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डेली न्यूज़

  • 23 Jan, 2020
  • 39 min read
भूगोल

याराबुबा क्रेटर

प्रीलिम्स के लिये:

सबसे पुराना क्षुदग्रह क्रेटर, याराबुबा क्रेटर, व्रेडफोर्ट क्रेटर

मेन्स के लिये:

वैज्ञानिक खोजों का मानव जीवन पर प्रभाव, पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भू-वैज्ञानिकों ने ऑस्ट्रेलिया में दुनिया के सबसे पुराने क्षुदग्रह क्रेटर याराबुबा क्रेटर (Yarrabubba Crater) की खोज की है जिससे पृथ्वी के हिमयुग से बाहर निकलने से संबंधित जानकारी प्राप्त हो सकती है|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • याराबुबा क्षेत्र की सतह की जाँच के बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि एक क्षुद्रग्रह लगभग 2.2 बिलियन वर्ष पहले पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के याराबुबा में टकराया था|
  • भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि यह घटना उस युग के दौरान एक गर्म घटना के लिये जिम्मेदार हो सकती है। जिसके कारण पृथ्वी जैसे ग्रह हिमयुग से बाहर निकल पाए|
  • यह क्रेटर पृथ्वी पर सबसे पुराना क्रेटर है जो कि दक्षिण अफ्रीका में अवस्थित व्रेडफोर्ट क्रेटर (Vredefort Crater) से लगभग 200 मिलियन वर्ष पुराना है| ध्यातव्य है कि व्रेडफोर्ट दुनिया का अगला सबसे प्राचीन क्रेटर प्रभावित् क्षेत्र है|

इसकी पहचान कैसे की गई?

  • याराबुबा क्रेटर को वर्ष 1979 में खोजा गया था लेकिन भू-वैज्ञानिकों द्वारा इसका पहले परीक्षण नहीं किया गया था|
  • अरबों वर्षों के क्षरण के कारण यह क्रेटर सामान्यतः दिखाई नहीं देता है। वैज्ञानिकों ने इसके 70 किमी (43 मील) व्यास को निर्धारित करने के लिये क्षेत्र के चुंबकीय क्षेत्र को चयनित किया है।
  • इस क्रेटर के बहुत पुराने होने के कारण यहाँ की भौगोलिक स्थिति सपाट है किंतु यहाँ की चट्टानें विशिष्ट हैं जिनके आधार पर इसकी आयु का पता लगाया गया|
  • भूवैज्ञानिकों ने इस प्रभाव के काल की गणना का अनुमान ज़िरकोन (Zircon) और मोनाज़ाइट (Monazite) जैसे खनिजों में आइसोटोपिक क्लॉक (Isotopic Clocks) का उपयोग कर की| चूँकि ये खनिज यूरेनियम की छोटी मात्रा रखते हैं और यूरेनियम सीसा में बदल जाता है|
  • क्षुद्रग्रह हमले उन चट्टानों का तापमान बढ़ाते हैं जो खनिजों को जमा करते हैं जिससे उनकी संचित सीसा खो जाती है तथा इम्पैक्ट के पश्चात पुनः सीसा की मात्रा बढ़ने लगती है| इस प्रकार इन खनिजों में यूरेनियम और सीसा के आइसोटोपों को मापकर प्रभाव के समय का पता लगया गया है|
  • ध्यातव्य है कि ज़िरकॉन और मोनाज़ाइट के क्रिस्टल जो मनुष्य के बाल के बराबर होते हैं, की बनावट से पता चलता है कि वे एक बड़े पैमाने पर क्षुदग्रह के टकराने के प्रभाव से गर्म हो गए थे|
  • याराबुबा प्रभाव पृथ्वी के इतिहास में प्रोटेरोज़ोइक कल्प के दौरान हुआ था|

Crater

(यह वह जिरकॉन क्रिस्टल है जिसकी मदद से याराबुबा क्रेटर की उम्र की जाँच की गई)

