आंतरिक सुरक्षा
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
प्रीलिम्स के लिये: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP 2020), रक्षा खरीद नियमावली (DPM 2025), रक्षा औद्योगिक गलियारा, हाइपरसोनिक्स, INS विक्रांत, तेजस LCA, CAG, CVC, CBI, निर्देशित-ऊर्जा शस्त्र, क्वांटम प्रौद्योगिकी
मेंस के लिये: भारत की रक्षा स्वदेशीकरण स्थिति, विकास में बाधा बनने वाली प्रमुख चुनौतियाँ और आगे की राह
भारत ने अपने रक्षा क्षेत्र में एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है। वित्त वर्ष 2024–25 में देश का अब तक का सर्वाधिक रक्षा उत्पादन ₹1.54 लाख करोड़ दर्ज किया गया है। यह उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत पहल की सफलता को रेखांकित करती है।
भारत के रक्षा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति
- रिकॉर्ड उत्पादन: वर्तमान वित्त वर्ष में रक्षा उत्पादन ₹1.75 लाख करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2014–15 के ₹46,429 करोड़ की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाया है। भारत ने वर्ष 2029 तक रक्षा उत्पादन को ₹3 लाख करोड़ तक पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- रक्षा खरीद: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP 2020) और रक्षा खरीद नियमावली (DPM 2025) ने रक्षा खरीद प्रणाली में गति, पारदर्शिता और नवाचार को प्रोत्साहित किया है। आज 65% से अधिक रक्षा उपकरण घरेलू स्तर पर निर्मित किये जा रहे हैं, जिससे आयात पर निर्भरता में उल्लेखनीय कमी आई है।
- रक्षा निर्यात में बढ़ोतरी: वित्त वर्ष 2024–25 में भारत का रक्षा निर्यात ₹23,622 करोड़ के ऐतिहासिक स्तर पर पहुँच गया, जो वर्ष 2014 में ₹1,000 करोड़ से भी कम था। भारत अब 100 से अधिक देशों — जिनमें अमेरिका, फ्राँस, अर्मेनिया शामिल हैं — को रक्षा उत्पाद निर्यात करता है।
- भारत ने वर्ष 2029 तक रक्षा निर्यात को ₹50,000 करोड़ तक पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- सहायक औद्योगिक तंत्र: उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में स्थापित रक्षा औद्योगिक गलियारों में अब तक ₹9,000 करोड़ से अधिक का निवेश आकर्षित हुआ है।
- रक्षा उत्पादन में लगभग 16,000 MSME, साथ ही अनेक स्टार्ट-अप और निज़ी कंपनियाँ, सक्रिय भूमिका निभा रही हैं, जिससे रक्षा विनिर्माण का स्वदेशीकरण और अधिक सुदृढ़ हुआ है।
स्वदेशी रक्षा उत्पादन में भारत की वृद्धि को कौन-से कारक बढ़ावा दे रहे हैं?
- नीतिगत सुधार: DAP 2020 और DPM 2025 ने रक्षा खरीद प्रक्रियाओं को तीव्र, पारदर्शी और कुशल बनाया है। इसके साथ ही पॉज़िटिव इंडीजेनाइज़ेशन लिस्ट्स, FDI सीमा 74% तक उदार किये जाने, लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं के सरलीकरण से निज़ी क्षेत्र और स्टार्ट-अप्स की भागीदारी बढ़ी है।
- बढ़ता रक्षा बजट: भारत का रक्षा बजट 2013–14 के ₹2.53 लाख करोड़ से बढ़कर 2025–26 में ₹6.81 लाख करोड़ हो गया है। यह निरंतर वृद्धि आधुनिकीकरण कार्यक्रमों, घरेलू रक्षा उत्पादन तथा रणनीतिक क्षमताओं के उन्नयन के लिये पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराती है।
- पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप: डिफेंस DPSU उत्पादन में ~77% का योगदान देते हैं, जबकि निज़ी क्षेत्र का हिस्सा बढ़कर 23% हो गया है, जो इंडस्ट्री की बढ़ती भागीदारी को दिखाता है।
- वैश्विक बाज़ार एकीकरण: सरलित निर्यात प्रक्रियाओं, डिजिटल सिस्टम और ओपन जनरल एक्सपोर्ट लाइसेंस (OGEL) ने वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप रक्षा निर्यात वित्तीय वर्ष 2024-25 में 23,622 करोड़ रुपये तक बढ़ गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 12% की वृद्धि है।
- प्रौद्योगिकी में प्रगति: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), रोबोटिक्स, साइबर, अंतरिक्ष और उन्नत युद्ध प्रणाली में स्वदेशी रूप से डिज़ाइन, विकसित और निर्मित सिस्टम (IDDM) पर ज़ोर।
- DRDO-संचालित परियोजनाएँ और टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड (TDF) के माध्यम से फंडिंग, गहन-प्रौद्योगिकी नवाचार का समर्थन करती हैं।
भारत की रक्षा स्वदेशीकरण में मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
- महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी अंतर: जेट इंजन, हाइपरसोनिक्स, उन्नत सेंसर और मिसाइल मार्गदर्शन जैसी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियाँ अभी भी पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुई हैं, जिसके कारण मुख्य घटकों के लिये विदेशी ओरिजिनल इक्विपमेंट निर्माता (OEMs) पर निर्भरता बनी रहती है।
- उदाहरणतः तेजस LCA के लिये कावेरी इंजन परियोजना में देरी हुई, जिसके कारण अमेरिकी GE F404 इंजनों का उपयोग जारी रखना पड़ा।
