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डेली न्यूज़

  • 21 Dec, 2020
  • 45 min read
भारतीय राजनीति

विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस

चर्चा में क्यों?

18 दिसंबर, 2020 को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities) ने विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (World Minorities Rights Day) मनाया।

  • संयुक्त राष्ट्र ने 18 दिसंबर, 1992 को धार्मिक या भाषायी राष्ट्रीय अथवा जातीय अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्ति के अधिकारों पर वक्तव्य (Statement) को अपनाया था।

प्रमुख बिंदु:

  • सरकार द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (c) में अल्पसंख्यक को "केंद्र अधिसूचित समुदाय" के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • भारत में यह मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी (Zoroastrian) और जैन धर्म पर लागू होता है।
  • TMA पाई फाउंडेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया का मामला-
    • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा है कि राज्य कानून के संबंध में धार्मिक या भाषायी अल्पसंख्यक का निर्धारण करने वाली इकाई केवल राज्य हो सकती है।
    • यहाँ तक ​​कि अल्पसंख्यक का निर्धारण करने में एक केंद्रीय कानून के लिये भी इकाई का आधार राज्य होगा न कि संपूर्ण भारत। इस प्रकार धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यक, जिन्हें अनुच्छेद 30 में बराबरी का दर्जा दिया गया है, को राज्य स्तर पर निर्धारित किया जाना चाहिये।

अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान में "अल्पसंख्यक" शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। हालाँँकि संविधान धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29, 30, 350A तथा 350B में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का प्रयोग किया गया है लेकिन इसकी परिभाषा कहीं नहीं दी गई है।
  • अनुच्छेद 29: इसमें कहा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग,  जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, को बनाए रखने का अधिकार होगा।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस लेख का दायरा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद में 'नागरिकों के वर्ग' शब्द के उपयोग में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यक भी शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 30: अनुच्छेद 30 में बताया गया है कि धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा, संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
    • अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षण केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषायी) तक ही सीमित है और नागरिकों के किसी भी वर्ग  (जैसा कि अनुच्छेद 29 के तहत) तक विस्तारित नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 350 B: मूल रूप से भारत के संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारी के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया था। इसे 7वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 350 B के रूप में जोड़ा गया।
    • यह भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी का प्रावधान करता है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM)

  • अल्पसंख्यक आयोग एक सांविधिक निकाय है, जिसकी स्थापना राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत की गई थी।
  • यह निकाय भारत के अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा हेतु अपील के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है। 
  • संरचना: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के मुताबिक, आयोग में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष समेत कुल सात सदस्यों का होना अनिवार्य है, जिसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदायों के सदस्य शामिल हैं।

कार्य: 

  • संघ और राज्यों के तहत अल्पसंख्यकों के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना
  • संविधान और संघ तथा राज्य के कानूनों में अल्पसंख्यकों को प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों की निगरानी करना।
  • अल्पसंख्यक समुदाय के हितों की सुरक्षा के लिये नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु आवश्यक सिफारिशें करना।
  • अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों और रक्षोपायों से वंचित करने से संबंधित विनिर्दिष्ट शिकायतों की जाँच पड़ताल करना।
  • अल्पसंख्यकों के विरुद्ध किसी भी प्रकार के विभेद के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का अध्ययन करना/करवाना और इन समस्याओं को दूर करने के लिये सिफारिश करना।
  • अल्पसंख्यकों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास से संबंधित विषयों का अध्ययन, अनुसंधान और विश्लेषण करना।
  • केंद्र अथवा राज्य सरकारों को किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित उपायों को अपनाने का सुझाव देना। 
  • केंद्र और राज्य सरकारों को अल्पसंख्यकों से संबंधित किसी विषय पर विशिष्टतया कठिनाइयों पर नियतकालिक अथवा विशिष्ट रिपोर्ट प्रदान करना।
  • कोई अन्य विषय जो केंद्र सरकार द्वारा उसे निर्दिष्ट किया जाए।

स्रोत: PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

E20 ईंधन

चर्चा में क्यों

हाल ही में भारत सरकार ने इथेनॉल जैसे हरित ईंधन को बढ़ावा देने के लिये E20 ईंधन को अपनाने के विषय में सार्वजनिक सुझाव आमंत्रित किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • संरचना: E20 ईंधन, गैसोलीन और इथेनॉल (20%) का मिश्रण होता है।
    • वर्तमान में इथेनॉल सम्मिश्रण का मान्य स्तर 10% है, यद्यपि भारत वर्ष 2019 में केवल 5.6% तक के स्तर पर ही पहुँच पाया।
  • महत्त्व:
    • इससे कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन आदि के उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।
    • यह तेल आयात बिल को भी कम करने में मदद करेगा, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
  • वाहनों की अनुकूलता: वाहन की अनुकूलता हेतु इस मिश्रण में इथेनॉल के प्रतिशत को वाहन निर्माता द्वारा परिभाषित किया जाएगा तथा वाहन पर स्टिकर लगाकर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित भी किया जाएगा।

