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डेली न्यूज़

  • 22 Sep, 2021
  • 44 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का विकल्प

प्रिलिम्स के लिये:

सिंगल-यूज़ प्लास्टिक, कृषि अवशेष, वायु गुणवत्ता सूचकांक, बायो-प्लास्टिक

मेन्स के लिये:

सिंगल-यूज़ प्लास्टिक : विकल्प एवं संभावित लाभ  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू (IISc) के शोधकर्त्ताओं ने एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) के लिये एक विकल्प बनाने का उपाय खोजा है, जो सैद्धांतिक रूप से पर्यावरण में प्लास्टिक अपशिष्ट के संचय की समस्या को कम करने में मदद कर सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • शोध के बारे में:
    • शोध में पॉलिमर बनाने की इस प्रक्रिया में गैर-खाद्यान अरंडी के तेल का उपयोग किया गया था जिसमें उन्हें सेल्यूलोज (कृषि अवशेषों से) और डाइ-आइसोसायनेट यौगिक के साथ अभिक्रिया कराने की अनुमति शामिल है।
    • इन पॉलिमर को बैग, कटलरी या कंटेनर बनाने के लिये उपयुक्त गुणों वाली चादरों में ढाला जा सकता है। 
    • इस प्रकार बनाई गई सामग्री बायोडिग्रेडेबल, लीक-प्रूफ और गैर-विषाक्त होती है।
  • संभावित लाभ:
    • एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) की समस्या का समाधान करना:  एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि और साथ ही लैंडफिल के प्रबंधन की चुनौती के मद्देनज़र ऐसे विकल्प विशेष रूप से पैकेजिंग क्षेत्र (SUP के सबसे बड़े उपभोक्ता) में महत्त्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं।
    • कृषि अवशेषों की समस्या से निपटना: भारत के कई उत्तरी राज्यों में कृषि अवशेषों को जलाया जाना वायु प्रदूषण के लिये उत्तरदायी कारकों में से एक है।
      • जैसे- दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक प्रत्येक वर्ष सर्दियों में प्रदूषण के "गंभीर" या "खतरनाक" स्तर पर वायु गुणवत्ता में गिरावट को इंगित करता है और यह स्थिति आसपास के क्षेत्रों में कृषि अवशेषों को जलाने के कारण उत्पन्न होती है।
      • सिंगल यूज़ प्लास्टिक के स्थान पर कृषि अवशेषों का उपयोग करने से सिर्फ वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि किसानों के लिये अतिरिक्त आय के अवसर भी सृजित होंगे।
    •  स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में उपयोग: चूँकि यह पदार्थ बायोडिग्रेडेबल और गैर-विषाक्त है, इसलिये शोधकर्त्ता स्वास्थ्य देखभाल अनुप्रयोगों के लिये भी इस पदार्थ या सामग्री का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं।
  • सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के अन्य विकल्प:
    • लंबी अवधि तक उपयोग में लाए जाने वाले प्लास्टिक के विकल्प जो अभी उपलब्ध हैं, इस प्रकार हैं- स्टेनलेस स्टील, काँच, प्लेटिनम सिलिकॉन, बाँस, मिट्टी के बर्तन और चीनी मिट्टी की वस्तुएँ आदि।
    • इनके अलावा पारंपरिक प्लास्टिक को बदलने के लिये बायो-प्लास्टिक का उपयोग किया जा सकता है।
      • बायोप्लास्टिक एक प्रकार का प्लास्टिक है जिसे प्राकृतिक संसाधनों जैसे वनस्पति तेलों और स्टार्च से निर्मित किया जाता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करने की आवश्यकता:
    • भारतीय केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018-2019 में भारतीयों द्वारा 33 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न किया गया था।
      • हालाँकि कई रिपोर्टें में इसे कम करके आँका गया है।
    • एक और चौंकाने वाला आँकड़ा यह है कि विश्व में उत्पादित सभी प्लास्टिक कचरे का 79% पर्यावरण में प्रवेश करता है।
      • सभी प्रकार के प्लास्टिक कचरे के केवल 9% का ही पुनर्नवीनीकरण (Recycled) किया जाता है।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट का संचय पर्यावरण के लिये हानिकारक है और जब यह अपशिष्ट समुद्र में प्रवेश करता है तो जलीय पारिस्थितिक तंत्र को भी बड़ा नुकसान हो सकता है।
    • SUP इतना सस्ता और सुविधाजनक है कि इसने पैकेजिंग उद्योग की अन्य सभी सामग्रियों को विस्थापित कर दिया है लेकिन इसे विघटित होने में सैकड़ों वर्ष लगते हैं।

आगे की राह: 

