को कम कर दिया गया है।
    • सरकार का मानना था कि फरवरी 2018 का सर्कुलर तथा ‘त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई ‘(PCA) ढाँचा उच्च ऋण वृद्धि के माध्यम से अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में प्रमुख बाधक है। 

    भ्रामक योजनाओं की शुरुआत (Smoke-and-Mirrors Schemes):

    • पूर्व RBI गवर्नर के अनुसार, सरकार की अनेक योजनाएँ अस्पष्ट सूचनाओं पर आधारित है।
    • वर्ष 2019 में भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को, वित्त मंत्रालय द्वारा समस्याग्रस्त रियल एस्टेट परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये 15,000 करोड़ रुपए के फंड को जारी करने के लिये निर्देशित किया गया।
    • सरकार द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के ऋण के 1 लाख करोड़ रुपए तक के ऋण भार का दायित्त्व लेने (Underwrite) पर सहमति व्यक्त की गई है।

    सरकारी स्वामित्त्व के बैंकों का दुरुपयोग:

    • सरकारी स्वामित्व के बैंकों का प्रयोग जहाँ मुख्य रूप से बचतकर्त्ताओं और उधारकर्त्ताओं के बीच कुशल मध्यस्थता के लिये किया जाना चाहिये, सरकार द्वारा इन बैंकों का प्रयोग दिन-प्रतिदिन के व्यापक आर्थिक प्रबंधन (Macroeconomic Management) के लिये किया गया है।
    • बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों के तीन दशक के बाद, अभी भी 'राज्य-प्रायोजित ऋण निर्माण' की प्रमुख हिस्सेदारी है। 
    • सरकार अर्थव्यवस्था की उच्च विकास दर के लिये पूंजीगत गहनता वाले तथा संवेदनशील क्षेत्रों यथा; रियल एस्टेट,  निर्माण आदि को अधिक ऋण देने के लिये इन बैंकों पर दबाव बनती है।  
    • इससे बैंकों का NPA समय के साथ बढ़ता है। सरकार भी इन क्षेत्रों में आवश्यक मदद करती है जिससे अंततः सरकार का राजकोषीय घाटा और संप्रभु देनदारियाँ बढ़ती है। 

    7 जून, 2019 के सर्कुलर के प्रमुख ऋण समाधान मानदंड: 

    • किसी भी फर्म के डिफ़ॉल्ट होने पर ऋणदाता 30 दिन की समीक्षा अवधि में एक संकल्प रणनीति तैयार करेंगे।
    • संकल्प योजना को लागू करने के लिये उधारदाताओं को 30 दिन की समीक्षा अवधि में  'अंतर लेनदार समझौते' (Inter Creditor Agreement- ICA) पर हस्ताक्षर करना होगा। 
    • इसके बाद ऋण को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जाएगा:

    SMA-0:

    •  यदि फर्म 0-30 दिनों के भीतर मूलधन या ब्याज का भुगतान करने में विफल रही हो। 
    • इन्हे दिवालियापन संकल्प (Insolvency Resolution) के तहत कार्यवाही के तहत डिफॉल्ट केस माना जाएगा।

    SMA-1

    • यदि फर्म 31-60 दिनों के भीतर मूलधन या ब्याज का भुगतान करने में विफल रहती हैं। 
    • डिफॉल्टरों के खिलाफ IBC के तहत कार्यवाही की जाएगी। 

    SMA-3:

    • यदि उदारकर्त्ता 61-90 दिनों के भीतर मूलधन या ब्याज का भुगतान करने में विफल रहते हैं। 
    • फर्मों के खिलाफ NCLT के तहत कार्यवाही की जाएगी।
    • संकल्प योजना में उन खातों के स्वामित्त्व में पुनर्गठन/परिवर्तन करना शामिल है, जहाँ उधारदाताओं का कुल जोखिम 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक है। 
    • इसके लिये  विशेष रूप से रिज़र्व बैंक द्वारा अधिकृत क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा अवशिष्ट ऋण के स्वतंत्र क्रेडिट मूल्यांकन की आवश्यकता होगी।

    CIRP

    स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    भारत-श्रीलंका के बीच मुद्रा विनिमय समझौता

    प्रीलिम्स के लिये

    भारतीय रिज़र्व बैंक, मुद्रा विनिमय समझौता

    मेन्स के लिये

    भारत-श्रीलंका संबंध से संबंधित महत्त्वपूर्ण पहलू

    चर्चा में क्यों?