इसकी खोज से निकलने वाले निष्कर्ष

  • अध्ययनों में पृथ्वी के इतिहास में कई अवधियाँ पाई गई हैं जिसमें कई महाद्वीपों में एक ही आयु की चट्टानों में हिम अवसाद होते थे। ये अवसाद दुनिया भर में हिमाच्छादित स्थितियों को स्पष्ट करते हैं, इसे अक्सर स्नोबॉल अर्थ (Snowball Earth) घटना के रूप में जाना जाता है।
  • भूगर्भीय साक्ष्यों से स्पष्ट है कि पृथ्वी याराबुबा प्रभाव के दौरान एक बर्फीले चरण में थी। दक्षिण अफ्रीका में चट्टानों के परिक्षण से यह ज्ञात होता है कि इस समय ग्लेशियर मौजूद थे। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या बर्फ की मात्रा आज के समान थी|
  • पृथ्वी के हिमयुग से बाहर निकलने से संबंधित निष्कर्ष
    • कंप्यूटर मॉडलिंग का उपयोग करते हुए टीम ने गणना की कि क्षुद्रग्रह पृथ्वी के ऊपर फैली एक मोटी बर्फ की चादर से टकराया होगा।
    • अनुमान के अनुसार यदि याराबुबा क्षुद्रग्रह 5 किलोमीटर मोटी बर्फ की चादर से टकराया होगा, तो 200 अरब टन से अधिक जलवाष्प वायुमंडल में उत्सर्जित हुई होगी। जो आज की तुलना में बहुत बड़ा अंश रहा होगा। ध्यातव्य है कि आज के वायुमंडल में जल वाष्प की कुल मात्रा का लगभग 2 प्रतिशत है|
    • जलवाष्प एक हानिकारक ग्रीनहाउस गैस है। वर्तमान में यह सौर विकिरण के लगभग आधे उष्मा अवशोषण के लिए ज़िम्मेदार है। इस प्रकार वायुमंडल में जलवाष्प की अत्यधिक मात्रा के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई होगी और हिमयुग का अंत हुआ होगा|

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

लोकतंत्र सूचकांक

प्रीलिम्स के लिये:

लोकतंत्र सूचकांक, इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट

मेन्स के लिये:

लोकतंत्र सूचकांक में भारत का स्थान कम होने का कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (Economist Intelligence Unit) द्वारा जारी लोकतंत्र सूचकांक में भारत 10 स्थान की गिरावट के साथ 51वें स्थान पर आ गया है।

मुख्य बिंदु:

  • यह सूचकांक ‘द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ द्वारा तैयार की गई ‘अ ईयर ऑफ डेमोक्रेटिक सेटबैक्स एंड पोपुलर प्रोटेस्ट’ (A year of democratic setbacks and popular protest) नामक रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया है।
  • यह वैश्विक सूचकांक 165 स्वतंत्र देशों और दो क्षेत्रों (Territories) में लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति को प्रदर्शित करता है।

पाँच पैमानों पर दी जाती है रैंकिंग:

  • इस रिपोर्ट में दुनिया के देशों में लोकतंत्र की स्थिति का आकलन पाँच पैमानों पर किया गया है-
    • चुनाव प्रक्रिया और बहुलतावाद (Electoral Process and Pluralism)
    • सरकार की कार्यशैली (The Functioning of Government)
    • राजनीतिक भागीदारी (Political Participation)
    • राजनीतिक संस्कृति (Political Culture)
    • नागरिक आज़ादी (Civil liberties)
  • ये सभी पैमाने एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और इन पाँच पैमानों के आधार पर ही किसी भी देश में मुक्त और निष्पक्ष चुनाव एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थिति का पता लगाया जाता है।
  • इस सूचकांक में 1-10 अंकों के पैमाने के आधार पर रैंक तय की जाती है।