हरित ईंधन

  • हरित ईंधन (Green Fuel) को जैव ईंधन (Biofuel) के रूप में भी जाना जाता है जो पौधों और जानवरों के द्रव्य से प्राप्त एक प्रकार का स्वच्छ (Distilled) ईंधन है। यह व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले जीवाश्म ईंधन की तुलना में पर्यावरण अनुकूल है।

हरित ईंधन के प्रकार

  • बायो-एथेनॉल:
    • इसको किण्वन प्रक्रिया का उपयोग करके मक्के और गन्ने से बनाया जाता है।
    • एक लीटर पेट्रोल की तुलना में एक लीटर इथेनॉल में लगभग दो- तिहाई ऊर्जा होती है।
    • पेट्रोल के साथ मिश्रित होने पर यह दहन निष्पादन में सुधार करके कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करता है।
  • बायो-डीज़ल
    • इसको वनस्पति तेलों जैसे- सोयाबीन, ताड़ या वनस्पति अपशिष्ट तेल और पशु वसा से प्राप्त किया जाता है, इसे "ट्रान्सएस्टरीफिकेशन" (Transesterification) कहा जाता है।
    • यह डीज़ल की तुलना में बहुत कम हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करता है।
  • बायो-गैस
    • इसका निर्माण कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय अपघटन (Anaerobic Decomposition) जैसे- जानवरों और मनुष्यों के वाहित मल द्वारा होता है।
    • बायोगैस में मुख्यतः मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड गैस होती है, हालाँकि इसमें बहुत कम अनुपात में हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड और साइलोक्सैन (Siloxane) गैस भी होती है।
    • इसे आमतौर पर हीटिंग, बिजली और ऑटोमोबाइल के काम में उपयोग किया जाता है।
  • बायो-ब्यूटेनॉल
    • इसको भी बायोएथेनॉल की तरह स्टार्च के किण्वन से तैयार किया जाता है।
    • अन्य गैसोलीन विकल्पों में से बुटेनॉल (Butanol) से ऊर्जा की प्राप्ति सबसे अधिक होती है। उत्सर्जन कम करने के लिये इसको डीज़ल के साथ मिलाया जा सकता है।
    • इसको कपड़ा उद्योग में विलायक और इत्र उद्योग में आधार के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • बायोहाइड्रोजन
    • जैव हाइड्रोजन, बायोगैस की तरह होता है। इसका उत्पादन विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे- पायरोलिसिस, गैसीकरण या जैविक किण्वन का उपयोग कर किया जा सकता है।
    • यह जीवाश्म ईंधन के लिये सही विकल्प हो सकता है।

जैव ईंधन को बढ़ावा देने हेतु पहल:

  • इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम: इस कार्यक्रम को खाद्यान्न जैसे- मक्का, ज्वार, बाजरा, फल, सब्जियों के कचरे आदि से ईंधन निकालने के लिये शुरू किया गया है।
  • प्रधानमंत्री जी-वन योजना, 2019: इस योजना का उद्देश्य वाणिज्यिक परियोजनाओं की स्थापना के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना और 2G इथेनॉल क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देना है।
  • गोबर धन योजना, 2018: यह खेतों में उपयोग हेतु ठोस कचरा और मवेशियों के गोबर को खाद, बायोगैस तथा बायो-CNG में परिवर्तित करने पर केंद्रित है। इस प्रकार गाँवों को साफ-सुथरा रखने और ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि करने में मदद मिलती है।
    • इसे स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत लॉन्च किया गया था।
  • खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा लॉन्च RUCO (Response Used Cooking Oil) पहल प्रयुक्त कुकिंग आयल को बायो-डीज़ल में संग्रहण और रूपांतरण करने में सक्षम होगी।
  • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018
    • इस नीति द्वारा गन्ने का रस, चीनी युक्त सामग्री, स्टार्च युक्त सामग्री तथा क्षतिग्रस्त अनाज, जैसे- गेहूँ, टूटे चावल और सड़े हुए आलू का उपयोग करके एथेनॉल उत्पादन हेतु कच्चे माल के दायरे का विस्तार किया गया है।
    • नीति में जैव ईंधनों को ‘आधारभूत जैव ईंधनों’ यानी पहली पीढ़ी (1G) के बायोएथेनॉल और बायोडीज़ल तथा ‘विकसित जैव ईंधनों’ यानी दूसरी पीढ़ी (2G) के एथेनॉल तथा निगम के ठोस कचरे (MSW) से लेकर ड्रॉप-इन ईंधन को तीसरी पीढ़ी (3G) के जैव ईंधन, बायो सीएनजी आदि के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया है, ताकि प्रत्‍येक श्रेणी के अंतर्गत उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्‍साहन को बढ़ाया जा सके।
    • अतिरिक्‍त उत्‍पादन के चरण के दौरान किसानों को उनके उत्‍पाद का उचित मूल्‍य नहीं मिलने का खतरा होता है। इसे ध्‍यान में रखते हुए इस नीति में राष्‍ट्रीय जैव ईंधन समन्‍वय समिति की मंज़ूरी से एथेनॉल उत्‍पादन के लिये (पेट्रोल के साथ उसे मिलाने हेतु) अधिशेष अनाजों के इस्‍तेमाल की अनुमति दी गई है।
    • जैव ईंधनों के लिये नीति में 2G एथेनॉल जैव रिफाइनरी को 1जी जैव ईंधनों की तुलना में अतिरिक्‍त कर प्रोत्‍साहन, उच्‍च खरीद मूल्‍य आदि के अलावा 6 वर्षों में 5000 करोड़ रुपए की निधियन योजना हेतु वायबिलिटी गैप फंडिंग का संकेत दिया गया है।