    श्रीलंका ने हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) के साथ 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मुद्रा विनिमय (Currency Swap) समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

    प्रमुख बिंदु

    • ध्यातव्य है कि यह मुद्रा विनिमय समझौता नवंबर 2022 तक मान्य होगा।
    • कारण
      • श्रीलंका द्वारा यह समझौता मुख्य तौर पर COVID-19 के परिणामस्वरूप उत्पन्न आर्थिक संकट के पश्चात् अल्पकालिक अंतर्राष्ट्रीय तरलता संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से किया जा रहा है।
    • महत्त्व
      • यह समझौता COVID-19 महामारी के बीच श्रीलंका को राहत प्रदान करेगा और उसे कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी की समाप्ति के बाद अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने में सहायता करेगा।
      • यह समझौता COVID-19 महामारी और उसके बाद आर्थिक विकास की दिशा में श्रीलंका के साथ कार्य करने की भारत की प्रतिबद्धता का एक सशक्त उदाहरण है।
    • मुद्रा विनिमय समझौता और उसका महत्त्व
      • सामान्य शब्दों में मुद्रा विनिमय (Currency Swap) एक प्रकार का विदेशी विनिमय समझौता होता है जो दो पक्षों के बीच एक मुद्रा के बदले दूसरी मुद्रा प्राप्त करने हेतु एक निश्चित समय के लिये किया जाता है।
      • मुद्रा विनियम का मुख्य उद्देश्य विदेशी मुद्रा बाज़ार और विनिमय दर में स्थिरता तथा अन्य जोखिमों से बचना होता है।
      • सामन्यतः किसी देश का केंद्रीय बैंक और वहाँ की सरकार देश में विदेशी मुद्रा की पर्याप्तता सुनिश्चित करने के लिये विदेशी समकक्षों के साथ मुद्रा विनिमय समझौते में संलग्न होते हैं।

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    • भारत-श्रीलंका संबंधों के हालिया घटनाक्रम 
      • ध्यातव्य है कि बीते वर्ष जब श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) भारत के दौरे पर आए थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के लिये 450 मिलियन डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit) की घोषणा की थी।
      • विशेषज्ञों ने भारत सरकार के इस निर्णय को ‘संबंध मज़बूत करने के सक्रिय दृष्टिकोण के रूप में परिभाषित किया था।
      • आँकड़ों के अनुसार, श्रीलंका ने अब तक भारत से कुल 960 मिलियन डॉलर का क़र्ज़ लिया है, उल्लेखनीय है कि हालिया मुद्रा विनिमय समझौता भी इसी ऋण से संबंधित एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद लिया गया है।
      • विदित हो कि बीते ही वर्ष श्रीलंका ने भारत और जापान के साथ कोलंबो बंदरगाह पर ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (East Container Terminal) बनाने को लेकर एक समझौता किया था। तीनों देशों ने संयुक्त रूप से कोलंबो बंदरगाह पर ईस्ट कंटेनर टर्मिनल के निर्माण पर सहमति व्यक्त की थी।
        • हालाँकि कोलंबो बंदरगाह पर स्थिति इस परियोजना को लेकर हो रहे विरोध के चलते  श्रीलंका ने अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है।
      • भारत ने COVID-19 से निपटने में भी श्रीलंका की सहायता की है और एक एम्बुलेंस सेवा शुरू करने में भी श्रीलंका की मदद की है। भारत द्वारा प्रदान की गई यह सहायता दोनों देशों के मध्य स्वास्थ्य क्षेत्र में अच्छे संबंधों को दर्शाती है।
      • श्रीलंका में आज भी लोकप्रिय तमिल नेता तमिल प्रश्न के लंबित राजनीतिक समाधान पर भारत का आह्वान करते हैं।
        • गौरतलब है कि भारत ने वर्ष 1983 में श्रीलंकाई तमिलों और बहुसंख्यक सिंहलियों के बीच हुए गृह युद्ध में सक्रिय भूमिका निभाई थी और श्रीलंका के संघर्ष को एक राजनीतिक समाधान प्रदान करने के लिये वर्ष 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर भी किये गए थे।