सूचकांक से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • इस सूचकांक में दुनिया के 165 देशों और 2 क्षेत्रों को उनकी शासन व्यवस्था के आधार पर चार तरह के मानकों के आधार पर रैंकिंग दी गई है-
    • पूर्ण लोकतंत्र (Full Democracies)
    • दोषपूर्ण लोकतंत्र (Flawed Democracies)
    • हाइब्रिड शासन (Hybrid Regimes)
    • सत्तावादी शासन (Authoritarian Regimes)
  • इस सूचकांक में 167 देशों में केवल 22 देशों को पूर्ण लोकतांत्रिक देश बताया गया है।
  • दोषपूर्ण लोकतांत्रिक श्रेणी के तहत कुल 54 देश शामिल हैं।
  • हाइब्रिड शासन श्रेणी में कुल 37 देशों को शामिल किया गया है।
  • सत्तावादी शासन श्रेणी में कुल 54 देशों को शामिल किया गया है।
  • इस सूचकांक में नॉर्वे, आइसलैंड तथा स्वीडन क्रमशः 9.87, 9.58, 9.39 अंकों के स्कोर के साथ प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान पर हैं।
  • इस सूचकांक में उत्तर कोरिया (North Korea) को 1.08 अंकों के स्कोर के आधार पर अंतिम स्थान मिला है।
  • वर्ष 2018 के सूचकांक की तुलना में 68 देशों का स्कोर कम हुआ है तथा 65 देशों ने स्कोर में बढ़त हासिल की है।

सूचकांक में भारत की स्थिति:

Liberty-in-jeopardy

  • इस रिपोर्ट में 167 देशों की सूची में भारत को 51वें स्थान पर रखा गया है लेकिन एशिया और ऑस्ट्रेलेशिया समूह में भारत को आठवाँ स्थान मिला है।
  • भारत को कुल 6.90 अंक मिले हैं।
  • अगर भारत के रैंक को अलग-अलग पैमानों पर देखें तो भारत को चुनाव प्रक्रिया और बहुलतावाद में 8.67, सरकार की कार्यशैली में 6.79, राजनीतिक भागीदारी में 6.67, राजनीतिक संस्कृति में 5.63 और नागरिक आज़ादी में 6.76 अंक दिये गए हैं।
  • इस सूचकांक में भारत को दोषपूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी में रखा गया है। दोषपूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी का आशय ऐसे देशों से है जहाँ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते हैं तथा बुनियादी नागरिक स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है लेकिन लोकतंत्र के पहलूओं में विभिन्न समस्याएँ, जैसे- शासन में समस्याएँ, एक अविकसित राजनीतिक संस्कृति और राजनीतिक भागीदारी का निम्न स्तर आदि होती हैं।

भारत की रैंकिंग में गिरावट का कारण:

  • इस सूचकांक के अनुसार, भारत की रैंकिंग में गिरावट का एक प्रमुख कारण असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens- NRC) के लागू होने के कारण 1.9 मिलियन व्यक्तियों का इससे बाहर होना है।
  • इस रिपोर्ट में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए दोनों को निरस्त करने की चर्चा की गई है। और कहा गया कि भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया, विभिन्न सुरक्षा उपायों को लागू किया और स्थानीय नेताओं को घर में नजरबंद रखा, जिनमें भारत समर्थक व्यक्ति भी शामिल थे।

कितना सफल है भारत का लोकतंत्र?

  • स्वतंत्रता के बाद भारत का लोकतंत्र कितना सफल रहा, यह देखने के लिये इन वर्षों का इतिहास, देश की उपलब्धियाँ, देश का विकास, सामाजिक-आर्थिक दशा, लोगों की खुशहाली आदि पर गौर करने की ज़रूरत है।
  • भारत का लोकतंत्र बहुलतावाद पर आधारित राष्ट्रीयता की कल्पना करता है। यहाँ की विविधता ही इसकी खूबसूरती है।
  • सिर्फ दक्षिण एशिया को ही लें, तो भारत और क्षेत्र के अन्य देशों के बीच यह अंतर है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और श्रीलंका में उनके विशिष्ट धार्मिक समुदायों का दबदबा है। लेकिन धर्मनिरपेक्षता भारत का एक बेहद सशक्त पक्ष रहा है। सूचकांक में भारत का पड़ोसी देशों से बेहतर स्थिति में होने के पीछे यह एक बड़ा कारण है।

इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट:

  • द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट लंदन स्थित इकोनॉमिस्ट ग्रुप का एक हिस्सा है जिसकी स्थापना 1946 में हुई थी।
  • यह दुनिया के बदलते हालात पर नज़र रखती है और दुनिया की आर्थिक-राजनीतिक स्थिति के पूर्वानुमान द्वारा देश विशेष की सरकार को खतरों से आगाह करती है।