  •  चक्रीय अर्थव्यवस्था: प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिये देशों को प्लास्टिक मूल्य शृंखला में चक्रीय और टिकाऊ आर्थिक गतिविधियों को अपनाना चाहिये।
    • एक चक्रीय अर्थव्यवस्था  क्लोज़्ड-लूप सिस्टम (Closed-Loop System) बनाने के लिये संसाधनों के पुन: उपयोग, साझाकरण, मरम्मत, नवीनीकरण, पुन: निर्माण और पुनर्चक्रण पर निर्भर करती है जो संसाधनों के उपयोग को कम करते हुए अपशिष्ट उत्पादन, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करती है।
  • व्यवहार परिवर्तन: नागरिकों को अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा और कचरा न फैलाकर अपशिष्ट पृथक्करण एवं अपशिष्ट प्रबंधन में मदद कर योगदान देना होगा।
  • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व: नीतिगत स्तर पर विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility-EPR)  की अवधारणा, जो पहले से ही 2016 के नियमों के तहत उल्लिखित है, को बढ़ावा देना होगा।
    • EPR एक नीतिगत दृष्टिकोण है जिसके तहत उत्पादकों द्वारा उपभोक्ता को उत्पादों के उपचार या निपटान के लिये वित्तीय और/या भौतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी जाती है।

स्रोत: द हिंदू 


कृषि

अरोमा मिशन और फ्लोरीकल्चर मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

लैवेंडर या बैंगनी क्रांति, फ्लोरीकल्चर, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद, अरोमा मिशन

मेन्स के लिये:

अरोमा मिशन और फ्लोरीकल्चर मिशन के उद्देश्य  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री ने किसानों की आय बढ़ाने के लिये जम्मू और कश्मीर हेतु एकीकृत अरोमा डेयरी उद्यमिता (Integrated Aroma Dairy Entrepreneurship) का प्रस्ताव रखा।

  • अरोमा मिशन जिसे लोकप्रिय रूप से "लैवेंडर या बैंगनी क्रांति" (Lavender or Purple Revolution) के रूप में भी जाना जाता है, की शुरुआत जम्मू-कश्मीर से हुई है और इसके अंतर्गत उन किसानों का जीवन स्तर बदल जाएगा जो लैवेंडर उगाने, आकर्षक लाभ कमाने तथा अपने जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम हैं।
  • इससे पहले 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में फ्लोरीकल्चर मिशन (floriculture Mission) शुरू किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • अरोमा मिशन:
    • उद्देश्य: 
      • यह मिशन ऐसे आवश्यक तेलों के लिये सुगंधित फसलों की खेती को बढ़ावा देगा, जिनकी अरोमा (सुगंध) उद्योग में काफी अधिक मांग है।
      • यह मिशन भारतीय किसानों और अरोमा (सुगंध) उद्योग को ‘मेन्थॉलिक मिंट’ जैसे कुछ अन्य आवश्यक तेलों के उत्पादन और निर्यात में वैश्विक प्रतिनिधि बनने में मदद करेगा। 
      • इसका उद्देश्य उच्च लाभ, बंजर भूमि के उपयोग और जंगली एवं पालतू जानवरों से फसलों की रक्षा करके किसानों को समृद्ध बनाना है।
    • नोडल एजेंसी: 
      • इसकी नोडल एजेंसी सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय और सुगंधित पौधा संस्थान (CSIR-CIMAP), लखनऊ है।
      • पालमपुर स्थित CSIR- इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (IHBT) और जम्मू स्थित CSIR- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (IIIM) भी इसमें शामिल हैं।
    • कवरेज:
      • इस मिशन के तहत सभी वैज्ञानिक हस्तक्षेप विदर्भ, बुंदेलखंड, गुजरात, मराठवाड़ा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और अन्य राज्यों के ऐसे सभी क्षेत्रों में लागू होंगे, जहाँ बार-बार मौसम की चरम घटनाएँ दर्ज की जाती हैं और जहाँ आत्महत्याओं की दर अधिकतम है।
      • सुगंधित पौधों (Aromatic Plant) में लैवेंडर, गुलाब, मुश्क बाला (इंडियन वेलेरियन) आदि शामिल हैं।
    • दूसरे चरण का शुभारंभ:
      • सीएसआईआर-आईआईआईएम-जम्मू ने पहले चरण की सफलता के बाद फरवरी 2021 में अरोमा मिशन चरण- II की घोषणा की।
      • यह विपणन, खेती को बढ़ावा देने और उच्च मूल्य वाले औषधीय तथा सुगंधित पौधों (MAP) के प्रसंस्करण, बेहतर किस्मों एवं उनकी कृषि प्रौद्योगिकियों के विकास, आसवन इकाइयों व प्रसंस्करण सुविधाओं की स्थापना, कौशल और उद्यमिता विकास, मूल्य आदि के लिये सहकारी समितियों की स्थापना पर केंद्रित है।
    • महत्त्व
      • वर्ष 2022 तक कृषि आय को दोगुना करने की सरकारी नीति के साथ तालमेल बिठाने के अलावा इस मिशन ने महिला किसानों को रोज़गार भी प्रदान किया है जिससे समावेशी विकास को गति मिली।
  • फ्लोरीकल्चर मिशन:
    • फ्लोरीकल्चर: 
      • यह बागवानी की एक शाखा है जो सजावटी पौधों की खेती, प्रसंस्करण और विपणन के साथ-साथ छोटे या बड़े क्षेत्रों के भू-निर्माण तथा बगीचों के रखरखाव से संबंधित है ताकि आसपास का वातावरण सौंदर्यपूर्ण और सुखद दिखाई दे।
    • उद्देश्य:
      • इसका उद्देश्य मधुमक्खी पालन के लिये वाणिज्यिक पुष्प फसलों, मौसमी/वार्षिक फसलों और फूलों की फसलों की खेती पर ध्यान केंद्रित करना।
      • कुछ लोकप्रिय फसलों में ग्लेडियोलस, कन्ना, कार्नेशन, गुलदाउदी, जरबेरा, लिलियम, गेंदा, गुलाब, कंद आदि शामिल हैं।
    • कार्यान्वयन एजेंसियाँ:
    • फ्लोरीकल्चर बाज़ार: 
      • भारतीय फ्लोरीकल्चर का बाज़ार वर्ष 2018 में 157 बिलियन रुपए का था और वर्ष 2026 तक इसके 661 बिलियन रुपए तक पहुँचने की उम्मीद है, जो वर्ष 2021-2026 के दौरान 19.2% की यौगिक वार्षिक विकास दर (Compound Annual Growth Rate) प्रदर्शित करता है।
    • महत्त्व:
      • रोज़गार सृजन: फ्लोरीकल्चर में नर्सरी उगाने, फूलों की खेती, नर्सरी व्यापार के लिये उद्यमिता विकास, मूल्यवर्द्धन और निर्यात के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार प्रदान करने की क्षमता है।
      • आयात प्रतिस्थापन: भारत में विविध कृषि-जलवायु और एडैफिक स्थितियाँ (मिट्टी के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुण) एवं समृद्ध पौधों की विविधता है, फिर भी इसका वैश्विक फ्लोरीकल्चर के बाज़ार में केवल 0.6% हिस्सा है।
        • भारत द्वारा प्रत्येक वर्ष विभिन्न देशों से कम-से-कम 1200 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के फूलों की खेती के उत्पादों का आयात किया जाता है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