आगे की राह

  • एक बड़ी कृषि अर्थव्यवस्था बनने हेतु भारत के पास बड़ी मात्रा में कृषि अवशेष उपलब्ध हैं, इसलिये देश में जैव ईंधन के उत्पादन की गुंजाइश बहुत अधिक है। जैव ईंधन नई नकदी फसलों के रूप में ग्रामीण और कृषि विकास में मदद कर सकता है
  • शहरों में उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट और नगरपालिका कचरे का उपयोग सुनिश्चित कर स्थायी जैव ईंधन उत्पादन के प्रयास किये जाने चाहिये। एक अच्छी तरह से डिज़ाइन और कार्यान्वित जैव ईंधन नीति भोजन और ऊर्जा दोनों प्रदान कर सकती है
  • एक समुदाय आधारित बायोडीज़ल वितरण कार्यक्रम जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को लाभ पहुँचाता है, फीडस्टॉक को विकसित करने वाले किसानों से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक ईंधन का उत्पादन और वितरण करने वाला एक स्वागत योग्य कदम होगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

एलुरु में रहस्यमय रोग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences- AIIMS) नई दिल्ली और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी (IICT)-हैदराबाद से आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी ज़िले के एलुरु में रहस्यमय रोग के कारणों का पता लगाने के लिये एक दीर्घकालिक अध्ययन करने का अनुरोध किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी ज़िले के एलुरु शहर का लगभग 70% से अधिक हिस्सा एक रहस्यमय रोग से प्रभावित है
    • इस रोग के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई, जबकि लगभग 550 लोग अस्पताल में भर्ती हैं।

रहस्यमय रोग के संबंध में:

लक्षण: 

  • शरीर में ऐंंठन, मिर्गी, चक्कर आना और मतली।
    • शरीर में ऐंंठन एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर की मांसपेशियाँ सिकुड़ती हैं और तेज़ी से शिथिल हो जाती हैं। यह प्रक्रिया बार-बार होती रहती है, परिणामस्वरूप शरीर में अनियंत्रित क्रियाएँ होती रहती हैं।
    • मस्तिष्क में अचानक उत्पन्न अनियंत्रित तंत्रिकातंत्रीय विकार के कारण मिर्गी की स्थिति बनती है। यह व्यक्ति के व्यवहार, संचलन या भावना और चेतना के स्तर में परिवर्तन का कारण बन सकता है।
    • चक्कर आना एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग संवेदनाओं की एक सीमा का वर्णन करने के लिये किया जाता है, जैसे कि बेहोश होना, कमजोरी या अस्थिर महसूस करना।
    • तनाव, भय और बेचैनी के कारण व्यक्ति की शारीरिकी क्रियाओं में असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है, जिसके कारण पेट में गड़बड़ी की वजह से मतली की स्थिति देखी जाती है।

रोग निवृत्ति (Recovery): 

  • इस रोग से ग्रसित रोगी तीन से चार घंटों में रोग से निवृत्त हो जाते हैं।

पीड़ित (Victims): 

  • इस रोग से सभी आयु वर्ग के लोग; पुरुष, महिलाएँ और यहाँ तक कि छोटे बच्चे भी ग्रसित हो सकते हैं।

संभावित कारण (Possible Causes):

