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डेली न्यूज़

  • 22 Jul, 2019
  • 51 min read
विश्व इतिहास

‘बेंट’ पिरामिड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मिस्र के पुरातन मंत्रालय (Egyptian Ministry of Antiquities) ने पहली बार ‘बेंट’ पिरामिड (Bent Pyramid) को दर्शकों/पर्यटकों के लिये खोले जाने की अनुमति दी है।

प्रमुख बिंदु

  • अब पर्यटक 79 मीटर लंबाई वाली एक संकीर्ण सुरंग के माध्यम से पिरामिड में प्रवेश कर सकेंगे।
  • यह पिरामिड मेम्फिस पिरामिड फील्ड्स (Memphis Pyramid Fields) का हिस्सा है।
  • ‘मेम्फिस पिरामिड फील्ड्स’ यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल है जो दाहशूर शाही नेक्रोपोलिस/कब्रिस्तान (Dahshur Royal Necropolis) में काहिरा के दक्षिण में 40 किमी. की दूरी पर स्थित है।
  • लगभग 100 मीटर लंबा बेंट पिरामिड 4600 साल पहले प्राचीन मिस्र में चौथे राजवंश के संस्थापक फैरो स्नेहफ्रू (Sneferu) के लिये बनाया गया था।
  • इस संरचना को पिरामिड निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर माना जाता है।
  • यह 18 मीटर ऊँचा पिरामिड है जिसकी खुदाई वर्ष 1956 में की गई थी। इस पिरामिड को विकास एवं नवीकरण कार्यों के पूरा होने के बाद पर्यटकों के लिये खोला गया है।

मेम्फिस

Memphis

  • यह नील नदी के पश्चिमी हिस्से के बाढ़ क्षेत्र में स्थित है। प्राचीन मिस्र की प्रथम राजधानी होने के कारण यह प्रसिद्ध है।
  • इसकी भौगोलिक अवस्थिति इसे सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बनाती है क्योंकि यहीं पर महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग स्थित हैं।
  • ऊपरी और निचले मिस्र के क्षेत्रों पर शासन करने तथा बेहतर नियंत्रण के लिये यह जगह बहुत उपयुक्त थी, इसका कोई अन्य विकल्प नहीं था।

बेंट पिरामिड

  • यह पिरामिड 25 वीं शताब्दी ईसा पूर्व मिस्र में चौथे राजवंश के संस्थापक फैरो स्नेहफ्रू (Pharaoh Sneferu) के लिये बनाए गए तीन पिरामिडों में से एक है।
  • इस पिरामिड के निर्माण में कुछ खामियाँ होने तथा उनमें सुधार के कारण इसे 'बेंट' आकार दिया गया।
  • इसका आकार कोणीय है जो मेम्फिस नेक्रोपोलिस में इसे अन्य पिरामिडों से अलग बनाता है।

Bent Pyramid

अन्य खोजें

  • पुरातत्त्वविदों ने दाहशूर पिरामिडों के पास खुदाई करते समय मध्य साम्राज्य की 60 मीटर ऊँची प्राचीन दीवार के अवशेष प्राप्त हुए थे।
  • ममीज़, मास्क, उपकरण एवं प्राचीन काल (664–332 BCE) के ताबूत भी उत्खनन के दौरान प्राप्त हुए हैं।

मिस्र में पर्यटन विरासत

  • विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद (World Travel & Tourism Council- WTTC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 के दौरान मिस्र की GDP में पर्यटन क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 12% थी।
  • प्राचीन पिरामिड स्थल गीज़ा (Giza) और सककारा (Saqqara) विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैं।
  • हालाँकि वर्ष 2011 के दौरान होने वाले राजनीतिक कारणों से मिस्र में पर्यटन क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित हुआ था। दाहशूर जैसे नए पुरातात्विक स्थलों के प्रचार से मिस्र में पर्यटन क्षेत्र आधारित बाज़ारों के फिर से बहाल होने की संभावना है।

मिस्र के पिरामिड

  • भारत की तरह मिस्र की सभ्यता भी अत्यंत प्राचीन एवं समृद्ध है जिसकी गौरव गाथा वहाँ प्राप्त अवशेषों से ज़ाहिर होती है।
  • मिस्र के पिरामिड वहाँ के तत्कालीन सम्राट (फैरो) गणों के लिये बनाए गए स्मारक स्थल हैं, जिनमें राजाओं के शवों को दफना कर सुरक्षित रखा गया है। इन शवों को ‘ममी’ (Mummy) कहा जाता है।
  • उनके शवों के साथ खाद्य अन्न, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहनें, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर एवं कभी-कभी तो सेवक-सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था।
  • मिस्र में लगभग 138 पिरामिड हैं, लेकिन काहिरा के उपनगर गीज़ा में स्थित ‘ग्रेट पिरामिड’ विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में शामिल है।
  • दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में से यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसका समय के साथ क्षय नहीं हो सका है। इसकी संरचना अत्यंत जटिल है।

यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल

  • संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) दुनिया भर में उन सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासतों की पहचान एवं संरक्षण को प्रोत्साहित करता है जो मानवता के लिये उत्कृष्ट मूल्य के रूप में माने जाते हैं।
  • ‘विश्व के प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों पर सम्मेलन’ जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, इसे वर्ष 1972 में यूनेस्को की सामान्य सभा में स्वीकृति दी गई।
  • विश्व विरासत कोष अंतर्राष्ट्रीय सहायता की आवश्यकता वाले स्मारकों को संरक्षित करने से संबंधित गतिविधियों हेतु सालाना 4 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि उपलब्ध कराता है।
  • विश्व विरासत समिति अनुरोधों तथा ज़रुरत के अनुसार धन आवंटित करती है, सबसे अधिक प्राथमिकता संकटग्रस्त स्थलों को दी जाती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