GST परिषद की 45वीं बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

GST परिषद, GST 

मेन्स के लिये:

GST परिषद की संरचना और संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद की 45वीं बैठक संपन्न हुई।

GST-Council-Meeting

प्रमुख बिंदु 

  • रियायती GST दरों का विस्तार:
    • परिषद ने दिसंबर 2021 तक कोविड-19 उपचार से संबंधित कई दवाओं पर GST राहत के विस्तार का निर्णय लिया।
  • खाद्य वितरण एप्स एकत्र करेंगे GST:
    • अब रेस्तराँ भागीदारों के बजाय ऑनलाइन फूड डिलीवरी एग्रीगेटर फर्म जैसे स्विगी और ज़ोमैटो GST का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी होंगे।
      • वर्तमान में फूड एग्रीगेटर्स द्वारा उत्पन्न ऑनलाइन बिलों में पहले से ही GST एक कर घटक होता है।
      • अभी तक कर की राशि का भुगतान रेस्तराँ भागीदारों को वापस कर दिया जाता है, जिनसे उम्मीद की जाती है कि वे इस राशि का भुगतान सरकार को करेंगे।
  • पेट्रोल-डीज़ल GST के दायरे में नहीं आएगा:
    • परिषद ने पेट्रोल और डीज़ल को GST के दायरे में नहीं लाने का फैसला किया है। राज्यों ने इनकी कीमतों में उछाल पर चिंता जताते हुए बैठक के दौरान ईंधन को शामिल करने का कड़ा विरोध किया।
      • यदि पेट्रोल और डीज़ल GST व्यवस्था के तहत आते हैं, तो कीमतें सभी राज्यों में एक समान हो जाएगी क्योंकि केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए गए विभिन्न उत्पाद शुल्क तथा वैट दरों को हटा दिया जाएगा।
      • इससे डीज़ल और पेट्रोल की कीमतों में महत्त्वपूर्ण कमी लाने में मदद मिलेगी, हाल के समय में जिनकी कीमतें बहुत बढ़ गई हैं।
  • फोर्टिफाइड चावल पर GST घटाया गया:
  • दर को युक्तिसंगत बनाने के लिये GOM:
    • रिवर्स शुल्क ढाँचे को ठीक करने और राजस्व बढ़ाने के प्रयास हेतु दर युक्तिकरण संबंधी मुद्दों को देखने के लिये राज्य के मंत्रियों के एक समूह (GOM) का गठन किया जाएगा।
      • रिवर्स शुल्क संरचना तब उत्पन्न होती है जब आउटपुट या अंतिम उत्पाद पर कर, इनपुट पर कर से कम होता है, इससे इनपुट टैक्स क्रेडिट का एक रिवर्स संचय होता है जिसे ज़्यादातर मामलों में वापस करना पड़ता है।
      • रिवर्स शुल्क संरचना (Inverted Duty Structure) में राजस्व बहिर्वाह की समस्या निहित है, इसके लिये सरकार को शुल्क संरचना पर फिर से विचार करना चाहिये।
    • ई-वे बिल, फास्टैग, अनुपालन (Compliances), प्रौद्योगिकी, वर्तमान कमियों को दूर करने, कंपोज़िशन स्कीम आदि के मुद्दों को व्यवस्थित करने के लिये अन्य GOM स्थापित किये जाएंगे।