  • पानी में भारी धातुओं के  संदूषण को इसका कारण माना जा रहा है।
    • COVID-19 की रोकथाम के उपायों के हिस्से के रूप में स्वच्छता कार्यक्रमों में ब्लीचिंग पाउडर और क्लोरीन के अत्यधिक उपयोग के कारण जल प्रदूषण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • AIIMS के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा भेजे गए पीड़ितों के 45 रक्त के नमूनों में से 25 में लेड और निकल की मौजूदगी पाई गई है।
  • वैज्ञानिकों का मानना है कि जल के स्रोतों में कीटनाशकों का रिसाव भी इसका एक कारण हो सकता है।
    • एलुरु को गोदावरी और कृष्णा दोनों नदियों से नहरों के माध्यम से जल प्राप्त होता है। ये नहरें कृषि क्षेत्रों से गुज़रती हैं जहाँ कीटनाशक अपवाह के साथ नहरों के जल में मिल जाते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

महानदी के बाढ़कृत मैदान का संरक्षण

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने महानदी के बाढ़कृत मैदान के क्षेत्रों (Floodplain Zones) की पहचान के लिये एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।

  • ध्यातव्य है कि महानदी ओडिशा  की सबसे लंबी नदी है।  

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • जनवरी 2020 में ओडिशा के मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि महानदी से प्राप्त 424 एकड़ पुनर्निर्मित (Reclaimed) भूमि का उपयोग कटक के लोगों के जीवन में पारिस्थितिक, मनोरंजन, खेल, सांस्कृतिक और तकनीकी मूल्यवर्द्धन के लिये किया जाएगा।
  • एक स्थानीय नागरिक ने राज्य सरकार की योजना के विरूद्ध NGT में अपील की  और आरोप लगाया कि अवैध निर्माण गतिविधियाँ नदी पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगी तथा महानदी के प्रवाह को भी प्रभावित करेंगी।

NGT का आदेश:

  • NGT ने केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी तथा राज्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विशेषज्ञों के एक पैनल का गठन किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नदी के बाढ़कृत क्षेत्र को नुकसान पहुँचाए बगैर रिवरफ्रंट का विकास किया जा सके।

बाढ़कृत मैदानों के विनियमन हेतु प्रावधान:

  • जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 ‘पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986’ के तहत गंगा नदी के संबंध में  जारी अधिसूचना के अलावा देश में बाढ़कृत मैदान के क्षेत्रों के विनियमन हेतु कोई केंद्रीय कानून नहीं है।
  • वर्ष 2016 में जारी इस अधिसूचना के तहत  गंगा नदी या उसकी सहायक नदियों के  सक्रिय बाढ़कृत मैदान में किसी भी प्रकार के निर्माण को प्रतिबंधित किया गया था ।
  • हालाँकि कुछ राज्यों में बाढ़कृत मैदानों को विनियमित करने के लिये कानून हैं:
    • मणिपुर फ्लड ज़ोनिंग एक्ट, 1978
    • उत्तराखण्ड बाढ़ मैदान परिक्षेत्रण अधिनियम, 2012

बाढ़कृत क्षेत्र: 

Flood-Conditions

  • बाढ़कृत मैदान नदी से सटा एक समतल निचला क्षेत्र होता है, जिसका निर्माण मुख्य रूप से नदियों में बाढ़ के दौरान रेत और अन्य पदार्थों के जमाव के कारण होता है।   
  • ये रेतीले बाढ़कृत मैदान असाधारण जलभृत (Aquifers) होते हैं।  
  • कुछ बाढ़कृत मैदानों (जैसे हिमालयी नदियों के बाढ़कृत मैदान) में नदियों के वर्ष भर के प्राकृतिक प्रवाह से 20 गुना तक अधिक जल होता है। 

महानदी:  

  • महानदी प्रणाली ओडिशा राज्य की सबसे बड़ी नदी और प्रायद्वीपीय भारत की तीसरी सबसे बड़ी (गोदावरी और कृष्णा नदी के बाद) नदी है।
  • उद्गम: यह नदी अमरकंटक के दक्षिण में छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर की पहाड़ियों में सिहावा के पास से निकलती है।
  • महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ: 
    • शिवनाथ नदी
    • हसदेव नदी
    • मांड नदी
    • ईब नदी
    • जोंक नदी
    • तेल नदी

महानदी का प्रवाह मार्ग: 

  • महानदी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और महाराष्ट्र राज्यों से होकर बहती है। 
  • इसका बेसिन उत्तर में मध्य भारत की पहाड़ियों, दक्षिण और पूर्व में पूर्वी घाटों तथा पश्चिम में मैकाल पर्वतमाला से घिरा है।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

तटीय रडार शृंखला नेटवर्क

चर्चा में क्यों?