एक्रा एक्शन एजेंडा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपियन संघ और UNEP ने अफ्रीका LEDS (Low Emissions Development Strategies) प्रोजेक्ट के तहत अफ्रीकी एक्शन एजेंडे को संचालित करने के लिये एक्रा एक्शन एजेंडा (Accra Action Agenda) घोषित किया।

प्रमुख बिंदु

  • अफ्रीका में ग्रीनहाउस गैसों का न्यूनतम उत्सर्जन होता है, फिर भी यह महाद्वीप जलवायु परिवर्तन से बहुत अधिक प्रभावित है। जलवायु परिवर्तन की वजह से इस महाद्वीप के लोगों की आजीविका और सामाजिक-आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

अफ्रीका के जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित होने के कारण

  • अफ्रीका का ज़्यादातर हिस्सा उष्ण कटिबंध में है जिससे वर्ष भर यहाँ सूर्यातप की अत्यधिक मात्रा उपलब्ध होती है। इसके परिणामस्वरूप ग्रीष्म लहर की की घटनाओं की बारंबारता अधिक होती है। यूरोपीय कमीशन की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रीष्म लहर से गिनी खाड़ी, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, अंगोला अरब प्रायद्वीप और कांगो सबसे अधिक प्रभावित हैं।
  • खनन और उद्योगों की स्थापना से वनों की अत्यधिक कटाई हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन आदि घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है। अंततः इससे जैव-विविधता का ह्रास हो रहा है।
  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization of the United Nations-FAO) की एक रिपोर्ट के अनुसार भूमि क्षरण और भू-निम्नीकरण की बढ़ती घटनाओं से सहारा मरुस्थल अपने वास्तविक स्वरुप से 10% अधिक विस्तारित हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप वनों का क्षेत्रफल कम हुआ है। साथ ही इस क्षेत्र की जीवन रेखा ‘चाड झील’ भी संकुचित हो गई है। इस प्रकार की घटनाओं ने जलवायु परिवर्तन की प्रभाविता में उत्प्रेरक का कार्य किया है।
  • UN की एक रिपोर्ट के अनुसार अफ्रीका में खाना पकाने में 80% तक बायोमास ईधन का प्रयोग होता है जिससे मानव स्वास्थ और जलवायु दोनों बुरी तरह प्रभावित होते है।
  • कमज़ोर शासन, उग्रवाद, कम पूँजी, खराब बुनियादी ढाँचा, अपर्याप्त प्रौद्योगिकी एवं विदेशी बाज़ार तक पहुँच आदि परिस्थितियाँ अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन की प्रभाविता को और बढ़ा देती हैं।

अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • UN की एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से अफ्रीका की GDP में 2 से 4% तक की हानि हुई है। अधिकांश अफ्रीकी देशों की प्रति व्यक्ति आय 30 वर्ष पहले के स्तर से कम हो गई है।
  • FAO की रिपोर्ट के अनुसार उप सहारा में एक तिहाई लोग भूख और कुपोषण से पीड़ित हैं।
  • जलवायु परिवर्तन से शिक्षा और स्वास्थ भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है, UNDP की एक रिपोर्ट के अनुसार अफ्रीका में 10 में से 4 लोग HIV/AIDS से पीड़ित हैं।
  • अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन से जहाँ एक ओर मरुस्थलीकरण का प्रभाव बढ़ रहा है, वही पश्चिमी और पूर्वी अफ्रीका के तट भी समुद्र में डूब रहे हैं। इस प्रकार की घटनाएँ घाना आदि देशों को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के समग्र कारणों की वजह से अफ्रीका का आर्थिक सामाजिक विकास भी काफी प्रभावित हुआ है।

अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु किये गए प्रयास

  • यूरोपीय संघ-UNEP द्वारा संचालित अफ्रीका LEDS (Low Emissions Development Strategies- कम उत्सर्जन विकास रणनीतियाँ) परियोजना के कार्यान्वयन से अफ्रीका अपने राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution-NDC) की प्राथमिकताओं को पूरा कर सकेगा तथा साथ ही जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र अपना सामाजिक- आर्थिक विकास भी सुनिश्चित कर सकेगा।

अफ्रीका LEDS क्या है?

  • यह कार्यक्रम यूरोपीय संघ और सात सहयोगी देशों द्वारा वित्तपोषित है।
  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य अफ्रीकी देशों के NDC की प्राथमिकताओं के लिये नीतिगत और संरचनात्मक सहयोग प्रदान करना है।
  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बिना शर्त देशों की NDC हेतु जवाबदेही तंत्र स्थापित करना है और साथ ही युवाओं के लिये कौशल, प्रतिभा संबंधित अवसरों का निर्माण करना है।
  • अफ्रीकी मंत्रिस्तरीय पर्यावरण सम्मेलन (African Ministerial Conference on the Environment-AMCEN) के तहत जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय नीतियों में समग्रता का प्रयास किया जा रहा है। AMCEN को सचिवालय नैरोबी स्थित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • अफ्रीका के विकास हेतु नई साझेदारी (New Partnership for Africa’s Development-NEPAD) कार्यक्रम के माध्यम से भी नीति निर्माण और क्रियान्वयन पर समग्रता का प्रयास किया जा रहा है।
  • UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल के तहत अनुकूलन कोष (Adaptation Fund), ग्लोबल पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility), विश्व बैंक जैसे तंत्रों के माध्यम से अफ्रीका को वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।