GST परिषद

  • यह माल और सेवा कर से संबंधित मुद्दों पर केंद्र एवं राज्य सरकार को सिफारिशें करने के लिये  अनुच्छेद 279A के तहत एक संवैधानिक निकाय है।
  • GST परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करता है और सभी राज्यों के वित्त मंत्री परिषद के सदस्य होते हैं।
  • इसे एक संघीय निकाय के रूप में स्थापित किया गया है जहाँ केंद्र और राज्यों दोनों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

तेल रिसाव के लिये सुपर-हाइड्रोफोबिक कॉटन कम्पोज़िट

प्रिलिम्स के लिये:

तेल रिसाव, सुपर-हाइड्रोफोबिक कॉटन कम्पोज़िट, मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिक योजना

मेन्स के लिये:

तेल रिसाव का जलीय जीवों एवं पर्यावरण पर प्रभाव, तेल रिसाव की घटनाओं को रोकने हेतु प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी ने मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOF) के साथ एक सुपर-हाइड्रोफोबिक कॉटन कम्पोज़िट (Super-Hydrophobic Cotton Composite) विकसित किया है जो समुद्री तेल रिसाव को साफ कर सकता है।

  • इससे पहले एक अध्ययन ने पुष्टि की थी कि कनाडा के आर्कटिक के ठंडे समुद्री जल में पोषक तत्त्वों के साथ उत्तेजक बैक्टीरिया (बायोरेमेडिएशन) तेल रिसाव के बाद डीज़ल और अन्य पेट्रोलियम तेल को विघटित करने में मदद कर सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क के विषय में:
    • यह एक नया एमओएफ कंपोज़िट है, जो एक जल-विकर्षक सामग्री है तथा तेल-पानी के मिश्रण से तेल को अवशोषित कर सकता है।
      • एमओएफ क्रिस्टलीय होते हैं, जो ठोस चरण निष्कर्षण के लिये उपयुक्त बहुआयामी कार्बनिक अणुओं के तीन आयामी (3D) नेटवर्क से बने होते हैं।
    • इस एमओएफ कंपोज़िट में तेल-पानी के मिश्रण से तेल के पृथक्करण की बड़ी क्षमता (पृथक्करण दक्षता 95% और 98% के बीच) होती है, चाहे तेल की रासायनिक संरचना तथा घनत्व कुछ भी हो।
    • यह बड़ी मात्रा में तेल को अवशोषित कर सकता है और इसे कम-से-कम 10 बार पुन: उपयोग किया जा सकता है। इसलिये इससे तेल रिसाव से गिरे हुए तेल को पुनः अधिक-से-अधिक प्राप्त किया जा सकता है। इसके द्वारा भारी और हल्के दोनों प्रकार के तेल को प्रभावी ढंग से अवशोषित किया जा सकता है जो आसान, लागत प्रभावी और पुन: प्रयोज्य है।
  • महत्त्व:
    • यह उच्च दक्षता और अधिक अवशोषण क्षमता के साथ तेल परिवहन के दौरान पर्यावरणीय जल (नदी, समुद्र या समुद्र के पानी) में फैला हुआ तेल साफ करेगा, इस प्रकार पर्यावरणीय जल प्रदूषण को कम करेगा।
    • यह पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी है। इस तरह की कम लागत वाली सामग्री वर्तमान में उपलब्ध सामग्रियों की तुलना में वास्तविक अनुप्रयोगों के लिये बड़े पैमाने पर संश्लेषण हेतु सामग्री की उत्पादन लागत को कम करेगी।
  • तेल रिसाव के निवारण के अन्य उपाय:

Oil-Spills

तेल रिसाव 

  • तेल रिसाव के विषय में:
    • तेल रिसाव पर्यावरण में कच्चे तेल, गैसोलीन, ईंधन या अन्य तेल उत्पादों के अनियंत्रित रिसाव को संदर्भित करता है। तेल रिसाव की घटना भूमि, वायु या पानी को प्रदूषित कर सकती है, हालाँकि इसका उपयोग सामान्य तौर पर समुद्र में तेल रिसाव के संदर्भ में किया जाता है।
    • गंभीर जल संदूषण मनुष्यों के साथ-साथ अन्य जीवित प्रजातियों के स्वास्थ्य के लिये खतरा है।
    • मुख्य रूप से महाद्वीपीय चट्टानों पर गहन पेट्रोलियम अन्वेषण एवं उत्पादन तथा जहाज़ों में बड़ी मात्रा में तेल के परिवहन के परिणामस्वरूप तेल रिसाव एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या बन गई है।
      • तेल रिसाव फिशिंग को तत्काल रूप से प्रभावित करता है और समुद्री मार्गों के माध्यम से पर्यटन तथा वाणिज्य को भी प्रभावित करता है।
    • तेल रिसाव जो कि नदियों, खाड़ियों और समुद्र में होता है, अक्सर टैंकरों, नावों, पाइपलाइनों, रिफाइनरियों, ड्रिलिंग क्षेत्र तथा भंडारण सुविधाओं से जुड़ी दुर्घटनाओं के कारण होता है, लेकिन सामान्य नौकायान और प्राकृतिक आपदाएँ भी इसे प्रभावित करती हैं। 
  • भारत में संबंधित कानून:
    • वर्तमान में भारत में तेल रिसाव और इसके परिणामी पर्यावरणीय क्षति को कवर करने वाला कोई कानून नहीं है लेकिन ऐसी स्थितियों से निपटने हेतु भारत के पास वर्ष 1996 की राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिक योजना ( National Oil Spill Disaster Contingency Plan- NOS-DCP) है।
      • यह भारतीय तटरक्षक बल को तेल रिसाव के सफाई कार्यों में सहायता के लिये राज्य के विभागों, मंत्रालयों, बंदरगाह प्राधिकरणों और पर्यावरणीय एजेंसियों के साथ समन्वय करने का अधिकार देता है।
    • वर्ष 2015 में भारत ने बंकर तेल प्रदूषण क्षति, 2001 (बंकर कन्वेंशन) के लिये नागरिक दायित्व पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की पुष्टि की। कन्वेंशन तेल रिसाव से होने वाले नुकसान के लिये पर्याप्त, त्वरित और प्रभावी मुआवज़ा सुनिश्चित करता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 का मसौदा

प्रीलिम्स के लिये:

व्यक्तिगत डेटा, गैर-व्यक्तिगत डेटा, डेटा संरक्षण विधेयक, संयुक्त संसदीय समिति

मेन्स के लिये:

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण: लाभ एवं चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 (Personal Data Protection Bill, 2019) पर चर्चा करते हुए इसे परामर्श के लिये पुनः खोल दिया है।

  • इसने संसद के शीतकालीन सत्र 2021 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने की संभावना व्यक्त की है।