मालदीव, म्याँमार और बांग्लादेश में तटीय राडार स्टेशन स्थापित करने के भारत के प्रयास तकरीबन अंतिम चरण में पहुँच गए हैं।

  • यह रडार शृंखला जो कि भारत, श्रीलंका, मॉरीशस और सेशेल्स में मौजूद समान प्रणालियों के साथ जुड़ेगी, हिंद महासागर क्षेत्र में जहाज़ों की आवाजाही की वास्तविक स्थिति की जानकारी (Live Feed) प्रदान करेगी और इसका उपयोग संबंधित देशों की नौसेनाओं द्वारा किया जा सकेगा।

प्रमुख बिंदु

तटीय रडार शृंखला नेटवर्क:

  • इसका उद्देश्य रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हिंद महासागर क्षेत्र में सूचना एवं समुद्री डोमेन जागरूकता का एक नेटवर्क बनाना है।
  • यह हिंद महासागर क्षेत्र में मौजूद देशों के क्षमता निर्माण के लिये भी भारत की सहायता का विस्तार करेगा। 
    • इन देशों की सहायता के लिये भारत ने ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region -SAGAR) नाम से एक पहल भी शुरू की है।
  • तटीय रडार शृंखला नेटवर्क के पहले चरण के तहत देश के समुद्र तटों पर कुल 46 तटीय रडार स्टेशन स्थापित किये गए हैं।
  • वर्तमान में जारी परियोजना के दूसरे चरण के अंतर्गत तटरक्षक बल द्वारा 38 राडार स्टेशन और चार मोबाइल रडार स्टेशन स्थापित किये जाने हैं, जिनका कार्य लगभग अंतिम चरण में है।
    • तटरक्षक बल, रक्षा मंत्रालय के तहत संचालित एक मल्टी-मिशन संगठन है, जो कि समुद्र में अलग-अलग तरह के ऑपरेशन्स का संचालन करता है।
  • इसका प्राथमिक लक्ष्य तटीय निगरानी एप्लीकेशन के लिये छोटे जहाज़ों का पता लगाना और उन्हें ट्रैक करना है। 
    • हालाँकि इसका उपयोग वेसल ट्रैफिक मैनेजमेंट सर्विसेज़ एप्लीकेशन, हार्बर सर्विलांस और नेविगेशनल उद्देश्यों के लिये भी किया जा सकता है।
    • यह समुद्र में किसी भी अवैध गतिविधि पर नज़र रखने में भी मदद करेगा।
  • अंततः इसके तहत एकत्र किये गए डेटा को ‘सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र’ (IFC-IOR) के तहत शामिल किया जाएगा

सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR)

  • हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के लिये सूचना संलयन केंद्र (IFC) को गुरुग्राम में नौसेना के सूचना प्रबंधन एवं विश्लेषण केंद्र (IMAC) में स्थापित किया गया है, जिसे भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल द्वारा संयुक्त रूप से शासित किया जाता है।
    • 26/11 मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद स्थापित सूचना प्रबंधन एवं विश्लेषण केंद्र (IMAC) भारत में समुद्री डेटा संलयन हेतु एक नोडल एजेंसी है।
    • इसे जल्द ही ‘राष्ट्रीय समुद्री डोमेन जागरूकता’ (NDMA) केंद्र के रूप में बदल दिया जाएगा।
  • IFC-IOR ने 21 देशों और 20 समुद्री सुरक्षा केंद्रों के साथ व्हाइट शिपिंग सूचना विनिमय समझौतों के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र में स्वयं को समुद्री सुरक्षा सूचना के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित किया है।
    • व्हाइट शिपिंग का अर्थ गैर-सैन्य वाणिज्यिक जहाज़ों की पहचान और आवाजाही के बारे में अग्रिम सूचनाओं को साझा करना या उनका आदान-प्रदान करना है।

हिंद महासागर क्षेत्र

  • हिंद महासागर क्षेत्र, जहाँ विश्व की अधिकांश आबादी निवास करती है, को उसकी रणनीतिक स्थिति के कारण वैश्विक वाणिज्य को बल प्रदान करने वाले आर्थिक राजमार्ग के रूप में संबोधित किया जा सकता है।
  • दुनिया का 75 प्रतिशत से अधिक समुद्री व्यापार और दैनिक वैश्विक तेल खपत का 50 प्रतिशत हिस्सा इसी क्षेत्र से है, जिसके कारण यह क्षेत्र वैश्विक व्यापार और कई देशी की आर्थिक संवृद्धि के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • आँकड़ों की मानें तो हिंद महासागर क्षेत्र में तकरीबन 12,000 व्यापारिक जहाज़ और 300 मछली पकड़ने वाले छोटे जहाज़ हर समय मौजूद रहते हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में निगरानी रखना काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री डकैती, मानव तस्करी, अवैध मछली पकड़ना और हथियारों की तस्करी काफी व्यापक पैमाने पर प्रचलित है, जो कि इस क्षेत्र को संवेदनशील बनाते हैं। 
  • इसके अलावा बीते कुछ वर्ष में हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के अनुसंधान जहाज़ों की संख्या में भी काफी अधिक वृद्धि देखी गई है।
    • हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति भारत के लिये रणनीतिक रूप से चिंता का विषय है।