    Sri-Lanka

    आगे की राह

    • भारत और श्रीलंका दोनों ही देश कपड़ा, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और कृषि व्यवसाय जैसे क्षेत्रों में सहयोग की नई दिशा तलाश सकते हैं, इनमें से कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जिनमें भारत की स्थिति काफी अच्छी है।
    • श्रीलंका को भारतीय निवेशकों के लिये एक उदार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना चाहिये और उसकी रक्षा तथा उसे बढ़ावा देना का कार्य करना चाहिये।
    • भारत और श्रीलंका के मध्य एक साझा संस्कृति है जो दोनों देशों को एक साथ जोड़ने का कार्य करती है। दक्षिण एशिया में महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय हितों के साथ एक प्रमुख एशियाई राष्ट्र होने नाते के भारत पर अपने निकटतम पड़ोस में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने की विशेष ज़िम्मेदारी है।
      • अतः आवश्यक है कि भारत और श्रीलंका एक मंच पर आकर विभिन्न मुद्दों पर विचार कर अपने द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत करने का प्रयास करें।

    स्रोत: द हिंदू


    शासन व्यवस्था

    डिजिटल जवाबदेही और पारदर्शिता अधिनियम: डेटा

    प्रीलिम्स के लिये:

    नियंत्रक और महालेखा परीक्षक,‘डिजिटल जवाबदेही और पारदर्शिता अधिनियम के मुख्य प्रावधान 

    मेन्स के लिये: 

    शासन व्यवस्था में पारदर्शिता एवं जवाबदेहीता स्थापित करने में  ‘डिजिटल जवाबदेही और पारदर्शिता अधिनियम’ का महत्त्व 

    चर्चा में क्यों? 

    हाल ही में ‘नियंत्रक और महालेखा परीक्षक’ (Comptroller and Auditor General-CAG) ने  ‘डिजिटल जवाबदेही और पारदर्शिता अधिनियम’ (Digital Accountability and Transparency Act-DATA) नामक एक प्रस्तावित परियोजना एवं कानून के तहत  केंद्र सरकार के लिये अनिवार्य डिजिटल भुगतान, लेखांकन एवं लेन देन हेतु डिजिटलीकरण के माध्यम से तीन चरण के  ट्रांज़िशन (Three-Phase Transition) का सुझाव दिया है।

    प्रमुख बिंदु:

    • तीन चरण के ट्रांज़िशन (Three-Phase Transition) के सुझाव में डिजिटल सार्वजनिक उपयोगिताओं की आवश्यकता को चिह्नित किया गया हैं। 
      • इन सुझावों में न केवल ई-सेवाएँ  शामिल हैं, बल्कि सभी सरकारी राजस्व एवं व्यय आँकड़ों को इलेक्ट्रॉनिक, मशीनी माध्यम से पढ़ने योग्य, गैर-प्रतिकारक, विश्वसनीय, सुलभ और खोजने योग्य बनाया गया है।
    • डिजिटलीकरण के लिये 100% एंड-टू-एंड इलेक्ट्रॉनिक डेटा कैप्चर अर्थात् डेटा तक शुरु से लेकर अंत तक  इलेक्ट्रॉनिक पहुँच आवश्यक है। 
      • इसमें सभी रसीदें एवं व्यय का लेन देन शामिल हैं। एंड-टू-एंड इलेक्ट्रॉनिक डेटा कैप्चर में  माँगों, मूल्यांकन और चालान की  प्राप्ति (Received), संसाधित (Processed) एवं भुगतान (Paid) इत्यदि को  इलेक्ट्रॉनिक रूप से  शामिल किया जाना है।
    • सभी सरकारी संस्थाओं में डेटा गवर्नेंस के लिये निर्धारित मानक ज़रुरी है।
      • डेटा मानक का  अर्थ है डेटा के घटकों का वर्णन एवं रिकॉर्डिंग करने के नियम जो डेटा के एकीकरण (Integration), साझाकरण (Sharing) और अंतर-सक्षमता (Interoperability) के लिये आवश्यक हैं।
    • प्रौद्योगिकी वस्तुसंरचना
      • इसके तहत मजबूत सुरक्षा के साथ-साथ गोपनीयता को सुनिश्चित करते हुए सभी आईटी सरकारी प्रणालियों को एक निर्धारित स्वतंत्र  वस्तुसंरचना ढाँचे के अनुरूप विकसित किया जाएगा।