- अप्रभावी रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (DPSU) पारिस्थितिकी तंत्र: DPSU को ऐतिहासिक रूप से एकमात्र खरीदार (केवल एक खरीदार, यानी रक्षा मंत्रालय) का लाभ मिला है, जिसके कारण प्रतिस्पर्द्धात्मक तत्परता की कमी, लागत में वृद्धि और देरी होती रही है।
- उदाहरण के लिये INS विक्रांत 12 वर्ष देरी से तैयार हुआ और इसकी लागत बजट की तुलना में 13 गुना अधिक रही।”
- विदेश में विकसित किये गए उपकरणों का रुझान: सेना अक्सर प्रमाणित विदेशी उपकरणों को प्राथमिकता देती है, जिससे स्वदेशी प्रणालियों के उपयोग में कमी आती है। उदाहरण के लिये धनुष आर्टिलरी गन के सफल परीक्षणों के बावजूद उसका अधिग्रहण विलंबित रहा।
- नौकरशाही बाधाएँ: DAP सुधारों के बावजूद, रक्षा खरीद प्रक्रिया धीमी, जटिल और जोखिम-रहित बनी हुई है। CAG, CVC तथा CBI का भय प्रशासनिक जड़ता का कारण बनता है, जैसा कि रद्द की गई 126 MMRCA खरीद में देखा गया।
- अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास (R&D) और नवाचार के लिये फंडिंग: भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास बजट अमेरिका या चीन की तुलना में बहुत कम है।
- रक्षा बजट का अधिकांश हिस्सा वेतन और पेंशन पर जाता है, जिससे अनुसंधान के लिये 1% से भी कम बचता है, जबकि चीन में यह 20% और अमेरिका में 12% है।
रक्षा स्वदेशीकरण से संबंधित भारत की पहल
भारत रक्षा स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने हेतु कौन-कौन से कदम उठा सकता है?
- दीर्घकालिक प्रौद्योगिकी दृष्टिकोण योजनाओं को लागू करना: रक्षा मंत्रालय (MoD) को एक विस्तृत 15-वर्षीय प्रौद्योगिकी पूर्वानुमान प्रकाशित करना चाहिये, जिसमें भविष्य की युद्ध प्रणालियों और आवश्यक क्षमताओं का विवरण हो। इससे निजी क्षेत्र को अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश के लिये स्पष्ट रोडमैप मिलेगा।
- एक प्रौद्योगिकी परियोजना एजेंसी बनाना: एक समर्पित, लचीली एजेंसी (अमेरिका के DARPA के मॉडल पर) स्थापित करना, जिसके पास अपना बजट और स्वायत्तता हो, ताकि हाइपरसोनिक्स, निर्देशित-ऊर्जा हथियार और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में उच्च-जोखिम, उच्च-लाभ वाली प्रौद्योगिकी परियोजनाओं को वित्त पोषित किया जा सके।
- अनुसंधान एवं विकास तथा प्रौद्योगिकी अवशोषण को बढ़ावा: रक्षा पूंजीगत बजट का 10–15 प्रतिशत भाग अनुसंधान एवं विकास के लिये आवंटित किया जाना चाहिये तथा 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशीकरण वाले प्लेटफॉर्मों के लिये उच्च लाभांश और सुनिश्चित ऑर्डर प्रदान किया जाना चाहिये।
- औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करना: पनडुब्बियाँ और लड़ाकू विमानों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में 2–3 भारतीय निजी कंपनियों को राष्ट्रीय चैंपियन के रूप में चयनित किया जाना चाहिये तथा उन्हें पैमाने की अर्थव्यवस्था प्राप्त करने हेतु सुनिश्चित परियोजनाएँ प्रदान की जानी चाहिये।
- विदेशी मूल उपकरण निर्माता (OEM) के लिये अनिवार्य किया जाना चाहिये कि वे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और कौशल विकास को बढ़ावा देने हेतु भारतीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) से अवयवों की आपूर्ति प्राप्त करें।
- स्वदेशीकरण की संस्कृति का विकास: तेजस MK-1A, INS विक्रांत तथा धनुष हॉवित्ज़र जैसे सफल स्वदेशी प्लेटफॉर्मों को सक्रिय रूप से प्रचारित किया जाना चाहिये, ताकि उपयोगकर्त्ता का विश्वास मज़बूत हो।
- प्रत्येक वर्ष 5–10 प्रौद्योगिकी-प्रदर्शक परियोजनाओं को समर्थन देने के लिये एक कोष स्थापित किया जाना चाहिये, जिन्हें निजी संघों या स्टार्टअप द्वारा संचालित किया जाए, ताकि युद्धपोतों के लिये विद्युत प्रणोदन प्रणालियों जैसे नए विचारों का परीक्षण बिना तात्कालिक परिचालन दबाव के किया जा सके।
निष्कर्ष
भारत के रक्षा स्वदेशीकरण ने आत्मनिर्भर भारत जैसी नीतिगत पहलों के चलते रिकॉर्ड उत्पादन और निर्यात प्राप्त किये हैं। किंतु वैश्विक केंद्र बनने के लिये उसे जेट इंजनों जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकीगत अंतराल, नौकरशाही विलंब तथा अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास (R&D) वित्तपोषण जैसी प्रमुख चुनौतियों को दूर करना होगा। इसके लिये निजी क्षेत्र के राष्ट्रीय चैंपियनों को बढ़ावा देना और मिशन-आधारित परियोजनाओं को आगे बढ़ाना अनिवार्य है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के रक्षा स्वदेशीकरण की प्रमुख चुनौतियों और बाधाओं पर चर्चा कीजिये तथा उन्हें दूर करने के उपाय सुझाइये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. भारत के स्वदेशी रक्षा उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है?