संबंधित पहलें 

  • दिसंबर 2020 में इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन (IORA) के प्रतिनिधियों की बैठक का आयोजन किया गया। IORA एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसे वर्ष 1997 में स्थापित किया गया था। भारत इसका सदस्य है।
  • हाल ही में भारतीय नौसेना ने मिलकर दो चरणों में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में मालाबार युद्धाभ्यास का आयोजन किया, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान भी शामिल थे।
  • भारत इसी वर्ष मार्च माह में ‘हिंद महासागर आयोग (IOC) में ‘पर्यवेक्षक’ के रूप में शामिल हुआ। यह आयोग पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संस्थान है।

आगे की राह

  • जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर मौजूद पर्यावरणीय खतरा और समुद्री संसाधनों के नुकसान के कारण हिंद महासागर क्षेत्र के कुछ छोटे द्वीप राज्यों पर आजीविका की चुनौती उत्पन्न हो गई है। गैर-स्थायी सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की उपस्थिति और वर्ष 2023 में G20 की अध्यक्षता भारत को इन बहुपक्षीय मंचों पर छोटे द्वीपों के मुद्दों को उजागर करने का अवसर प्रदान करेगी।
  • समुद्री कूटनीति और ऐसे छोटे द्वीपों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रकट करना क्षेत्रीय क्षमता निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है। द्विपक्षीय और बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास, समुद्री सूचना-साझाकरण तंत्र तथा सामान्य मानक ऑपरेटिंग प्रोटोकॉल विकसित करना आदि समुद्री कूटनीति एवं भारत की विदेश नीति की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण साधन हो सकते हैं।
  • सैन्य क्षेत्र के लिये हार्डवेयर का निर्यात भी आर्थिक और सैन्य कूटनीति का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है तथा यह क्षेत्रीय क्षमता निर्माण में योगदान देता है। वर्तमान में भारत अपने कई छोटे पड़ोसी देशों को सैन्य  हार्डवेयर का निर्यात कर रहा है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

उत्परिवर्तित कोरोना वायरस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नोवेल कोरोनावायरस के एक नए उत्परिवर्ती (Mutated) स्वरूप का पता चला है जो यूनाइटेड किंगडम में फैले नए संक्रमण के लिये उत्तरदायी है।

  • मानव में होने वाले संक्रमण के पहले मामले से लेकर अब तक इस वायरस में कई परिवर्तन हो चुके हैं।

प्रमुख बिंदु

कोरोना वायरस में उत्परिवर्तन

  • उत्परिवर्ती वायरस (Mutant Virus) की पहचान N501Y के रूप में की गई है और इसके चलते स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) में उत्परिवर्तन की संभावना व्यक्त की जा रही है।
    • कोरोनावायरस का स्पाइक प्रोटीन ही वह घटक है जो मानव प्रोटीन के साथ मिलकर संक्रमण की प्रक्रिया शुरू करता है।
    • यह परिवर्तन संभवतः वायरस के व्यवहार को प्रभावित कर सकता है जिसमें वायरस की संक्रमण क्षमता, गंभीर बीमारी के लिये उत्तरदायी होना अथवा टीकों द्वारा विकसित प्रतिरक्षा प्रक्रिया को निष्प्रभावी करना शामिल है।
  • स्पाइक प्रोटीन के एक हिस्से में एकल न्यूक्लियोटाइड (Nucleotide) परिवर्तन हुआ है, इसलिये यह रोग की जैविकी (Biology) या निदान (Diagnostic) को प्रभावित नहीं करेगा।

संक्रमण और टीकाकरण पर प्रभाव:

  • कोरोनावायरस वायरस के विभिन्न टीकों को इस प्रकार विकसित किया गया है कि वे मानव शरीर में स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करने में सक्षम एंटीबॉडी का निर्माण कर सकें।
  • टीके स्पाइक के कई क्षेत्रों को एक साथ लक्षित करते हैं, जबकि उत्परिवर्तन किसी एक बिंदु पर होने वाले परिवर्तन को संदर्भित करता है। अतः केवल एक उत्परिवर्तन का तात्पर्य यह नहीं है कि टीके काम नहीं करेंगे।
  • SARS-CoV-2 के सभी उपभेद आनुवंशिक रूप से एक-दूसरे के समान होते हैं और वैज्ञानिकों का मानना है कि इन उत्परिवर्तनों का प्रभाव अब तक देखे गए प्रभावों से अधिक नहीं होगा।
  • कुल मिलाकर उत्परिवर्तनों की कोई निश्चित दिशा नहीं होती, वे किसी भी रूप में विकसित हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये वायरस का एक अलग स्ट्रेन/रूप अधिक संक्रामक तो हो सकता है लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि उससे बीमारियाँ भी बहुत अधिक हों।
  • शोधकर्त्ताओं को म्यूटेशन पर नज़र रखने की आवश्यकता है क्योंकि अभी तक इस बात के साक्ष्य नहीं मिले हैं कि यूनाइटेड किंगडम में देखा गया इस वायरस का नया स्वरूप अधिक संक्रामक अथवा गंभीर/टीकाकरण का प्रतिरोधी है।