प्रमुख बिंदु 

  • परिचय:
    • इसे आमतौर पर "गोपनीयता विधेयक" के रूप में जाना जाता है और यह डेटा के संग्रह, संचालन और प्रसंस्करण को विनियमित करके व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने का वादा करता है जिससे व्यक्ति की पहचान हो सके।
      • दिसंबर 2019 में संसद ने इसे संयुक्त समिति के पास भेजने की मंज़ूरी दी थी।
    • यह विधेयक सरकार को विदेशों से कुछ प्रकार के व्यक्तिगत डेटा के हस्तांतरण को अधिकृत करने की शक्ति देता है और सरकारी एजेंसियों को नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने की अनुमति देता है।
    • विधेयक डेटा को तीन श्रेणियों में विभाजित करता है तथा प्रकार के आधार पर उनके संग्रहण को अनिवार्य करता है।
      • व्यक्तिगत डेटा: वह डेटा जिससे किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है जैसे नाम, पता आदि।
      • संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा: कुछ प्रकार के व्यक्तिगत डेटा जैसे- वित्तीय, स्वास्थ्य, यौन अभिविन्यास, बायोमेट्रिक, आनुवंशिक, ट्रांसजेंडर स्थिति, जाति, धार्मिक विश्वास और अन्य श्रेणी शामिल हैं।
      • महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा: कोई भी वस्तु जिसे सरकार किसी भी समय महत्त्वपूर्ण मान सकती है, जैसे- सैन्य या राष्ट्रीय सुरक्षा डेटा।
    • यह डेटा मिर्ररिंग (Data Mirroring) (व्यक्तिगत डेटा के मामले में) की आवश्यकता को हटा देता है। विदेश में डेटा ट्रांसफर के लिये सिर्फ व्यक्तिगत सहमति की ही आवश्यकता होती है।
      • डेटा मिर्ररिंग (Data Mirroring) वास्तविक समय या रियल टाइम में डेटा को एक स्थान से स्टोरेज डिवाइस में कॉपी करने का कार्य करता है।
    • यह डेटा न्यासियों को मांग किये जाने पर सरकार को कोई भी गैर-व्यक्तिगत डेटा प्रदान करने के लिये अनिवार्य करता है।
      • डेटा न्यासी: यह एक सेवा प्रदाता के रूप में कार्य कर सकता है जो ऐसी वस्तुओं और सेवाओं को प्रदान करने के दौरान डेटा को एकत्र एवं भंडारित करके उसका उपयोग करता है।
      • गैर-व्यक्तिगत डेटा अज्ञात डेटा को संदर्भित करता है, जैसे टैफिक पैटर्न या जनसांख्यिकीय डेटा। सितंबर 2019 में सरकार ने गैर-व्यक्तिगत डेटा को विनियमित करने के लिये एक फ्रेमवर्क की सिफारिश करने हेतु नई समिति का गठन किया।
    • बिल में कंँपनियों और सोशल मीडिया जैसे मध्यस्थों की आवश्यकता पर बल दिया गया है, जो भारत में उपयोगकर्त्ताओं को स्वेच्छा से अपने खातों को सत्यापित करने में सक्षम बनाने के लिये ‘महत्त्वपूर्ण डेटा सहायक/ सिग्निफेंट डेटा फिड्यूशियरी (Significant Data Fiduciaries) हैं।
      • इसका "सत्यापन स्पष्ट दृश्य चित्रों द्वारा किया जाएगा जिन्हें उपयोगकर्त्ताओं द्वारा देखा जा सकेगा।
      • यह उपयोगकर्त्ताओं की अनदेखी और ट्रोलिंग को कम करने में सहायक है।
    • कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये एक डेटा संरक्षण प्राधिकरण की परिकल्पना की गई है।
    • इसमें 'भूल जाने के अधिकार' (Right to be Forgotten’) का भी उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि "डेटा प्रिंसिपल (जिस व्यक्ति से डेटा संबंधित है) को डेटा फिड्यूशरी द्वारा अपने व्यक्तिगत डेटा के निरंतर प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करने या रोकने का अधिकार होगा"।
  • लाभ:
    • डेटा स्थानीयकरण कानून-प्रवर्तन एजेंसियों को जांँच और प्रवर्तन हेतु डेटा तक पहुंँच प्रदान करने में कारगर साबित हो सकता है तथा सरकार की इंटरनेट दिग्गजों पर कर लगाने की क्षमता को भी बढ़ा सकता है।
    • साइबर हमलों (उदाहरण के लिये पेगासस स्पाइवेयर की निगरानी और जाँच की जा सकती है।
    • सोशल मीडिया, जिसका उपयोग कभी-कभी गलत और भ्रामक सूचनाओं को प्रसारित करने हेतु किया जाता है, की निगरानी और जाँच की जा सकती है, ताकि समय रहते उभरते राष्ट्रीय खतरों को रोका जा सके।
    • एक मज़बूत डेटा संरक्षण कानून भी डेटा संप्रभुता को लागू करने में मदद करेगा।
  • नुकसान: 
    • कई लोगों का तर्क है कि डेटा की फिज़िकल लोकेशन विश्व संदर्भ में प्रासंगिक नहीं है क्योंकि ‘एन्क्रिप्शन की’ (Encryption Keys) अभी भी राष्ट्रीय एजेंसियों की पहुंँच से बाहर हो सकती है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा या तर्कशील उद्देश्य स्वतंत्र और व्यक्तिपरक शब्द हैं, जिससे नागरिकों के निजी जीवन में राज्य का हस्तक्षेप हो सकता है।
    • फेसबुक और गूगल जैसे प्रौद्योगिकी दिग्गज इसके खिलाफ हैं और उन्होंने डेटा के स्थानीयकरण की संरक्षणवादी नीति की आलोचना की है क्योंकि उन्हें डर है कि इसका अन्य देशों पर भी प्रभाव पड़ेगा।
      • सोशल मीडिया फर्मों, विशेषज्ञों और यहांँ तक कि मंत्रियों ने भी इसका विरोध किया था, उनका तर्क है कि उपयोगकर्त्ताओं और कंपनियों दोनों के लिये प्रभावी एवं फायदेमंद होने के संदर्भ में इसमें बहुत सी खामियांँ हैं।
    • इसके अलावा यह भारत के युवा स्टार्टअप, जो कि वैश्विक विकास का प्रयास कर रहे हैं, या भारत में विदेशी डेटा को संसाधित करने वाली बड़ी फर्मों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।

जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व गैंडा दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

प्रकृति के संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष, एक सींग वाले गैंडे, CITES

मेन्स के लिये:

भारत द्वारा राइनो के संरक्षण के लिये किये जाने वाले प्रयास

चर्चा में क्यों?  

गैंडे/राइनो (Rhino) की सभी पांँचों प्रजातियों के बारे में जागरूकता फैलाने और उन्हें बचाने के लिये किये जा रहे कार्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करने हेतु 22 सितंबर को विश्व गैंडा दिवस (World Rhino Day) मनाया जाता है।