उपरोक्त प्रयासों के बावजूद भी अफ्रीका की आर्थिक- सामाजिक स्थिति और जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियों में सुधार शेष है। इसीलिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अफ्रीका को उच्च राजनीतिक मान्यता प्रदान की जानी चाहिये, जिससे वहाँ पर खाद्य और जलवायु सुरक्षा, संसाधनों का उचित आवंटन, जलवायु जोखिम का प्रबंधन एवं अनुकूलन हेतु आवश्यक कार्यवाहियाँ संपन्न कराई जा सके।


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमरावती परियोजना

चर्चा में क्यों?

विश्व बैंक ने आंध्रप्रदेश की राजधानी अमरावती की अवसंरचना एवं संस्थागत सतत् विकास परियोजना के वित्तपोषण (Funding) से इंकार कर दिया है, हालाँकि इससे परियोजना के निर्माण कार्य पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि इससे पूर्व विश्व बैंक इस परियोजना के लिये आंध्रप्रदेश सरकार को 300 मिलियन डॉलर का ऋण देने पर विचार कर रहा था।
  • विश्व बैंक के अनुसार, निरीक्षण में पाया गया कि आंध्रप्रदेश के पूर्व सत्ताधारी दल ने इस परियोजना से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने वाले लोगों के हितों की रक्षा करने के लिये जो आश्वासन दिये थे, उन्हें पूरा नहीं किया गया है।
  • राज्य की नई सत्ताधारी पार्टी अभी भी इस परियोजना के निर्माण कार्य को आगे बढ़ा सकती है, क्योंकि केंद्र ने भी अमरावती की परियोजना के लिये कई बार धन आवंटित किया है।
  • उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, बीते पाँच वर्षों में केंद्र ने इस परियोजना के लिये कुल 1500 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की है।
  • हालाँकि अभी यह विकल्प भी मौजूद है कि आंध्रप्रदेश सरकार सभी आवश्यक शर्तों को पूरा करके विश्व बैंक के पास ऋण के लिये पुनः आवेदन कर सकती है।
  • राज्य सरकार ने एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank-AIIB) से भी 200 मिलियन डॉलर की मांग की थी, परंतु AIIB ने इस संदर्भ में अभी कोई निर्णय नहीं लिया है।

अवसंरचना एवं संस्थागत सतत् विकास परियोजना:

  • आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्य में कृष्णा नदी के दक्षिणी तट पर 217 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में विश्व स्तरीय राजधानी बनाने का निर्णय लिया था। इसके लिये सरकार ने लैंड पूलिंग परियोजना के तहत किसानों से 34,000 एकड़ उपजाऊ भूमि खरीदी थी।
  • राजधानी शहर में एक अंतरिम सचिवालय, विधायी परिसर, अंतरिम उच्च न्यायालय भवन और 280 किलोमीटर की छह लेन की सड़कों का निर्माण पहले ही किया जा चुका है।
  • पिछली सरकार का यह अनुमान था कि 10 वर्षों में इस परियोजना को पूरा करने के लिये 48,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।

विश्व बैंक:

World Bank

  • विश्व बैंक संयुक्त राष्ट्र की ऋण प्रदान करने वाली एक विशिष्ट संस्था है, इसका उद्देश्य सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एक वृहद वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल करना तथा विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन के प्रयास करना है।
  • यह नीति सुधार कार्यक्रमों एवं संबंधित परियोजनाओं के लिये ऋण प्रदान करता है। विश्व बैंक की सबसे विशेष बात यह है कि यह केवल विकासशील देशों को ऋण प्रदान करता है।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निर्माण और विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता प्रदान करना है।
  • इसके अंतर्गत विश्व को आर्थिक तरक्की के मार्ग पर लाने, विश्व में गरीबी को कम करने, अंतर्राष्ट्रीय निवेश को बढ़ावा देने, जैसे पक्षों पर बल दिया गया है।
  • विश्व बैंक समूह का मुख्यालय वाशिंगटन डी सी (अमेरिका) में स्थित है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


सुरक्षा

गृह मंत्रालय: ‘सोशल इंजीनियरिंग’ साइबर अटैक से रहे सतर्क

चर्चा में क्यों?

गृह मंत्रालय ने सभी सरकारी अधिकारियों को सोशल इंजीनियरिंग साइबर अटैक के संबंध में आगाह किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • गृह मंत्रालय ने अधिकारियों को ऐसे असामाजिक तत्त्वों से बचने की हिदायत दी है जो टेलीफोन या ई-मेल के माध्यम से संवेदनशील जानकारी को चुराने का प्रयास कर सकते हैं।
  • अधिकारियों को सतर्क किया गया है कि वे व्यक्तिगत या सरकारी जानकरी मांगने वाले व्यक्ति की सही पहचान को जाने बिना उनसे कॉल, ई-मेल या व्यक्तिगत मुलाकात से बचें।
  • गृह मंत्रालय ने इस संदर्भ में एक बुकलेट जारी की है जिसमें यह बताया गया है कि किस प्रकार सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से लोगों को बिना बताए उनकी संवेदनशील जानकारी को प्राप्त किया जा रहा है और उनकी सूचनाओं के साथ छेड़छाड़ की जा रही है।
  • इसके अतिरिक्त जारी की गई बुकलेट में बतया गया है कि विदेशों से लॉटरी के नाम पर आने वाली ई-मेल और संदेश पूर्णतः स्कैम होते हैं और अधिकारियों को इनका जवाब देने से बचना चाहिये।