इसमें कोई शक नहीं कि देश का विकास तो हुआ है, लेकिन देखना यह होगा कि विकास किन वर्गों का हुआ और सामाजिक समरसता के धरातल पर विकास का यह दावा कितना सटीक बैठता है। दरअसल, किसी लोकतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार ने गरीबी, निरक्षरता, सांप्रदायिकता, लैंगिक भेदभाव और जातिवाद को किस हद तक समाप्त किया है। लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी है और सामाजिक तथा आर्थिक असमानता को कम करने के क्या-क्या प्रयास हुए हैं।

स्रोत- द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण, Permanent Court of Arbitration, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग मध्यस्थता नियम, 1976

मेन्स के लिये:

भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून, PCA और अंतर्राष्ट्रीय विवाद से संबंधित मुद्दे, अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने अपनी हालिया प्रेस विज्ञप्ति में घोषणा की है कि अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (International Arbitration Tribunal) ने 2G सेवाएँ प्रदान करने के लिये आशय पत्र (Letter Of Intent- LOI) को रद्द करने से संबंधित भारत के खिलाफ सभी दावों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (United Nations Commission on International Trade Law- UNCITRAL) मध्यस्थता नियम, 1976 के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण द्वारा इस पर जुलाई 2019 में फैसला सुनाया गया है।
  • ध्यातव्य है कि यह कार्यवाही मध्यस्थता के स्थायी न्यायालय (Permanent Court of Arbitration- PCA) द्वारा कार्यान्वित की गई है।

विवाद में शामिल पक्ष:

  • यह दावा टेनोक होल्डिंग्स लिमिटेड (साइप्रस) (Tenoch Holdings Limited), रूसी गणराज्य के मि. मेक्सिम नाउमचेन्कों (Mr. Maxim Naumchenko) तथा मि.आंद्रे पोल्यूकटोव (Mr. Andrey Poluektov) (रूसी गणराज्य) द्वारा भारत की साइप्रस एवं रूसी संघ के साथ द्विपक्षीय निवेश संधियों (Bilateral Investment Treaties) के संदर्भ में भारत गणराज्य के खिलाफ किया गया था।
    • ध्यातव्य है कि दो देशों के बीच द्विपक्षीय निवेश संधियाँ एक निजी निवेशक को अपने निवेशों की सुरक्षा के लिये सरकार के खिलाफ मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देती हैं।

विवाद का कारण: यह विवाद भारत में पाँच दूरसंचार क्षेत्रों में 2G सेवा देने के संदर्भ में दूरसंचार लाइसेंस जारी करने संबंधी आशय पत्रों (Letter of Intent) को निरस्त किये जाने से उत्पन्न हुआ था।

  • गौरतलब है कि आशय पत्र (LOI) एक दस्तावेज़ होता है जो एक पार्टी की दूसरे के साथ व्यापार करने की प्रारंभिक प्रतिबद्धता की घोषणा करता है। व्यवसाय में इसे आमतौर पर अन्य पार्टी के लिये प्रारंभिक प्रस्ताव के रूप में उपयोग किया जाता है।

मध्यस्थता का आधार:

मध्यस्थता निम्नलिखित समझौतों को आधार बनाकर की गई थी:

  • रूसी संघ और भारत गणराज्य की सरकार के बीच निवेश और संवर्द्धन के पारस्परिक संरक्षण (Promotion and Mutual Protection of Investments) के लिये समझौता।
  • भारत सरकार और साइप्रस गणराज्य की सरकार के बीच पारस्परिक संवर्द्धन और निवेश संरक्षण (Mutual Promotion and Protection of Investments) के लिये समझौता।

अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण

  • यह स्वतंत्र और निष्पक्ष विशेषज्ञों का एक स्वतंत्र गैर-सरकारी पैनल है।
  • इसमें कानूनी और व्यावहारिक विशेषज्ञता एवं ज्ञान के आधार पर नामित (अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता संस्थान या एक राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा नियुक्त) तीन सदस्य शामिल होते हैं।

मध्यस्थता का स्थायी न्यायालय

(Permanent Court of Arbitration- PCA)