भारत में उत्परिवर्ती संस्करण: शोधकर्त्ताओं ने अब तक भारत में इस प्रकार का कोई उत्परिवर्तन नहीं देखा है।

पूर्व में हुए उत्परिवर्तन:

  • D614G उत्परिवर्तन: इस विशेष उत्परिवर्तन ने मानव में ACE2 ग्राही के साथ वायरस के अधिक दक्षता से संलग्न होने में सहायता की परिणामस्वरूप अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में यह वायरस मानव शरीर में प्रवेश करने में अधिक सफल रहा।
    • D614G ने संक्रमण में वृद्धि प्रदर्शित की है लेकिन साथ ही इसने व्यक्ति की नाक और गले की कोशिकाभित्तियों के साथ संलग्न होने में अधिक दक्षता प्रदर्शित की जिससे संक्रमण का प्रभाव और बढ़ जाता है।

उत्परिवर्तन (Mutation)

  • उत्परिवर्तन का तात्पर्य वायरस के आनुवंशिक अनुक्रम में परिवर्तन से है। 
  • SARS-CoV-2 जो कि एक राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) वायरस है, के मामले में उत्परिवर्तन अथवा म्यूटेशन का तात्पर्य उस अनुक्रम में परिवर्तन से है जिसमें उसके अणु व्यवस्थित होते हैं
    • SARS-CoV-2 वह वायरस है जो कोविड-19 के लिये उत्तरदायी है।
    • RNA एक महत्त्वपूर्ण जैविक बृहद् अणु (Macromolecule) है जो सभी जैविक कोशिकाओं में उपस्थित होता है।
      • यह मुख्य रूप से प्रोटीन संश्लेषण में शामिल होता है। यह डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribonucleic acid- DNA) के निर्देशों द्वारा नियंत्रित होता है, इसमें जीवन के विकास एवं रक्षण हेतु आवश्यक आनुवंशिक निर्देश शामिल होते हैं।
  • डीएनए एक कार्बनिक रसायन है जिसमें आनुवंशिक जानकारी तथा प्रोटीन संश्लेषण के लिये निर्देश शामिल होते हैं। यह प्रत्येक जीव की अधिकांश कोशिकाओं में पाया जाता है।
  • RNA वायरस में उत्परिवर्तन प्रायः तब होता है जब स्वयं की प्रतिकृति बनाते समय वायरस से कोई चूक हो जाती है।
    • यदि उत्परिवर्तन/म्यूटेशन के परिणामस्वरूप प्रोटीन संरचना में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है तो ही किसी बीमारी के प्रकार में बदलाव हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय विरासत और संस्कृति

स्वदेशी खेल तथा खेलो इंडिया

चर्चा में क्यों?

युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय (Ministry of Youth Affairs and Sports) ने हरियाणा में आयोजित होने वाले खेलो इंडिया यूथ गेम्स- 2021 (Khelo India Youth Games 2021) में चार स्वदेशी खेलों- गतका, कलारीपयट्टू, थांग-ता और मलखम्ब को शामिल करने को मंज़ूरी दी है। 

प्रमुख बिंदु:

  • खेलो इंडिया यूथ गेम्स- 2021 (KIYG)  का आयोजन हरियाणा में किया जाएगा। 
    • KIYG 2020 का आयोजन गुवाहाटी (असम) में किया गया था।
  • KIYG खेलों के प्रोत्साहन हेतु संशोधित राष्ट्रीय कार्यक्रम ‘खेलो इंडिया' का हिस्सा है जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा वर्ष 2017 में अनुमोदित किया गया था।
    • खेलो इंडिया योजना का उद्देश्य पूरे देश में खेलों को प्रोत्साहित करना तथा इस प्रकार अपने क्रॉस-कटिंग प्रभाव नामतः- बच्चों और युवाओं का समग्र विकास, सामुदायिक विकास, सामाजिक एकीकरण, लैंगिक समानता, स्वस्थ जीवन शैली, राष्ट्रीय गौरव और खेलों के विकास से जुड़े आर्थिक अवसरों के माध्यम खेल क्षमताओं का दोहन करने की अनुमति देती है।
    • इस योजना के तहत, विभिन्न स्तरों पर प्राथमिकता वाले खेल विषयों में पहचान प्राप्त करने वाले प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को 8 वर्षों तक के लिये प्रतिवर्ष 5 लाख रुपए की वार्षिक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