Rhino

प्रमुख बिंदु 

  • इसकी घोषणा वर्ष 2010 में पहली बार प्रकृति के संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष (WWF)- दक्षिण अफ्रीका द्वारा की गई थी। कई दशकों से लगातार अवैध शिकार और निवास स्थान के नुकसान के कारण गैंडे की प्रजातियांँ विलुप्त होने की कगार पर हैं।
  • गैंडे की पाँच प्रजातियाँ इस प्रकार हैं- अफ्रीका में सफेद और काले राइनो (White and Black Rhinos in Africa), एक सींग वाले गैंडे (Greater one-Horned), एशिया में जावा और सुमात्रन गैंडे/राइनो (Javan and Sumatran Rhino) की प्रजातियाँ।
    • IUCN की रेड लिस्ट में स्थिति:
      • व्हाइट राइनो: खतरे या संकट के करीब।
      • ब्लैक राइनो: गंभीर रूप से संकटग्रस्त।
      • एक सींग वाले गैंडे सुभेद्य।
      • जावा: गंभीर रूप से संकटग्रस्त।
      • सुमात्रन राइनो: गंभीर रूप से संकटग्रस्त।
  • थीम 2021: कीप द फाइव अलाइव (Keep the five Alive)।
  • उद्देश्य: सुरक्षा को मज़बूत करना, विचरण क्षेत्र का विस्तार, अनुसंधान और निगरानी, पर्याप्त एवं निरंतर वित्तपोषण।

 एक सींग वाले गैंडे 

  •  एक सींग वाले गैंडे के बारे में:
    • इसे इंडियन राइनो के रूप में भी जाना जाता है, यह राइनो प्रजातियों में सबसे बड़ा है। इस गैंडे की पहचान एकल काले सींग और त्वचा के सिलवटों के साथ भूरे रंग से होती है। भारत विश्व में एक सींग वाले गैंडे की सर्वाधिक संख्या वाला देश है।
    • ये मुख्य रूप से घास, पत्तियों, झाड़ियों और पेड़ों की शाखाओं, फल तथा जलीय पौधे की चराई (Graze) करते हैं।
    • वर्तमान में भारत में लगभग 2,600 इंडियन राइनो हैं, जिनकी 90% से अधिक आबादी असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में केंद्रित है।
  • आवास:
    • यह प्रजाति इंडो-नेपाल तराई क्षेत्र, उत्तरी पश्चिम बंगाल और असम तक सीमित है।
    • भारत में गैंडे मुख्य रूप से पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, राजीव गांधी ओरंग नेशनल पार्क, असम के काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान,जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान, गोरुमारा राष्ट्रीय उद्यान तथा उत्तर प्रदेश के दुधवा टाइगर रिज़र्व में पाए जाते हैं।
  • खतरा:
    • सींगों के लिये शिकार
    • प्राकृतिक वास का नुकसान
    • जनसंख्या घनत्व
    • घटती आनुवंशिक विविधता
  • संरक्षण स्थिति:
    • IUCN की रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)।
    • CITES: परिशिष्ट- I (इसमें ‘लुप्तप्राय’ प्रजातियों को शामिल किया जाता है, इनका व्यापार किये जाने के कारण इन्हें और अधिक खतरा हो सकता है)
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
  • भारत द्वारा किये गए संरक्षण प्रयास:
    • न्यू डेल्ही डिक्लेरेशन ऑन एशियन राइनोज़ 2019:राइनो रेंज़ के पाँच देशों (भारत, भूटान, नेपाल, इंडोनेशिया और मलेशिया) ने इन प्रजातियों के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिये न्यू डेल्ही डिक्लेरेशन ऑन एशियन राइनोज़ (The New Delhi Declaration on Asian Rhinos), 2019 पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • सभी गैंडों का डीएनए प्रोफाइल बनाना: यह परियोजना अवैध शिकार को रोकने और गैंडों से जुड़े वन्यजीव अपराधों में सबूत इकट्ठा करने में मदद करेगी।
    • राष्ट्रीय राइनो संरक्षण रणनीति: इस रणनीति को वर्ष 2019 में बड़े सींग वाले गैंडों के संरक्षण के लिये शुरू किया गया था।
    • इंडियन राइनो विज़न 2020: इसे वर्ष 2005 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य एक सींग वाले गैंडों की आबादी को वर्ष 2020 तक भारतीय राज्य असम के सात संरक्षित क्षेत्रों में 3,000 से अधिक करना था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अमोनियम नाइट्रेट संबंधी नियम

प्रिलिम्स के लिये:

अमोनियम नाइट्रेट

मेन्स के लिये:

अमोनियम नाइट्रेट के संग्रहण और भंडारण संबंधी नियम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने अमोनियम नाइट्रेट की चोरी पर अंकुश लगाने, अग्निशमन प्रावधानों को लागू करने और रसायन को संभालने तथा संग्रहीत करने के तरीकों में सुधार हेतु नियमों में संशोधन किया है।