  • स्थापना: वर्ष 1899
  • इसका मुख्यालय हेग, नीदरलैंड्स में है।
  • यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो विवाद समाधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सेवा प्रदान करने और राज्यों के बीच मध्यस्थता एवं विवाद समाधान के लिये समर्पित है।
  • PCA की संगठनात्मक संरचना तीन-स्तरीय होती है जिसमें-
    • एक प्रशासनिक परिषद होती है जो नीतियों और बजट का प्रबंधन करती है।
    • एक स्वतंत्र संभावित मध्यस्थों का पैनल होता है जिसे न्यायालय के सदस्य के रूप में जाना जाता है।
    • इसके सचिवालय को अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के रूप में जाना जाता है।)
  • PCA का एक वित्तीय सहायता कोष होता है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता या PCA द्वारा विवाद निपटान में शामिल साधनों की लागत को पूरा करने में मदद करना है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

वुहान वायरस

प्रीलिम्स के लिये:

कोरोनावायरस, वुहान वायरस

मेन्स के लिये:

वुहान वायरस के लक्षण तथा इसके संक्रमण को रोकने के उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा चीन में वुहान वायरस (Wuhan Virus) के संक्रमण की पुष्टि की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • चीन में वुहान वायरस के संक्रमण से अब तक 6 लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा इसके संक्रमण से 291 लोगों के प्रभावित होने की पुष्टि की गई है।
  • चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग द्वारा भी हुबेई (Hubei) प्रांत में अब तक 270 मामलों की पुष्टि की जा चुकी है।
  • चीन से बाहर भी कई देशों (अमेरिका, रूस) में इस वायरस के संक्रमण के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल (International Health Emergency) घोषित करने पर विचार किया जा रहा है।

वुहान वायरस के बारे में:

  • इस वायरस का नाम वुहान रखा गया है क्योंकि इसका पहला मामला मध्य चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में देखने को मिला।
  • यह एक कोरोनावायरस (Coronavirus) है यानि एक ऐसा वायरस जिसके स्पाइकी (Spiky) इलेक्ट्रॉन को माइक्रोस्कोप में देखने पर सौर कोरोना जैसे दिखते हैं। इसे 2019-CoV नाम दिया गया है।
  • इस वायरस का संचरण मानव- से- मानव के बीच होता है।
  • WHO के अनुसार, जानवर इस वायरस के संचरण के संभावित प्राथमिक स्रोत हैं। यद्यपि अभी इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि कौन से जानवर संक्रमण के लिये ज़िम्मेदार हैं।

वायरस के लक्षण:

China-coronavirus

  • WHO के अनुसार, इस वायरस के सामान्य लक्षणों में बुखार, खाँसी और सांस की तकलीफ़ जैसी शारीरिक समस्याएँ शामिल हैं।
  • वहीं गंभीर संक्रमण में निमोनिया, किडनी का फेल होना शामिल हैं जिससे मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है।

संक्रमण रोकने हेतु उपाय:

  • WHO द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, श्वसन के कारण होने वाले संक्रमण को रोकने के लिये लोगों को खाँसने या छींकते समय मुँह और नाक को ढकने की सलाह दी गई है।
  • संक्रमण से बचने के लिये हाथ मिलाने के बाद हाथों को धोना।
  • पालतू और जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बचना।

क्या है कोरोनावायरस?

  • कोरोनावायरस वायरस का एक प्रकार है जो सामान्यतः स्तनधारियों के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है, इनमें मानव भी शामिल है।
  • यह वायरस सामान्य सर्दी, निमोनिया और गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome-SARS) से संबंधित है जो आँतों को भी प्रभावित करता है।
  • जब इसका संक्रमण जानवरों और लोगों में होता है तो इसे जूनोटिक कोरोनावायरस कहा जाता है

कोरोनावायरस के प्रकार:

मुख्य तौर पर छह प्रकार के कोरोनावायरस पाये जाते हैं जो मनुष्यों को संक्रमित कर सकते हैं। इनमें शामिल हैं -

  • 229E (अल्फा कोरोनावायरस)
  • NL63 (अल्फा कोरोनावायरस)
  • OC43 (बीटा कोरोनावायरस)
  • HKU1 (बीटा कोरोनावायरस)
  • MERS-CoV
  • SARS-CoV

गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम

(Severe Acute Respiratory Syndrome-SARS)

  • गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम वायरल संबंधी एक श्वसन रोग है, जो कोरोनावायरस (SARS-CoV) के कारण होता है।
  • SARS पहली बार नवंबर 2002 में चीन में देखा गया और फरवरी 2003 में इसकी पहचान की गई।
  • वर्ष 2003 में SARS का वैश्विक प्रकोप उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप और एशिया में भी पाया गया।
  • SARS का संक्रमण श्वसन तंत्र की बीमारियों का कारण बनता है।
  • SARS के लक्षण एक सप्ताह के भीतर विकसित होते हैं और बुखार के साथ शुरू होते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रीनपीस इंडिया की वायु प्रदूषण संबंधी रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

ग्रीनपीस द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के संबंध में जारी रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ग्रीनपीस इंडिया द्वारा जारी एयरपोकैलिप्स रिपोर्ट (Airpocalypse Report) के अनुसार 231 भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण का उच्च स्तर बरकरार है।

मुख्य बिंदु:

  • नेशनल एम्बियेंट एयर क्वॉलिटी मॉनीटरिंग प्रोग्राम (National Ambient Air Quality Monitoring Programme- NAMP) में शामिल 287 भारतीय शहरों में से 231 शहरों में वायु प्रदूषण का उच्च स्तर बरकरार है।
  • इन शहरों में पीएम-10 की मात्रा तय राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कहीं ज़्यादा दर्ज की गई।
  • इस रिपोर्ट को 287 शहरों के 52 दिनों से अधिक के आँकड़ों के आधार पर तैयार किया गया।

रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु:

झरिया सबसे प्रदूषित शहर:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, कोयला खदानों के लिये मशहूर झारखंड का झरिया सबसे प्रदूषित शहर है।
  • वर्ष 2018 में झरिया में PM-10 (Particulate Matter-10) का वार्षिक औसत स्तर 322 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रिकॉर्ड किया गया।

दिल्ली की स्थिति:

  • पिछले 2 वर्षों की तुलना में दिल्ली के वायु प्रदूषण की स्थिति में सुधार हुआ है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली भारत का 10वाँ सबसे प्रदूषित शहर है।
  • हालाँकि यहाँ पीएम-10 की मात्रा अब भी तय राष्ट्रीय मानक से साढ़े तीन गुना और विश्व स्वास्थ्य संगठन ( World Health Organization- WHO) के मानकों से 11 गुना अधिक है।

सबसे कम वायु प्रदूषण वाला शहर:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, मिज़ोरम के लुंगलेई (Lunglei) में सबसे कम वायु प्रदूषण पाया गया।
  • लुंगलेई में पीएम-10 का वार्षिक औसत स्तर 11 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज किया गया।

दस सर्वाधिक प्रदूषित शहर:

शहर

पीएम-10 का वार्षिक औसत स्तर- वर्ष 2018 के आधार पर
(माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर में)

झरिया (झारखंड) 322
धनबाद (झारखंड) 264
नोएडा (उत्तर प्रदेश) 264
गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश) 245
अहमदाबाद (गुजरात) 236
बरेली (उत्तर प्रदेश) 233
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) 231
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 227
फिरोज़ाबाद (उत्तर प्रदेश) 226
दिल्ली 225
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में छह उत्तर प्रदेश के हैं।
  • गैर-सरकारी संगठन ग्रीनपीस इंडिया की इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के नोएडा, गाज़ियाबाद, बरेली, प्रयागराज, मुरादाबाद और फिरोज़ाबाद की वायु सर्वाधिक प्रदूषित है।

अन्य बिंदु:

  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में कई ऐसे शहर हैं, जहाँ पीएम-10 का स्तर राष्ट्रीय मानक से अधिक है। इसके बावजूद उन्हें राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनाया गया है।
  • जनवरी 2019 में शुरू किये गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत चयनित 122 शहरों में से अभी महज 102 शहर इस कार्यक्रम से जुड़ पाए हैं।

प्रदूषण निगरानी कार्यक्रम में शामिल 80 फीसदी से ज़्यादा भारतीय शहरों में पीएम-10 की मात्रा तय मानकों से अधिक है। इन शहरों को राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम में शामिल किये बगैर वायु प्रदूषण पर काबू पाना संभव नहीं होगा।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट: 2020

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व आर्थिक मंच का वार्षिक सम्मेलन, विश्व आर्थिक मंच,

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन का विश्व पर प्रभाव, जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या, जलवायु परिवर्तन के लिये प्राकृतिक एवं मानव जनित कारण

चर्चा में क्यों?

विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum- WEF) ने दावोस में अपनी वार्षिक बैठक से पहले ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट:2020 (The Global Risks Report 2020) जारी की है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह रिपोर्ट WEF द्वारा 21-24 जनवरी तक दावोस (स्विटज़रलैंड) में वार्षिक बैठक के आयोजन से पहले जारी की गई थी।
  • रिपोर्ट के अनुसार, अगले दशक में पर्यावरण से संबंधित संभावित शीर्ष पाँच जोखिम हैं:
    • बाढ़ और तूफान जैसे चरम मौसम की घटनाएँ।
    • जलवायु परिवर्तन को रोकने और अनुकूलन में विफलता।
    • भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट और भू-चुंबकीय तूफान जैसी प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ।
    • प्रमुख जैव विविधता के नुकसान और पारिस्थितिकी तंत्र का पतन।
    • मानव निर्मित पर्यावरणीय क्षति और आपदाएँ।
  • यह रिपोर्ट वैश्विक जोखिमों की संभावना और प्रभाव के बारे में 750 से अधिक वैश्विक विशेषज्ञों और निर्णयकर्त्ताओं की धारणा पर आधारित है।

रिपोर्ट में निहित महत्त्वपूर्ण बातें

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान युवा पीढ़ी जिसमें वर्ष 1980 के बाद जन्म लेने वाले लोग भी शामिल हैं, ने अल्प और दीर्घ समय के संदर्भ में पर्यावरणीय जोखिमों को अधिक महत्त्व दिया है।
    • लगभग 90% युवाओं का मानना है कि अत्यधिक उष्मीय तरंगें, पारिस्थितिक तंत्रों का विनाश और प्रदूषण से प्रभावित स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएँ अगली पीढ़ियों के लिये वर्ष 2020 में लगभग 70 प्रतिशत और बढ़ जाएंगी।
    • युवाओं का यह भी मानना ​​है कि वर्ष 2030 तक पर्यावरणीय जोखिमों के प्रभाव अधिक विनाशकारी होंगे।
  • WEF की रिपोर्ट में भविष्य में महामारी के खतरे को दूर करने के लिये गैर-संचारी रोगों और टीकों एवं दवा प्रतिरोधक क्षमता पर अनुसंधान की कमी के कारण बढ़ती आर्थिक और सामाजिक लागतों (Economic and Societal Costs) के बारे में चेतावनी दी गई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में आर्थिक टकराव और राजनीतिक ध्रुवीकरण महत्त्वपूर्ण अल्पकालिक जोखिम हैं तथा भविष्य में भी आर्थिक टकराव में वृद्धि का अनुमान है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, यह टकराव भारत और अफ्रीका सहित दक्षिणी विश्व के लिये एक चेतावनी है जहाँ सामाजिक अशांति में वृद्धि देखी गई है।
    • उदाहरण के लिये दिल्ली में वर्ष 2011 के बाद सबसे अधिक सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन हुए हैं तथा अफ्रीका में ज़िम्बाब्वे गंभीर आर्थिक और जलवायु संकट का सामना कर रहा है। ध्यातव्य है कि ज़िम्बाब्वे में वर्ष 2020 में भी सूखे के हालात बने रहने की उम्मीद है।

जलवायु परिवर्तन से संबंधित हालिया संदर्भ

  • वर्ष 2019 में जलवायु परिवर्तन के दो सबसे बड़े प्रभाव दक्षिण अमेरिकी अमेज़न वर्षा वनों एवं ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगने वाली भीषण आग है जिससे लाखों जीव-जंतु, वनस्पति एवं मानव जाति प्रभावित हुए हैं।
  • स्टेट ऑफ इंडियाज़ एन्वायरनमेंट रिपोर्ट (State of India’s Environment Report), 2020 के अनुसार, वर्ष 2019 में चरम मौसमी घटनाओं के कारण दुनिया भर में बहुत से लोगों की मृत्यु हो गई।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2019 में वैश्विक रूप से चरम मौसमी घटनाओं के कारण मारे गए लोगों में से 18 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति एशिया और अफ्रीका से संबंधित थे।