सोशल इंजीनियरिंग:

सोशल इंजीनियरिंग लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित करने की एक कला है ताकि वे अपनी गोपनीय और महत्त्वपूर्ण जानकारियों को साझा कर सकें। यह मुख्यतः निम्न प्रकार से किया जा सकता है:

  • फिशिंग (Phishing):

इस प्रकार के साइबर अटैक में हैकर, लोगों को मोबाइल संदेश या ई-मेल इस उद्देश्य से भेजता है ताकि उनकी गोपनीय जानकारियों को चुराया जा सके। उदाहरण के लिये, हैकर आपको ऐसा ई-मेल भेज सकता है जो किसी विश्वसनीय स्रोत जैसे- बैंक अथवा सरकार आदि द्वारा प्रसारित प्रतीत होता हो, परंतु असल में वह संदेश ऐसे ही किसी अन्य संदेश की कॉपी होता है और आप जैसे ही अपनी गोपनीय जानकारियाँ उसमें भरते हैं, वैसे ही वे जानकारियाँ हैकर के पास पहुँच जाती हैं।

  • विशिंग (Vishing):

यह अटैक फिशिंग जैसा ही होता है, परंतु इसमें संदेश या ई-मेल के साथ पर फोन कॉल का प्रयोग किया जाता है। यह अक्सर देखा जाता है कि अटैकर बैंक के नाम पर फर्जी कॉल करते हैं और संबंधी जानकारी साझा करने के लिये कहते हैं।

  • कुइड प्रो कुओ (Quid Pro Quo):

यह एक लेटिन शब्द है जिसका अर्थ है ‘कुछ के लिये कुछ’। इस प्रकार के अटैक में पीड़ित और हैकर के मध्य सूचनाओं का आदान प्रदान होता है, जिसमें पीड़ित को लगता है कि यह एक उचित सौदा है, परंतु असल में इसका उद्देश्य हैकर को लाभ पहुँचाना होता है।

स्रोत : टाइम्स ऑफ़ इंडिया


भारतीय राजनीति

ई-पोस्टल बैलट की सफलता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव के दौरान इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित पोस्टल बैलट सिस्टम (Electronically Transmitted Postal Ballot System-ETPBS) के माध्यम से होने वाले मतदान में लगभग 60.14% मतदान दर्ज किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि पहली बार ऑनलाइन पंजीकरण में सक्षम एक समर्पित पोर्टल के माध्यम से डाक मतदाताओं को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से प्रसंस्करित समय एवं संसाधनों की बचत करने और मानवीय त्रुटियों से बचने के लिये डाक मतपत्र भेजे गए।
  • देश के बाहर दूतावासों में तैनात केंद्रीय बलों में काम करने वाले व्यक्तियों को डाक मतदाता के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और उनके लिये ऑनलाइन नामांकन का प्रावधान किया जाता है।
  • वर्ष 2019 के आम चुनाव में भारत के चुनाव आयोग के प्रमुख IT कार्यक्रम ETPBS का उपयोग करते हुए इलेक्ट्रॉनिक रूप से कुल 18,02,646 डाक मतपत्र भेजे गए थे। इससे कुल 10,84,266 ई-पोस्टल मत प्राप्त हुए जिन्होंने अपने नामांकन संख्या से लगभग 60.14% मतदान किया।

इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित पोस्टल बैलट सिस्टम

Electronically Transmitted Postal Ballot System-ETPBS

  • ETPBS पूरी तरह से एक सुरक्षित प्रणाली है, जिसमें सुरक्षा के दो चरण हैं।
  • OTP और पिन के उपयोग से मतदान की गोपनीयता बनी रहती है और पोर्टल में अनूठे QR कोड के कारण डाले गए ETPB का कोई दोहराव संभव नहीं है।
  • इस प्रणाली के माध्यम से डाक मतदाता अपने निर्वाचन क्षेत्र के बाहर कहीं से भी, इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्राप्त डाक मतपत्र पर अपना वोट डाल सकते है, जिससे मतदान का अवसर खोने की संभावना कम हो जाती है।

उद्देश्य

  • ऑनलाइन प्रणाली का उद्देश्य रक्षा कार्मिकों के लिये डाक मतदाता बनने हेतु सुविधाजनक एवं उपयोग में आसान ऑनलाइन प्रणाली तैयार करना था।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में डाक मतदाता द्वारा सिर्फ 4% मतदान दर्ज किया गया था।
  • भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) ने ETPBS के माध्यम से राष्ट्र के लिये अपना कर्तव्य निभाते हुए आदर्श वाक्य ‘कोई मतदाता पीछे न छूटे’ (No Voter to be Left Behind) के साथ संवैधानिक अधिकार के तहत सभी पात्र डाक मतदाताओं का सशक्तीकरण सुनिश्चित किया है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय राजनीति