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का रक्षा उत्पादन 1.54 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया है, जिसमें लगभग 65 प्रतिशत उपकरण देश में ही निर्मित हो रहे हैं, जिससे आयात पर निर्भरता कम हुई है।
2. भारत की रक्षा स्वदेशीकरण को किन नीतियों ने प्रोत्साहित किया है?
मुख्य नीतियों में आत्मनिर्भर भारत, DAP 2020, DPM 2025, सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ (PIL), iDEX और DPEPP 2020 शामिल हैं।
3. वर्ष 2029 तक रक्षा उत्पादन और निर्यात के लिये भारत के लक्ष्य क्या हैं?
भारत का लक्ष्य 3 लाख करोड़ रुपये के रक्षा उत्पादन और 50,000 करोड़ रुपये के निर्यात को प्राप्त करना है, जिससे वैश्विक रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में उसकी स्थिति और मज़बूत हो सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रीलिम्स
प्रश्न. कभी-कभी समाचार में उल्लिखित 'टर्मिनल हाई ऑल्टिट्यूड एरिया डिफेंस (टी.एच.ए.ए.डी.)' क्या है? (2018)
(a) इज़रायल की एक राडार प्रणाली
(b) भारत का घरेलू मिसाइल-प्रतिरोधी कार्यक्रम
(c) अमेरिकी मिसाइल-प्रतिरोधी प्रणाली
(d) जापान और दक्षिण कोरिया के बीच एक रक्षा सहयोग
उत्तर: (c)
प्रश्न. भारतीय रक्षा के संदर्भ में 'ध्रुव' क्या है? (2008)
(a) विमान ले जाने वाला युद्धपोत
(b) मिसाइल ले जाने वाली पनडुब्बी
(c) उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर
(d) अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. रक्षा क्षेत्रक में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) को अब उदारीकृत करने की तैयारी है। भारत की रक्षा और अर्थव्यवस्था पर अल्पकाल और दीर्घकाल में इसके क्या प्रभाव अपेक्षित हैं? (2014)
शासन व्यवस्था
SC का बड़ा निर्णय: अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधान खारिज
प्रिलिम्स के लिये: भारत का सर्वोच्च न्यायालय, न्यायिक स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा, अनुच्छेद 323-A और 323-B।
मेन्स के लिये: भारत में शक्तियों का पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता का सिद्धांत, न्यायिक बैकलॉग को कम करने में अधिकरण की भूमिका और सुधार, शक्तियों का पृथक्करण
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधानों को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि ये प्रावधान केंद्र सरकार को अधिकरण की नियुक्ति, कार्यकाल और संचालन पर अत्यधिक नियंत्रण प्रदान करते हैं।
- न्यायालय ने कहा कि ऐसे प्रावधान न्यायिक स्वतंत्रता को कमज़ोर करते हैं और संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया कि अधिकरण प्रशासन में स्वायत्तता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये चार महीनों के भीतर एक राष्ट्रीय अधिकरण आयोग की स्थापना करे।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द किये गए अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- नियुक्ति के लिये न्यूनतम आयु 50 वर्ष: इसे मनमाना माना गया और यह योग्य युवा अधिवक्ताओं एवं विशेषज्ञों को पात्रता से वंचित करता था, इसलिये इसे रद्द कर दिया गया।
- यह पहले के SC निर्णयों का उल्लंघन था, जिनके अनुसार 10 वर्षों का अभ्यास करने वाले अधिवक्ता पात्र होते थे।
- अध्यक्ष और सदस्यों का चार वर्षीय कार्यकाल: इसे अवैध घोषित किया गया क्योंकि छोटा कार्यकाल न्यायिक स्वतंत्रता और संस्थागत निरंतरता को कमज़ोर करता है। SC ने न्यूनतम पाँच वर्षीय कार्यकाल को पुनः स्थापित किया।
- सरकार के लिये प्रत्येक रिक्त पद पर दो नामों की पैनल: इसे रद्द किया गया क्योंकि यह नियुक्तियों पर कार्यकारी प्रभुत्व को पुनर्स्थापित करता था।
- न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रत्येक पद के लिये केवल एक नाम ही खोज-सह-चयन समिति (Search-cum-Selection Committee, SCSC) द्वारा अनुशंसित किया जाए, ताकि नियुक्तियों में अत्यधिक कार्यकारी विवेक को सीमित किया जा सके।
- सिविल सेवकों के समान सेवा-शर्तें: अधिकरण के सदस्यों द्वारा कार्यकारी नहीं, बल्कि न्यायिक कार्य किये जाते हैं। उन्हें सिविल सेवकों के समकक्ष मानना शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन था, इसलिये इसे अवैध घोषित किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को विधायी रूप से निष्प्रभावी करना: यह अधिनियम मूलतः वर्ष 2021 के अधिकरण अध्यादेश के प्रावधानों को पुनः प्रस्तुत करता था, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय पहले ही निरस्त कर चुका था।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायिक समीक्षा संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और संसद पहले से अवैध घोषित किये गए प्रावधानों को दोबारा लागू करके बाध्यकारी निर्णय को निरस्त नहीं कर सकती।
- संसद का कर्त्तव्य है कि वह दोष को दूर करे, न कि अवैध ठहराए गए प्रावधानों को पुनः दोहराए। न्यायालय के निर्देशों को दरकिनार करने का यह प्रयास संवैधानिक सर्वोच्चता का उल्लंघन था।
अधिकरण क्या है?