स्टेट ऑफ इंडियाज़ एन्वायरमेंट रिपोर्ट

(State of India’s Environment Report)

  • यह रिपोर्ट सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (Centre for Science and Environment - CSE) एवं डाउन टू अर्थ द्वारा जारी की जाती है।
  • इस रिपोर्ट में वनों, वन्य जीवन, कृषि, ग्रामीण विकास, जल एवं स्वच्छता और जलवायु परिवर्तन से संबंधित पहलू शामिल होते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 जनवरी, 2020

विज्ञान समागम

दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र में 21 जनवरी, 2020 को केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा दो महीनों तक चलने वाले ‘ विज्ञान समागम’ की शुरुआत की गई। इस प्रदर्शनी के माध्यम से छात्र एवं जनसामान्य विश्व भर में हो रहे बड़े अनुसंधानों तथा विज्ञान परियोजनाओं से अवगत हो सकेंगे। विज्ञान समागम का प्राथमिक लक्ष्य युवाओं को ब्रह्मांड के रहस्यों और क्रमिक विकास के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराना है। इसके अलावा उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में कॅरियर बनाने हेतु प्रेरित कर सके ताकि वे राष्ट्र की बौद्धिक पूंजी एवं वृद्धि में योगदान दे सकें।

ह्यूमनॉइड रोबोट ‘व्योममित्र’

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (ISRO) ने ‘व्योममित्र’ नामक ह्यूमनॉइड रोबोट का प्रदर्शन किया है। इस रोबोट की मुख्य विशेषता यह है कि यह इंसानों की तरह बात कर सकती है। ध्यातव्य है कि गगनयान की उड़ान से पूर्व परीक्षण के तौर पर ह्यूमनॉइड रोबोट ‘व्योममित्र’ को आकाश में भेजा जाएगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि अंतरिक्ष में तापमान और ह्रदय संबंधी परिवर्तन मानव शरीर को किस प्रकार प्रभावित करेंगे? इसरो ने मिशन गगनयान के लिये दिसंबर, 2021 तक की समय सीमा निर्धारित की है। इस मिशन के लिये अंतरिक्ष यात्रियों का चयन हो चुका है और उन्हें शुरूआती प्रशिक्षण भारत में एवं एडवांस प्रशिक्षण रूस में दिया जाएगा।

सुभाष चंद्र बोस जयंती

भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के महान नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 123वीं जयंती है। 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस ने ‘आज़ाद हिंद फौज’ नाम से पहले भारतीय सशस्त्र बल की स्थापना की थी। उन्होंने वर्ष 1920 में इंग्लैंड में ब्रिटिश सरकार की प्रतिष्ठित ICS यानी इंडियन सिविल सर्विस परीक्षा पास की थी। हालाँकि कुछ दिनों बाद ही 23 अप्रैल, 1921 में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को देखते हुए इस्तीफा दे दिया। जिसके पश्चात् वे स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हुए और वर्ष 1938 तथा 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। सुभाष चंद्र बोस की 18 अगस्‍त, 1945 को विमान हादसे में रहस्‍यमयी ढंग से मौत हो गई थी। नेताजी की मौत आज भी लोगों के लिये पहेली बनी हुई है।

जयपुर साहित्‍योत्‍सव

23 जनवरी, 2020 से जयपुर साहित्‍योत्‍सव की शुरुआत हो गई है। इस पाँच दिवसीय उत्सव में 200 से अधिक सत्रों का आयोजन किया जाएगा, इसमें 20 देशों से 500 प्रवक्ता हिस्सा लेंगे। इस उत्सव में नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी, बुकर पुरस्कार विजेता होवार्ड जैकबसन और एलिज़ाबेथ गिल्बर्ट जैसे प्रसिद्ध लोग भी प्रतिभाग करेंगे। उत्सव के दौरान जलवायु, संविधान, काव्य तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।


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