जम्मू और कश्मीर में शासन सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद ने जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को अगले छह महीने के लिये बढ़ाने का निर्णय लिया।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्र सरकार ने ज़मीनी लोकतंत्र को बढ़ावा देते हुए राज्य में अपने अधिकार क्षेत्र में विस्तार किया है जो संघवाद की भावना का उल्लंघन करने के साथ-साथ विरोधाभासी भी प्रतीत होता है। इसमें निम्नलिखित मुद्दे शामिल हैं:
    • कमज़ोर आर्थिक विकास
    • बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने में असफल
    • सरकारी कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार
    • मानवाधिकारों का उल्लंघन
    • बेरोज़गारी
    • सीमा पार से घुसपैठ से सुरक्षा को खतरा

Rules based order

जम्मू-कश्मीर में शासन के मुद्दों का समाधान करने के लिये शुरू की गई पहल

  • लद्दाख को संभागीय दर्जा
  • ‘बैक टू विलेज़ेज़’ कार्यक्रम के तहत सरकारी अधिकारी गाँवों का दौरा करते हैं एवं लोगों की शिकायतों का त्वरित निवारण करते हैं।

जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन

  • जम्मू कश्मीर में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने पर राष्ट्रपति शासन लागू होता है, इसके दो पक्ष हैं-
    • जम्मू-कश्मीर संविधान के तहत राज्यपाल का शासन
    • भारतीय संविधान के तहत राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-356)
  • राष्ट्रपति के अनुमोदन से राज्य में पहले छह महीने के लिये राज्यपाल शासन लगाया जाता है।
  • यदि 6 महीने के भीतर संवैधानिक संकट का समाधान नहीं हो पाता है, तो राष्ट्रपति शासन को प्रत्येक 6 महीने के बाद संसदीय स्वीकृति के साथ अधिकतम 3 वर्षों के लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद-356 के तहत बढ़ाया जा सकता है।
  • अनुच्छेद-356 के अंतर्गत किसी भी राज्य के संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने पर तथा अनुच्छेद 365 के अंतर्गत केंद्र सरकार के आदेशों के अनुपालन में राज्य सरकार की विफलता के मामले में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। इस स्थिति में राज्य का समस्त नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथों में आ जाता है। हालाँकि अन्य राज्यों में राज्यपाल शासन का कोई प्रावधान नहीं है।

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्ज़ा

  • अन्य राज्यों में धारा 356 के तहत सीधे राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 92 के तहत राज्य में शुरुआती 6 महीनों के लिये राज्यपाल शासन लागू होता है।
  • राज्यपाल शासन के दौरान सभी विधायी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित होती हैं। इसके बाद यदि ज़रूरी हुआ तो राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है।
  • राज्य के संविधान के तहत 6 महीने से अधिक समय के लिये राज्यपाल शासन लागू नहीं किया जा सकता।
  • राष्ट्रपति शासन के दौरान यदि संभव हुआ तो राज्य में चुनाव करवाए जाते हैं या फिर इसकी अवधि और 6 महीनों के लिये बढ़ा दी जाती है।

क्या है राष्ट्रपति शासन?

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत ऐसे राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है जहाँ संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार चलने की सभी संभावनाएँ समाप्त हो जाती हैं।
  • राज्य विधानसभा भंग कर दी जाती है और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल राज्य में कार्यकारी शक्तियों का निर्वहन करता है।
  • इस दौरान राज्य की सभी प्रशासनिक और विधायी शक्तियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण हो जाता है एवं राज्य में ‘राष्ट्रपति शासन' लागू माना जाता है।

क्यों लागू होता है राष्ट्रपति शासन?

  • जब किसी राज्य की विधानसभा मुख्यमंत्री का चुनाव करने में असमर्थ रहती है,
  • जब राज्य में चल रही गठबंधन सरकार फूट पड़ने की वज़ह से गिर जाती है,
  • जब किसी अपरिहार्य कारणवश राज्य में विधानसभा चुनाव समय पर न करवाए जा सकें,
  • जब कोई राज्य संविधान में निर्धारित कायदे-कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन करता प्रतीत हो।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

मानसून की भविष्यवाणी

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में मानसून के गलत पूर्वानुमानों से इनके मापदंडों पर फिर से प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून ने लगभग एक सप्ताह की देरी के साथ 7 जून को केरल तट पर दस्तक दी। जून में अपेक्षित वर्षा की केवल दो-तिहाई वर्षा ही प्राप्त हुई।
  • जुलाई और अगस्त महीने मानसून के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं। जून से सितंबर तक होने वाली कुल वर्षा में से 89 सेमी. वर्षा के साथ 66% वर्षा इन दोनों महीनों में ही होती है।
  • प्रशांत महासागर में बनने वाले एलनीनो के आधार पर भारत के मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मई में पूर्वानुमान लगाया था कि सामान्य वर्षा से जुलाई में 5% और अगस्त 1% वर्षा कम होगी। एल नीनो के वर्षों में भारत के मानसून के कमज़ोर होने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
  • अरब सागर में बना वायु चक्रवात इस वर्ष के मानसून में बड़ी बाधा था। साथ ही पश्चिमी विक्षोभ ने भी मानसून के उत्तरी भारत, जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान के वर्षण प्रतिरूप को प्रभावित किया।
  • केरल तट और पश्चिमी घाट की मानसून शाखा की अपेक्षा बंगाल की खाड़ी में संवहनीय धाराओं की उपस्थिति के कारण पूर्वी भारत की मानसून शाखा द्वारा ज़्यादा वर्षा हुई।

2010 तक IMD मानसून का पूर्वानुमान का सांख्यिकीय मॉडल:

  • इस मॉडल में उत्तरी अटलांटिक और उत्तरी प्रशांत के बीच समुद्र की सतह की तापमान प्रवणता, भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में गर्म पानी की मात्रा, यूरेशियन बर्फ का आवरण जैसे मानसून के प्रदर्शन से जुड़े जलवायु मापदंडों को शामिल किया जाता था।
  • उपरोक्त मापदंडों के फरवरी और मार्च के आँकड़ों की सौ वर्ष से अधिक के वास्तविक वर्षा के आँकड़ों से तुलना करने के बाद (सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग करते हुए) किसी एक विशेष वर्ष के मानसून का पूर्वानुमान लगाया जाता था।
  • इस प्रकार व्यक्त पूर्वानुमान अक्सर (विशेष रूप से वर्ष 2002, 2004 और 2006) गलत साबित हुए हैं।

2015 के बाद का पूर्वानुमान मॉडल:

  • 2015 के आसपास से ही मानसून पूर्वानुमान हेतु एक गतिशील प्रणाली का परीक्षण शुरू किया गया। इस प्रणाली में कुछ निश्चित स्थानों की भूमि और समुद्र के तापमान, नमी, विभिन्न ऊँचाई पर वायु की गति, जैसे मापदंडों के आधार पर मौसम का अनुमान लगाया जाता है।
  • इस प्रणाली से प्राप्त आँकड़ों की गणना शक्तिशाली कंप्यूटरों के माध्यम से की जाती है। साथ ही मौसम के पूर्वानुमान में भौतिकी समीकरणों का भी प्रयोग किया जाता है।
  • IMD और कई निजी मौसम एजेंसियाँ मानसून के पूर्वानुमान हेतु अधिक परिष्कृत और उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर मॉडल का प्रयोग कर रही हैं। इस प्रकार की तकनीकों के माध्यम से 10 से 15 दिन पहले मौसम में बदलाव की सूचना दी जाती है। ये छोटे पूर्वानुमान कहीं अधिक विश्वसनीय होते हैं क्योंकि इससे किसानों को बुवाई के बारे में निर्णय लेने में सहायता मिलती है। साथ ही ग्रीष्म लहर और शीत-लहर की आशंकाओं का बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार भारत का जल संकट भूजल संसाधनों के अति-निष्कर्षण और वर्षा जल तथा सतही जल के पर्याप्त भंडारण के अभाव के कारण बना हुआ है। केंद्रीय जल आयोग ने मानसून के दौरान जलाशयों के पुनर्भरण और वर्षा के मौसम के बाद इनके प्रयोग से संबंधित अनुशंसाएँ जारी की हैं।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत मौसम विज्ञान प्रेक्षण, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान का कार्यभार संभालने वाली सर्वप्रमुख एजेंसी है।
  • IMD विश्व मौसम संगठन के छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों में से एक है।
  • इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • IMD में उप महानिदेशकों द्वारा प्रबंधित कुल 6 क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र आते हैं।
  • ये चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली और हैदराबाद में स्थित हैं।

भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारक:

  1. एल नीनो और ला नीना: ये प्रशांत महासागर के पेरू तट पर होने वाली परिघटना है । एल नीनो के वर्षों के दौरान समुद्री सतह के तापमान में बढ़ोत्तरी होती है और ला नीना के वर्षों में समुद्री सतह का तापमान कम हो जाता है। सामान्यतः एल नीनो वर्षों में भारत में मानसून कमज़ोर जबकि ला नीना वर्षों में मानसून मज़बूत होता है।
  2. हिंद महासागर द्विध्रुव: हिंद महासागर द्विध्रुव के दौरान हिंद महासागर का पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की अपेक्षा ज़्यादा गर्म या ठंडा होता रहता है। पश्चिमी हिंद महासागर के गर्म होने पर भारत के मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि ठंडा होने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  3. मेडेन जुलियन ऑस्किलेशन (OSCILLATION): इसकी वजह से मानसून की प्रबलता और अवधि दोनों प्रभावित होती है। इसके प्रभावस्वरुप महासागरीय बेसिनों में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की संख्या और तीव्रता भी प्रभावित होती है, जिसके परिणामस्वरूप जेट स्ट्रीम में भी परिवर्तन आता है। यह भारतीय मानसून के सन्दर्भ में एल नीनो और ला नीना की तीव्रता और गति के विकास में भी योगदान देता है।
  4. चक्रवात निर्माण: चक्रवातों के केंद्र में अति निम्न दाब की स्थिति पाई जाती है जिसकी वजह से इसके आसपास की पवनें तीव्र गति से इसके केंद्र की ओर प्रवाहित होती हैं। जब इस तरह की परिस्थितियाँ सतह के नज़दीक विकसित होती हैं तो मानसून को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। अरब सागर में बनने वाले चक्रवात, बंगाल की खाड़ी के चक्रवातों से अधिक प्रभावी होते हैं क्योंकि भारतीय मानसून का प्रवेश प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में अरब सागर की ओर होता है।
  5. जेट स्ट्रीम: जेट स्ट्रीम पृथ्वी के ऊपर तीव्र गति से चलने वाली हवाएँ हैं, ये भारतीय मानसून को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