- परिचय: अधिकरण अर्द्ध-न्यायिक निकाय होते हैं, जिनका उद्देश्य नियमित न्यायालयों पर पड़ने वाले बोझ को कम करना और विशिष्ट विवादों में तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करना होता है।
- संवैधानिक प्रावधान: 42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1976 भारत के संविधान में भाग XIV‑A को सम्मिलित करता है, जिसमें अनुच्छेद 323A और 323B शामिल हैं, जो अधिकरण की स्थापना के प्रावधान प्रदान करते हैं।
- अनुच्छेद 323A संसद को यह अधिकार देता है कि वह केंद्र, राज्य, स्थानीय निकायों, सार्वजनिक निगमों और अन्य सार्वजनिक अधिकरणों के कर्मचारियों के सेवा संबंधी मामलों के लिये प्रशासनिक अधिकरण स्थापित कर सके।
- अनुच्छेद 323B संसद और राज्य विधानसभाओं को कराधान, भूमिसुधार और औद्योगिक विवादों जैसे विषयों पर अधिकरण बनाने की अनुमति देता है।
- वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विधानमंडल केवल अनुच्छेद 323B में निर्दिष्ट विषयों तक सीमित नहीं है, बल्कि किसी भी विषय पर अधिकरण स्थापित कर सकते हैं जो सातवींअनुसूची में सूचीबद्ध है।
- महत्त्व:
- न्यायालयों का बोझ कम करना: ये अधिकरण विशिष्ट क्षेत्रों के मामलों को नियमित न्यायालयों से ग्रहण करते हैं।
- सुलभता में वृद्धि: इनकी पीठ अक्सर पूरे देश में उपलब्ध होती हैं, जिससे वादियों के लिये पहुँच आसान होती है।
- विशेषज्ञ ज्ञान: न्यायाधीश और तकनीकी सदस्य जटिल मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से हल करते हैं।
- केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) जैसे निकाय सरकारी कर्मचारियों के लिये विवादों के शीघ्र निपटान में सहायक होते हैं।
भारत की अधिकरण प्रणाली से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- न्यायिक स्वतंत्रता के लिये खतरा: अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 में केंद्र सरकार को अधिकरण सदस्यों की नियुक्तियों, कार्यकाल, वेतन और सेवा-शर्तों पर प्रमुख नियंत्रण प्रदान किया।
- चूँकि सरकार अधिकरणों के समक्ष सबसे बड़ी वादी है, इस कार्यकारी प्रभुत्व से निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्णय की आवश्यकता प्रभावित होती है और यह न्यायिक स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं, का उल्लंघन करता है।
- केंद्रीकृत निगरानी तंत्र का अभाव: न्यायालयों (जहाँ राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड मौजूद है) के विपरीत, अधिकरणों में वास्तविक समय के प्रदर्शन आँकड़ों की कमी है।
- एक पर्यवेक्षी निकाय की अनुपस्थिति पारदर्शिता, सुधार और साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को कमज़ोर करती है।
- उच्च लंबित मामले: कई अधिकरणों पर लंबित मामलों का भार है। उदाहरण के लिये, केवल आयकर अपीलीय अधिकरण में वर्ष 2024 तक 6.7 ट्रिलियन रुपए विवादों में फँसे थे, जिससे राजस्व संग्रह और निवेशक विश्वास प्रभावित हुआ।
- लंबे समय तक बनी रहने वाली रिक्तियाँ और नियुक्तियों की मंद गति विलंब को और बढ़ाती है, जिससे दक्षता प्रभावित होती है।
- अल्प अवधि: न्यायाधिकरण के सदस्य अक्सर अल्पकालिक अवधि के लिये कार्य करते हैं, साथ ही उन्हें पुनर्नियुक्ति की संभावना रहती है। इससे कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ जाता है, क्योंकि सदस्य पुनर्नियुक्ति सुनिश्चित करने हेतु सरकार के अनुरूप चलने का दबाव महसूस कर सकते हैं।
- असमान प्रक्रियाएँ: विभिन्न न्यायाधिकरण विभिन्न नियमों, प्रारूपों और प्रक्रियाओं का पालन करते हैं। इस असमानता के कारण न्याय वितरण में असंगति होती है तथा वादी/प्रतिवादी के लिये भ्रम उत्पन्न होता है।
- अधिकार क्षेत्र का ओवरलैप: कुछ मामलों में अधिकरणों के अधिकार क्षेत्र नियमित अदालतों के अधिकार क्षेत्र के साथ ओवरलैप कर जाते हैं। इसका परिणाम अधिकार क्षेत्र के संघर्ष, देरी और यह भ्रम होता है कि कुछ मामलों को कहाँ सुना जाना चाहिये।
- न्यायाधिकरणों-विशिष्ट डेटा और अनुसंधान की कमी: न्यायाधिकरणों के लिये विशेष डेटा तथा अनुसंधान प्रणाली की कमी के कारण सुधार असंगठित एवं धीमी गति से होते हैं। इस कमी के कारण योजना बनाना, संसाधनों का आवंटन व साक्ष्य-आधारित नीतियों का मूल्यांकन कमज़ोर हो जाता है।
भारत के न्यायाधिकरण प्रणाली को कौन से उपाय मज़बूत कर सकते हैं?