  • यह संशोधन वर्ष 2020 में बेरूत विस्फोट की पृष्ठभूमि में लागू किया गया है। ज्ञात हो कि बेरूत के बंदरगाह पर लगभग 3,000 टन अमोनियम नाइट्रेट को छः वर्ष के लिये संग्रहीत किया गया था, जिसमें वर्ष 2020 में विस्फोट हो गया था, इसके चलते कई लोगों की मौत हो गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • नए नियमों के विषय में:
    • नए नियमों के तहत यह आवश्यक है कि बंदरगाहों पर प्राप्त अमोनियम नाइट्रेट को बंदरगाह क्षेत्र से 500 मीटर दूर स्थित भंडारणघरों में स्थानांतरित किया जाए।
    • सुरक्षित एवं त्वरित निपटान सुनिश्चित करने हेतु ये नियम ज़ब्त किये गए अमोनियम नाइट्रेट की नीलामी की भी अनुमति देते हैं, इसके अलावा यह आवश्यक है कि अमोनियम नाइट्रेट को केवल बैग के रूप में ही आयात किया जाए।
    • संशोधित नियमों में भंडारण एवं हैंडलिंग क्षेत्रों में पर्याप्त अग्निशमन सुविधाओं और भंडारण तथा हैंडलिंग क्षेत्रों की फर्श में यथावश्यक सुधार किया जाना भी शामिल है।
    • यह बंदरगाह पर सुभेद्य रसायनों की हैंडलिंग को सीमित करेगा और सुरक्षा को बढ़ाएगा।
  • अमोनियम नाइट्रेट के विषय में:
    • अमोनियम नाइट्रेट, एक रंगहीन, गंधहीन क्रिस्टलीय पदार्थ है, जो जल में अत्यधिक घुलनशील है।
    • प्रयोग
      • यह कृषि उर्वरकों में प्रयोग किया जाने वाला एक सामान्य रासायनिक घटक है।
      • इसका उपयोग ‘एनेस्थेटिक गैसों’ और ‘कोल्ड पैक’ के उत्पादन के लिये एक घटक के रूप में किया जाता है।
      • यह खनन और निर्माण में प्रयुक्त वाणिज्यिक विस्फोटकों में भी प्रयोग किया जाता है।
    • विस्फोट के रूप में:
      • यह विस्फोटक संरचना का मुख्य घटक होता है, जिसे ‘अमोनियम नाइट्रेट फ्यूल आयल’ के रूप में जाना जाता है।
      • शुद्ध अमोनियम नाइट्रेट अपने आप में विस्फोटक नहीं होता है। अमोनियम नाइट्रेट को विस्फोटक बनाने के लिये प्राथमिक विस्फोटक या RDX अथवा TNT जैसे डेटोनेटर की आवश्यकता होती है।
      • ‘अमोनियम नाइट्रेट फ्यूल आयल’ का प्रयोग दुनिया भर में आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले कई ‘इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस’ (IED) में मुख्य विस्फोटक के रूप में किया जाता है।
      • अमोनियम नाइट्रेट का संग्रहण जोखिमपूर्ण हो सकता है और यह दो तरह से विस्फोट कर सकता है।
        • यह किसी विस्फोटक मिश्रण के संपर्क में आ सकता है।
        • व्यापक पैमाने पर ऑक्सीकरण प्रक्रिया के कारण आग और फिर विस्फोट से गर्मी उत्पन्न हो सकती है। यह बेरूत बंदरगाह पर घटना का प्राथमिक संभावित कारण प्रतीत होता है।
    • विनिमय:
      • वैश्विक: इसे खतरनाक वस्तुओं के संयुक्त राष्ट्र वर्गीकरण के तहत ऑक्सीकरण सामग्री (ग्रेड 5.1) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
      • परिवहन पर विशेषज्ञों की संयुक्त राष्ट्र समिति ने नौ वर्गों जैसे- विस्फोटक सामग्री, ज्वलनशील तरल पदार्थ, आसानी से ऑक्सीकरण सामग्री आदि के तहत खतरनाक वस्तुओं के प्रकारों को वर्गीकृत किया है।
      • भारत: भारत में अमोनियम नाइट्रेट का निर्माण, रूपांतरण, बैगिंग, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री के लिये कब्ज़ा या उपयोग अमोनियम नाइट्रेट नियम, 2012 के अंतर्गत आता है।
        • विस्फोटक अधिनियम, 1884 अमोनियम नाइट्रेट को इस प्रकार परिभाषित करता है: "फॉर्मूला NH4NO3 के साथ यौगिक जिसमें इमल्शन, सस्पेंशन, मेल्ट या जैल सहित वज़न के हिसाब से 45% से अधिक अमोनियम नाइट्रेट वाले मिश्रण या यौगिक शामिल होते हैं, लेकिन इमल्शन या स्लरी विस्फोटक और गैर-विस्फोटक इमल्शन मैट्रिक्स तथा उर्वरकों को छोड़कर अमोनियम नाइट्रेट को अलग नहीं किया जा सकता है"।
        • भारत में आबादी वाले क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट के भंडारण पर प्रतिबंध है।
        • अमोनियम नाइट्रेट के निर्माण के लिये औद्योगिक विकास एवं विनियमन अधिनियम, 1951 के तहत एक औद्योगिक लाइसेंस की आवश्यकता होती है।
        • अमोनियम नाइट्रेट से संबंधित किसी भी गतिविधि के लिये अमोनियम नाइट्रेट नियम, 2012 के तहत लाइसेंस की भी आवश्यकता होती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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