भाभा कवच

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत की सबसे हल्की और सबसे सस्ती बुलेट प्रूफ जैकेट जिसे 'भाभा कवच' नाम दिया गया है, को नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय पुलिस प्रदर्शनी-2019 में प्रदर्शित किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • इस प्रदर्शनी का आयोजन नेक्सजेन एक्ज़िबिशन (Nexgen Exhibitions) (एशिया के अग्रणी और व्यापार मेले, प्रदर्शनी एवं सम्मेलन के आयोजक) द्वारा किया गया।
  • इस बुलेट प्रूफ जैकेट का वज़न 9.2 किलोग्राम है और यह पारंपरिक जैकेट (जिसका वज़न लगभग 17 किलोग्राम होता है) की तुलना में काफी हल्की है।

निर्माण और विकास

  • ‘भाभा कवच’ को आयुध निर्माणी बोर्ड (Ordnance Factory Board) और मिश्र धातु लिमिटेड (Mishra Dhatu Nigam Limited-MIDHANI), जैसे- रक्षा संगठनों को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre-BARC) से कार्बन-नैनोमैटेरियल प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के बाद स्वदेशी रूप से विकसित किया गया।
  • MIDHANI, भारत का एक (सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम) विशिष्ट धातु और मिश्र धातु निर्माता संगठन है, जो हैदराबाद, तेलंगाना में स्थित है।
  • आयुध निर्माणी बोर्ड (Ordnance Factory Board-OCB) एक औद्योगिक संगठन है, जो रक्षा उत्पादन विभाग (Department of Defence Production), रक्षा मंत्रालय (कोलकाता में मुख्यालय) के अंतर्गत कार्य करता है।

विनिर्माण

  • भाभा कवच उच्च-घनत्व, अधिक मज़बूत पॉलीथीन की परतों को उच्च तापमान पर पिघलाकर एक मोटी, कठोर प्लेट बनाई जाती है, जिस पर BARC के कार्बन नैनो-मैटेरियल छिड़का जाता है।
  • जैकेट में प्रयुक्त सामग्री में कठोर बोरॉन कार्बाइड सिरेमिक (Boron Carbide Ceramics), कार्बन नैनो-ट्यूब (Carbon Nano-Tubes) और मिश्रित बहुलक (composite polymer) (दो या अन्य प्रकार के बहुलक से बने होते हैं) होते हैं।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र

  • BARC महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित भारत की प्रमुख परमाणु अनुसंधान केंद्र है।
  • यह एक बहु-अनुशासनात्मक अनुसंधान केंद्र है जिसमें उन्नत अनुसंधान और विकास के लिये व्यापक बुनियादी ढाँचा उपलब्ध है।
  • इसका उद्देश्य मुख्य रूप से परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण अनुप्रयोगों के तहत विद्युत् उत्पादन करना है।

आवश्यकता

  • भारत में हुए कई आतंकवादी हमलों (जैसे-उरी, पुलवामा) को ध्यान में रखते हुए , भारतीय सुरक्षा बलों की सुरक्षा हेतु एक उन्नत, कुशल और लागत प्रभावी सुरक्षा प्रणाली विकसित करने की सख्त आवश्यकता है जो 21वीं सदी के संभावित खतरों से तेज़ी से निपट सके।
  • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल जैसे- केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, और सशस्त्र सीमा बल; जो हमारे सीमाई क्षेत्रों को सुरक्षित करते हैं इसलिये भाभा कवच को निम्नलिखित हथियारों से भारतीय सुरक्षा बलों की रक्षा हेतु डिज़ाइन किया गया है:

1. AK-47 राइफल: 7.62mm हार्ड स्टील कोर या गोलियों से बचाव।

2. INSAS बुलेट: इंडियन स्माल आर्म्स सिस्टम की 5.56MM की गोली से सुरक्षा।

3. SLR: 7.56 MM की सेल्फ लोडिंग राइफल से रक्षा।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (22 July)

  • कुछ दिन पूर्व अपने निर्धारित प्रक्षेपण के दिन आई तकनीकी खामी की वज़ह से स्थगित हुई चंद्रयान-2 की उड़ान को 22 जुलाई को दोपहर 2:43 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रॉकेट GSLV MK-3 यानी बाहुबली ने सफलतापूर्वक अंजाम दिया। अब अलग-अलग चरणों में सफर पूरा करते हुए यान 7 सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की निर्धारित जगह पर उतरेगा। चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं- ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर। अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के सम्मान में लैंडर का नाम विक्रम रखा गया है। रोवर का नाम प्रज्ञान है, जिसका अर्थ है ‘ज्ञान’। चंद्रमा की कक्षा में पहुँचने के बाद लैंडर-रोवर अपने ऑर्बिटर से अलग हो जाएंगे। लैंडर ‘विक्रम’ 7 सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के नज़दीक उतरेगा। लैंडर उतरने के बाद रोवर उससे अलग होकर अन्य प्रयोगों को अंजाम देगा। लैंडर और रोवर के काम करने की कुल अवधि 14 दिन की है। चंद्रमा के हिसाब से यह एक दिन की अवधि होगी। वहीं ऑर्बिटर सालभर चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए विभिन्न प्रयोगों को अंजाम देगा। आपको बता दें कि वर्ष 2008 में भारत ने चंद्रयान-1 लॉन्च किया था, जो एक ऑर्बिटर अभियान था। ऑर्बिटर ने 10 महीने तक चंद्रमा का चक्कर लगाया था तथा वहाँ पानी का पता लगाने का श्रेय भारत के इसी अभियान को जाता है।
  • केंद्र सरकार ने 58 और अनावश्यक कानूनों को समाप्त करने के लिये विधेयक लाने की मंज़ूरी दे दी है। इसका उद्देश्य अपनी महत्ता खो चुके पुराने कानूनों को समाप्त करना है। NDA सरकार ने अपने दो कार्यकाल के दौरान अब तक 1824 ऐसे कानूनों को खत्म किया है। इनमें अधिकांश ऐसे कानून हैं, जिन्हें प्रमुख या मुख्य कानूनों में संशोधन करने के लिये लागू किया गया था और अब ये अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। स्वतंत्र कानून के रूप में कानूनी पुस्तकों में इनका होना व्यवस्था में बाधक बनता है। वर्ष 2014 में पहली बार NDA सरकार के सत्ता में आने के बाद पुराने कानूनों को निरस्त करने के लिये दो सदस्यीय पैनल की स्थापना की गई थी। इस पैनल ने केंद्र और राज्य सरकारों से इन कानूनों को निरस्त करने की सिफारिश करने से पहले सभी संबधित पक्षों के साथ परामर्श भी किया था। वर्ष 2014 में NDA सरकार बन जाने के बाद विधि आयोग ने अपनी 248, 249, 250 और 251वीं अंतरिम रिपोर्टों में क्रमश: 72, 113, 74 और 30 अनावश्यक और अप्रासंगिक हो चुके कानूनों (जिनमें कुछ राज्यों के कानून भी शामिल थे) की पहचान करके उन्हें जल्द-से-जल्द निरस्त करने की सिफारिश की थी। वैसे विधि आयोग हर बार ऐसे कानूनों को समाप्त करने के लिये अपनी रिपोर्ट में उल्लेख करता रहता है।
  • केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने चार राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति की है तथा दो राज्यपालों का तबादला कर दिया। नगा वार्ता के पूर्व वार्ताकार आर.एन. रवि को नगालैंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया है तथा प्रख्यात वकील पूर्व सांसद जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया है। रमेश बैस को त्रिपुरा का राज्यपाल नियुक्त किया गया है तथा फागू चौहान बिहार के राज्यपाल के तौर पर लालजी टंडन का स्थान लेंगे। मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है, उनकी जगह बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन लेंगे।
  • शांति के लिये नोबेल पुरस्कार विजेता और दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति स्व. नेल्सन मंडेला के जन्मदिन 18 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र द्वारा नेल्सन मंडेला अंतर्राष्ट्रीय दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वर्ष 2010 में 18 जुलाई को जब मंडेला 92 वर्ष के हुए तब से प्रतिवर्ष यह दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। आपको बता दें कि दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के दौरान नेल्सन मंडेला ने अपने जीवन के 27 साल वहाँ की जेलों में बिताए। संयुक्त राष्ट्र ने नेल्सन मंडेला को यह सम्मान उनके जीवित रहते शांति स्थापना, रंगभेद उन्मूलन, मानवाधिकारों की रक्षा और लैंगिक समानता की स्थापना के लिये किये गए उनके सतत प्रयासों के लिये दिया। नेल्सन मंडेला को साहस, करुणा और स्वतंत्रता, शांति एवं सामाजिक न्याय के लिये प्रतिबद्धता का वैश्विक प्रतीक माना जाता है। वह 10 मई, 1994 से 14 जून, 1999 तक दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे तथा वह अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे।
  • अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक फर्नांडो कॉर्बेटो (Fernando Corbato) का 93 वर्ष की उम्र में न्यूयॉर्क में निधन हो गया। कॉर्बेटो ने कंप्यूटर पासवर्ड का आविष्कार किया था। उन्होंने 1960 के दशक में कंप्यूटर टाइम शेयरिंग सिस्टम (CTSS) को लेकर एक प्रोजेक्ट पर काम किया, जिसमें विभिन्न स्थानों पर कई उपयोगकर्त्ताओं को एक ही कंप्यूटर को टेलीफोन लाइनों के माध्यम से एक साथ एक्सेस करने की सुविधा दी गई। उनकी इसी खोज की वज़ह से आज पर्सनल कंप्यूटर पासवर्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं। वह मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में प्रोफेसर थे। CTSS ने कई लोगों के लिये एक समय में एक कंप्यूटर का उपयोग करना और जटिल गणितीय कार्य करना संभव बना दिया। कॉर्बेटो की इस खोज से यह संभव हो पाया कि एक कंप्यूटर सिस्टम को कई लोग अलग-अलग अकाउंट से खोल सकते हैं। इस दौरान किसी अन्य यूज़र के फाइल या डाटा को नहीं खोला जा सकता। इससे किसी का निजी डेटा लीक होने की संभावना कम हो गई।
  • केन्या के राष्ट्रीय संग्रहालय और अमेरिका में अरकंसास विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने बंदर प्रजाति के सबसे छोटे जीवाश्म की खोज की है, जो खरगोश के आकार जैसा है। ऐसे बंदर केन्या में लगभग 4.2 मिलियन वर्ष पहले रहते थे। इस बंदर का नाम नैनोपिथेकस ब्राउनी है जो विश्व में बंदर की सबसे छोटी प्रजाति है। इसका वज़न मात्र 2-3 पाउंड होता है। अफ्रीका में 'ओल्ड वर्ल्ड' के नाम से मशहूर टेलापोइन बंदरों के एक बड़े समूह का हिस्सा रहता है, जिन्हें ‘ग्वेन’ के नाम से भी जाना जाता है। बंदर का यह जीवाश्म केन्या के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है।

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