- राष्ट्रीय अधिकरण आयोग: सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक राष्ट्रीय अधिकरण आयोग स्थापित करना, जो अधिकरणों की नियुक्ति, प्रशासन और संचालन में स्वायत्तता, पारदर्शिता तथा एकरूपता सुनिश्चित करने के लिये एक आवश्यक संरचनात्मक सुरक्षा के रूप में काम करेगा।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: दक्षता और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये ई-फाइलिंग, आभासी सुनवाई, डिजिटल रिकॉर्ड और AI-आधारित केस प्रबंधन का विस्तार करना।
- प्रक्रियाओं को सुगम बनाना: न्यायाधिकरणों में समानता सुनिश्चित करने, देरी कम करने और उपयोगकर्त्ता अनुभव बेहतर बनाने के लिये प्रक्रियात्मक नियमों को मानकीकृत करना।
- अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को स्पष्ट करना: भ्रम और फोरम शॉपिंग कम करने के लिये स्पष्ट विधायी दिशा-निर्देशों के माध्यम से अधिकरणों और अदालतों के बीच ओवरलैपिंग शक्तियों से बचें।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना: निर्णयों की गुणवत्ता तथा निरंतरता सुधारने हेतु न्यायिक एवं विशेषज्ञ सदस्यों दोनों के लिये नियमित कानूनी व तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करना।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय इस बात को मज़बूत करता है कि न्यायाधिकरणों को वास्तविक स्वतंत्रता के साथ काम करना चाहिये और उन्हें कार्यकारी प्रभाव से मुक्त होना चाहिये। राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग और मानकीकृत प्रक्रियाओं के माध्यम से स्वायत्तता को मजबूत करना सार्वजनिक विश्वास बहाल करने के लिये आवश्यक है। एक सुधारित न्यायाधिकरण प्रणाली विशेष क्षेत्रों में तेज़, न्यायसंगत तथा अधिक प्रभावी न्याय प्रदान कर सकती है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत की न्यायाधिकरण प्रणाली में संवैधानिक और संस्थागत चुनौतियों की समीक्षा करें। एक राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग इन मुद्दों को कैसे हल कर सकता है? |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
भारत में अधिकरण निर्माण में कौन-से संवैधानिक नियम लागू होते हैं?
अनुच्छेद 323A और 323B (42वें संशोधन से जोड़े गए) संसद तथा राज्य विधानसभाओं को महत्त्वपूर्ण फैसलों के लिये प्रशासनिक और विषय-विशिष्ट अधिकरण निर्माण का अधिकार प्रदान करते हैं।
उच्चतम न्यायलय ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 के नियमों को क्यों रद्द कर दिया?
न्यायालय ने पाया कि अधिनियम ने अपॉइंटमेंट, समय और सेवा की शर्तों पर बहुत ज़्यादा एग्जीक्यूटिव कंट्रोल दिया है — जो न्यायिक स्वतंत्रता को कमज़ोर करता है और शक्तियों के विभाजन का उल्लंघन करता है।
कोर्ट ने नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन के लिये क्या सुझाव दिया है?
अधिकरण नियुक्ति, प्रशासन और कामकाज में स्वायत्तता, पारदर्शिता और एक समान रूप देने के लिये एक प्रस्तावित स्वतंत्र पर्यवेक्षण निकाय।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स:
प्रश्न. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010 भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-सा/से प्रावधान के आनुरूप्य अधिनियमित हुआ था? (2012)
- स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार के आनुरूप्य, जो अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का अंग माना जाता है
- अनुच्छेद 275(1) के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन का स्तर बढ़ाने के लिये प्रावधानित अनुदान के आनुरूप्य
- अनुच्छेद 243(A) के अंतर्गत उल्लिखित ग्राम सभा की शक्तियों और कार्यों के आनुरूप्य
नीचे दिये गए कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
मेंस
प्रश्न. आप इस बात से कहाँ तक सहमत हैं कि अधिकरण सामान्य न्यायालयों की अधिकारिता को कम करते हैं? उपर्युक्त को दृष्टिगत रखते हुए, भारत में अधिकरणों की संवैधानिक वैधता तथा सक्षमता की विवेचना कीजिये?
शासन व्यवस्था
विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों हेतु पहली बार व्यक्तिगत अधिकार सर्वेक्षण
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार पहली बार 10 लाख विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) परिवारों का ‘व्यक्तिगत अधिकार सर्वेक्षण’ आयोजित करने जा रही है, जिसका उद्देश्य 39 सरकारी योजनाओं की ज़मीनी स्तर पर पहुँच का मूल्यांकन करना है।
व्यक्तिगत अधिकार सर्वेक्षण क्या है?