Khelo-India

गतका (Gatka):

  • यह सिख धर्म से जुड़ा एक पारंपरिक मार्शल आर्ट है।
  • पंजाबी नाम ‘गतका’ इसमें इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी की छड़ी को संदर्भित करता है।
  • यह युद्ध-प्रशिक्षण का एक पारंपरिक दक्षिण एशियाई रूप है जिसमें तलवारों का उपयोग करने से पहले लकड़ी के डंडे से प्रशिक्षण लिया जाता है।
  • गतका का अभ्यास खेल (खेला) या अनुष्ठान (रश्मि) के रूप में किया जाता है। यह खेल दो लोगों द्वारा लकड़ी की लाठी से खेला जाता है जिन्हें गतका कहा जाता है। इस खेल में लाठी के साथ ढाल का भी प्रयोग किया जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि छठे सिख गुरु हरगोबिंद ने मुगल काल के दौरान आत्मरक्षा के लिये ’कृपाण’ को अपनाया था और दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह ने सभी के लिये आत्मरक्षा हेतु हथियारों के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया था।
  • यह पहले गुरुद्वारों, नगर कीर्तन और अखाड़ों तक ही सीमित था, परंतु वर्ष  2008 में गतका फेडरेशन ऑफ इंडिया (GFI) के गठन के बाद इसे खेल श्रेणी में शामिल कर लिया गया।

Gatka

कलारिपयट्टू (Kalaripayattu):

  • कलारिपयट्टू दो शब्दों कलारि और पयट्टू के मेल से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ युद्ध की कला का अभ्यास होता है।
  • कलारिपयट्टू का उल्लेख संगम साहित्य में भी मिलता है। इसके उत्पत्ति के संबंध में दो मत प्रचलित है कुच्छ लोग इसकी उत्पत्ति का स्थल केरल को मानते हैं जबकि कुछ पूरे दक्षिण भारत को मानते हैं।
  • जिस स्थान पर इस मार्शल आर्ट का अभ्यास किया जाता है, उसे 'कलारी' कहा जाता है। यह एक मलयालम शब्द है जो एक प्रकार का व्यायामशाला है।
    • कलारी का शाब्दिक अर्थ है 'थ्रेसिंग फ्लोर (Threshing Floor) या 'युद्ध का मैदान'।

Kalaripayattu

मल्लखम्ब (Mallakhamba):

  • यहाँ मल्ल का अर्थ शारीरिक बल और खम्ब का आशय खम्बे से है।
  • मल्लखम्ब का उल्लेख 12वीं सदी में चालुक्यकालीन ग्रंथों में मिलता है। पेशवा बाजीराव द्वितीय के गुरु बालमभट्ट दादा देवधर ने इसका प्रचलन दोबारा शुरू किया
  • इसमें जमीन में धंसे एक खम्बे पर चढ़कर खिलाड़ी कौशल का प्रदर्शन करते हैं।
  • मल्लखम्ब के एक अन्य प्रकार में रस्सियों का प्रयोग होता है। इसमें प्रतिभागी रस्सी की सहायता से लटककर विभिन्न योग क्रियाओं का प्रदर्शन करते हैं।
  • इस खेल से शरीर के सभी अंगों का विकास होता है तथा जीवन के लिये आवश्यक शारीरिक बल, सहनशक्ति, गति , धर्य, फुर्ती, लचीलापन तथा साहस आदि को तेजी से विकसित किया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर मल्लखम्ब के प्रसिद्द केन्द्रों में उज्जैन को विशिष्ठ स्थान प्राप्त है।
  • वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश सरकार ने इसे इसे अपना राज्य खेल घोषित किया।

Mallakhamba

थांग-ता (Thang-Ta):

  • हुयेन लैंग्लोन मणिपुर की एक भारतीय मार्शल कला है।
  • मेइती भाषा में, हुयेन का अर्थ युद्ध होता है जबकि लैंग्लोन या लैंगलोंग का मतलब शुद्ध, ज्ञान या कला हो सकता है।
  • हुयेन लैंग्लोन में दो मुख्य घटक होते हैं:
    • थांग ता (सशस्त्र लड़ना)।
    • सरित सरक (निहत्थे लड़ना)।
  • हुयेन लैंग्लोन के प्राथमिक हथियार थंग (तलवार) और ता (भाला) हैं। अन्य हथियारों में ढाल और कुल्हाड़ी शामिल हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


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