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    डिजिटलीकरण के लाभ:

    • डिजिटलीकरण के माध्यम से बजट के अलावा किये गए लेनदेन, व्यावसायिक निरंतरता (जैसे  फ़ाइलों या पेपर रिकॉर्ड की तरह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड खो नहीं सकते हैं) एवं असंगत लेखापरीक्षण की पहचान की जा सकती है।
    • यह संसद और विधान सभाओं को यह आश्वासन देने में सक्षम बनाएगा कि सरकार के द्वारा  एकत्र किया गया प्रत्येक रुपया/धनराशि उसी उद्देश्य के लिये खर्च की गई है जिसके लिये इसे आवंटित किया गया था।
    • डिजिटलीकरण द्वारा  लेन-देन में  डेटा मानकीकरण के निर्धारण से डेटा की अस्पष्टता दूर होगी साथ ही अनावश्यक डेटा को कम किया जा सकेगा जिससे विभिन्न डेटाबेस के एकीकरण के लिये प्रोटोकॉल बनाने में आसानी होगी।
    • यह संज्ञानात्मक बुद्धिमत्ता उपकरणों जैसे एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग के उपयोग को सक्षम बनाएगा जिसका उपयोग बजट आधार स्थापित करने में , त्रुटियों का पता लगाने में , डेटा-संचालित योजना के क्रियान्वयन में तथा विभागों एवं  एजेंसियों के तुलनात्मक प्रदर्शन हेतु मानक स्थापित करने में किया जा सकता है ।

    स्रोत: द हिंदू


    अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    श्रीलंका के साथ मछुआरों का मुद्दा

    प्रीलिम्स के लिये: 

    बंगाल की खाड़ी, पाक की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी तथा कच्चातिवु द्वीप की भौगोलिक अवस्थिति 

    मेन्स के लिये:

     भारत-श्रीलंका के मध्य द्विपक्षीय संबंध एवं संबंधित मुद्दे  

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में श्रीलंकाई मछुआरों ने अपने प्रादेशिक जल (श्रीलंका के पश्चिमी क्षेत्र) में भारतीय ट्रोलर्स की संख्या में अचानक वृद्धि होने की सूचना दी।

    • प्रादेशिक प्रदेश आधार रेखा से 12 समुद्री मील की दूरी तक फैला हुआ होता है। इसके हवाई क्षेत्र, समुद्र, सीबेड और सबसॉइल पर तटीय देशों की संप्रभुता होती है।