- परिचय: जनजातीय कार्य मंत्रालय ने निगरानी के लिये 18 केंद्रीय विभागों में 39 योजनाओं की पहचान की है।
- इनमें MGNREGS, असंगठित श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा, पेंशन, मेधावी अनुसूचित जनजाति छात्रों के लिये आर्थिक सहायता और विभिन्न प्रमुख कार्यक्रम शामिल हैं।
- सर्वेक्षण राज्यों की सरकारों के सहयोग से आयोजित किया जाएगा, जिसमें प्रक्रिया को पूरा करने में NGO या पंचायत अधिकारियों की मदद ली जा सकती है।
- क्षेत्र और विस्तार: सर्वेक्षण 1,000 ब्लॉकों में विस्तृत 10 लाख परिवारों को कवर करेगा, जिनमें लगभग 48 लाख PVTG निवास करते हैं।
- ये समूह 18 राज्यों और अंडमान और निकोबार केंद्रशासित प्रदेश में स्थित 75 मान्यता प्राप्त PVTG में फैले हैं।
- कार्यप्रणाली: सर्वेक्षक डेटा सीधे राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिविज़न (NeGD) द्वारा विकसित मोबाइल एप्लीकेशन में इनपुट करेंगे।
- सर्वेक्षण पूरा होने के बाद, सरकार प्रत्येक आदिवासी सदस्य को एक 'यूनिवर्सल एंटाइटलमेंट कार्ड' जारी करेगी, जिसमें उनके ट्रैक किये गए सरकारी योजनाओं के लिये उनके अधिकार की स्थिति का विवरण होगा।
विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) क्या है?
- परिचय: विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTGs) अनुसूचित जनजातियों का एक उप-वर्ग है, जो सामान्य अनुसूचित जनजातियों की तुलना में अधिक कमज़ोर है, क्योंकि उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और आधुनिक अवसंरचना तक सीमित पहुँच प्राप्त है।
- इन समूहों को अक्सर ‘प्राथमिक’ कहा जाता है, क्योंकि वे पारंपरिक जीवन शैली जीते हैं और आधुनिक सुविधाओं के प्रति उनकी पहुँच सीमित है।
- अनुच्छेद 342(1): यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह राज्य के मामले में राज्यपाल से परामर्श करके किसी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में किसी जनजाति या जनजातीय समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट कर सके।
- पहचान की समयरेखा: 1973 में, ढेबर आयोग ने सबसे कम विकसित जनजातीय समूहों को एक अलग श्रेणी के रूप में प्राथमिक जनजातीय समूह (PTGs) के रूप में वर्गीकृत किया, जिसे बाद में वर्ष 2006 में भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूह (PVTGs) के नाम से पुनः नामित किया गया।
- वर्ष 1975 में भारत ने सबसे कमज़ोर जनजातीय समूहों की पहचान PVTGs के रूप में शुरू की, जिसमें शुरू में 52 समूहों की घोषणा की गई थी। बाद में वर्ष 1993 में 23 और समूहों को जोड़ा गया, जिससे कुल 705 अनुसूचित जनजातियों में से 75 PVTGs बन गए।
- वर्गीकरण के मानदंड: PVTGs की विशेषताएँ हैं, छोटी और समान जनसंख्या, भौगोलिक अलगाव, लिखित भाषा का अभाव, सरल तकनीक का प्रयोग और सामाजिक तथा आर्थिक विकास की धीमी गति।
- वे प्राय: दूरदराज़ क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ जनसंख्या स्थिर या घट रही होती है, साक्षरता कम होती है और बुनियादी ढाँचा तथा प्रशासनिक समर्थन सीमित होने के कारण उन्हें आर्थिक पिछड़ेपन का सामना करना पड़ता है।
- जनसंख्या: ओडिशा में सबसे अधिक PVTGs (13) हैं, इसके बाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (12) हैं।
PVTGs से संबंधित भारत की प्रमुख पहलें क्या हैं?
- PM-JANMAN: PM JANMAN का उद्देश्य जनजातीय समूहों, विशेषकर लुप्तप्राय समूहों की सुरक्षा और उनका विकास सुनिश्चित करना है, साथ ही उन्हें आवश्यक सहायता, विकासात्मक अवसर एवं मुख्यधारा की सेवाओं से जोड़ना भी शामिल है।
- यह पहल 18 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में रहने वाले 75 PVTGs को शामिल करती है, जो 220 ज़िलों के 22,544 गाँवों में फैले हुए हैं।
- जनजातीय गौरव दिवस: जनजातीय गौरव दिवस प्रतिवर्ष बिरसा मुंडा की जयंती पर मनाया जाता है, ताकि सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं राष्ट्रीय गौरव, वीरता और आतिथ्य जैसे भारतीय मूल्यों के प्रचार में जनजातीय समूहों के योगदान को सम्मानित किया जा सके।
- इन जनजातीय समुदायों में तामार, संथाल, खासी, भील, मिज़ो और कोल शामिल हैं।
- PM PVTG मिशन: PM-PVTG विकास मिशन कार्यक्रम का उद्देश्य कमज़ोर आदिवासी समूहों (PVTGs) की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है।
- इस मिशन में पिछड़ी अनुसूचित जनजातियों के लिये सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण तथा बस्तियों में बेहतर सड़क संपर्क जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना शामिल है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. 'इंडिविजुअल एंटाइटलमेंट सर्वे' का उद्देश्य क्या है?
इस सर्वे का उद्देश्य 39 सरकारी योजनाओं की पहुँच का पता लगाना और 10 लाख PVTG परिवारों के लिये कवरेज़ में कमी की पहचान करना है।
2. सर्वे में किन सरकारी योजनाओं को ट्रैक किया जा रहा है?
