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जैव विविधता और पर्यावरण

बायो-प्लास्टिक और पर्यावरण

  • 11 Dec 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों


हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ बॉन द्वारा किये गए एक अध्ययन में यह बात खुलकर सामने आई है कि बायो-प्लास्टिक के उपयोग का सकारात्मक प्रभाव उम्मीद से कम ही रह सकता है। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि एकल-उपयोग प्लास्टिक की जगह बायोप्लास्टिक को व्यवहार में लाने में पर्याप्त समय लगेगा।

क्या है बायोप्लास्टिक?

  • बायोप्लास्टिक मक्का, गेहूँ या गन्ने के पौधों या पेट्रोलियम की बजाय अन्य जैविक सामग्रियों से बने प्लास्टिक को संदर्भित करता है। बायो-प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल और कंपोस्टेबल प्लास्टिक सामग्री है।
  • इसे मकई और गन्ना के पौधों से सुगर निकालकर तथा उसे पॉलिलैक्टिक एसिड (PLA) में परिवर्तित करके प्राप्त किया जा सकता है। इसे सूक्ष्मजीवों के पॉलीहाइड्रोक्सीएल्केनोएट्स (PHA) से भी बनाया जा सकता है।
  • PLA प्लास्टिक का आमतौर पर खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में उपयोग किया जाता है, जबकि PHA का अक्सर चिकित्सा उपकरणों जैसे-टाँके और कार्डियोवैस्कुलर पैच (ह्रदय संबंधी सर्जरी) में प्रयोग किया जाता है।

यह एकल-उपयोग प्लास्टिक से बेहतर कैसे?

  • बायो-प्लास्टिक या पौधे पर आधारित प्लास्टिक को पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक के विकल्प स्वरूप जलवायु के अनुकूल रूप में प्रचारित किया जाता है।
  • प्लास्टिक आमतौर पर पेट्रोलियम से बने होते हैं। जीवाश्म ईंधन की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं पर उनका प्रभाव पड़ता है।
  • अनुमान है कि 2050 तक प्लास्टिक वैश्विक CO2 उत्सर्जन के 15% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार होगा।
  • पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक में कार्बन का हिस्सा ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है। दूसरी तरफ, बायो-प्लास्टिक्स जलवायु के अनुकूल हैं। अर्थात् ऐसा माना जाता है कि बायो-प्लास्टिक कार्बन उत्सर्जन में भागीदार नहीं होता है।

बायो-प्लास्टिक के प्रभाव

  • क्रॉपलैंड का विस्तार: बायोप्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि वैश्विक स्तर पर कृषि उपयोग हेतु भूमि के विस्तार को बढ़ावा दे सकती है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को और बढ़ाएगा।
  • वनों की कटाई: बड़ी मात्रा में बायो-प्लास्टिक का उत्पादन विश्व स्तर पर भूमि उपयोग को बदल सकता है। इससे वन क्षेत्रों की भूमि कृषि योग्य भूमि में बदल सकती है। वन मक्के या गन्ने के मुकाबले अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं।
    खाद्यान्न की कमी: मकई जैसे खाद्यान्नों का उपयोग भोजन की बजाय प्लास्टिक के उत्पादन के लिये करना खाद्यान्न की कमी का कारण बन सकता है।
  • औद्योगिक खाद की आवश्यकता: बायोप्लास्टिक को तोड़ने हेतु इसे उच्च तापमान तक गर्म करने की आवश्यकता होती है। तीव्र ऊष्मा के बिना बायो-प्लास्टिक से लैंडफिल या कंपोस्ट का क्षरण संभव नहीं होगा। यदि इसे समुद्री वातावरण में निस्सारित करते हैं तो यह पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक के समान ही नुकसानदेह होगा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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