    पृठभूमि

    Gulf-of-Mannar

    • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के बारे में
      •  वर्ष 1974 तक बंगाल की खाड़ी, पाक की खाड़ी और मन्नार की खाड़ी से स्वतंत्र रूप से भारतीय नाविक इस विवादित समुद्री जलक्षेत्र में मछली पकड़ थे।
      • विवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से वर्ष 1976 में दोनों देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (International Maritime Boundary Line-IMBL) का सीमांकन करने के लिये संधियों पर हस्ताक्षर किये गए।
        • हालाँकि ये संधियाँ उन पारंपरिक तरीके से मछली पकड़ने वाले मछुआरों के हितों को  नज़रअंदाज़ करती है जो मत्स्यन हेतु स्वयं को एक सीमित क्षेत्र तक रखने के लिये बाध्य है।
    • कच्चातिवु द्वीप विवाद:
      • इस द्वीप का उपयोग  मछुआरों द्वारा पकड़ी गई मछलियों को छाँटने और अपना जाल सुखाने के लिये किया जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के दूसरी तरफ स्थित हैं।
      • ऐसे करने में पारंपरिक मछुआरे अक्सर अपनी जान जोखिम में डालते हैं क्योंकि गहरे समुद्र से खाली हाथ लौटने के बजाय मछली पकड़ने के लिये वे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार कर जाते हैं उनके ऐसा करने पर श्रीलंकाई नौसेना अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार करने वाले भारतीय मछवारों को पकड़कर या तो उनके जाल को नष्ट कर देती है या फिर उनके जहाज़ों को हिरासत में ले लेती हैं।
    • समझौतों का व्यावहारिक कार्यान्वयन:
      • दोनों देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा की स्थिति को ध्यान में रखते हुए तथा दोनों ओर के मछुआरों की समस्या के समाधान के लिये कुछ व्यावहारिक तरीकों पर सहमति व्यक्त की गई है। जिनके माध्यम से मछुआरों को मानवीय तरीके से हिरासत में लिया जायेगा।
      • दोनों देशों के मछुआरों की इस समस्या का स्थायी समाधान खोजने एवं उनकी मदद करने के लिये भारत के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare of India) और मत्स्य मंत्रालय (Ministry of Fisheries) तथा श्रीलंका के जलीय संसाधन विकास मंत्रालय के मध्य  मत्स्य पालन पर एक संयुक्त कार्यकारी समूह (Joint Working Group- JWG) स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की गई है।

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    श्रीलंका द्वारा उठाए गए कदम:

    • पिछले कुछ वर्षों में श्रीलंका द्वारा गहरे समुद्री क्षेत्रों में मछली पकड़ने पर कड़े प्रतिबंध एवं कानून लागू किये गए हैं इसके अलावा विदेशी जहाज़ों को नष्ट करने के साथ-साथ उनपर भारी जुर्माना भी आरोपित किया गया है।
    • श्रीलंकाई नौसेना द्वारा अवैध शिकार के आरोप में वर्ष 2017 में 450 से अधिक भारतीय मछुआरों तथा वर्ष 2018 में 156 भारतीय मछुआरों को  गिरफ्तार किया जा चुका है। वर्ष 2019 में कुल 210 गिरफ्तारियां की गईं, जबकि 2020 में अब तक 34 मछुआरों को गिरफ्तार किया जा चुका हैं।
    • कोविड-19 का खतरा:
      • श्रीलंकाई मछुआरों का आरोप हैं कि वर्तमान में भारत में COVID-19 महामारी के कारण, श्रीलंकाई नौसेना तमिलनाडु से आने वाले मछुआरों को गिरफ्तार नहीं कर रही हैं।
      • हालाँकि, श्रीलंका नौसेना द्वारा इस बात का खंडन करते हुए कहा गया है कि श्रीलंका समुद्री सीमा क्षेत्र में न केवल अवैध तरीके से मछली पकड़ने वालों पर बल्कि नशीले पदार्थों के व्यापार जैसी किसी भी अवैध गतिविधि पर भी श्रीलंकाई नौसेना द्वारा नज़र रखी जा रही है।

    आगे की राह

    • भारत को श्रीलंका के साथ अपने पारंपरिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत बनाने पर अधिक ध्यान देना चाहिये।
    • भारत और श्रीलंका के मध्य फेरी सेवा शुरू करके दोनों देशों के लोगों के मध्य संबंधों को प्रगाढ़ करने का प्रयास किया जाना चाहिये तथा दोनों देशों को पारस्परिक हितों और समस्याओं को संबोधित करने पर बा देना चाहिये

    स्रोत: द हिंदू


    सामाजिक न्याय

    मध्य प्रदेश में शिशु मृत्युदर में बढ़ोत्तरी

    प्रीलिम्स के लिये:

    शिशु मृत्युदर, मातृ मृत्युदर, जन्मदर, मृत्युदर,राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन,

    मेन्स के लिये:

    शिशु मृत्युदर संबंधित मुद्दे तथा सरकार के प्रयास 

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में रजिस्ट्रार जनरल इंडिया (Registrar General India) के कार्यालय के अनुसार, मध्य प्रदेश में शिशु मृत्युदर (Infant Mortality Rate- IMR) वर्ष 2018 में पिछले वर्ष अर्थात् वर्ष 2017 की तुलना में 47 से बढ़कर 48 हो गई है।

    • रजिस्ट्रार जनरल का कार्यालय गृह मंत्रालय केअधीन है। यह नमूना पंजीकरण प्रणाली बुलेटिन  (Sample Registration System bulletin) जारी करता है, जिसके द्वारा राज्यों के जन्मदर, मृत्युदर एवं शिशु मृत्युदर के अनुमानित आँकड़ें प्रस्तुत किये जाते हैं।

    प्रमुख बिंदु:

    • देश में औसत शिशु मृत्युदर  प्रति 1,000 जीवित जन्मे बच्चों पर 32 है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में औसत शिशु मृत्युदर 36 तथा शहरी क्षेत्रों में 23 हैं।
    • मध्य प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्युदर  52 तथा शहरी क्षेत्रों में शिशु मृत्युदर 36 हैं। 
    • मध्य प्रदेश में देश में सर्वाधिक शिशु मृत्युदर (48/1000) है।
      • वर्ष 2018 में राज्य में बालकों में शिशु मृत्युदर 1,000 जीवित बालकों पर 51 तथा बालिकाओं में  शिशु मृत्युदर 1,000 जीवित बालिकाओं पर 46 रही।
      • मध्य प्रदेश में 1,000 जीवित जन्मों में से 26 शिशुओं की मृत्यु अर्थात् आधे से अधिक शिशुओं की मृत्यु जन्म के पहले सात दिनों के भीतर हुई है।
    • मध्य प्रदेश के बाद सर्वाधिक शिशु मृत्युदर के मामले में उत्तर प्रदेश का द्वितीय स्थान है जहाँ शिशु मृत्युदर (43/1000) है तथा बड़े राज्यों में  सबसे कम शिशु मृत्युदर (7/1000) केरल में है।

    शिशु मृत्युदर: शिशु मृत्युदर द्वारा प्रति 1000 जीवित जन्मे बच्चों में से एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत की संख्या को प्रदर्शित करता है।

    मातृ मृत्युदर: यह गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण से (आकस्मिक या अप्रत्याशित कारणों को छोड़कर) प्रति 100,000 जीवित जन्मों में मातृ मृत्यु की वार्षिक संख्या है। 

    जन्मदर: जन्मदर से तात्पर्य प्रति वर्ष 1000 व्यक्तियों पर जीवित शिशुओं की कुल संख्या से है। 

    मृत्युदर: मृत्युदर से तात्पर्य प्रति 1000 जीवित जन्मे शिशुओं में से 1 वर्ष या इससे कम उम्र के  शिशुओं की कुल संख्या से है।

    BPSC

    शिशु मृत्युदर के कारण:

    • समय से पहले प्रसव, संक्रमण, जन्म के समय रक्त में ऑक्सीजन की कमी (Birth Asphyxiation) एवं जटिल प्रसव के दौरान उपचार की देरी शिशु मृत्युदर को बढ़ाती है। 

    शिशु मृत्युदर से संबंधित मुद्दे/चिंताएँ:

    • जन्म अंतराल (Birth Spacing): ज्यादातर मामलों में दो बच्चों का जन्म तीन वर्ष के जन्मान्तराल के बजाए एक-डेढ़ वर्ष के अंतराल में ही हुआ होता है इसके परिणामस्वरूप कम वज़न वाले शिशुओं का समय से पहले ही प्रसव (Premature Deliveries) हो जाता है।
    • उच्च कुपोषण (High Malnutrition): गर्भवती होने के साथ-साथ स्तनपान कराने वाली माताओं में उच्च कुपोषण का स्तर अक्सर शिशुओं की मृत्यु का कारण बनता है।
    • मातृ स्वास्थ्य (Maternal Health): इसका असर शिशु मृत्युदर पर भी पड़ता है। वर्ष 2015 से वर्ष 2017 के मध्य, मध्य प्रदेश में मातृ मृत्युदर अनुपात 188/100000 दर्ज किया गया जो देश के औसत मातृ मृत्युदर अनुपात 122/100000 की तुलना में अधिक है।
    • प्रसव पूर्व देखभाल (Antenatal Care): राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4 (2015-16) के अनुसार, केवल 11.4% माताओं को ही पूर्ण प्रसव पूर्व उचित देखभाल मिल पाती है। 