इस सर्वे में 39 योजनाओं को ट्रैक किया जाता है, जिसमें MGNREGS, अनऑर्गनाइज्ड वर्करों के लिये सोशल सिक्योरिटी और सक्षम अनुसूचित जनजाति के स्टूडेंट्स के लिये फाइनेंशियल सहायता शामिल है।
3. सुभेद्य जनजातीय समूह (PVTG) क्या है?
PVTG अनुसूचित जनजातियों का एक उप-वर्गीकरण है जो शिक्षा, स्वास्थ्य और मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर तक सीमित पहुँच के कारण नियमित अनुसूचित जनजातियों की तुलना में अधिक कमज़ोर है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स:
प्रश्न 1: भारत में विशिष्टतः असुरक्षित जनजातीय समूहों [पर्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स (PVTGs)] के बारे में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
- PVTGs देश के 18 राज्यों तथा एक संघ राज्यक्षेत्र में निवास करते हैं।
- स्थिर या कम होती जनसंख्या, PVTG स्थिति के निर्धारण के मानदंडों में से एक है।
- देश में अब तक 95 PVTGs आधिकारिक रूप से अधिसूचित हैं।
- PVTG की सूची में ईरूलार और कोंडा रेड्डी जनजातियाँ शामिल की गई हैं।
उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं?
(a) 1, 2 और 3
(b) 2, 3 और 4
(c) 1, 2 और 4
(d) 1, 3 और 4
उत्तर: (c)
मेंस:
प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं? (2017)
प्रश्न. क्या कारण है कि भारत में जनजातियों को 'अनुसूचित जनजातियाँ' कहा जाता है? भारत के संविधान में प्रतिष्ठापित उनके उत्थान के लिये प्रमुख प्रावधानों को सूचित कीजिये। (2016)
मुख्य परीक्षा
भारत की किशोर न्याय प्रणाली में कमियाँ
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) के “कानून से संघर्षरत बच्चे और किशोर न्याय” शीर्षक वाले पहले प्रकार के अध्ययन में भारत की बाल न्याय प्रणाली में महत्त्वत्वपूर्ण चुनौतियों को उजागर किया गया है, जो कानून के साथ संघर्ष में बच्चों के लिये न्याय में देरी का कारण बन रही हैं।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट ने बाल न्याय प्रणाली में उजागर की गई महत्वपूर्ण खामियाँ कौन-कौन सी हैं?
- मामलों की उच्च लंबित संख्या: अक्तूबर 2023 तक बाल न्याय बोर्डों (JJBs) में 55% से अधिक मामले लंबित थे।
- लंबित मामलों का वितरण: लंबित मामलों की दर ओडिशा में 83% से लेकर कर्नाटक में 35% तक थी। औसतन, प्रत्येक बाल न्याय बोर्ड (JJB) के पास वार्षिक 154 मामले लंबित रहते हैं।
- बाल न्याय बोर्ड (JJB) संरचना में संरचनात्मक खामियाँ:
- 24% JJBs पूरी तरह से गठित नहीं थीं, जिससे कोरम, निर्णय लेने की प्रक्रिया और समय पर सुनवाई प्रभावित होती है।
- 30% JJBs में कानूनी सेवा क्लिनिक की कमी है, जिससे कानून के साथ संघर्ष में बच्चों के लिए समय पर कानूनी प्रतिनिधित्व कमज़ोर पड़ता है।
- कमज़ोर सूचना का अधिकार (RTI) प्रतिक्रिया संस्कृति: 500 से अधिक RTI अनुरोधों में से 11% को अस्वीकार किया गया, 24% को कोई उत्तर नहीं मिला और केवल 36% ने पूर्ण जानकारी प्रदान की, जो पारदर्शिता की कमज़ोर व्यवस्था को दर्शाता है।
- प्रणालीगत प्रशासनिक कमजोरियाँ: अंतर-एजेंसी समन्वय की कमी, कमज़ोर डेटा-साझा प्रणाली और कमज़ोर निगरानी तंत्र बाल न्याय (बालों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की विकेंद्रीकृत संरचना को कमज़ोर बनाते हैं।
- बाल-केंद्रित डेटा ग्रिड की अनुपस्थिति: विशेषज्ञों ने किशोर न्याय के लिये राष्ट्रीय डेटा ग्रिड की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, ताकि पुलिस, महिला एवं बाल विकास विभाग, राज्य बाल सुरक्षा समाज (SCPS) और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) के बीच समय पर डेटा प्रवाह और प्रभावी निगरानी सुनिश्चित की जा सके।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 क्या है?