    समाधान: 

    • राज्यों की प्रतिक्रिया (Response of States): स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है जिसके तहत राज्य सरकार स्वास्थ्य देखभाल की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की होती। इसके लिये मानव एवं वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता के संबंध में राज्यों की मज़बूत प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
    • प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल (Antenatal and Postnatal Care): प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल में पर्याप्त स्वास्थ्य जांच, संस्थागत प्रसव और दवा की आवश्यकता पर ध्यान देना ज़रूरी है।
    • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का पुनरूद्धार (Revamping of Primary Health Care): प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली को सुविधाओं, प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों और चिकित्सा उपकरणों को विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
    • बाल चिकित्सा गहन देखभाल इकाईयाँ (Paediatric Intensive Care Units): शिशु मृत्युदर को कम करने के लिये, जन्मजात बच्चों की देखभाल के लिये ‘इंटेंसिव यूनिट केयर’ (Intensive Care Unit- ICUs) स्थापित किये जाने चाहिये।
    • जनशक्ति का संवर्द्धन (Enhancement of Manpower): जनशक्ति के संवर्द्धन के तहत- डॉक्टरों, कुशल आशा कार्यकर्त्ताओं और नर्सों को प्राथमिक स्वास्थ्य पर विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव कराने के लिये बेहतर चिकित्सीय सहायता प्राप्त होनी चाहिये।
    • डिजिटलीकरण (Digitisation): राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल का उपयोग जननी सुरक्षा योजना के माध्यम से संस्थागत प्रसव के लिये एकल बिंदु के रूप में किया गया है।

    सरकारी प्रयास:

    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ( National Health Mission- NHM) में दो उप-मिशन शामिल हैं पहला, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (National Rural Health Mission- NRHM) जो वर्ष 2005 में शुरू किया गया  है दूसरा, राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (National Urban Health Mission- NUHM) जो वर्ष 2013 में शुरू किया गया है।
      • यह मिशन समान, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक लोगों की सार्वभौमिक पहुँच को सुनिश्चित करता है जो लोगों की आवश्यकताओं के प्रति जवाबदेह और उत्तरदायी है।
    • भारत नवजात कार्य योजना: इसे वर्ष 2014 में ‘सिंगल डिजिट नेशनल मोर्टेलिटी रेट’ (Single Digit Neonatal Mortality Rate) तथा ‘सिंगल डिजिट स्टील बर्थ रेट’ (Single Digit Still-birth Rate) के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये  शुरू किया गया था।
    • अन्य योजनाएँ: जननी सुरक्षा योजना (Janani Suraksha Yojana- JSY), जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (Janani Shishu Suraksha Karyakaram- JSSK), प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana- PMMVY) आदि कुछ अन्य प्रमुख योजनाएँ है जिन्हें संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया ताकि शिशु मृत्युदर को कम किया जा सके।

    आगे की राह:

    सतत् विकास लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए शिशु मृत्युदर के स्तर को नीचे लाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिसके तहत वर्ष 2025 तक शिशु मृत्युदर को 1,000 जीवित जन्मों पर 23 लाना है। हालांँकि इसके लिये उपचारात्मक देखभाल के बजाय निवारक उपायों की आवश्यकता है। धन की उपलब्धता (केंद्र से) के साथ-साथ राज्यों द्वारा इसके लिये विवेकपूर्ण तरीके से  योजना बनाने, नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन एवं आवश्यक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है। पोषण अभियान (POSHAN Abhiyan) की भांति अलग-अलग योजनाओं के बेहतर समन्वय, अभिसरण और समग्र एकीकरण सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न मंत्रालय एक-दूसरे के साथ सहयोग करने की आवश्यकता हैं ।

    स्रोत: द हिंदू


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