- पृष्ठभूमि: वर्ष 2015 में पारित इस अधिनियम ने किशोर अपराध कानून और किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को प्रतिस्थापित किया, ताकि बालकों के लिये एक बाल-केंद्रित न्याय प्रणाली बनाई जा सके—चाहे वे कानून के उल्लंघन में शामिल हों (CICL) या देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले हों (CNCP)।
- यह पहले के दत्तक ग्रहण कानूनों—हिंदू दत्तक ग्रहण और पालन-पोषण अधिनियम, 1956 और अभिभावक और संरक्षक अधिनियम, 1890—को प्रतिस्थापित करता है, ताकि सभी समुदायों के लिये एक समान और सुलभ दत्तक ग्रहण प्रणाली स्थापित की जा सके।
- किशोर न्याय बोर्ड (JJB): JJB, जो JJ अधिनियम, 2015 की धारा 4 के तहत गठित होते हैं, प्रत्येक ज़िले में राज्य सरकारों द्वारा स्थापित किये जाने चाहिये ताकि सभी मामलों को सँभाला जा सके जिनमें बालक कानून के उल्लंघन में शामिल हों।
- प्रत्येक JJB में एक महानगरीय या न्यायिक मजिस्ट्रेट और दो सामाजिक कार्यकर्त्ता (एक महिला) शामिल होते हैं, जिससे बालकों के अनुकूल प्रक्रियाओं को सुनिश्चित किया जा सके, जो दंड के बजाय पुनर्वास पर केंद्रित हों।
- गंभीर अपराधों के लिए किशोरों का मुकदमा: JJB द्वारा मूल्यांकन के बाद, 16–18 वर्ष की आयु के कोशोरों को गंभीर अपराधों के लिये वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने की अनुमति देता है, जिससे बाल अधिकारों और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच संतुलन सुनिश्चित होता है।
- CARA को सशक्त बनाना: अधिनियम केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) को एक वैधानिक निकाय बनाता है, जो देश के भीतर और अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण दोनों की निगरानी और नियमन के लिये ज़िम्मेदार है।
- बाल देखभाल संस्थान (CCI): सभी बाल देखभाल संस्थानों, चाहे वे सरकार द्वारा संचालित हों या NGO, को अधिनियम की शुरुआत के छह महीनों के भीतर अनिवार्य रूप से पंजीकृत होना चाहिये।
- किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन विधेयक 2021: JJ एक्ट, 2015 के ‘बच्चों के खिलाफ अन्य अपराध’ सेक्शन के तहत बच्चों के खिलाफ ऐसे अपराध, जिनमें 3-7 वर्ष की जेल की सज़ा होती है, अब नॉन-कॉग्निजेबल माने जाएंगे।
- दत्तग्रहण के मामलों में तेज़ी लाने के लिये, दत्तग्रहण निर्देश जारी करने का अधिकार न्यायालय से ज़िला मजिस्ट्रेट को दे दिया गया है।
भारत में किशोर न्याय प्रणाली में सुधार हेतु किन उपायों की आवश्यकता है?
- इंस्टीट्यूशनल इंफ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ करना: JJB और CWC में खाली स्थानों को समय पर आपूर्ति ज़रूरी करें ताकि कोरम पक्का हो सके और प्रत्येक JJB को एक खास लीगल सर्विस क्लिनिक से जोड़ें, ताकि प्रारंभ से ही मुफ्त विधिक सहायता मिल सके।
- रिहैबिलिटेशन और रीइंटीग्रेशन पर ध्यान देना: CCI में बेहतर वोकेशनल ट्रेनिंग, एजुकेशन और मेंटल हेल्थ सपोर्ट के ज़रिये कस्टडी से रिहैबिलिटेशन पर ध्यान देना और सफल रीइंटीग्रेशन पक्का करने तथा दोबारा अपराध करने से रोकने के लिये पोस्ट-केयर सिस्टम को सुदृढ़ करना।
- डेटा ट्रांसपेरेंसी बढ़ाना: JJB केस को ट्रैक करने, विलंबित मामलों पर नज़र रखने और प्रत्येक बच्चे की प्रोग्रेस को फॉलो करने के लिये एक सेंट्रलाइज़्ड, पब्लिक-फेसिंग डेटा पोर्टल बनाना, जिससे अधिक सुदृढ़ जवाबदेही सुनिश्चित हो।
निष्कर्ष
इसके लागू होने के एक दशक बाद भी अधिक पेंडेंसी, इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी और डेटा ट्रांसपेरेंसी की कमी जैसी सिस्टम की कमियाँ किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 को कमज़ोर कर रही हैं, बच्चों पर केंद्रित नज़रिये को कमज़ोर कर रही हैं।
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दृष्टि मेंस प्रश्न: प्रश्न. किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015, वेलफेयर-बेस्ड टू राइट्स-बेस्ड अप्रोच में एक बड़ा बदलाव था। इसके उद्देश्य को पूरा करने में बाधा डालने वाली चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. प्रश्न: किशोर न्याय बोर्ड (JJB) का मुख्य कार्य क्या है?
JJBs, जो JJ अधिनियम, 2015 की धारा 4 के तहत गठित किये गए हैं, बच्चों के अपराध संबंधी मामलों को सॅंभालने हेतु मुख्य प्राधिकारी हैं। इनका फोकस पुनर्वास पर होता है और यह सुनिश्चित करते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया बच्चे के अनुकूल हो।
2. प्रश्न: JJB मामलों के लिये IJR द्वारा रिपोर्ट की गई कुल लंबित मामलों की दर क्या थी?
IJR ने पाया कि किशोर न्याय बोर्ड के मामलों में 31 अक्तूबर, 2023 तक 55% लंबित मामले थे, जिसमें राज्यों के बीच व्यापक अंतर था (ओडिशा 83%, कर्नाटक 35%)।
3. प्रश्न: IJR द्वारा मुख्य संस्थागत कमियाँ कौन-कौन सी उजागर की गईं?
प्रमुख कमियों में शामिल हैं: 24% JJBs पूरी तरह से गठित नहीं हैं, 30% में कानूनी सेवा क्लिनिक नहीं हैं, CCIs में स्टाफ की पद रिक्तियाँ और एजेंसियों के बीच कमज़ोर समन्वय एवं डेटा साझा करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
- भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है।
- भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर:(c)
मेन्स
प्रश्न. विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021)
प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)




